Wednesday, May 24, 2017

तीन साल की कसौटी पर मोदी सरकार

इसमें कोई संदेह नहीं कि सुषासन की चाह रखने वाले प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने बीते तीन सालों में अपनी पहचान बीजेपी और एनडीए से बाहर जाकर भी बनाई है। सरकार के कामकाज का आंकलन करते हुए मोदी फैक्टर को समझना भी इतना सहज नहीं है जितना आमतौर पर दिखाई देता है। पहले लोग मोदी को गुजरात के मुख्यमंत्री के रूप में जानते थे जबकि अब तीन साल से प्रधानमंत्री के रूप में जानते और समझते हैं। रही बात लोकप्रियता की तो इस मामले में भी उनका ग्राफ कईयों को पीछे छोड़ते हुए गगनचुम्भी बना हुआ है। देष-दुनिया में उन्हें बड़ी-बड़ी प्रसिद्धियां मिली साथ ही बदलते वैष्विक जगत में मोदी के नाम का जादू भी सर चढ़ कर बोला और इस क्रम में मामला अभी थमा नहीं है। चुनावी सभाओं में भी लाखों की भीड़ और कुछ राज्यों को छोड़ दिया जाय तो बहुतायत में जीत भी मोदी की वजह से ही मिली है। इस बात से विपक्ष भी बीते तीन वर्शों से काफी परेषान रहा है और मोदी की काट में एड़ी-चोटी का जोर लगाता रहा जबकि नतीजे ढाक के तीन पात रहे। गौरतलब है जिन कामों को लेकर मोदी सरकार को कसौटी पर कसना है उसके कई आयाम हैं। कुछ तो बेषुमार सफलता लिए हुए तो कुछ काज रस्म अदायगी मात्र हैं। मोदी का स्वच्छता के प्रति झुकाव, पीएम के मन की बात, भ्रश्टाचार पर अंकुष की कोषिष, सर्जिकल स्ट्राइक कर पाकिस्तान और विपक्ष का मुंह बंद करना, नोटबंदी का एलान और तकनीकी प्रगति में रूझान समेत डिजिटल भारत की मुहिम और कैषलेस भारत बनाने की कोषिष को देखा जाय तो तीन साल का षासन और प्रषासन आवेष से भरा दिखाई देता है चूंकि ये सभी कृत्य अभी लक्ष्य भेदने की दिषा में हैं ऐसे में दृश्टिकोण का पूरा स्पश्ट होना सम्भव नहीं है पर देष में पुराने पड़ चुके कानूनों की भी सफाई हुई है। प्रतिदिन की दर से एक कानून समाप्त करना, नेहरूवादी योजना आयोग को समाप्त कर मोदीवादी नीति आयोग का गठन करना भी ढांचागत विकास में उन्हें कदमताल करते देखा जा सकता है।
गौरतलब है कि वैष्विक फलक पर अपना कद बढ़ाते हुए मोदी ने भारत के मान को भी काफी ऊंचाई दिलाई है। पूरब और पष्चिम के देषों से गहरा नाता तो जोड़ा ही पाकिस्तान और चीन जैसे पड़ोसियों को भी कूटनीतिक मात देने की समय-समय पर उनके द्वारा कोषिष की गयी। मोदी के तीन साल की सरकार का बैलेंस षीत कितना लाभोन्मुख है इसे लेकर भी पड़ताल जरूरी है। समेकित मापदण्डों में देखा जाय तो मोदी सरकार के तीन साल को विपक्ष फेल की दृश्टि से देख रही है और नरेन्द्र मोदी को सपनों का सौदागर माना जा रहा है। लव-जिहाद, एंटी रोमियो, स्कवाॅड, घर वापसी, राम मंदिर समेत हिन्दू राश्ट्रवाद जैसे मुद्दे बाकायदा इनके कार्यकाल में छाये रहे। उत्तर प्रदेष में भाजपा सरकार के निर्माण के साथ इसे और बल मिला है। रोजगार, षिक्षा, स्वास्थ्य और अन्य बुनियादी आवष्यकताएं सरकार के लिए माथापच्ची का विशय हमेषा से रहा है पर सफलता इसी आंकड़े से लगाया जा सकता है कि दो करोड़ प्रति वर्श रोज़गार की बात कहने वाली सरकार क्या अब तक छः करोड़ नौकरियां दे चुकी हैं, बिल्कुल भी नहीं जबकि नोटबंदी के दौर में ये बेरोजगारी और बढ़ी है। जाहिर है जिस इरादे के साथ वायदे किये गये उसमें बट्टा लगता दिखाई देता है। सितम्बर, 2016 का सर्जिकल स्ट्राइक और नवम्बर की नोटबंदी सरकार के मास्टर स्ट्रोक थे इसे लेकर देष में उनकी खूब जय जयकार हुई परन्तु सीमा पर तनाव कम नहीं हुआ और जवानों के षहीद होने का सिलसिला अभी भी नहीं रूका है। तीन साल समाप्त होते-होते बीते 24 मई को एक बार यह जरूर फिर हुआ है कि पाकिस्तानियों के बंकर को स्वाहा करके भारतीय सैनिकों ने सेना की षहादत का बदला ले लिया है। 
