अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोश की अध्यक्ष क्रिस्टीन लिगार्ड का कथन कि भारतीय अर्थव्यवस्था बेहद मजबूत राह पर है। आईएमएफ के इस आंकलन से बीते कुछ महीने से भारत में विकास दर की गिरावट को लेकर सरकार पर जो तल्खी दिखाई गयी उसमें कमी आ सकती है। इस बात से हैरानी नहीं कि नोटबंदी और जीएसटी के बावजूद भारतीय अर्थव्यवस्था पटरी पर है पर चिंता इस बात की जरूर है कि क्या वाकई में अर्थव्यवस्था को लेकर संरचनात्मक सुधार मजबूती की ओर है? आईएमएफ का भारतीय अर्थव्यवस्था की तारीफ से भरा हालिया बयान उत्साहवर्धक है। हो सकता है नोटबंदी और जीएसटी से होने वाला नुकसान महज़ अल्पकालिक हो परन्तु इसका तात्पर्य यह नहीं कि ढांचागत सुधारों में अमल करने से सरकार को छूट मिल जाती है। वित्त मंत्री अरूण जेटली मौजूदा आर्थिक सुधार को सही समय पर उठाया गया कदम बता रहे हैं जबकि नीति आयोग का मानना है कि भारत आर्थिक नरमी से उबरा है पर महंगाई से लेकर बेरोज़गारी और आम जन-जीवन में उपजी समस्याएं इस बात को मानने की इजाजत षायद ही दें। बेषक अर्थव्यवस्था को नई राह पर ले जाना था पर सरकार का समय के साथ बदलते निर्णय षंका को और पुख्ता बना देते हैं। गौरतलब है कि आईएमएफ सहित कई एजेंसियों ने खासतौर पर नोटबंदी से अर्थव्यवस्था के प्रभावित होने की बात कही थी जबकि सरकार ने इससे इंकार किया था। आर्थिक षोध की एजेंसी मुडीज़ ने भी नोटबंदी के बाद अर्थव्यवस्था को जून तक लगभग न संभलने की बात कही थी जो सच भी था। जून के बाद ही यह पता चला था कि देष का विकास दर जो 7 प्रतिषत से ऊपर था पिछले कई वर्शों की तुलना में नीचे लुढ़क कर 5 के इर्द-गिर्द रह गया। गौरतलब है कि आईएमएफ ने पिछले सप्ताह 2017 के लिए भारत की वृद्धि दर के अनुमान को घटा कर 6.7 प्रतिषत कर दिया। यह उसके अप्रैल और जुलाई के अनुमान से आधा प्रतिषत कम है। इसके लिए आईएमएफ ने नोटबंदी और जीएसटी को प्रमुख बताया।
आईएमएफ ने अपनी नवीनतम विष्व आर्थिक परिदृष्य रिपोर्ट में वृद्धि दर के लिहाज़ से चीन को भारत से आगे रखा है जिसमें कोई अचरज वाली बात नहीं है पर गौर करने वाली बात यह है कि वर्श 2018 में भारत दुनिया में सबसे तेज वृद्धि करने वाली अर्थव्यवस्था का दर्जा फिर हासिल कर सकता है का अंदाजा भी लगाया गया है। नीति आयोग भी 2018 की पहली तिमाही में ऐसी ही बढ़त की उम्मीद लगाये हुए है। बेषक जीएसटी सरकार के लिए एक दुधारू गाय की तरह है पर इससे प्रभावित कई वर्गों में असंतुश्टि का दौर अभी थमा नहीं है। जुलाई से लेकर सितम्बर तक की एक तिमाही का आंकलन यह बताता है कि अप्रत्यक्ष कर में तुलनात्मक वृद्धि हुई है हालांकि थोड़ी चिंता यह भी हुई कि जुलाई माह में लगभग 94 हजार करोड़ का कर संग्रह अगस्त में 90 हजार के आसपास ही सिमट गया। जीएसटी के बाद पनप रही कठिनाई को देखते हुए सरकार ने अक्टूबर के प्रथम सप्ताह में एक बार फिर संषोधन करते हुए कुछ वर्ग को राहत दिया है और रिटर्न दाखिल करने को मासिक से त्रिमासिक कर दिया। सरकार जानती है कि जीएसटी उन प्रमुख ढांचागत सुधारों में एक है जिसके माध्यम से विकास दर को दहाई में तब्दील किया जा सकता है परन्तु यदि विकास दर 8 फीसदी भी मिलता है तो भारत की बुनियादी समस्याएं मसलन हर पांचवां गरीबी रेखा के नीचे रहने वाला और हर चैथा अषिक्षित समेत अनेकों व्याधियों से देष को छुटकारा मिल सकता है। जब भी ढांचागत सुधार की बात होती है तो राजस्व और राजकोश पर पूरा ध्यान होता है। आईएमएफ जिस राह पर भारत को चलने की बात कही है उससे साफ है कि वह भारत की अर्थव्यवस्था के प्रति अच्छी समझ रखता है और सरकार इसके प्रति अच्छी उम्मीद। बावजूद इसके इस बात को भी तवज्जो देना होगा कि भारतीय अर्थव्यवस्था को भारत की पारिस्थितिकी के अनुपात में संचालित करते हुए प्राथमिकताओं पर काम करना जिसका देष में अम्बार लगा हुआ है।
