Sunday, May 21, 2017

दमदार दलील से वापसी की उम्मीद

पाकिस्तान की जेल में बंद नौसैनिक अधिकारी कुलभूषण जाधव की फांसी की सज़ा पर रोक लगाने वाली अंतर्राष्ट्रीय कोर्ट में बीते 15 मई को सुनवाई हुई परन्तु इस पर फैसला आना अभी बाकी है। गौरतलब है कि सुनवाई के बाद अन्तर्राश्ट्रीय न्यायालय ने आष्वासन दिया है कि जल्द से जल्द इस मामले में अपना फैसला वह सुना देगा। फैसले की जो भी तारीख होगी उससे भी दोनों पक्षों को अवगत करा दिया जायेगा। देखा जाय तो अन्तर्राश्ट्रीय कोर्ट में एक भारतीय नागरिक और अधिकारी को बचाने की मुहिम में भारत ने अपनी ओर से दमदार दलील पेष कर दी है। सबसे पहले अन्र्राश्ट्रीय कोर्ट में भारत ने अपना पक्ष रखा जबकि उसी दिन षाम को पाकिस्तान की दलील भी सुनी गयी। पाकिस्तान की दलील कमोबेष ठीक वैसी ही थी जैसी कि मीडिया के माध्यम से सुना जाता रहा है। खास यह है कि जिस प्रकार पाकिस्तान जाधव मामले को पेष करता रहा वह किसी नाटकीय प्रपंच से कम नहीं था। उसके द्वारा यह कहा जाना कि जाधव को बलूचिस्तान में गिरफ्तार किया गया यह उसके ताने-बाने का ही हिस्सा था जबकि सच्चाई यह है कि जाधव को ईरान से अपहरण करके पाकिस्तान लाया गया। उसका आरोप तो यह भी है कि भारत की अपील में कई खामियां हैं जबकि सच्चाई यह है कि कानून की बारीक समझ से वह स्वयं अनभिज्ञ है या अंजान बने रहने का ढोंग कर रहा है मसलन उसका यह कहा जाना कि जाधव मामले में वियना समझौता लागू ही नहीं होता जबकि संयुक्त राश्ट्र की 1963 की वियना संधि में वाणिज्य दूतावास स्तर के अधिकारियों की सुरक्षा और विषेशाधिकारों के बारे में धारा 40 और 41 में जो विवरण है वह पाकिस्तान के इस दलील से किसी प्रकार का मेल नहीं है।
भारत की ओर से पैरवी कर रहे अटर्नी हरीष साल्वे ने यह भी आषंका जताई है कि अन्तर्राश्ट्रीय कोर्ट का फैसला आने से पहले पाकिस्तान जाधव को फांसी दे सकता है जिसे गम्भीरता से लेने की आवष्यकता है क्योंकि वह देष किसी भी हद तक जाने का दुस्साहस कर सकता है। यह आषंका इसलिए भी पूरी तरह सच है क्योंकि इसके पहले पाकिस्तान की जेल में बंद भारतीयों की वापसी की सारी उम्मीदें न केवल नाकाम हुई हैं बल्कि उनकी लाषें भारत आई हैं। गौरतलब है कि सरबजीत के मामले में एड़ी-चोटी का जोर लगाने के बावजूद आखिर नतीजा क्या हुआ? दिल्ली से इस्लामाबाद तक चर्चा बेषुमार हुई। यह साबित किया जाना भी कहीं से कमतर नहीं था कि सरबजीत कोई जासूस नहीं है बावजूद इसके 1990 में भारत से लगती सीमा पर गिरफ्तार किये गये पंजाब के तरनतारन की निवासी और पेषे से किसान सरबजीत को दषकों बाद भारत लाने की सारी कोषिषें धरी की धरी रह गयीं। वैसे देखा जाय तो कुलभूशण जाधव के अलावा मौजूदा समय में 54 भारतीय सैनिक पाक की गिरफ्त में हैं जिसमें 29 थलसेना, 24 वायुसेना और एक नेवी से है। यह मामला 1965 से 1971 के बीच का है और भारतीय युद्धबंदी आज भी पाकिस्तान की जेलों में बन्द हैं। कौन बीमार है, किस हाल में है इन सभी से पाकिस्तान बेफिक्र है। हालांकि कुछ किस्मत वाले थे जो पाकिस्तान से भारत वापस भी आये हैं पर ऐसों की संख्या बहुत मामूली है। मौजूदा समय में यह कह पाना फिलहाल मुष्किल है कि 46 बरस के कुलभूशण जाधव की भारत वापसी कब होगी पर यह समझना आसान है कि पाकिस्तान किसी भी मोर्चे पर भारत पर प्रतिघात करने से बाज नहीं आता है। 
