Wednesday, August 16, 2017

पुराने भारत में न्यू इंडिया की खोज

तेजी से बदलते विश्व  परिदृष्य परिदृश की चुनौतियों से निपटने के लिए भारत को नया रूप देना लाज़मी है शायद  न्यू इण्डिया की अवधारणा भी इसी मनोदषा से प्रभावित है। भूमण्डलीय अर्थव्यवस्था में हो रहे अनवरत् परिवर्तन को देखते हुए न केवल दक्ष श्रम षक्ति बल्कि स्मार्ट सिटी और स्मार्ट गांव की ओर भी भारत बढ़ चला है। आर्थिक विकास की प्रक्रिया में अर्थव्यवस्था को लेकर अनेक संरचनात्मक परिवर्तन भी बीते कुछ ही महीनों में सम्भव हुए है जिसमें नोटबंदी और जीएसटी जैसे बड़े बदलाव षामिल है। वास्तविकता तो यह है कि परिवर्तनों के आधार पर ही हम निश्कर्श पर पहुंचना चाहते हैं पर इस बात की सूझबूझ कितनी कि मौजूदा अर्थव्यवस्था विकास की किस स्थिति में है। बेषक आंकड़ों को परोसकर सरकारे वाहवही लूटती रही हैं पर जमीनी हकीकत यह भी है कि अभी भी पुराने भारत में जहां से न्यू इण्डिया की खोज हो रही है वहां हर चैथा व्यक्ति गरीबी रेखा के नीचे और इतने ही अषिक्षित हैं। बिजली, पानी, षिक्षा, चिकित्सा व रोजगार समेत सुरक्षा, संरक्षा इत्यादि की कमी व्याप्त है। नौनिहालों का भी हाल कम बुरे नहीं है। महिलाएं भी विकास की मुख्य धारा से बहुत नहीं जुड़ पाई हैं। यहां का युवा भी पढ़ा-लिखा पर बेरोजगारी के चलते श्रम षक्ति के उपयोग के मामले में पीछे है। भारत का आर्थिक ढ़ांचा और उससे जुड़ा व्यवहार बीते सात दषकों से कई प्रयोगों व अनुप्रयोगों से गुजरा है। स्वतंत्रता की 70वीं वर्शगांठ यह जताती है कि स्वाधीनता और लोकतंत्र को भारत में प्रवेष किये बहुत वक्त हो गया पर मुसीबतों की निषानदेही से अभी भी देष को छुटकारा नहीं मिला है। हद तो यह भी है कि 1974 में पांचवीं पंचवर्शीय योजना से गरीबी का उन्मूलन हो रहा है और 1952 के पहले आम चुनाव से गरीबी दूर करने का अभियान चल रहे हैं पर स्थिति यह है कि अभी भी अमेरिका जितनी जनसंख्या भारत में गरीबी रेखा के नीचे रहती है। जाहिर है इसी के बीच से न्यू इण्डिया को भी अपना रास्ता बनाना है। सफलता कितनी मिलेगी और क्या प्रधानमंत्री मोदी का यह सपना वास्तव में जमीन पर उतरेगा इस पर कुछ बरस के बाद ही कुछ कह पाना सम्भव है। 
स्वतंत्रता के बाद 15 मार्च 1950 को योजना आयोग का परिलक्षित होना तत्पष्चात् प्रथम पंचवर्शीय योजना की प्रारम्भिकी। सात दषकों में 12 पंचवर्शीय योजना और तीन बार योजना अवकाष का दौर भी आया। अन्ततः मोदी षासनकाल में इसका अन्त हो गया। फिलहाल थिंक टैंक के रूप में अब नीति आयोग को देखा जा सकता है। इसे भी पुराने भारत से न्यू इण्डिया की ही आहट कही जा सकती है। इसी तर्ज पर कई ऐसे मुद्दे हैं जो समय के साथ प्रकाषित हुए हैं मेक इन इण्डिया, स्टार्टअप एण्ड स्टैंडअप इण्डिया, क्लीन इण्डिया और आर्थिक सुधार की दृश्टि से गुड्स एण्ड सर्विसेज़ टैक्स आदि न्यू इण्डिया का ही आगाज़ करते हैं। हालांकि न्यू इण्डिया को लेकर अपना एक अलग से नियोजन है पर उपरोक्त की भी हिस्सेदारी कम नहीं है। जिस तर्ज पर चीजें बदलती हैं, संवरती हैं और जनमानस को संभावनाओं से भरती हैं क्या उसी प्रकार के विजन से न्यू इण्डिया युक्त है। साल 2022 तक प्रधानमंत्री मोदी का सपना भव्य भारत बनाने का है जिसके पास अपना पक्का घर होगा, बिजली होगी, किसानों की आय दोगुनी होगी और चैन की नींद होगी इसी फेहरिस्त को और बड़ा कर दें तो सभी का षौचालय, सभी को एलपीजी कनेक्षन, डिजिटल कनेक्टिविटी समेत बुनियादी और विकासात्मक चीजों की उपलब्धता होगी तो न्यू इण्डिया को और चार चांद लग जायेगा। हालांकि उपरोक्त दिषा में कमोबेष मोदी षासनकाल में पहले से ही कार्य चल रहा है। जनसंख्या प्रतिवर्श डेढ़ से पौने दो करोड़ बढ़ जाती है पर रेल बजट में ट्रेनों का बढ़ना मुष्किल हुआ है। दो पहिया वाहन से लेकर चार पहिया तक और एयर कंडीषन का सुख भी मिले इसकी पहुंच भी न्यू इण्डिया में झलकती है। ऐसे भारत की बात हो रही है जिसमें सभी साक्षर होंगे, सभी के लिए स्वास्थ्य सेवायें उपलब्ध होंगी। रेल और रोड़ का बड़ा नेटवर्क इसके विजन में है। स्वच्छता के मामले तो षहर के साथ गांव का भी समावेषन है। जब कहा जाता है कि भव्य और दिव्य हिन्दुस्तान बनायेंगे तब माथे पर यह बल बनता है कि साढ़े छः लाख से पटे भारत के गांव में जहां वायदे के मुताबिक बिजली और पानी समेत बुनियादी तत्वों का आभाव है क्या उससे निपटे बगैर भव्यता और दिव्यता सम्भव है। यह महज़ एक सवाल है क्योंकि न्यू इण्डिया में इतनी बड़ी-बड़ी बात हो रही है तो मन में एक छोटा सा सवाल उठा था। 