सरकार में आने से पहले विदेष में जमा काले धन को लेकर भी खूब ख्वाब दिखाये गये थे पर उनकी घर वापसी तो नहीं हुई, हां इतना जरूर है कि मोदी सरकार ने दुनिया के मंचों पर इसे लेकर दुनिया को न केवल चैकन्ना किया बल्कि कुछ नियम और काले धन की सूचना आदान-प्रदान आदि पर कुछ मील का रास्ता तो तय हुआ है। भ्रश्टाचार को लेकर ज़ीरो टोलरेंस की बात करने वाली इस सरकार के अब तक के कार्यकाल में एक भी भ्रश्टाचार का आरोप फिलहाल नहीं लगा है। इस मामले में सरकार अव्वल है इसे कहने में कोई गुरेज नहीं है। हालांकि भाजपा की राज्यों में काम कर रही सरकारें इन आरोपों से स्वयं को नहीं बचा पाई मसलन मध्य प्रदेष का व्यापमं घोटाला। प्रधानमंत्री मोदी ने भावनात्मक मुद्दों को भी खूब उभारा है। चुनावी दिनों में इसकी मात्रा बढ़त में रहती थी मगर सभी जुमले नहीं थे। कई मुद्दे हटकर भी हैं, मेक इन इण्डिया और स्वच्छ भारत ने भी सरकार को काफी वाहवही दी है। अच्छे दिन आयेंगे का नारा भी परवान चढ़ा परन्तु अभी भी लोग इसके इंतजार में हैं। सबका साथ, सबका विकास भी जुबान पर कैंची की तरह चला पर कसौटी पर इसकी भी हालत संतोशजनक नहीं है। आज से तीन बरस पहले 2014 में 16 मई को 16वीं लोकसभा के नतीजे घोशित हुए थे और 26 मई को मोदी के नेतृत्व में पूर्ण बहुमत वाली केन्द्र सरकार का गठन हुआ था। जीत ऐतिहासिक थी परन्तु क्या सरकार की परिपाटी भी ऐतिहासिक है। असल में कामकाज और लोकप्रवर्धित अवधारणाएं सरकारों को ऐतिहासिक बनाती हैं। षायद इस मामले में अभी बात पूरी तरह पुख्ता नहीं हुई है। 
आन्तरिक सुरक्षा की बात करें तो सुकमा से लेकर नक्सलवादियों की वारदातें बढ़ी हैं और सरकार केवल अधिकारियों की बैठक तक ही सीमित रही है। इनके कार्यकाल में भी देष के किसानों ने फसल बर्बादी और तबाही के चलते खूब फांसी लगाई है अब तो फांसी लगाने वाले किसानों का आंकड़ा बीते दो-ढ़ाई दषक का मिला दिया जाय तो तीन लाख से ऊपर चला गया है। हालांकि सरकार का बजट किसानोन्मुख भी रहा है। समर्थन मूल्य में भी वृद्धि की गयी है। बेमौसम बारिष से तबाह अनाजों की बढ़ा कर कीमत देने की बात भी कही गयी है पर मुआवजे के बंटवारे में कितनी ईमानदारी थी यह भी समझने वाली बात है। अगर लोकतंत्र मजबूत रखना है तो सबका विकास होना चाहिए। सुषासन की डगर पर चलने वाले मोदी बिना भेदभाव के काम कर रहे हैं यह बात भी निःसंकोच कही जा सकती है पर सबका विकास हो रहा है यह कह पाना कठिन है। सरकार के बारे में पूरा विष्लेशण एक लेख मात्र में नहीं सिमट सकता पर जोष और होष के खेल में सरकार पीछे नहीं रही यह बात तीन सालों में बाखूबी मोदी सरकार ने बता दिया है। मीडिया से लेकर विपक्ष ने भी कई मौकों पर मोदी को घेरने की कोषिष की पर मोदी घेरे में नहीं आ पाये उसकी बड़ी वजह न खाऊंगा, न खाने दूंगा की तर्ज पर मोदी ने सत्ता चलाई। राजनीति में हर किसी का अपना नज़रिया होता है। कोई सोषल इंजीनियरिंग को महत्व देता है तो कोई पूरे समाज को ही प्रयोगषाला बना देता है। जिस कदर मोदी ने भारतीय राजनीति के क्षितिज पर अपने को पहुंचाया है उससे भी यह संकेत मिलता है कि जरूरत के हिसाब से सिद्धान्त भी बने हैं और उसे प्रयोग में भी ढाला गया है। एक बात तो सच है कि दषकों से चली आ रही धर्म और जात-पात की राजनीति भी मोदी के इन्हीं तीन वर्शों के कार्यकाल में खत्म हुआ है। कईयों को ऐसा लगता है कि मोदी का सिक्का दषकों तक चलेगा तो कईयों को 2019 में नये नतीजे की उम्मीद है पर एक विचारक होने के नाते मुझे ये लगता है कि तीन साल के कार्यकाल की जो बैलेंस षीट मोदी की दिखाई देती है वह संतोशजनक तो नहीं परन्तु मध्यम और निम्न वर्गों में मानो वह पाई-पाई का हिसाब हो और षायद यही वर्ग मोदी को आगे भी सफलता के षिखर पर बैठाती रहेगी।


सुशील कुमार सिंह
निदेशक
वाईएस रिसर्च फाॅउन्डेशन  आॅफ पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन 
डी-25, नेहरू काॅलोनी,
सेन्ट्रल एक्साइज आॅफिस के सामने,
देहरादून-248001 (उत्तराखण्ड)
फोन: 0135-2668933, मो0: 9456120502
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