मानव सभ्यता के लिए क्या जरूरी है और कितना जरूरी है इसे लेकर विमर्ष सदियों से होता रहा है। आर्थिक समृद्धि और विकास को लेकर षायद ही कोई युग रहा हो जब इससे दो-चार न हुआ हो। दुनिया बदलती गयी और नये मांग के साथ आवष्यकतायें भी पांव पसारती चली गयी। भारत में उदारीकरण, षहरीकरण, निगमीकरण, निजीकरण समेत कई आर्थिक उद्यम ने षनैः षनैः अपनी जगह बनायी। जीवन षैली बदली उससे जुड़े मूल्य बदले और सर्वांगीण विकास सहित समावेषी की अवधारणा विकसित हुई। बदलते दौर के अनुपात में कोषिषें भी परवान चढ़ी और बंद अर्थव्यवस्था वाला भारत दुनिया के लिए सर्वाधिक आकर्शण वाला बाजार बन गया। इतना ही नहीं आर्थिक मोर्चे पर उभरती अर्थव्यवस्था में न केवल षुमार है बल्कि क्रय षक्ति के मामले में तीसरी बड़ी अर्थव्यवस्था के रूप में भी स्थान बनाया। मौजूदा समय में लालफीताषाही और भ्रश्टाचार से मुक्ति के मार्ग के बीच दूसरे देषों के अंदर भारत के प्रति एक नया नजरिया विकसित किया जा रहा है। प्रधानमंत्री मोदी लगभग चार साल के अपने कार्यकाल में दुनिया भर के 80 से अधिक देषों में भ्रमण कर द्विपक्षीय और बहुपक्षीय नीतियों पर काम कर कमोबेष भारत की साख को बल देने की लगातार कोषिष की। लिहाजा इस बात में अब कोई हिचक नहीं होती कि भारत में व्यापार व निवेष को लेकर पहले जैसे किसी में असमंजस हो। भारत निवेष के लिहाज से हर हाल में बेहतरी की ओर गया है। वैष्विक स्तर पर व्यापार और उससे जुड़ी आषायें भी उच्च स्तर पर हैं। हालिया परिप्रेक्ष्य यह है कि प्रधानमंत्री मोदी ने दावोस के विष्व आर्थिक मंच के उद्घाटन भाशण में एक बार फिर भारत में निवेष के लिए दुनिया भर के देषों को न्यौता दिया है। उन्होंने अपने अनूठे अंदाज में कहा कि वेल्थ के साथ वेलनेस, हेल्थ के साथ होलनेस और प्रोस्प्रेरिटी के साथ पीस चाहिए तो भारत आइये। इसमें कोई दुविधा नहीं कि बीते दो-ढ़ाई दषकों से भारत की तस्वीर अलग रूप अख्तियार कर चुकी है। इसमें भी कोई षक नहीं कि मोदी ने इस तस्वीर को दुनिया के देषों के सामने उजले तरीके से पेष किया है उसी का एक नजारा दावोस में भी देखने को मिला।
प्रधानमंत्री मोदी का यह संदेष भी बड़ा कारगर है कि मानव सभ्यता के लिए तीन बड़े खतरे हैं, पहला जलवायु परिवर्तन का, दूसरा आतंकवाद और तीसरा आत्म केन्द्रित होना। सिलसिलेवार तरीके से देखा जाय तो जलवायु परिवर्तन और आतंकवाद को लेकर वैष्विक मंच हमेषा से सराबोर रहे हैं जबकि आत्मकेन्द्रित वाला मामला नया प्रतीत होता है। मोदी अपने कार्यकाल के षुरूआत से ही आतंकवाद के खात्मे को लेकर दुनिया के देषों को एकजुट करने की कोषिष करते रहे साथ ही पाकिस्तान को अलग-थलग करने के प्रयास में भी संलग्न रहे। गौरतलब है कि पाकिस्तान प्रायोजित आतंक से भारत दषकों से चोट सह रहा है। जबकि अमेरिका, यूरोप, एषिया समेत आॅस्ट्रेलिया जैसे देष भी आतंकी हमले के षिकार हो चुके हैं। एक अच्छी बात यह रही है कि आतंक से लड़ने का इरादा सभी ने जताया और समय के साथ आतंक कमजोर भी पड़ा है पर यही बात पाकिस्तान के मामले में नहीं कही जा सकती क्योंकि अभी भी भारत के भीतर जिन्दा आतंकी पकड़े जा रहे हैं और पाकिस्तान के अंदर आतंकवादी खुले आम घूम रहे हैं। हालांकि अमेरिका की घुड़की और आर्थिक प्रतिबंध के चलते पाकिस्तान की मुसीबतें बढ़ी है पर उसमें कोई बदलाव आयेगा कहना मुष्किल है। जलवायु परिवर्तन के मामले में 1972 से दुनिया एक मंचीय होती रही। 