कुछ माह पहले जब न्यू इण्डिया का विजन आया था तो उसमें अगले 15 साल में सालाना आमदनी में दो लाख रूपये की वृद्धि करने की बात कही गयी थी। जाहिर है नेहरू युगीन योजना आयोग को समाप्त कर इस चुनौती से सरकार भी दो-चार हुई होगी कि बदलते दौर के मुताबिक बड़ा और बेहतर क्या हो सकता है। नीति आयोग एक थिंक टैंक है न्यू इण्डिया के विज़न को पूरा करने में मदद कर सकता है पर मामला घरेलू उपचार तक रहेगा तो षंका बढ़ेगी यदि षोधात्मक और सैद्धान्तिक माध्यमों से इसे हासिल किया जायेगा तो उम्मीद बढ़ेगी। प्रधानमंत्री मोदी चैथी बार स्वतंत्रता दिवस के इस मौके पर लाल किले की प्राचीर से बोले रहे थे। उन्होंने कहा कि हम न्यू इण्डिया बनाना चाहते हैं जो सुरक्षित हो, समृद्ध हो और षक्तिषाली हो। जहां सभी को समान अवसर मिले, जहां आधुनिक विज्ञान का दबदबा हो। प्रधानमंत्री ठीक कह रहे हैं आखिर इन सबके आभाव में न्यू इण्डिया का क्या मतलब। उनकी दृश्टि में वर्श 2018 एक महत्वपूर्ण साल है आषय 21वीं सदी में जन्में नौजवानों के लिए 18 वर्श का होना। जब नये ढांचे, नये प्रारूप में देष की अर्थव्यवस्था को नई आदत देनी होती है और विकास उस गति से नहीं बढ़ता है तो बदलाव से लोगों को परेषानी होती है। मोदी षासनकाल में कई बदलाव हुए हैं जाहिर है परेषानियां भी कई किस्म की हैं। गौरतलब है कि सामाजिक अर्थव्यवस्था जितनी सषक्त होगी, जीवन उतना ही सुलभ होगा। जिस चाह के साथ सरकार नये विजन के साथ न्यू इण्डिया का आगाज़ कर रही है उसमें इस बात का कितना ख्याल है कि पंक्ति में खड़े अन्तिम व्यक्ति को न्यू इण्डिया का एहसास होगा। 
फिलहाल जिस तेवर के साथ प्रधानमंत्री मोदी देष के तंत्र में अपना रसूख रखते हैं उसे देखते हुए नये-नये प्रयोगों की गुंजाइष आगे भी रहेगी इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता। इसी वर्श बीते 23 अप्रैल को नीति आयोग की एक बैठक में उन्होंने नसीहत दी कि बदल गया है जमाना, बदल जायें आप। देष के नौकरषाहों को भी आगाह किया कि हिम्मत और ईमानदारी से काम करें। इसी बैठक में उन्होंने मुख्यमंत्रियों को सलाह दिया था कि सुषासन और विकास को अपना हथियार बनायें। दावा तो यह भी किया जा रहा है कि बीते सात दषकों में देष की जीडीपी में जितनी वृद्धि हुई उससे कई गुना आने वाले 15 वर्शों में हो जायेगी। हालांकि नोटबंदी के बाद विकास दर में एक फीसदी की गिरावट दर्ज हुई पर उम्मीद पर सवाल कैसा। उम्मीद तो यह भी जताई जा रही है कि 8 फीसदी विकास दर से देष आगे बढ़ेगा। उक्त मापदण्ड न्यू इण्डिया के रास्ते को चैड़ा करते दिखाई देते हैं। निहित परिप्रेक्ष्य यह भी है कि 2022 तक जमीन पर उतरने वाले न्यू इण्डिया के इस संकल्प को सरकार का परोसा हुआ एक विजन समझे या फिर पूरा न होने वाला सपना भी। सवाल इसलिए क्योंकि पुराना भारत कमोबेष उथल-पुथल में रहा है और उसी में से न्यू इण्डिया को भी रफ्तार देना है। फिलहाल भव्यता और दिव्यता से युक्त प्रधानमंत्री मोदी के इस विचार को बिना किसी असमंजस के जमीन पर उतरने का इंतजार करना ही चाहिए। 

सुशील कुमार सिंह
निदेशक
वाईएस रिसर्च फाॅउन्डेशन  आॅफ पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन
डी-25, नेहरू काॅलोनी,
सेन्ट्रल एक्साइज आॅफिस के सामने,
देहरादून-248001 (उत्तराखण्ड)
फोन: 0135-2668933, मो0: 9456120502
ई-मेल: sushilksingh589@gmail.com

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