Tuesday, August 8, 2017

उत्तर कोरिया के बहाने चीन की कूटनीति

जिस उत्तर कोरिया के बरसों की हिमाकत पर चीन तनिक मात्र भी कसमसाया न हो वही चीन जब उसे अपना मिसाइल और परमाणु हथियार विकास कार्यक्रम रोकने की बात कहे तो बात पचती नहीं है। उत्तर कोरिया बीते कई वर्शों से दुनिया की आंखों में परमाणु कार्यक्रम को लेकर खटक रहा है। अमेरिका, जापान और दक्षिण कोरिया समेत कई देष उसकी हरकतों से पेषोपेष में रहे हैं जबकि इस मामले में चीन उत्तर कोरिया के सहयोगी के तौर पर उसके साथ खड़ा रहा। अब वही चीन उसे हथियार बनाना बंद करे की नसीहत दे रहा है। गौरतलब है कि विष्व की कूटनीति जब बदलती है और संघर्श का पैमाना तुलनात्मक बढ़ जाता है तब कुछ देष अपनी फितरत में भी बदलाव ला लेते हैं। चीन की उत्तर कोरिया को लेकर उठाये गये कदम से अमेरिकी राश्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप भी काफी प्रभावित हैं। इस प्रभाव का चीन कितना फायदा लेगा इस पर भारत को भी गौर करना चाहिए। मौजूदा समय में भारत और चीन सिक्किम में डोकलाम विवाद से दो-चार हो रहे हैं। दोनों तरफ की सेनाएं सीमा पर डटी हुईं हैं। कूटनीतिक पैंतरेबाजी में चीन कभी पीछे नहीं रहा है और युद्ध की धौंस दिखाना भी उसकी घटिया चाल रही है। तिब्बत की राजधानी ल्हासा से लेकर चीन अपने सीमावर्ती इलाकों में जिस तरह हथियारों का अभ्यास कर रहा है। उससे तो साफ है के भारत को मनोवैज्ञानिक दबाव में लेने की हर सम्भव कोषिष कर रहा है। हालांकि इस मामले में उसे तनिक मात्र भी सफलता नहीं मिली है परन्तु ट्रंप की प्रषंसा प्राप्त करके इसे डोकलाम से जोड़ना उसके लिए कोई बड़ी बात नहीं है। चीन के विदेष मंत्री ने अपने समक्ष उत्तर कोरियाई मंत्री से सम्पर्क के बाद कहा कि एषिया प्रषान्त क्षेत्रों के देषों के विदेष मंत्रियों के हो रहे तीन दिवसीय सम्मेलन में विचारणीय बिन्दु कोरियाई प्रायद्वीप की स्थिति भी है। यह वक्तव्य चीन का तब आया है जब इससे एक दिन पहले संयुक्त राश्ट्र सुरक्षा परिशद् में उत्तर कोरिया की आदतों को देखते हुए माल खरीदने पर प्रतिबंध लगाया गया था। 
ऐसा नहीं है कि संयुक्त राश्ट्र सुरक्षा परिशद् द्वारा उत्तर कोरिया पर प्रतिबंध पहली बार लगाया गया है और ऐसा भी नहीं है कि उत्तर कोरिया को प्रतिबंध से कोई असर पड़ा हो। खराब आदतों से मजबूर यह देष खराब और विध्वंसक नीतियों के मामले में मीलों आगे है। इसका अंदाजा इसी बात से लगा सकते हैं कि वर्श 2006 से 2016 के बीच उसने चार बार परमाणु परीक्षण किया है। 6 जनवरी 2016 को जब उसने चैथा परमाणु परीक्षण किया तब उसकी दादागिरी से बड़े से बड़े सूरमाओं को यह एहसास हुआ कि अभी चिंताओं से मुक्त होने का वक्त नहीं आया। फिर नये प्रतिबंधों के प्रस्ताव की बात चलने लगी। देखा जाय तो निडर उत्तर कोरिया पर प्रतिबंधों का प्रहार ज्यों-ज्यों हुआ है उसके दुस्साहस त्यों-त्यों बढ़े हैं। इसी वर्श 16 अप्रैल को उत्तर कोरिया ने तमाम दबाव के बावजूद बैलिस्टिक मिसाइल का परीक्षण किया था। हालांकि यह परीक्षण असफल हो गया था परन्तु इस नाकामी के बावजूद दुनिया को वह यह संदेष दिया कि उसके ऐसे कार्यक्रम किसी के दबाव से नहीं रूकेंगे। अमेरिका समेत कई देषों ने कार्यक्रम असफल होने के कारण राहत की सांस तो ली पर स्थाई तौर पर समाधान अभी भी किसी के पास नहीं है। निःसंदेह उत्तर कोरिया ने परमाणु परीक्षण से लेकर मिसाइल परीक्षण तक के कार्यक्रम में दुनिया की एक नहीं सुनी और तानाषाह किम जोंग अपनी मदमस्त चाल में चलता रहा। पिछले एक दषक से विवादों को जन्म देने वाला देष यदि संसार के मानचित्र पर कोई है तो उसमें एक उत्तर कोरिया भी आता है। इससे भी बड़ी बात यह है कि खराब देषों का समर्थक चीन ही होता है। भारत के मुकाबले पाकिस्तान को समर्थन देकर चीन अपनी कूटनीति को दूशित