Monday, May 15, 2017

दुनिया को सपना दिखाता चीन

जब भारत के विदेश  मंत्रालय द्वारा बयान दिया गया कि कोई देष ऐसी किसी परियोजना को स्वीकार नहीं कर सकता जो सम्प्रभुता और क्षेत्रीय अखण्डता पर उसकी मुख्य चिंता की उपेक्षा करती हो। तब इससे यह बात स्पष्ट  हो चली कि चीन जिस दम के साथ वन बेल्ट, वन रोड योजना में आगे निकलना चाहता है उसे लेकर भारत की राय दुनिया से अलग है और ऐसा क्यों है इसके कई तर्क भी हैं। गौरतलब है कि चीन की राजधानी बीजिंग में बीते 14 एवं 15 मई को वन बेल्ट, वन रोड इनिषिएटिव योजना के उद्घाटन समारोह का आयोजन हुआ जिसमें संसार के 29 देषों के राश्ट्राध्यक्षों एवं सौ देषों के प्रतिनिधिमण्डल की हिस्सेदारी रही। खास यह भी है कि भारत के छोटे-बड़े सभी पड़ोसी देष इस बैठक में षामिल हुए। जिस तर्ज पर चीन अपनी इस योजना के माध्यम से दुनिया को एक उपहार देने की कोषिष कर रहा है और उसकी पेषगी भी कुछ इसी तरह की है उसे लेकर भले ही कईयों की राय कुछ भी हो पर इसमें कोई दो राय नहीं कि देषों की सम्प्रभुता, अखण्डता और कूटनीति पर इसका फर्क आने वाले दिनों में दिखेगा। भारत की चिंता यह है कि चीन पाक अधिकृत कष्मीर के रास्ते अपनी इस योजना को अंजाम देने की फिराक में है। इसके लिए पाकिस्तान पूरी तरह राजी भी है जबकि सच्चाई यह है कि पीओके के मामले में कोई भी कृत्य बिना भारत की अनुमति के सम्भव ही नहीं है। संयुक्त राश्ट्र संघ भी मानता है कि पाक अधिकृत कष्मीर भारत का हिस्सा है। इतना ही नहीं दुनिया के वे तमाम देष भी इस बात से वाकिफ हैं बावजूद इसके बीजिंग में सभी एकमंचीय हुए हैं। जाहिर है सभी का हित इस योजना से मेल खाता होगा। जिन पड़ोसी देषों के साथ भारत का व्यापक, विस्तारवादी एवं समन्वयवादी संवाद है वे भी चीन के सपनों के साथ अपना हित देख रहे हैं।
इसमें भी कोई षक नहीं कि भारत के पड़ोसियों को चीन साधने की फिराक में है। हालांकि भारत अपने स्वभाव के अनुरूप कभी भी पड़ोसी देषों पर जादती नहीं किया और न ही उनकी सम्प्रभुता और अखण्डता को कभी चोट पहुंचाई है। गौरतलब है बीते 13 मई को प्रधानमंत्री मोदी श्रीलंका में थे और जब कोलंबो से मोदी दिल्ली के लिए रवाना हुए तो श्रीलंकाई प्रधानमंत्री बीजिंग के लिए रवाना होने की तैयारी में थे। ऐसी समरसता कि एक देष जिस योजना का समर्थन करता है और भारत उसी से संवाद में हो यह भावना केवल भारत में हो सकती है। जिस प्रकार पड़ोसियों को चीन चारा डाल रहा है उसकी इस रणनीति को भारत भांप भी लिया है। यही वजह है कि इस बैठक से भारत ने किनारा कर लिया है। विदेष मामलों के विषेशज्ञों की मानें तो अगर भारत चीन-पाक अधिकृत आर्थिक गलियारा पर सहमति देता है तो यह संदेष भी चला जायेगा कि पीओके पर भारत के दृश्टिकोण में बड़ा बदलाव हुआ है। इस तर्ज पर भी देखा जाय तो पीओके से गुजरने वाले आर्थिक गलियारे को लेकर भारत अब एक इंच भी पीछे नहीं हट सकता। जिस प्रकार चीन के राजदूत ने इस परियोजना का नाम बदलने की बात कही थी और बाद में पलटी मार दिया उससे भी साफ है कि चीन की मंषा आर्थिक गलियारा तक ही सीमित नहीं है। देखा जाय तो चीन बदलती दुनिया को वो सपने दिखा रहा है जिसे लेकर वह भी पूरा दावा नहीं कर सकता। भारत का विरोध किया जाना बिल्कुल सही है और कूटनीतिक स्तर पर ऐसा होना भी चाहिए। जाहिर है वन बेल्ट वन रोड के बहाने चीन अपनी धौंस को भी विस्तार देना चाहेगा और ड्रैगन की इस कुटिल चाल को प्रधानमंत्री मोदी भी समझ रहे हैं पर इसकी काट उनके पास है या नहीं कह पाना मुष्किल है। भारत यह भी कहता रहा है कि चीन को हमारी सम्प्रभुता का ख्याल रखना चाहिए। गौरतलब है कि चीन के राश्ट्रपति षी जिनपिंग ने बीजिंग में हो रहे ओबीओआर (वन बेल्ट, वन रोड) के दो दिवसीय सम्मेलन में पहले दिन सम्बोधन करते हुए कहा कि बीजिंग दुनिया के सभी देषों की सम्प्रभुता का ख्याल रखता है पर कहने और करने में फर्क होता है। इस बात को भारत से बेहतर षायद ही कोई और देष समझता हो। वर्श 1954 के पंचषील समझौते में एक समझौता एक-दूसरे की सम्प्रभुता के ख्याल से भी जुड़ा था जिसे 1962 में चीन ने तोड़ने में देरी नहीं की।
