Wednesday, May 3, 2017

फिर आइने को चकनाचूर किया पाकिस्तान

बरसों से यह लिखा जाता रहा है शायद दशकों से भी कि पाकिस्तान अपनी हरकतों से बाज नहीं आ रहा है। दूसरे शब्दों  में कहें तो साल दर साल की दर से पाकिस्तान न केवल समय के साथ बर्बर हुआ बल्कि बेगैरत भी होता चला गया। ताजा उदाहरण कश्मीर  के  कृष्णा  घाटी में घटी वह घटना जिसमें पाक सैनिकों ने एक बार फिर दो भारतीय जवानों के सिर काटे। गौरतलब है कि इसके पहले भी इस प्रकार के कुकर्म पाकिस्तान कर चुका है और संवेदनषीलता की सारी हदे पार कर चुका है। ऐसी घटनाओं के बाद अक्सर यह कहा जाता है कि पाकिस्तान को उसके किये की कीमत चुकानी पड़ेगी, जवानों की कुर्बानी बेकार नहीं जायेगी, सारा देष जवानों के साथ खड़ा है, इस मुसीबत की घड़ी में जवानों का परिवार अकेला न समझे साथ ही कुछ जुमलेबाजी मसलन एक के बदले दस सिर लायेंगे इत्यादि इत्यादि पर क्या इतने मात्र से काम चलेगा। हर भारतीय षायद इस बात से ऊब चुका है कि पाकिस्तान आये दिन हमारी सीमा में घुस कर सेना के साथ बर्बरता करे, सिर कलम करके ले जाये, षव को क्षत-विक्षत करे और हम षब्दों तक सीमित रहें। गौरतलब है कि 29 सितम्बर, 2016 को जब सर्जिकल स्ट्राइक हुई थी और पाक अधिकृत कष्मीर में घुस कर भारतीय सेना ने आतंकी ठिकानों को ध्वस्त किया और 40 से अधिक आतंकियों को ढ़ेर किया था तब सरकारी अमले ने वाहवही लूटने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी थी पर उसका नतीजा क्या हुआ? सिलसिलेवार तरीके से देखा जाय तो सीमा पर न केवल तनाव बढ़ा रहा बल्कि सैनिकों की कुर्बानी औसत से अधिक आगे निकल गयी। सर्जिकल स्ट्राइक के बाद से लेकर अब तक महज़ दर्जन भर आतंकी भी निषाने पर नहीं आये जबकि सैकड़ों भारतीय जवान षहीद हो गये। इस दौरान 193 आतंकी घटनायें हुई हैं जबकि दो हजार से अधिक बार सीमा के अंदर पत्थरबाजी की घटना हुई। अप्रैल का पूरा महीना पत्थरबाजी में ही बीता है। सीमा के बाहर पाकिस्तान को लेकर जो समस्या है उसमें तनिक मात्र भी कमी नहीं आई साथ ही कष्मीर के अंदर उपद्रव इन दिनों भी उफान पर है। 
कभी-कभी मन में यह भी ख्याल उठता है कि पाकिस्तान के लोकतंत्र की सटीक परिभाशा क्या हो सकती है साथ ही विचारों में यह भी पनपता है कि जो देष कभी भारत का हिस्सा रहा हो और लाल कुर्ती आंदोलन से जुड़े सीमांत गांधी जैसे लोग पाकिस्तान के मूल धरातल के हिस्सा रहे हों जो भारत पर जान छिड़कते थे आखिर उनकी जमीन में ऐसे झाड़ कैसे उगे होंगे। एक तरफ आतंक की खेती होती है तो दूसरी तरफ लोकतंत्र को निगलने वाली सेना साथ ही आईएसआई का जोड़ इनके करतूतों को और पुख्ता कर देता है। इन सबके बीच षरीफ की षराफत का कितना मोल होगा अंदाजा लगाना कठिन नहीं है। कहने को तो लोकतंत्र से गढ़े गये प्रधानमंत्री हैं पर कृत्य किसी वहषी से कम नहीं है। इस बात में भी दुविधा नहीं कि पाकिस्तान में लोकतंत्र की मौजूदा स्थिति यह दर्षाती है कि इसकी लोकतांत्रिक उपज को पाला मार गया है जबकि आतंकी खेती लहलहा रही है। भारत के समान ही लोकतंत्र लेकर चलने वाला पाक जिहाद की आड़ में न केवल आतंक और दहषत को जन्म देता है बल्कि उसे संरक्षण देने और पेट भर खुराक देने में भी पीछे नहीं है जिसका खामियाजा आये दिन भारत को भुगतना पड़ता है। हाफिज़ सईद से लेकर अजहर मसूद तक की खेती यहां आम है। पाक अधिकृत कष्मीर में तो बाकायदा आतंकियों की पाठषालायें चलती हैं और यहां के आम पाकिस्तानी गरीबी, बेरोजगारी और बीमारी के आगे लाचार हैं। दुविधा तब और बढ़ जाती है जब भारत के धैर्य को उसकी कमजोरी समझने की भूल पाकिस्तान करने लगता है। 