तरीके से आगे बढ़ाता है तो वहीं उत्तर कोरिया का सहयोगी बनकर दक्षिण कोरिया और जापान के लिए समस्या बढ़ाने का काम करता है। चीन की खासियत यह है कि अवसर पर ही मुंह खोलता है। चीन वन बेल्ट, वन रोड जिसका भारत ने विरोध किया है और अब डोकलाम को लेकर भारत को आंखे दिखा रहा है साथ ही वैष्विक संतुलन बनाये रखने के लिए सिरफिरे उत्तर कोरिया को अब डांट लगा रहा है और मुफ्त में डोनाल्ड ट्रंप के प्रषंसा का केन्द्र बन रहा है। यहां बताते चलें कि उत्तर कोरिया पर लगाये गये प्रतिबंध से सालाना करीब 65 अरब का नुकसान होगा साथ ही इस प्रतिबंध से उसका एक-तिहाई निर्यात प्रभावित होगा। अमेरिका के इस प्रस्ताव का चीन और रूस ने भी समर्थन किया। जाहिर है चीन इस समर्थन के जरिये अमेरिका से नज़दीकी बढ़ाने में कुछ कदम तो आगे बढ़ेगा।
सुरक्षा परिशद में इस प्रस्ताव के पारित होने से उत्तर कोरिया का तो नुकसान तय है सभी जानते हैं कि सुरक्षा परिशद में चीन भी है और अब वह इस प्रस्ताव के साथ है। जाहिर है उत्तर कोरिया के विरोध में चीन इस समय है यह उसकी बदली रणनीति का हिस्सा है पर अप्रत्यक्ष तौर पर उसे कितना लाभ पहुंचायेगा इसका गुणा-भाग तो डोनाल्ड ट्रंप भी नहीं लगा सकते। यह बात भी समझने वाली है कि आतंक के मसले में जब पाक आतंकियों को सुरक्षा परिशद में भारत ले जाता है तब चीन उन पर वीटो करके भारत को झटका देता है और अब उत्तर कोरिया के साथ खड़ा न होकर भी वह भारत को ही कुछ हद तक झटका दे रहा है। ऐसा करने से रूस, चीन, अमेरिका और जापान आदि के बीच कुछ मामले में चीन के साथ मंतव्य एक होते दिखाई दे रहे हैं और इस कूटनीतिक बढ़त को हो न हो वह भारत पर मनोवैज्ञानिक दबाव बनाने के काम ला सकता है। डोकलाम को लेकर भारत बहुत संवेदनषील है पर नतीजे कैसे निकलेंगे अभी पुख्ता कूटनीति बाहर नहीं आ पाई है। चीन की लगातार बढ़ती धौंस से भी बेचैनी है पर उसका डोकलाम पर ढीठता से अड़े रहना भी समाधान को समस्या की ओर धकेल रहा है। दक्षिण चीन सागर पर चीन कई बार कमजोर पड़ा है। भारत और इज़राइज के बीच बढ़ी दोस्ती से भी चीन बेचैन हुआ और इज़राइल के रास्ते भारत अमेरिका के और समीप गया है। गौरतलब है कि अमेरिका और इज़राइल की दोस्ती बड़ी गाढ़ी है। उत्तर कोरिया के नसीहत देने के पीछे चीन की संतुलित करने वाली कूटनीति भी हो सकती है क्योंकि इस रास्ते से वह भी अमेरिका से और नज़दीकी बढ़ा रहा है। 
प्रासंगिक भाव यह भी है कि दक्षिणी चीन सागर पर चीन आखिरकार आसियान में अपनी षर्त मनवाने में कामयाब रहा। दो दिवसीय बैठक समाप्त होने बाद जब बयान जारी किया गया तो इस बात का खास ख्याल रखा गया कि चीन को नाराज़ न किया जाय जिसके चलते हल्का साझा बयान ही देखने को मिला। गौरतलब है कि आसियान दस देषों का समूह है और चीन अपने फ्रेमवर्क में सभी को यहां भी ढालने के मामले में लगभग कामयाब रहा। प्रधानमंत्री मोदी और चीनी राश्ट्रपति जिनपिंग के बीच हाल ही में हुए पेरिस मुलाकात को भी जोड़ दिया जाय तो मुलाकातों की संख्या 5 होती है। दुखद यह है कि दर्जन भर मुलाकात के बाद पाकिस्तान से धोखा मिला और लगभग आधा दर्जन मुलाकात के बाद चीन से भी ऐसी ही कुछ प्राप्ति हुई है। भारत उदार और संवेदनषील देषों में षुमार है विष्व की बदलती कूटनीति को लेकर उसे समझ है बावजूद इसके चीन जैसे चतुर और फितरती देषों से उसे कट-टू-कट ही सम्बंध रखना चाहिए। अच्छी उदारता और अच्छी भावना के लायक कम से कम चीन और पाकिस्तान तो नहीं हैं।


सुशील कुमार सिंह
निदेशक
वाईएस रिसर्च फाॅउन्डेशन  आॅफ पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन
डी-25, नेहरू काॅलोनी,
सेन्ट्रल एक्साइज आॅफिस के सामने,
देहरादून-248001 (उत्तराखण्ड)
फोन: 0135-2668933, मो0: 9456120502
ई-मेल: sushilksingh589@gmail.com

No comments:

Post a Comment