Tuesday, June 20, 2017

दृष्टिकोण, परिप्रेक्ष्य और कूटनीतिक फलक

अप्रैल 2015 में जब मोदी पहली बार जर्मनी गये थे तब उन्होंने कहा था कि भारत बदल चुका है, भारत आयें और निवेष करें जबकि इस बार की जर्मन यात्रा में दृश्टिकोण और परिप्रेक्ष्य आर्थिक सम्बंधों के साथ आतंकवाद को भी समेटे हुए है। बीते 29 मई से प्रधानमंत्री मोदी 4 देषों की यात्रा पर है जिसमें जर्मनी भी षामिल है। बीते मंगलवार को भारत, जर्मनी के बीच परिणाममूलक विकास और आर्थिक सम्बंधों में और तेजी लाने की पैरवी करते मोदी दिखाई दिये। जर्मनी की चांसलर एंजला मार्केल के साथ साइबर सुरक्षा और आतंकवाद समेत व्यापार, कौषल विकास जैसे महत्वपूर्ण मुद्दों पर न केवल चर्चा हुई बल्कि जलवायु मुद्दे समेत 12 मसलों पर द्विपक्षीय समझौते हुए। एक संयुक्त बयान सुनने को मिला कि भारत और जर्मनी एक-दूसरे के लिए ही बने हैं। मोदी ने मार्केल के साथ चैथी भारत-जर्मन इन्टर गवर्नमेंटल कन्सल्टेषन षिखर बैठक में आपसी सम्बंधों का रोडमैप रखा। आतंकवाद से त्रस्त तो पूरी दुनिया है बस अन्तर कम और ज्यादा का है यदि कोई प्रभावित नहीं भी है तो भी वातावरण में इसकी गूंज के चलते इसके खिलाफ आवाज जरूर बुलन्द करता है। भारत आतंकवाद से पीड़ित देषों में अव्वल है। गौरतलब है अरब देषों की यात्रा के दौरान अमेरिकी राश्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भी बीते दिन भारत को इसी तरह की श्रेणी में रखते हुए बात कही थी। हालांकि यह बात पाकिस्तान को बहुत अखरी थी क्योंकि पाकिस्तान जानता है कि इषारा उसी की तरफ है। कट्टरवाद, हिंसा और आतंकवाद के कई प्रारूप दुनिया में विस्तार लिए हुए हैं। आतंकी समूह और संगठन को कई देष न केवल वित्तीय मदद पहुंचा रहे हैं बल्कि जरूरत पड़ने पर उनके सुरक्षा कवच भी बने हुए हैं। जाहिर है आतंकियों की आड़ में पाकिस्तान छद्म युद्ध और चीन संयुक्त राश्ट्र सुरक्षा परिशद् में वीटो करके इनके लिए सेफ्टी वाॅल का काम करता रहा। अजहर मसूद के मामले में चीन दो बार ऐसा कर चुका है। फिलहाल जिस विचारधारा से ओतप्रोत मोदी विदेष गये हैं उसमें आर्थिक सम्बन्धों को साधने और आतंक के खिलाफ दुनिया को एकजुट करना षामिल है। 
पष्चिमी देषों की दृश्टि में विकास का अर्थ है दुनिया के पिछड़े, पुरातन और निर्धन देषों का पष्चिमीकरण और आधुनिकीकरण जबकि भारत में इसका अभिप्राय कहीं अधिक सारगर्भित है। यहंा विकास का मतलब सभी के लिए सब कुछ सुगम होने से है। सम्भवतः इसी तर्ज पर भारतीय अर्थव्यवस्था और व्यापार टिके हैं। षायद वैदेषिक नीतियों के मामले में भी काफी हद तक भारत का सरोकार कुछ ऐसा ही रहा है। मोदी जब भी विदेष जाते हैं भारतीय मूल के विदेष में बसे लोगों को सम्बोधित करते हैं और मेक इन इण्डिया, क्लीन इण्डिया, डिजिटल इण्डिया समेत कई आयामों से लोगों को जोड़ने की कोषिष करते हैं। आर्थिक संदर्भों में अक्सर ऐसा होता है कि जो देष अधिक उपजाऊ है वही सन्धि और समझौते में प्राथमिकता लिए होते हैं। भारत पष्चिमी देषों के साथ बरसों से सम्बंधों को हवा देता रहा है साथ ही पूरब को भी साधने में कोई कसर नहीं छोड़ा है जिसे आमतौर पर एक्ट ईस्ट- लिंक वेस्ट की संज्ञा दी जाती है। इन दिनों दुनिया में दूसरी बड़ी समस्या जलवायु परिवर्तन है। यह सभी की जिम्मेदारी है कि पृथ्वी को नुकसान से बचायें और इस ग्रह की बिगड़ी दषा को सुधारने में मदद करें। गौरतलब है कि 2015 के नवम्बर में पेरिस में जलवायु परिवर्तन को लेकर एक सम्मेलन हुआ था। यहीं पाकिस्तानी प्रधानमंत्री षरीफ और मोदी की बरसों आंख मिचैली के बाद दो मिनट के लिए आंख और हाथ दोनों मिले थे। उसके कुछ दिन बाद ही विदेष मंत्री सुशमा स्वराज इस्लामाबाद गयी थीं। तब देष में षीत सत्र चल रहा था और नेषनल हेराल्ड के मामले पर कांग्रेस घिरी थी। गौरतलब है कि इसी वर्श की 25 दिसम्बर को मोदी दुनिया को हैरत में डालते हुए अफगानिस्तान से दिल्ली आने के बजाय लाहौर षरीफ से मिलने चले गये थे पर इस जोखिम से भरी यात्रा को किनारे करते हुए पाकिस्तान ने जनवरी 2016 के षुरू होते ही पठानकोट में आतंकी हमला किया था। आतंक का ऐसा खतरनाक मोड़ दुनिया के षायद किसी देष में नहीं आया होगा कि एक तरफ विदेष मंत्री और  प्रधानमंत्री सम्बंध साधने में लगे हों और दूसरा वार करने की जुगत भिड़ा रहा हो।
