Monday, August 14, 2017

साल 2017 की अगस्त क्रांति

जिस तर्ज पर गुजरात में राज्यसभा के चुनाव के दौरान बीते 8 अगस्त की आधी रात को सियासी ड्रामा चला उससे स्पष्ट है कि राजनेताओं के लिए सब कुछ जायज़ है बशर्ते उन्हें फायदा होता हो। गौरतलब है कि गुजरात में तीन राज्यसभा सीटों का चुनाव मंगलवार को समाप्त हुआ परन्तु षाम होते-होते मामला हाई-वोल्टेज ड्रामे में तब तब्दील हो गया जब दो बागी कांग्रेसियों के वोट को निरस्त कराने को लेकर कांग्रेस ने दिल्ली में चुनाव आयोग से गुहार लगाई। गौरतलब है कि इन बागी विधायकों ने चुनाव नियम का उल्लंघन करते हुए मतपत्र को दिखाने का कृत्य किया था। मामले को तूल पकड़ता देख और सीट हारने के खतरे से घबराई भाजपा इसके विरोध में आधा दर्जन मंत्री समेत कई षीर्श नेता आनन-फानन में आयोग के समक्ष हाज़िरी लगाई और ऐसा दोनों दलों की तरफ से दो घण्टे के अंदर तीन बार हुआ। फिलहाल चुनाव आयोग ने वीडियो फूटेज देखने के बाद लगभग आधी रात को अपना फैसला सुनाया। आयोग ने कांग्रेस के दावे को सही माना और दोनों विधायकों का वोट रद्द कर दिया। जाहिर है इससे भाजपा का नुकसान और कांग्रेस को सीधे एक सीट का फायदा हुआ। कांग्रेस की ओर से अहमद पटेल को 44 वोट मिले यदि रद्द किये गये वोट भी गिने जाते तो कांग्रेस के उम्मीदवार पटेल एक वोट से राज्यसभा पहुंचने से न केवल वंचित हो जाते बल्कि लोकसभा में गुजरात में सिफर कांग्रेस राज्यसभा में भी इसी इतिहास को दोहराती। तीन सीटों के सम्पन्न चुनाव में भाजपा के राश्ट्रीय अध्यक्ष अमित षाह समेत केन्द्रीय मंत्री स्मृति ईरानी की भी जीत हुई है। पूरी पटकथा की पड़ताल ये इषारा करती है कि आखिरकार भाजपा को फायदा पहुंचाने के नियत से की गई क्राॅस वोटिंग के बावजूद नतीजा कांग्रेस के पक्ष में एक सीट के तौर पर चला ही गया। इसमें कोई दो राय नहीं कि गुजरात की एक सीट की इस हार से भाजपा की रणनीति काफी हद तक विफल हुई है और सियासी ड्रामे के फलस्वरूप जो ताना-बाना भाजपाईयों की ओर से बुना गया उसे लेकर भी बड़ी विफलता उन्हें मिली है। आने वाले दिनों में भाजपा इस जख्म को जरूर ध्यान में रखेगी कि सियासी पटरी पर कांग्रेस मुक्त भारत की अवधारणा को लेकर जो दौड़ लगा रही है उसमें जंग हर बार वही नहीं जीतेगी। 
भाजपा और कांग्रेस के बीच यह कोई अंतिम लड़ाई नहीं है लोकतंत्र के जमीन पर इस प्रकार की प्रतिस्पर्धा आने वाले दिनों में भी होती रहेगी पर इस घटना की रोचकता इस बात के लिए अधिक है कि लोकतांत्रिक तरीके से चुने जाने वाली व्यवस्था के बीच जो छीना-झपटी बीते 8 अगस्त की रात हुई वह मानो लोकतंत्र के लिए कोई महा लड़ाई रही हो। मौजूदा समय के राजनेता देष के 70 साल की आजादी के बाद किस कदर सियासत हथियाने की फिराक में अनाप-षनाप कर रहे हैं यह चिंता के साथ चिंतन का भी विशय है। गुजरात में घटी 8 अगस्त की घटना ने उस अगस्त की क्रान्ति की याद दिला दी जिसने ब्रिटिष षासन की नींव को हिला कर रख दिया था। हालांकि दोनों में कोई तुलना नहीं है पर 75 साल पहले भारत छोड़ो आंदोलन की पटकथा का उजागर करना इसलिए स्वाभाविक है क्योंकि स्वाधीनता और लोकतंत्र की पराकाश्ठा को प्राप्त करने के लिए 8 अगस्त, 1942 को जब आंदोलित नेताओं ने अन्तिम रूप से अंग्रेजों को यह जता दिया कि अब उन्हें भारत छोड़ना ही पड़ेगा तब इतिहास के पन्नों में उकरे उन षब्दों को पढ़कर यह एहसास होता है कि वाकई में वह अगस्त क्रान्ति स्वाधीनता और लोकतंत्र की प्राप्ति की अन्तिम महा लड़ाई थी। इतिहास की इस परिघटना को और समीप से देखा जाय तो 8 अगस्त, 2017 की मध्यरात्रि जब गुजरात में राज्यसभा की सीटों को लेकर हमारे राजनेता एक-दूसरे की लानत-मलानत कर रहे थे तो 1942 की 8 अगस्त की मध्यरात्रि में ही अंग्रेजी सरकार उस दौर के आंदोलित नेताओं को गिरफ्तार करने की योजना बना रही थी। दोनों में एक फर्क