Wednesday, October 18, 2017

जिनके दीये आँधियों से घिरे हैं

कुछ समय पहले एक समाचार रिपोर्ट से यह पता चला था कि एक 18 वर्शीय लड़के की भुखमरी से मौत हो गयी। हतप्रभ करने वाली बात यह रही कि उसके माता-पिता की मृत्यु भी वर्श 2003 में भुखमरी से ही हुई थी। दोनों घटनाओं में जो एक समानता है वह है भुखमरी। हैरत इस बात की है कि दषक के अंतर के बावजूद भुखमरी के तिलिस्म से यह परिवार बाहर नहीं निकल पाया। इस आलोक में यह बात स्वाभाविक रूप से उभरती है कि समय बीता, सत्ता बदली और आर्थिक दिषा तथा दषा के साथ तकनीक में भी बेजोड़ परिवर्तन हुए पर भुखमरी की परम्परा का निर्वहन जारी रहा। देष में कभी भी ऐसा नहीं रहा जब समाज में गरीबी और भुखमरी पर विमर्ष न हुआ हो। अभी चंद दिन पहले बीते 13 अक्टूबर को भुखमरी पर एक रिपोर्ट जारी हुई जिसमें 119 देष सूचीबद्ध हैं और भारत इसमें 100वें स्थान पर है। यह रिपोर्ट इस बात को तस्तीक करती है कि 70 सालों के लोकतंत्र में जितना सुधार फलक पर दर्षाया गया असल में उतना है नहीं। आज दीपावली है जाहिर है रोषनी के इस महोत्सव में कईयों के दीये आंधियों से अभी भी घिरे हैं। इसमें भी कोई दो राय नहीं कि भुखमरी और गरीबी के तूफान से घिरे करोड़ों लोग के दीये में न तो तेल है, न बाती है और न ही रोषनी। बावजूद इसके दीपावली तो उनकी भी है। कहा जाय तो एक अदद रोषनी की तलाष में कईयों की जिन्दगी बरसों से घनघोर अंधेरे में गुजर-बसर कर रही है। इसमें भी कोई दुविधा नहीं कि भारत में भुखमरी की स्थिति गम्भीर रूप लेती जा रही है। बच्चों में भुखमरी की समस्या सबसे ज्यादा कुपोशण की वजह बनी हुई है। भारत में पांच साल से कम उम्र के हर बच्चे का वजन यहां कम बताया जा रहा है। ताज्जुब यह है कि इस मोर्चे पर भारत उत्तर कोरिया, बांग्लादेष और इराक जैसे देषों से पीछे चल रहा है। 
अन्तर्राश्ट्रीय खाद्य नीति अनुसंधान संस्थान यानी आईएफपीआरआई के ग्लोबल हंगर इंडैक्स से उक्त बातों का पता चला है जिसका खुलासा इसी माह में चंद दिन पहले हुआ है। अपने नागरिकों को स्वास्थ्य और पौश्टिक भोजन प्रदान करना किसी भी सरकार की आर्थिक जिम्मेदारी है। भारत में चाहे कांग्रेस की सत्ता रही हो या फिर भाजपा की। तमाम नेता लगातार देष में प्रगति और विकास के लम्बे-चैड़े दावे करते रहे लेकिन सच्चाई की सूरत इससे इतर है। देष में हर पांचवां व्यक्ति गरीबी रेखा के नीचे है और हर चैथा व्यक्ति अषिक्षित। 21वीं सदी के दूसरे दषक में और प्रगति के इन दिनों में ये आंकड़े क्षुब्ध करने वाले हैं। विभिन्न वैष्विक संगठनों के समय-समय पर होने वाले अध्ययनों और रिपोर्टों से सरकार के दावे की कलई खुलती रही है बावजूद इसके सरकारों ने अपने चरित्र में परिवर्तन नहीं किया। दो साल पहले जब अक्टूबर माह में ही विष्व बैंक की एक रिपोर्ट आई थी तो उसने देष को एक नई उम्मीद से भरा था। रिपोर्ट में यह कहा गया कि वर्श 2030 तक दुनिया से गरीबी का सफाया हो सकता है। वर्श 2015 के 5 अक्टूबर को जारी विष्व बैंक की इस रिपोर्ट में यह भी दर्षाया गया था कि 2012 में किसी भी देष के मुकाबले सबसे ज्यादा गरीब आबादी भारत में थी। मगर राहत वाली बात यह है कि बड़े देषों के बीच भारत का नम्बर सबसे नीचे है। अब इन दिनों एक नई चिंता आईएफपीआरआई की हालिया रिपोर्ट से उजागर हुई है जो यह दर्षाती है कि भारत के पड़ोसी देष में से अधिकतर की रैंकिंग उससे बेहतर है। चीन सबसे आगे 29वें स्थान पर है जबकि नेपाल 72वें, म्यांमार 77वें, श्रीलंका 84वें, बांग्लादेष 88वें स्थान पर हैं। पाकिस्तान और अफगानिस्तान क्रमषः 106वें और 107वें नम्बर पर आते हैं। आंकड़े इस बात का समर्थन करते हैं कि चीन की तुलना में भारत को भुखमरी के मामले में बहुत मेहनत की जरूरत है जबकि अन्य पड़ोसियों की तुलना में उसकी हालत कुछ खास ठीक नहीं है। सवाल है कि यदि आंकड़ों पर विष्वास किया जाय तो क्या सरकारें 119 के मुकाबले 100वें स्थान से भारत को मर्यादित स्थान दिलाने का सबक लेंगी या इस पर भी राजनीतिक लीपापोती करके इतिश्री करेंगी और दीये में तेल की फिराक में साथ ही एक अदत रोषनी की तलाष में भटक रहे गरीबी और भुखमरी से जूझने वालों के प्रति संवेदनहीन बनी रही। जाहिर है सरकार को माई-बाप भी कहा जाता है ऐसे में इस धर्म का भी सही निर्वहन दिया जाय तो कुछ की यह दीपावली न सही आगे की दीपावली रोषनी से भर सकती है। 
