हाल ही में यह पढ़ने को मिला कि दिल्ली के कष्मीरी गेट में एषिया की सबसे बड़े आॅटोपार्ट्स बाजार में सन्नाटा छाया है। ऐसा इसलिए क्योंकि अधिकतर आॅटोपाटर््स पर 28 प्रतिषत जीएसटी है जिसके चलते व्यापार ठण्डा है। इसी क्रम में यह भी था कि इस बाजार में दो प्रकार के व्यापारी हैं। एक वे जो जीएसटी के अन्तर्गत रजिस्टर्ड हैं जिन्हें 28 फीसदी जीएसटी लगा कर माल बेचना है जबकि दूसरे वे व्यापारी जो बिल बिना दिये धड़ल्ले से माल बिना जीएसटी लिये बेच रहे हैं। जाहिर है कि जीएसटी लेने वाले नहीं लेने वालों की तुलना में मंदी से गुजर रहे होंगे। गौरतलब है कि जीएसटी के कई स्लैब हैं जिसमें 5 प्रतिषत से अधिकतम 28 प्रतिषत तक का कर दर निर्धारित है। सभी जानते हैं कि बरसों की कवायद के बाद जब जीएसटी इसी वर्श 1 जुलाई को धरातल पर उतरा तो उम्मीदें भी परवान चढ़ी थी। दषक से अधिक वक्त की कवायद और 2014 के षीत सत्र से मौजूदा सरकार द्वारा जीएसटी को लेकर की जा रही कोषिष जब सार्थक हुई तब षायद ही यह असमंजस रहा हो कि आने वाले दिनों में इसमें ढांचागत खामियों का खुलासा होगा। राजस्व सचिव हंसमुख अढ़िया ने रविवार 22 अक्टूबर को जीएसटी के ढांचे में संषोधन की बात कह कर यह जता दिया कि मौजूदा ढांचे में खामी तो है। राजस्व सचिव का यह बयान इस ओर भी इंगित करता है कि जीएसटी के वर्तमान स्वरूप से छोटे और मझोले व्यापारियों की समस्याएं बढ़ी हैं जिसे दुरूस्त किया जाना है। हालांकि बीते 7 अक्टूबर को समस्या को देखते हुए डेढ़ करोड़ तक के कारोबार करने वालों को मासिक रिटर्न से छुटकारा देते हुए तिमाही रिटर्न दाखिल करने की बात कही गयी थी। फिलहाल इसके पीछे एक बड़ा कारण बीते तीन महीने से कारोबारियों में पनपा रोश भी माना जा रहा है।
जीएसटी के क्या फायदे और क्या नुकसान हैं इसकी चिंता भी खूब होती रही। इसे लेकर आंकड़े और सूचनाएं भी खूब परोसे गये। सरकार इसे क्यों लागू कर रही है इस पर भी खूब सफाई दी गयी। बावजूद इसके मौजूदा कर ढांचे में कमी का होना होमवर्क का अधूरा होना कहा जा सकता है। प्रधानमंत्री मोदी नोटबंदी और जीएसटी को फायदेमंद तो बता रहे हैं साथ ही यह भी कह रहे हैं कि इससे कालाधन बाहर आया और अर्थव्यवस्था ने गति पकड़ी जबकि रिज़र्व बैंक के अनुसार 99 फीसदी पैसा बैंकों में जमा हो चुका है। सम्भव है बचा हुआ 1 फीसदी काला धन हो सकता है या फिर गलत तरीके से जमा किया गया पैसा इस श्रेणी में आ सकता है पर कितना है इसका कोई खुलासा नहीं हुआ है। फिलहाल प्रधानमंत्री का यह कहना कि आर्थिक सुधार के लिए कड़े कदम उठाते रहेंगे इससे भी साफ है कि विकास को टाॅप गियर में लाने के लिए जैसा कि वह स्वयं कह रहे हैं अर्थव्यवस्था को उथल-पुथल से बाहर निकालना ही होगा। जिस प्रकार जीएसटी को लेकर नित नये बयान और समीकरण उभर रहे हैं उससे भी यही लगता है कि कई क्षेत्रों में टैक्स को लेकर समस्या तो है। राजस्व सचिव ने भी माना है कि जहां टैक्स का बोझ ज्यादा हो गया है वहां उसे सरलीकृत करना होगा। जाहिर है जीएसटी की स्वीकार्यता को सकारात्मक रूप से बढ़ाना है तो जरूरी संषोधन करने ही होंगे परन्तु इस प्रकार के संदर्भ इस बात के लिए भी अवसर देते हैं कि जीएसटी लागू करने में ढांचागत खामियों से सरकार बच नहीं पायी है। जीएसटी में सुधार एवं विचार के लिए जीएसटी काउंसिल की 23वीं बैठक आगामी 10 नवम्बर को गुवाहाटी में हो रही है। वित्त मंत्री अरूण जेटली की अगुवाई में होने वाली इस बैठक में सभी राज्यों के प्रतिनिधि भी हिस्सा लेंगे। सम्भव है कि वस्तु एवं सेवा कर के मामले में नई बात देखने को मिले।