देखा जाय तो चीन जमीन से लेकर समुद्र तक विस्तार वाली सोच से जकड़ा हुआ है। दक्षिणी चीन सागर, तिब्बत, ताइवान और अरूणाचल प्रदेष को लेकर उसकी मनःस्थिति को देखते हुए उसकी सम्प्रभुता वाले दावे खोखले दिखाई देते हैं। खास यह भी है कि भारत, जापान और अमेरिका चीन के इस कुटिल चाल को जानते हैं साथ ही समय-समय पर नाखुषी भी जाहिर करते हैं पर इसके आगे वे भी कुछ नहीं कर पाये हैं। हाल ही में दक्षिण चीन सागर में भारत, अमेरिका और जापान के नौ सैनिक बेड़ों ने मिलकर युद्धाभ्यास किया था तब चीन की भंवे तनी थी। इससे भी साफ है कि इस सागर पर चीन अपनी बपौती मानता है। फिलहाल जिस पाकिस्तान ने कष्मीर के कुछ हिस्से पर अवैध कब्जा किया हुआ है उससे होकर अपनी आर्थिक महत्वाकांक्षा को पूरा करने वाला एकतरफा निर्णय चीन की नीयत में खोट ही दर्षाता है। जब भारत ने वन बेल्ट, वन रोड योजना के लिए बुलाये गये सम्मेलन में भागीदारी से मना किया तो चीन ने किसी प्रकार की आतुरता या सौदेबाजी करने का इरादा नहीं जताया। चीन जानता है कि पाकिस्तान उसके सपने के साथ एक इषारे मात्र में आ जायेगा और अन्य पड़ोसियों को आर्थिक सपना दिखाकर अपनी ओर आकर्शित किया जा सकता है पर यह तो समय ही बतायेगा कि मनसूबे कितने फलित होते हैं देखा जाये तो जर्मनी समेत कई देषों ने चीन के इस क्रियाकलाप पर संदेह जताया है।
चीन की ग्लोबल योजना से फिलहाल भारत दूरी बनाये हुए है। चीन ने रेषम मार्ग पर वन बेल्ट, वन रोड को सदी की योजना करार देते हुए सौ अरब युआन की पेषकष कर दी है जो भारतीय रूपये में 930 अरब के बराबर होता है। गौरतलब है कि भारतीय प्राचीन इतिहास के पन्नों में सिल्क मार्ग का वर्णन मिलता है जिसका जिक्र इतिहास में चीनी यात्रियों द्वारा किया भी गया है। इस मार्ग द्वारा चीन की एषिया, यूरोप और अफ्रीका के अधिकतर देषों को जोड़ने की महत्वाकांक्षा फिलहाल बलवती होते दिखाई दे रही है। अलबत्ता मामला चाहे जैसा क्यों न हो एक बात तो तय है कि चीन एक खुली वैष्विक अर्थव्यवस्था की ओर बढ़ रहा है और भारत को बड़ी आर्थिक चुनौती दे रहा है। जिस कीमत पर यह मार्ग निर्मित करने का उसका इरादा है जाहिर है उससे कई गुना वसूली का इरादा भी रखता होगा। चीन-पाकिस्तान इकोनोमिक कोरिडोर के मामले में तो भारत यह मान बैठा है कि चीन को इसमें सफल नहीं होने देंगे। बावजूद इसके यदि ऐसा होता है तो भारत को बहुत बड़ा कूटनीतिक धक्का पहुंचेगा। जिस मंच पर चीन ने दुनिया को इकट्ठा किया है उसमें भारत का दषकों पुराना और स्वाभाविक मित्र रूस भी षामिल है। अमेरिका में डोनाल्ड ट्रंप का व्हाइट हाउस में पहुंचना, फ्रांस में नये राश्ट्रपति का फलक पर आना साथ ही जर्मनी में बदलाव के संकेत दिखना यह इषारा है कि अमेरिका और यूरोप समेत दुनिया के तमाम देषों की कूटनीति परम्परागत नहीं रहेगी। सबके बावजूद जिस तर्ज पर चीन के बुलाने पर तमाम देषों की उपस्थिति रही उसे चीन अपनी बड़ी सफलता मान रहा है। अमेरिका और जापान भी चीन से मतभेदों को भुला कर हिस्सेदारी दिये हैं। जाहिर है बड़े मंचों की बड़ी कूटनीति होती है, भारत को छोटे-छोटे पड़ोसियों को भी साधना है और अमेरिका, रूस समेत बड़े-बड़े देषों के मामले में कूटनीतिक चतुराई भी दिखानी है पर नतीजे क्या होंगे अभी कुछ भी कह पाना सम्भव नहीं है।


  
सुशील कुमार सिंह
निदेशक
वाईएस रिसर्च फाॅउन्डेशन  आॅफ पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन
डी-25, नेहरू काॅलोनी,
सेन्ट्रल एक्साइज आॅफिस के सामने,
देहरादून-248001 (उत्तराखण्ड)
फोन: 0135-2668933, मो0: 9456120502
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