पांचवीं पंचवर्शीय योजना (1974-1979) गरीबी उन्मूलन की दिषा में देष में उठाया गया बड़ा दीर्घकालिक कदम था। 1989 के लकड़ावाला कमेटी की रिपोर्ट को देखें तो स्पश्ट था कि ग्रामीण क्षेत्रों में 2400 कैलोरी और षहरी क्षेत्रों में 2100 कैलोरी ऊर्जा जुटाना वाला गरीब नहीं होगा। तब उस समय भारत की गरीबी 36.10 हुआ करती थी। एक दषक बाद यह आंकड़ा 26.1 प्रतिषत हो गया तत्पष्चात् राजनीतिक नोंक-झोंक के बीच आंकड़ा 21 प्रतिषत कर दिया गया। गरीबी का 26 सं 21 फीसदी होने में जिस तरह से राजनीतिक बयानबाजी हो रही थी उससे ऐसा लग रहा था कि गरीबी दूर करना एक आर्थिक नहीं बल्कि राजनीतिक समस्या है। उन दिनों कोई राजनेता एक थाली भोजन की कीमत 20 रू. तो कोई 10 रू. तो कोई इससे भी कम में पेट भरा जा सकता है पर दलीले दे रहा था। भारत में गरीबी रेखा के नीचे वह नहीं है जिसकी कमाई प्रतिदिन सवा डाॅलर थी। हालांकि विष्व बैंक के रिपोर्ट में अब यह बढ़ा कर 1.90 डाॅलर प्रतिदिन कर दिया गया है। गरीबी ही भुखमरी का प्रमुख कारण है, अषिक्षा और बीमारी का भी प्रमुख कारण है। ये तमाम कारण गरीबी के भी बड़े कारण बन जाते हैं। साफ है कि ये परस्पर एक-दूसरे को प्रभावित करने वाली क्रिया है। देष में दो भारत हैं एक ग्रामीण और एक षहरी। षहरी जहां बिजली, पानी, सड़क, चिकित्सा, षिक्षा समेत सभी बुनियादी समस्याओं को हल करने पर जोर है। कहा जाय तो काफी हद तक सहज, सुलभ और सभ्य जीवन की पटकथा यहां निरन्तरता लिए हुए है परन्तु ग्रामीण भारत में चित्र थोड़ा उल्टा है। यहां गर्मी, जाड़ा और बारिष के बीच हाड़-तोड़ मेहनत होती है। बाढ़, अकाल और बेमौसम बारिष से फसलें ही नहीं बर्बाद होती बल्कि जिन्दगियां भी उजड़ती हैं। सभी जानते हैं कि लाखों की तादाद में किसान आत्महत्या कर चुके हैं। जाहिर है दोनों भारत में दीवाली का व्यापक असर और अंतर होगा। 
किसी भी त्यौहार में सर्वाधिक आनंद बच्चे ही लेते हैं। ऐसे में थोड़ी चर्चा उनसे जुड़ी परेषानियों की भी हो जाय तो अनुचित न होगा जो इसका अर्थ समझे बगैर ही दुनिया से जुदा हो जाते हैं। परेषान करने वाला यथार्थ यह है कि प्रतिवर्श 14 लाख बच्चे जिस देष में पांच वर्श की आयु तक पहुंचने से पहले मौत के मुंह में चले जाते हों, जहां बुनियादी संरचना की कमी के चलते छोटी-मोटी बीमारियों से जिन्दगी हाथ से निकल जाती हो। इतना ही नहीं तमाम कोषिषों के बावजूद दो वक्त की रोटी के लिए करोड़ों मोहताज हों वहां दिवाली का दीया कितनी रोषनी करेगा इसका अंदाजा कोई भी लगा सकता है। दीपावली का त्यौहार उत्साह और उमंग से भरा होता है जाहिर है कि इसका आनंद तभी चैगुना हो सकता है जब गरीबी और भुखमरी से मुक्ति मिली हो पर यह बात सभी पर लागू नहीं होती। जब कभी ऐसे मुद्दों पर विमर्ष होता है तो मन अवसाद से घिरता है। बावजूद इसके यह दीपावली सभी के लिए सुखकारी हो इस उम्मीद में कि कल की नीतियां, नियम और आर्थिक नियोजन उनके भी दिन बदलेंगे। माना गरीबी में रस्में पूरी न होती हों पर जज्बों में सभी की दीपावली एक जैसी ही है। 

सुशील कुमार सिंह
निदेशक
वाईएस रिसर्च फाॅउन्डेशन  आॅफ पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन 
डी-25, नेहरू काॅलोनी,
सेन्ट्रल एक्साइज आॅफिस के सामने,
देहरादून-248001 (उत्तराखण्ड)
फोन: 0135-2668933, मो0: 9456120502
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