यह अच्छी बात है कि जीएसटी से पनपी समस्याओं को दूर करने को लेकर मंथन चल रहा है लेकिन यह कह पाना मुमकिन नहीं है इसके बाद समस्याएं नहीं पनपेगी। दो टूक यह भी है कि सरकार भले ही राहत के नाम पर संषोधन और परिवर्तन को अमली जामा देने की बात कर रही हो पर इससे यह भी पता चलता है कि जीएसटी लागू करने से पहले सरकार का सारा जोर आम सहमति बनाने पर था न कि इसके प्रति सटीक होमवर्क की। जिन नौकरषाहों के भरोसे जीएसटी को भव्यता दी जा रही थी खामियों ने उनकी भी पोल खोली है। भारत का प्रषासनिक अमला नीति निर्माण एवं क्रियान्वयन के मामले में कितना संजीदा है यह देष में पनपे भ्रश्टाचार से अंदाजा लगाया जा सकता है। 70 सालों से जिस विकास की धारा को देष में लाने की कोषिष रही है उसमें राजनीतिक कार्यपालिका के साथ प्रषासनिक कार्यपालिका का संयोजन है। लोक प्रषासन में यह बात स्पश्ट है कि सरकार वही अच्छी जिसका प्रषासन अच्छा। जब देष नई कर व्यवस्था को अपना रहा हो तो कोई सुराक छूटना नहीं चाहिए। जाहिर है नौकरषाहों ने सरकार को आधा-अधूरा जीएसटी परोसा है। नोटबंदी से लेकर जीएसटी तक में तमाम निर्णयों का अम्बार लगा है। संषोधन, परिवर्तन समेत तमाम छानबीन के बावजूद अभी भी कमियों का मुंह खुला ही है। सरकार के लिए जरूरी केवल यह नहीं है कि वह विपक्ष की आलोचना का जवाब मात्र दे बल्कि आर्थिक विकास का इंजन जीएसटी के ढांचे को भी खामी मुक्त बनाना है। इस ममले में जीएसटी के दायरे में आने वाले उद्योग, व्यापार जगत के न केवल लोगों से विचार विमर्ष करना चाहिए बल्कि आर्थिक जानकारों का भी मंथन इसमें षुमार होना चाहिए। यह ठीक है कि जब भी कोई नई व्यवस्था स्वरूप लेती है तो नई-नई कठिनाईयों का सामना भी होता है परन्तु इसका यह तात्पर्य नहीं कि कठिनाईयों में उलझ कर विकास की राह ही अवरूद्ध कर दिया जाय और लिये गये निर्णय पर संदेह उत्पन्न कराया जाय।
उल्लेखनीय यह भी है कि जीएसटी काउंसिल ने अभी तक जितने भी फैसले लिए हैं वे सर्वसम्मति से अभिभूत रहे हैं। जाहिर है अभी तक ऐसी कोई नौबत नहीं आई जहां वोटिंग की आवष्यकता पड़ी हो। इसके बावजूद भी खामियां निरन्तर महसूस की जा रही हैं जो अतार्किक तो नहीं पर पूरी तरह संगत भी नहीं कहा जा सकता। राजस्व सचिव का यह कहना कि वैट, सर्विस टैक्स, एकसाइज़ ड्यूटी जैसे दर्जन भर टैक्स प्रणाली को खत्म कर नई टैक्स व्यवस्था जीएसटी को सामान्य होने में एक साल का समय लग सकता है। कहना उचित है पर 1 जुलाई को जीएसटी लागू करते समय ऐसे संकेत क्यों नहीं दिये गये। सरकार जानती है कि नई व्यवस्था से नई चुनौतियां सामने आयेंगी। हालांकि इससे निपटने का जिम्मा तो सरकार का ही है परन्तु कपड़ों की तरह निर्णय बदलने की प्रथा से यदि सरकार बाज नहीं आती है तो आलोचना भी उसी की होगी। जीएसटी लागू होने से पहले ही कपड़ा व्यापारी सड़क पर उतर चुके हैं। इसके अलावा कई कारोबारी इसके प्रति नकारात्मक नजरिया दिखा चुके है। गौरतलब है कि दुनिया के सैकड़ों देष अब तक जीएसटी अपना चुके हैं। बहुतायत की स्थिति सुखद नहीं रही है। एषिया के 19 देष यूरोप के 53, अफ्रीका के 44 समेत दक्षिण अमेरिका के 11 देष इसी प्रकार की कर व्यवस्था से युक्त है। कनाडा में जीएसटी 5 फीसदी तो आॅस्ट्रेलिया जैसे देषों में 10 है। सर्वाधिक जीएसटी 27 फीसदी हंगरी में देखने को मिला है जबकि डेनमार्क में 25 फीसदी जीसएसटी लागू है। जाहिर है भारत में 28 फीसदी जीएसटी का अधिकतम स्लैब है। अंततः जीएसटी की उड़ान को मजबूती देने के लिए बची हुई खामियों से न केवल निपटना होगा बल्कि ‘एक राश्ट्र, एक कर‘ की भावना से युक्त जीएसटी को कहीं अधिक प्रभावषाली भी सिद्ध करना होगा।
सुशील कुमार सिंह
निदेशक
वाईएस रिसर्च फाॅउन्डेशन आॅफ पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन
डी-25, नेहरू काॅलोनी,
सेन्ट्रल एक्साइज आॅफिस के सामने,
देहरादून-248001 (उत्तराखण्ड)
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