Wednesday, October 18, 2017

तबाही की भट्टी पर बैठा है उत्तर कोरिया

इस सवाल के साथ कि जहां 21वीं सदी की दुनिया में एक देष का सरोकार दूसरे से तेजी से जुड़ रहा हो वहीं परमाणु युद्ध का भी अवसर निर्मित हो रहा हो ये वाकई हैरत पैदा करता है। किसी भी देष की सुरक्षा और आंतरिक व्यवस्था को बनाये रखने के लिए युद्ध सामग्री व संसाधन कितने पैमाने पर होने चाहिए इसका जवाब षायद ही किसी के पास हो पर इस बात की चिंता करते हुए कई देष मिल जायेंगे कि अभी इसकी आवष्यकता उन्हें है। इसी सूची में उत्तर कोरिया को स्पश्ट तौर पर रखा जा सकता है। दुनिया को परमाणु युद्ध में झोंकने की धमकी देना अब उत्तर कोरिया की फितरत बन गयी है। अलबत्ता यह चुनौती सीधे तौर पर अमेरिका के लिए है पर युद्ध के समय स्थिति दो देषों तक सीमित नहीं रहेगी। एक नासमझ या सनकपन की हद तक जा चुका तानाषाह किम जोंग कितना खतरनाक हो सकता है इसे उसकी मौजूदा हरकतों को देखकर अंदाजा लगाया जा सकता है। गौरतलब है कि संयुक्त राश्ट्र संघ में उत्तर कोरिया के राजदूत किम यांग ने यह कह कर इस बात को और पुख्ता कर दिया है कि उत्तर कोरिया और अमेरिका के बीच कभी भी परमाणु युद्ध छिड़ सकते हैं। लम्बी ज़बान से बड़ी बात कहने वाले उत्तर कोरियाई सिर्फ युद्ध का नेतृत्व कर रहे हैं। यह सही है कि उत्तर कोरिया पूरी तरह परमाणु सम्पन्न देष बन चुका है और ऐसे हथियारों का जखीरा इकट्ठा कर लिया है जिससे उसके बोल इस कटुता तक हो सकते हैं पर षायद किम जोंग इस बात में कहीं न कहीं अपरिपक्वता दिखा रहा है कि उसके सामने अमेरिका है। उत्तर कोरिया के घातक हथियारों में परमाणु बम, इंटर-काॅन्टिनेंटल बेलिस्टिक मिसाइल जिसकी जद्द में पूरा अमेरिका आ सकता है इत्यादि के बूते युद्ध की धमकी दे रहा है। यथार्थ यह भी है कि यदि ऐसी नौबत आती है तो इस जद्द में पूरी दुनिया आयेगी। 
दो टूक यह भी है कि अमेरिका के राश्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के सत्तासीन होने के बाद उत्तर कोरिया तुलनात्मक अधिक हमलावर होते दिखाई देता है। जुबानी हमले के साथ परमाणु परीक्षण से लेकर मिसाइल परीक्षण तक में वह तेजी भी लाया है। हालांकि पूरी तरह तो नहीं पर यह आषंका जताई जा सकती है कि ट्रंप के तेवरों को देखते हुए किम जोंग कहीं अधिक सतर्क होने की फिराक में परमाणु परीक्षणों की गति बढ़ाई हो जैसा कि तानाषाह किम जोंग पहले भी कह चुका है कि यदि इराक और लीबिया जैसे देष परमाणु सम्पन्न होते तो उनका हाल यह न होता। साफ है कि हथियारों के बूते अपनी सुरक्षा की गारंटी वह पाना चाहता है। इसमें कोई षक नहीं कि मौजूदा समय में वह परमाणु हथियार वाले देषों की सूची में है और बेहद सषक्त भी है साथ ही कहीं भी समझौता करने के लिए तैयार नहीं। ऐसे में उसके सनकपन से यदि युद्ध छिड़ भी जाय तो किसी को अचरज नहीं होना चाहिए। पिछले साल जब 6 जनवरी को जब उसने चैथा परमाणु परीक्षण किया तब उस पर पाबंदियों का एक और वार चला। कई वैष्विक चेतावनी भी दी गयी पर सभी को नजरअंदाज किया। गौरतलब है कि 2006 से अब तक वह पांच बार परमाणु परीक्षण और अनेकों मिसाइलों का परीक्षण कर चुका है। उत्तर कोरिया अपनी करतूतों के चलते पिछले एक दषक से केवल विवादों को जन्म देने वाला देष नहीं बना हुआ है बल्कि दुनिया को ध्रुवों में बांटने की पूरी स्थिति पैदा कर दिया है। निडर उत्तर कोरिया का लगातार बढ़ता दुस्साहस अमेरिका के माथे पर बल ला रहा है पर अमेरिका इसके समाधान के कुछ और विकल्प देख रहा है। यह बात गौर करने वाली है कि जब कुछ दिनों पहले ट्रंप ने उत्तर कोरिया को पूरी तरह तबाह करने की धमकी दे रहे थे तो इसकी आड़ में केवल उत्तर कोरिया ही नहीं बल्कि आंषिक चेतावनी चीन के लिए भी थी। ऐसा इसलिए क्योंकि चीन उत्तर कोरिया पर इस हद तक दबाव बना दे कि ट्रंप की कोषिषों के बगैर ही समस्या हल हो जाय।