भारत की मंद पड़ी अर्थव्यवस्था पर आईएमएफ की उम्मीद से भरी टिप्पणी को तभी प्रमाणित माना जा सकेगा जब सरकार प्राथमिकता वाले क्षेत्रों को बुनियादी हल दे देगी। देष में 60 प्रतिषत से अधिक तादाद में किसान हैं जिसमें बड़े जोत से लेकर खेतिहर मज़दूर भी षामिल हैं। जाहिर है इनसे कोश में इज़ाफा नहीं होता है पर जिनसे कर वसूला जाता है उनकी रोटी इन्ही केे श्रम से बनती है। इसके अलावा 80 करोड़ के आस-पास देष के युवाओं को रोज़गार का भी रास्ता सुझाना है। गौरतलब है कि मौजूदा सरकार प्रतिवर्श दो करोड़ रोज़गार देने का वायदा किया था जो सम्भव नहीं हुआ। युवाओं को हुनरमंद बनाने हेतु स्किल डवलेपमेंट की संस्थाएं भी देष में महज 15 हजार ही हैं जबकि चीन में इसकी संख्या पांच लाख से अधिक है। इतना ही नहीं दक्षिण कोरिया जैसे छोटे देषों में यह संख्या एक लाख है। युवा ऊर्जा है, रोज़गार की स्थिति में सरकार के लिए कोश भरने के काम भी आता है। स्आर्टअप इंडिया एण्ड स्टैंडअप इंडिया से ही काम नहीं चलेगा। बदले समय में इकोलाॅजी के मुताबिक रोज़गार के रास्ते चैड़े करने होंगे। आईएमएफ द्वारा सुझाये गये ढांचागत सुधारों पर सरकार को तत्काल कदम उठाना चाहिए साथ ही अपनी आर्थिक पारिस्थितिकी को भी ध्यान में रखना चाहिए। बेघर लोगों की भी देष में बहुत बड़ी जमात है। सरकार ने 2022 तक सभी को घर देने का आह्वान किया है। षिक्षा, स्वास्थ्य, बिजली, पानी, सड़क और रेल परिवहन समेत कई अन्य भी ढांचागत परिवर्तन व सुधार की राह ताक रहे हैं। हालांकि बुलेट ट्रेन की परिकल्पना परिवहन में एक बड़ा सुधार है। जाहिर है इन्हें पूरा करने में सरकार को व्यापक पैमाने पर राजस्व की आवष्यकता पड़ेगी। इसे देखते हुए सरकार आर्थिक नीति को लेकर कड़े कदम उठा रही है मसलन रसोई गैस पर मिलने वाली सब्सिडी को भी मार्च 2018 तक समाप्त की जा सकती है।
संषोधन तो अनेकों करने हैं काॅरपोरेट व बैंकिंग क्षेत्र को लम्बे समय तक कमज़ोर हालत में नहीं रखा जा सकता। श्रम एवं उत्पाद बाजार की क्षमता को बेहतर सुधार देना ही होगा। श्रम बल में महिलाओं की भागीदारी पुरूशों के समान हो जाय तो भारत में जीडीपी की वृद्धि दर 27 प्रतिषत बढ़ जायेगी। हालांकि इसी मामले में आईएमएफ का मानना है कि अमेरिका में 5 प्रतिषत, मिस्र में 34 प्रतिषत की बढ़त की संभावना है। दुनिया वैष्विक अर्थव्यवस्था के साथ कदमताल कर रही है। समावेषी अर्थव्यवस्था के इस दौर में चीजें इतनी प्रतिकूल नहीं हैं कि वैष्विक सुधार का लाभ न लिया जा सके। वित्त मंत्री अरूण जेटली ने संरचनात्मक बदलाव और वैष्विक अर्थव्यवस्था में परिवर्तन के कारण भारत को अगले एक या दो दषक में उच्च स्तर तक वृद्धि करने की क्षमता वाला देष बता रहे हैं। गौरतलब है भौगोलिक परिस्थिति के अनुपात में देखें तो भारतीय अर्थव्यवस्था का रास्ता अन्य देषों से भिन्न भी है। कृशि, उद्योग एवं सेवा क्षेत्र को एक ही मानक से ऊंचाई नहीं दी जा सकती। वर्श 1952 में तुलनात्मक लोक प्रषासन के अन्तर्गत फ्रेडरिग्स ने तीसरी दुनिया के देषों जिसमें भारत भी षामिल था को यह मंत्र दिया था कि विकास को गैर पारिस्थितिकी के बजाय पारिस्थितिकी के अन्तर्गत करना चाहिए। ठीक इसी तर्ज पर भारतीय अर्थव्यवस्था को मात्र आईएमएफ के सुझाव पर न चलके स्वयं के षोध और स्वयं अंकगणित पर आधारित बनाना चाहिए। आईएमएफ के सकारात्मक बोल से मन अच्छा हो गया है पर जमीन पर बिखरी समस्याएं जब तक हल नहीं प्राप्त करेंगी यह कह पाना मुष्किल होगा कि हमारी अर्थव्यवस्था पटरी पर है या यह समझ पाना भी कठिन होगा कि भारतीय अर्थव्यवस्था का रास्ता फिलहाल क्या है।
सुशील कुमार सिंह
निदेशक
वाईएस रिसर्च फाॅउन्डेशन आॅफ पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन
डी-25, नेहरू काॅलोनी,
सेन्ट्रल एक्साइज आॅफिस के सामने,
देहरादून-248001 (उत्तराखण्ड)
फोन: 0135-2668933, मो0: 9456120502
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