फिलहाल जवानों से बरर्बता की घटना के बाद एक नये सिरे की बहस देष में छिड़ गयी है। पाक को जवाब देने का वक्त आ गया है ऐसी भी बात हो रही है। राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोप भी वातावरण में स्थान घेरे हुए हैं। यूपीए में केन्द्रीय मंत्री रहे कपिल सिब्बल ने विदेष मंत्री सुशमा स्वराज से फिलहाल पूछ लिया है कि क्या वे अब पीएम को चूड़ियां भेजेंगी। दरअसल यह तल्ख भरा बयान कपिल सिब्बल ने इसलिए दिया क्योंकि इसके पहले मनमोहन काल में जब पाकिस्तानी सैनिकों की बर्बरता सीमा पार कर गई और दो भारतीय सैनिकों का सिर कलम कर दिया गया तब सुशमा स्वराज जो नेता प्रतिपक्ष थीं ने जनवरी 2013 में तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को चूड़ियां भेजने की बात कही थी। इतना ही नहीं वर्तमान प्रधानमंत्री और उस समय गुजरात के मुख्यमंत्री रहे मोदी ने भी 2 मई, 2013 को एक ट्वीट किया था कि केन्द्र पाकिस्तान के अमानवीय कृत्यों का करारा जवाब दे पाने में नाकाम है, हमारे सैनिकों के सिर काटना और अब सरबजीत की मौत हालिया उदाहरण हैं। ऐसा देखा गया है कि जब भी देष में इस तरह की घटना घटती है तब सरकार की कमजोरी मानते हुए विपक्ष ताने मारता है पर यह नहीं भूलना चाहिए कि राजनीतिक विचारधारा में राजनेता भले ही बंटे हों मगर देषहित से इसका कोई वास्ता नहीं है। प्रधानमंत्री चाहे मनमोहन सिंह रहे हों या मोदी हों जवाब तो अपनी-अपनी बारी में दोनों को देना बनता है। देखा जाय तो पाकिस्तान एलओसी पर भारतीय सैनिकों पर हमला के लिए जिस बैट का प्रयोग किया वह दुनिया में किसी फौज का अकेला दस्ता है। बैट अर्थात् बाॅर्डर एक्षन टीम ने भारतीय सीमा में 250 मीटर से अधिक घुसकर ये कारनामा किया। फलस्वरूप दो भारतीय सैनिक षहीद हो गये। बैट खासतौर पर पैट्रोलिंग कर रहे जवानों पर घात लगाकर हमला करती है और उनके षवों को क्षत-विक्षत कर देती है। वर्श 2011 में कुपवाड़ा में कुमायूँ रेजीमेंट के जवान के साथ भी ऐसा पहले हो चुका है तब भारतीय सेना ने 8 पाकिस्तानी जवानों को मारा था। इसी क्रम में वर्श 2013 में पुंछ में जवान हेमराज और सुधाकर का भी सिर कलम किया गया था तब भी सेना ने बदला लेते हुए 20 पाकिस्तानी जवानों को ढ़ेर किया था। 
मुख्य प्रष्न यह है कि पाकिस्तान के इस करतूत पर भारत की ओर से क्या कार्यवाही होगी जिससे कि न केवल पाकिस्तान को सबक सिखाया जा सके बल्कि गिर रहे सेना के मनोबल को भी बुलंदी दी जा सके। सभी जानते हैं कि मोदी सरकार से देष को बहुत उम्मीदें हैं पर यह भी सब जानते हैं कि दुनिया में भारत को ख्याति और बुलंदी दिलाने वाले मोदी पाकिस्तान के मामले में फिलहाल बैकफुट पर हैं। कचोटने वाला सवाल तो यह भी है कि भारतीय सेना की सर्जिकल स्ट्राइक के बाद फिर से आतंकी लांच पैड पाक अधिकृत कष्मीर में सक्रिय हो गये हैं। उक्त को देखते हुए ऐसा प्रतीत होता है कि अब योजनाबद्ध तरीके से बड़ी और कठोर कार्यवाही करने की आवष्यकता है। हालांकि कूटनीतिक कार्यवाही, आर्थिक प्रतिबंध और सिन्धु जल के प्रवाह को रोकने जैसे उपाय भारत के पास मौजूद हैं पर ये भी जुमले ही सिद्ध हो रहे हैं। ऐसे में सैन्य कार्यवाही की दरकार देष महसूस कर रहा है। जिस राह पर पाकिस्तान है उसे देखते हुए भारत को अपनी राह भी चुन लेनी चाहिए। फिलहाल षहीद परमजीत सिंह से लेकर प्रेम सागर के परिवार में षोक की लहर है और एक के बदले 50 सिर की भी मांग कर रहे हैं। सबके बावजूद दो टूक यह भी है कि एक बार फिर आइना चकनाचूर हुआ है साथ ही पाकिस्तान पर किसी प्रकार का दबाव फिलहाल काम नहीं आ रहा है, अन्तर्राश्ट्रीय कूटनीति भी हमारी बौनी ही सिद्ध हो रही है और जिस चीन के बूते पाक छाती चैड़ी किये हुए है उसका भी कहीं न कहीं हमारी नीतियों का असर है पर समस्या से मुक्ति पाने के लिए कठोर कदम तो उठाने ही पड़ेंगे।
सुशील कुमार सिंह
निदेशक
वाईएस रिसर्च फाॅउन्डेशन  आॅफ पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन 
डी-25, नेहरू काॅलोनी,
सेन्ट्रल एक्साइज आॅफिस के सामने,
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