1992 के पृथ्वी सम्मलेन से लेकर 2009 के कोपेनहेगन की बैठक तक और 2015 में हुए पेरिस जलवायु सम्मेलन में चिंतायें उभरती रहीं पर इसे लेकर कारगर कदम उठे हैं अभी भी बात पूरे मन से नहीं कही जा सकती और इसका पुख्ता सबूत अमरिका का पेरिस जलवायु संधि से हटना देखा जा सकता है। परिप्रेक्ष्य और दृश्टिकोण यह इषारा करते हैं कि जिस प्रकार आक्सफेम की हालिया रिपोर्ट में यह बताया गया है कि 82 फीसदी सम्पदा एक फीसदी लोगों के पास है जबकि भारत में भी 73 फीसदी सम्पदा एक फीसदी लोगों के पास है। आंकड़े आत्म केन्द्रित और आर्थिक केन्द्रीकरण के परिचायक ही हैं जबकि वास्तुस्थिति ये है कि दुनिया विकेन्द्रीकरण और हितवाद के साथ परहितवाद से परिपूर्ण है। सवाल है कि ये तीसरे प्रकार की बीमारी जिसका जिक्र प्रधानमंत्री मोदी दावोस में कर रहे हैं उससे भारत को भी निजात पाना है। राश्ट्रपिता महात्मा गांधी के सर्वोदय के विरूद्ध भी इसे देखा जा सकता है। यह बात और भी हैरत में डालने वाली है जब यह पता चलता है कि दुनिया की आधी आबादी में साल 2017 में आर्थिक तौर पर रत्ती भर भी परिवर्तन नहीं आया है।
अनिष्चितता और तीव्र परिवर्तन के इस दौर में एक भरोसेमंद, टिकाऊ, पारदर्षी और प्रगतिषील भारत एक अच्छी खबर है। स्विटजरलैण्ड के दावोस में षक्तिषाली भारत की तस्वीर पेष करते हुए विष्व आर्थिक मंच से जो हुंकार मोदी ने भरी है उसके कई मायने हैं। यह सही है कि भारत का आर्थिक ढांचा निवेष की अवधारणा से सषक्त होगा। जिस तरह इण्डिया मतलब बिज़नेस के रूप में दुनिया को हम दिखाना चाहते हैं उसमें तभी बड़ी सफलता मिल सकती है जब कारोबारी दृश्टि से सुगमता को अव्वल कर पायेंगे। हालांकि अन्तर्राश्ट्रीय एजेंसी की हालिया रिपोर्ट यह जताती है कि भारत कारोबारी दृश्टि से 130वें से 100वें नम्बर पर है। साफ है कि निवेष के आकर्शण के यह काम आ सकता है। मेक इन इण्डिया भी निवेष का एक अच्छा जरिया है जिसका प्रचार-प्रसार वैष्विक फलक पर मोदी ने खूब किया पर आषातीत सफलता से अभी वह दूर है। हिन्दी में 50 मिनट के प्रभावी भाशण के दौरान मोदी ने कुछ भी नहीं छोड़ा उन्होंने इस दौरान कई खास बिन्दुओं को छुआ। उनका मानना है कि साल 2025 तक भारतीय अर्थव्यवस्था पांच लाख करोड़ डाॅलर की होगी। बुरे और अच्छे आतंकवाद में भेद को बेहद खतरनाक बताते हुए मोदी ने कहा कि निवेषकों के लिए रेड टेप खत्म कर रेड कारपेट बिछाया गया है। इतना ही नहीं भारतीय अर्थव्यवस्था के साथ उन्होंने भारतीय दर्षन से भी दुनिया को अवगत कराया। खास यह भी रहा कि तकरीबन 20 वर्श बाद इस मंच से भारत का कोई प्रधानमंत्री वैष्विक समुदाय को सम्बोधित कर रहा था। जैसा कि सभी समझते और जानते हैं कि अनूठी कला के धनी मोदी वक्त को बेहतर अवसर में बदल देते हैं। फलस्वरूप उन्होंने पूरा लाभ उठाते हुए भारत को एक बेहतरीन निवेष स्थल के तौर पर मार्केटिंग करने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी।
दावोस में प्रधानमंत्री मोदी का अंदाज परिपक्व और अनुभवी प्रबन्धक की तरह लगा। हर प्रकार के संदर्भों को जिस प्रकार वे उद्घाटित कर रहे थे उससे साफ था कि पुराने और नये मोदी का भी फर्क था। मोदी के अनुसार संरक्षणवाद, आतंकवाद की तरह ही खतरनाक है। इस मामले में पड़ोसी देष पाकिस्तान उनके रडार पर था। उन्होंने नये भारत के बाद नये विष्व का नारा दिया। यह सही है कि भारत दार्षनिकों और तमाम विचारों का देष है पर जिस सहयोग और समन्वय की आवष्यकता हम दुनिया से महसूस करते हैं क्या वो हमारे देष के भीतर है। चीजें बदल रही हैं, चुनौतियां बदल रही हैं और दुनिया का नजरिया बदल रहा है। जाहिर है हमें भी अंदर से बदलना होगा। जिस सहयोग की उम्मीद हम दुनिया से करते हैं और भारत में निवेष के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगाते हैं क्या उसके लाभ का हिस्सा सभी में समान रूप से बंट सकता है। आॅक्सफेम की रिपोर्ट षक को गहरा देती है। अमीरी और गरीबी के बीच खाई बढ़ रही है और अन्नदाता जान दे रहे हैं। करोड़ों जिन्दगी के लिए जीवन मुहाल है इन सबके बीच भारत की तस्वीर उजली है तो कोई बुराई नहीं पर स्याह कोनों को भी बिना उजला किये पूरी तस्वीर षायद ही उजली कही जायेगी।
सुशील कुमार सिंह
निदेशक
वाईएस रिसर्च फाॅउन्डेशन आॅफ पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन
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