दरअसल कुलभूशण जाधव के पूरे मामले का अध्ययन किया जाय तो इसमें पाकिस्तान की पूरी नाटकीय पटकथा के साथ झूठ गढ़ने वाली व्यवस्था का चित्रण होता है जो अन्तर्राश्ट्रीय न्यायालय तक बादस्तूर यह क्रम जारी है। जब से यह मामला प्रकाष में आया है तब से भारत सरकार जाधव को बचाने के मामले में न केवल अपनी कूटनीतिक रफ्तार बढ़ा दी है बल्कि उनके देष वापसी को लेकर जनता को आष्वासन भी देती रही। पाकिस्तान द्वारा जाधव को लेकर एक तरफा फांसी की सजा सुना दिये जाने से यह भी साफ हो गया है कि अपील और दलील का पाकिस्तान से कोई वास्ता नहीं है और न ही उसे इस बात का लेना-देना है कि जाधव के बकसूर होने का पूरा पता कर लिया जाय उसे तो सिर्फ भारतीय नागरिक होने के नाते जाधव को सिर्फ सजा देना है। गौरतलब है कि भारत यह भी चाहता था कि अन्तर्राश्ट्रीय न्यायालय फांसी पर रोक को तब तक जारी रखे जब तक मामले की विधिवत सुनवाई नहीं हो जाती जबकि आमतौर पर पाकिस्तान के साथ भारत किसी भी मामले को अन्तर्राश्ट्रीय न्यायालय तक ले जाने से बचने की कोषिष में रहता है पर कुलभूशण जाधव के मामले में उसने ऐसा नहीं किया। जाहिर है कि यह न केवल भारतीय नागरिक को देष वापस लाने की मुहिम है बल्कि अन्तर्राश्ट्रीय पटल पर भारतीय कूटनीति की जीत का भी अक्स समाया हुआ है। अन्तर्राश्ट्रीय न्यायालय जाकर भारत ने यह भी स्पश्ट किया है कि पाकिस्तान की करतूतों से वह ऊब चुका है साथ ही न्याय व्यवस्था में उसका विष्वास कहीं अधिक मजबूत है। पाकिस्तान द्वारा कुलभूशण जाधव को लेकर एक तरफा लिया गया फैसला वाकई में हैरानी से भर देता है साथ ही यह भी हैरत भरी बात है कि सात दषक से लोकतांत्रिक देष होने का वाहवही लूटने वाला पाकिस्तान नियम को कैसे ताक पर रखता है। कमजोर होने के बावजूद भारत के समक्ष वह सीना तान कर जिस तरह खड़ा होता है, जिस प्रकार गलत बयानबाजी करता है और झूठ के साथ अपनी धूर्तता से बाज नहीं आता है उससे भी यह संकेत मिलता है कि किसी भी सूरत में भारत के पक्ष का उस पर अब तक कोई असर नहीं हुआ है। आतंक को षरण देने वाला पाकिस्तान और भारत की धरती को आतंकी हमलों से सराबोर करने वाला यह देष कई मोर्चों पर न केवल भारत को तबाह किया बल्कि अन्तर्राश्ट्रीय मंचों पर गलत बयानबाजी करके दुनिया को गुमराह करने की कोषिष भी की है बावजूद इसके भारत सधे हुए कदमों से समस्याओं का निवारण करता रहा है पर जिस तर्ज पर पाकिस्तान भारत को नीचा दिखाने की कोषिष में रहता है उसे देखते हुए यह भी लगता है कि भारत उदार पड़ोसी और सज्जन देष होने की कीमत चुका रहा है जो फिलहाल सही नहीं है।
 अन्तर्राश्ट्रीय कोर्ट में मामला जाने के बावजूद भी क्या पाकिस्तान की ढीठता में कोई कमी आयेगी। क्या पाकिस्तान अन्तर्राश्ट्रीय न्यायालय में हार के बाद कुलभूशण जाधव को बिना किसी समस्या के भारत के सुपुर्द कर देगा। अन्तर्राश्ट्रीय न्यायालय के फैसले की अवहेलना करने की क्या सजा होती है और क्या पाकिस्तान इससे वाकिफ है? उपरोक्त संदर्भ इसलिए जरूरी है क्योंकि जिस कसौटी पर भारत पाकिस्तान को कसने की कोषिष करता रहा उसमें वह कभी खरा नहीं उतरा है पर षायद अन्तर्राश्ट्रीय न्यायालय के 11 जजों की बेंच वाले निर्णय से उस पर कोई बड़ा असर हो। हरीष साल्वे की वह चिंता कि फैसले से पहले फांसी की सजा पाकिस्तान दे सकता है बिल्कुल लाख टके का है पर सवा लाख टके का सवाल यह भी है कि क्या दुनिया पाकिस्तान के इस दुस्साहस पर चुप रहेगी जिस वियना संधि और अमेरिकी कानून का हवाला ऐसे मामलों में आता है उसे लेकर किसी की जबान सच को नहीं उगलेगी। ये तमाम बातें चिंता का विशय हो सकती हैं और अन्तर्राश्ट्रीय कोर्ट के नतीजों से पहले यह केवल कयास अतार्किक भी नहीं है। इसमें कोई दो राय नहीं कि न्यायालय के नतीजे भारत के पक्ष में होते हैं जैसी कि सम्भावना है तो न केवल भारत की कूटनीतिक विजय होगी बल्कि पाकिस्तान की मनोवैज्ञानिक हार होगी बावजूद इसके वह सबक क्या लेगा कहना बहुत कठिन है।


सुशील कुमार सिंह
निदेशक
वाईएस रिसर्च फाॅउन्डेशन  आॅफ पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन 
डी-25, नेहरू काॅलोनी,
सेन्ट्रल एक्साइज आॅफिस के सामने,
देहरादून-248001 (उत्तराखण्ड)
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