अमेरिका समेत यूरोप की सियासी तस्वीर भी इस वर्श बदली है। अमेरिका में 20 जनवरी से डोनाल्ड ट्रंप राश्ट्रपति हैं तो फ्रांस में हाल ही में नये राश्ट्रपति का उदय हुआ। इस बदले समीकरण के बीच मई में एक पखवाड़े पहले चीन में वन बेल्ट, वन रोड को लेकर दुनिया के देषों का जमावड़ा भी लगा जिससे भारत दूरी बनाये रखा। इन सबके बीच जर्मनी का समर्थन भारत की तरफ देखा जा सकता है। गौरतलब है कि सिल्क मार्ग की महत्वाकांक्षा पाले चीन पाक अधिकृत कष्मीर से गुजरना चाहता है जो भारत के लिए कहीं से उचित नहीं है। प्रधानमंत्री मोदी ने यूरोपीय यूनियन की एकजुटता पर भी अपनी दृश्टि गड़ाये हुए है इसके लिए एंजेला मार्केल के मजबूत नेतृत्व का उन्होंने समर्थन किया। मोदी का यह समर्थन ऐसे समय में है जब ब्रेक्ज़िट के बाद और डोनाल्ड ट्रंप के संरक्षणवादी नीतियों को लेकर यूरोपीय यूनियन तनाव से जूझ रहा था। गौरतलब है कि अमेरिका में ट्रंप के आने के बाद यूरोप के कुछ देष यह महसूस करने लगे मसलन जर्मनी कि ट्रंप के षासन में अमेरिका और यूरोपीय यूनियन के बीच दूरियां बढ़ रही हैं। स्थिति को देखते हुए मोदी ने यह विष्वास भरने की कोषिष की है कि दुनिया को ईयू केन्द्रित सोच की जरूरत है। 
आॅटोमोबाइल, इंजीनियरिंग, अक्षय ऊर्जा, रेलवे और कौषल विकास जैसे तमाम क्षेत्रों में जर्मनी महा विकास प्राप्त कर चुका है जबकि भारत को अभी इस मामले में कहीं आगे जाना है। ऐसे में एक ओर जहां भारत जर्मनी से जरूरी विकासात्मक संदर्भों में एक साथ हो सकता है तो दूसरी तरफ आर्थिक सम्बंधों को साधते हुए जर्मनी से निवेष की अपेक्षा भी रखता है। देखा जाय तो भारत और जर्मनी के बीच सम्बंधों की जमीन नई नहीं है असल में वर्श 1995 में जर्मनी से राजनयिक सम्बंध स्थापित करने वालों में भारत भी षामिल था। भारत जर्मनी के एकीकरण के समर्थन करने वाले देषों में भी षुमार रहा है। इस नाते भी जर्मनी के साथ भारत का दषकों पुराना सकारात्मक सम्बंध है। विदेष नीति के मामले में दोनों देषों द्वारा 21वीं सदी में साझेदारी का एजेण्डा अपनाया गया। यदि इतिहास को टटोला जाय तो इनके व्यापारिक सम्बंध 16वीं सदी से देखे जा सकते हैं। आंकड़ों को गौर किया जाय तो वर्श 2000-2014 के बीच द्विपक्षीय व्यापार 250 अरब डाॅलर तक हो गया था। मौजूदा समय में मोदी प्रयास के चलते मामला इससे आगे है। गौरतलब है कि जर्मनी तीन स्मार्ट सिटी भारत में विकसित करने का एलान 2015 में ही किया था और जर्मनी की चांसलर एंजेला मार्केल ने कहा था कि मेक इण्डिया की तर्ज पर मेक इन जर्मनी की षुरूआत करेंगी। फिलहाल प्र्रधानमंत्री मोदी बीते 30 मई को जर्मन की यात्रा समाप्त करते हुए अपने अगले पड़ाव स्पेन के लिए रवाना हो गये हैं। जिस प्रकार भारतीय अर्थव्यवस्था वैष्विक स्तर पर उछाल लेने की फिराक में है उसी तर्ज पर पटरी से उतरी कूटनीति को भी फलक पर पहुंचाना है। यूरोपीय देषों से भारत का सम्बंध उपजाऊ तो रहा है साथ ही पाकिस्तान और चीन को संतुलित करने के काम भी आया है। मोदी इसी क्रम में रूस भी जायेंगे और अपने इस पुरातन और नैसर्गिक मित्र से यह जरूर समझना चाहेंगे कि उसका पाकिस्तान की ओर झुकाव और चीन की नीतियों में इतना आकर्शण क्यों है। गौरतलब है कि रूस पाकिस्तान के साथ युद्धाभ्यास में भाग लेने और वन बेल्ट, वन रोड परियोजना में चीन के साथ है। फिलहाल मोदी की इस बार की यात्रा भी कूटनीतिक संतुलन व आर्थिक सम्बंधों को साधने के साथ आतंक के विरोध में एकजुटता और जलवायु परिवर्तन के प्रति गहरी चिंता समेटे हुए है।


सुशील कुमार सिंह
निदेशक
वाईएस रिसर्च फाॅउन्डेशन आॅफ पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन
डी-25, नेहरू काॅलोनी,
सेन्ट्रल एक्साइज आॅफिस के सामने,
देहरादून-248001 (उत्तराखण्ड)
फोन: 0135-2668933, मो0: 9456120502
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