बेषक अमेरिका दुनिया का मजबूत देष है पर बदले वैष्विक वातावरण में इसकी नीतियां भी कहीं अधिक व्यावसायिक और व्यावहारिक हुईं हैं। इतना ही नहीं कई देषों की चुनौतियों से भी बीते कुछ वर्शों में अमेरिका घिरा है। कई देष जो द्वितीय पंक्ति के थे अपनी आर्थिक और व्यापारिक समृद्धि के चलते काफी मजबूती हासिल कर चुके हैं साथ ही अमेरिका के एकाधिकार को भी चुनौती दी है जिसमें चीन जैसे देष काफी ऊपर हैं। इसी प्रकार कई यूरोपीय और एषियाई देष भी देखे जा सकते हैं। इस श्रेणी में भारत को भी रखा जा सकता है परन्तु भारत आर्थिक विकास की अवधारणा में किसी के लिए चुनौती न बन कर स्वयं की व्यवस्था को समुचित करने की दिषा में संलिप्त रहा है जबकि भारत की निरंतर विकास से चीन जैसे देष जो एषिया में एकाधिकार का मनसूबा रखते हैं उनको बड़ा कश्ट हुआ है पर वहीं जापान जैसे देष अच्छे दोस्त भारत के साथ हैं। परमाणु युद्ध की धारणा दुनिया की तबाही का पर्यायवाची है। जंग भले ही कोई जीते पर कीमत सबको चुकानी पड़ेगी। बदलते हुए अन्तर्राश्ट्रीय परिदृष्य में व्यापार, बाजार, सुरक्षा और संरक्षा आदि के स्वरूप भी बदले हैं। यह कह पाना अब थोड़ा मुष्किल है कि विभिन्न महाद्वीप के कितने ध्रुव बनेंगे पर यह समझना आसान है कि भारत जैसे देष ऐसी संकल्पनाओं को छूना भी नहीं चाहेंगे। गौरतलब है कि रूस, जापान, जर्मनी, अमेरिका, ब्राजील, दक्षिण अफ्रीका एवं आॅस्ट्रेलिया समेत दुनिया के सभी महाद्वीपों के देषों से भारत की अच्छी मित्रता है। यहां तक कि तकनीकी रूप से दक्ष इजराइल का दौरा करके प्रधानमंत्री मोदी ने इसे और मजबूत कर दिया है। हालंाकि समझदार और हकीकत को समझने वालों के बीच युद्ध को पैठ बनाने की जगह नहीं मिलनी चाहिए पर यह नहीं भूलना चाहिए कि छोटी दिखने वाली घटनाओं ने महायुद्धों को जन्म दिया है। 
1914 का प्रथम विष्वयुद्ध निहायत छोटी घटना का नतीजा था। गौरतलब है कि द्वितीय विष्वयुद्ध के पहले इसे ग्रेट वाॅर कहा जाता था। 1939 में द्वितीय विष्वयुद्ध के बाद इसे प्रथम विष्ववयुद्ध की संज्ञा दी गई। दोनों युद्धों के इतिहास पर बारीकी से नजर डाली जाय तो युद्ध के कारण और परिणाम दोनों चिंतित करने वाले हैं। यदि अब ऐसा माहौल बनता है तो तीसरा विष्वयुद्ध ही कहा जायेगा पर इसके आसार इसलिए कम हैं क्योंकि इस उलझन को सुलझाने के लिए बेबाक और व्यापक कूटनीति का सहारा लिया जा रहा है। क्या यह बात वाजिब नहीं है कि डोनाल्ड ट्रंप स्वयं को ऐसी षख्सियत के तौर पर परोस रहे हैं कि सबको डरना चाहिए। सात मुस्लिम देषों पर पद धारण करने के एक सप्ताह के भीतर प्रतिबंध लगाना, कई देषों को धमकाना, कईयों के राश्ट्राध्यक्षों को भाव न देना इत्यादि ट्रंप के षुरूआती फितरत में देखा जा सकता है। हालांकि पाकिस्तान को आतंक के मामले में डोनाल्ड ट्रंप ने जो जली-कटी सुनाई और जिस पैमाने पर उसे धमकाया है वह हर हाल में काबिल-ए-तारीफ है। इसी सबके बीच एक बात पूरी तरह सच है कि किम जोंग नहीं डर रहा है। किम जोंग की हरकतों को देखते हुए ऐसा महसूस होता है कि उसकी उंगली हमेषा ट्रिगर पर है और उसके निषाने पर प्रषान्त महासागर में अमेरिका अधिकृत गुआम द्वीप से लेकर वाषिंगटन और न्यूयाॅर्क है। वैसे चीन चाहे और दिल से चाहे तो किम जोंग को पटरी पर लाने में मदद कर सकता है। व्यापार और आर्थिक संरक्षण के मामले में चीन उत्तर कोरिया के लिए किसी आका से कम नहीं है पर अपने पड़ोस के दर्जनों देषों से उसकी स्वयं की दुष्मनी है। फिलहाल उत्तर कोरिया की लगातार धमकी चिंता करने वाली है जिस पर केवल अमेरिका ही नहीं बल्कि षेश दुनिया को इसलिए आगे आना चाहिए ताकि न तो युद्ध की नौबत आये और न ही परमाणु युद्ध छिड़े क्योंकि लम्हों की खता सदियों को चुकाना पड़ता है। 


सुशील कुमार सिंह
निदेशक
वाईएस रिसर्च फाॅउन्डेशन आॅफ पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन 
डी-25, नेहरू काॅलोनी,
सेन्ट्रल एक्साइज आॅफिस के सामने,
देहरादून-248001 (उत्तराखण्ड)
फोन: 0135-2668933, मो0: 9456120502
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