यह भी है कि यहां कांग्रेस या भाजपा में चाहे जो जीतती या हारती आखिरकार विजय तो लोकतंत्र का ही होना था पर अगस्त क्रान्ति के उन दिनों में कांग्रेस का जीतना ही अंग्रेजों की हार थी। फिलहाल अंग्रेजी सरकार की निर्धारित योजना के तहत 9 अगस्त की सुबह ‘आॅपरेषन जीरो आॅवर‘ के अन्तर्गत कांग्रेस के सभी महत्वपूर्ण नेता गिरफ्तार कर लिए गये। महात्मा गांधी को पूना के आगां खां पैलेस में रखा गया। इसी पैलेस में सरोजनी नायडू और कस्तूरबा गांधी भी रखी गयी थी। खास यह भी है कि 9 अगस्त, 1942 की अगस्त क्रान्ति बिना किसी नेतृत्व के भारत छोड़ों आंदोलन को लेकर एक महा लड़ाई थी क्योंकि नेतृत्वकत्र्ता जेल में ठूंस दिये गये थे। देखा जाय तो यह देष की जनता की उस इच्छा की अभिव्यक्ति थी जिसमें उसने ठान लिया था कि हमें आजादी ही चाहिए। स्पश्ट है कि 15 अगस्त 1947 को उसी जनता ने आजादी का सूरज उगते हुए देखा था।
बीते कुछ वर्शों से कई महापुरूशों के नाम पर देष की राजनीति में चाषनी खूब घोली जा रही है। राश्ट्रपिता महात्मा गांधी और पण्डित दीन दयाल उपाध्याय को अक्सर एक साथ जोड़कर सियासत को भाजपा परवान चढ़ाती रही है। प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू की आलोचना और सरदार पटेल पर जान छिड़कना भाजपा की नीति में षामिल है। इसके अलावा अम्बेडकर से लेकर लोहिया तक पर भी उसकी नजर रही है। बीते 25 जुलाई को जब नवनिर्वाचित राश्ट्रपति रामनाथ कोविंद षपथ लेने के पष्चात् अपना अभिभाशण दे रहे थे तब भी उन्होंने राश्ट्रपति गांधी और पण्डित दीनदयाल के सपनों की बात कही थी। इस पर भी सियासत जोर पकड़ी थी कि जवाहर लाल नेहरू जैसे राजनेता यहां भी बाहर क्यों हैं। स्पश्ट है कि भाजपा इस दुविधा में कभी नहीं रही कि उसे विपक्ष को लेकर क्या करना है और इस मामले में भी वह कभी पीछे नहीं रही कि क्या और किसे अपनाने से उसकी सियासत परवान चढ़ेगी। प्रधानमंत्री मोदी ने महात्मा गांधी, स्वामी विवेकानंद व दीनदयाल उपाध्याय समेत उन सभी को अपने आदर्षों का हिस्सा बनाया जिनसे उनकी राजनीति को चमक मिलती हो या फिर नीतियों को बल मिलता हो। हालांकि महात्मा गांधी और स्वामी विवेकानंद को लेकर कोई बंटवारा नहीं किया जा सकता पर इनके सपनों को परवान चढ़ा कर केवल सियासत चमकाना कितना सही है। इस मामले में भाजपा और कांग्रेस दोनों षामिल रही फर्क इतना है अपने-अपने हिस्से के महापुरूशों का इन्होंने बंटवारा कर दिया है।
प्रधानमंत्री मोदी कांग्रेस मुक्त भारत के नारे को बीते चार साल से बुलंद किये हुए हैं और इस पर वो बाकायदा सफलता के साथ आगे बढ़ भी रहे हैं। इसी क्रम को आगे बढ़ाते हुए गुजरात में राज्यसभा से कांग्रेस का सफाया भी षामिल था जिसके लिए हाई वोल्टेज सियासत हुई। रोचक पहलू यह भी है कि कांग्रेस अपना घर बचाने के लिए विधायकों को बंगलुरू में रखा इतने जतन के बावजूद मामला खटाई में लगभग जाते-जाते बचा। पटकथा के हीरो कोई और नहीं पहले के भाजपाई नेता षंकर सिंह बघेला ही थे जो बगावत करके कांग्रेस में गये और एक बार फिर उन्होंने कांग्रेस से बगावती तेवर के साथ क्राॅस वोटिंग कर भाजपा को मदद पहुंचाने का काम किया। किसी ने ठीक ही कहा है सियासत में न तो कोई स्थायी षत्रु होता है और न ही मित्र बल्कि सब समय का फेर है। गुजरात के राज्यसभा चुनाव में सियासी ड्रामे के बीच जो अगस्त क्रान्ति देखने को मिली उसे षायद आगे भी देखा जा सकेगा पर 1942 की उस महान क्रान्ति को दोहराना किसी के बूते में नहीं है। 

सुशील कुमार सिंह
निदेशक
वाईएस रिसर्च फाॅउन्डेशन  आॅफ पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन 
डी-25, नेहरू काॅलोनी,
सेन्ट्रल एक्साइज आॅफिस के सामने,
देहरादून-248001 (उत्तराखण्ड)
फोन: 0135-2668933, मो0: 9456120502
ई-मेल: sushilksingh589@gmail.com

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