Friday, June 24, 2016

जीएसटी के मामले में बैकफूट पर कांग्रेस

सच्चाई यह है कि जीएसटी मोदी सरकार के लिए किसी महत्वाकांक्षी योजना-परियोजना से कम नहीं रहा है पर इसके प्रति विरोधियों का निभाया गया आचरण अनुपात में कहीं अधिक सियासी रहा। मुख्य विपक्षी कांग्रेस इस मामले में हठ् की राजनीति पर अभी भी काम कर रही है जबकि पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह जीएसटी के फायदे बताते हुए इसका समर्थन कर चुके हैं। प्रचण्ड बहुमत वाली मोदी सरकार राज्यसभा में संख्याबल के आभाव के चलते इस मामले में पूरी तरह खरी नहीं उतर सकती थी और कांग्रेस का समर्थन लेना जरूरी था पर रोचक यह है कि 2014 के षीत सत्र से जो मोदी सरकार कांग्रेस की मान-मनव्वल में लगी रही अब वही बिना कांग्रेस के राज्यसभा में आंकड़े की बाजीगरी में अव्वल होते दिखाई दे रही है। जब बीते 18 मई को वित्त मंत्री अरूण जेटली ने बिना कांग्रेस के जीएसटी विधेयक को पास कराने की बात कही थी तो अचरज से भरी प्रतीत हुई मगर अब यह सम्भव होते दिखाई दे रहा है। उच्च सदन में भाजपा एवं सहयोगियों की संख्या 81 है जबकि जीएसटी के समर्थन की घोशणा कर चुके सपा, जदयू, बसपा, टीएमसी सहित 15 दलों के सदस्यों की संख्या 76 है। विधेयक को पारित करने के लिए दो-तिहाई बहुमत यानी 164 सदस्यों की आवष्यकता है। मौजूदा स्थिति में सात सदस्यों की और जरूरत है। सुगबुगाहट यह है कि वामदल के नौ और अन्नाद्रमुक के 14 का समर्थन हासिल करना सरकार के लिए कोई दिक्कत नहीं है क्योंकि इनकी मांगों को लेकर सरकार का रूख नरम है। वैसे देखा जाय तो केरल के मुख्यमंत्री और वित्तमंत्री दोनों जीएसटी के समर्थन में आवाज़ बुलन्द कर चुके हैं। आगामी 27 जून को संसदीय मामलों की समिति मानसून सत्र की तारीख तय होगी और इसी सत्र में सम्भव है कि बीते पांच सत्रों से सर्दी-गर्मी झेल रहा जीएसटी कानूनी रूप हासिल कर लेगा। 
जीएसटी को लेकर विपक्षियों के अपने-अपने सुर और राग रहे हैं। कांग्रेस की मांग थी कि इसे संविधान का हिस्सा बनाया जाए जबकि कई विपक्षी दल इस मांग से सहमत नहीं है। विपक्ष की यह भी मांग रही है कि एक प्रतिषत प्रवेष कर का प्रावधान खत्म हो। इसके अलावा विवाद निपटाने वाली समिति में राज्य को केन्द्र के बराबर अधिकार मिले साथ ही जीएसटी के कर की दर कम हो। अनुमान है कि जीएसटी 18 से 25 प्रतिषत के बीच रहेगा पर गणित और अर्थषास्त्र का यह घालमेल किस संख्या पर टिकेगा आने वाले वक्त में स्पश्ट हो जायेगा। फिलहाल दो-तिहाई बहुमत के पार दिख रही सरकार का इस मामले में लम्बा वक्त जरूर लग गया पर बिन कांग्रेस इसकी मंजूरी की सम्भावना के चलते सरकार फलक पर और कांग्रेस बैकफुट पर जाते हुए दिखाई देती है। बीते 14 जून को कोलकाता में जीएसटी को लेकर एक बैठक का आयोजन किया गया था जिसमें दिल्ली के उप-मुख्यमंत्री समेत 22 राज्यों के वित्त मंत्री षमिल हुए। तमिलनाडु को छोड़ सभी इस पर राजी भी हैं। इसी दौरान वित्त मंत्रालय ने जीएसटी से जुड़ा एक मसौदा भी जारी किया। गौरतलब है कि बीते बजट सत्र में 24 विधेयक पारित हुए थे बावजूद इसके जीएसटी पर कांग्रेस का रूख जस का तस रहा। प्रधानमंत्री मोदी की इस विधेयक को लेकर दर्द का अंदाजा इस बात से लगा सकते हैं कि उन्होंने बीते 13 मई को राज्यसभा में फेयरवेल के दौरान कहा था कि अगर जीएसटी बिल आप लोगों के रहते पारित हो जाता तो अच्छा होता। इसके अलावा कैम्पा बिल के पारित नहीं होने का मलाल भी उनमें देखा जा सकता है। दरअसल राज्यसभा के 57 सदस्य जुलाई में यानी अगले सत्र से पहले रिटायर्ड हो रहे थे जिसे लेकर उन्हें फेयरवेल दिया जा रहा था। इसी माह हुए राज्यसभा चुनाव ने भी उच्च सदन में सरकार के गणित को बदला है पर बिना सहयोग के अभी भी राज्यसभा में सरकार अपने बूते काम नहीं कर सकती। फिलहाल कहना सही होगा जीएसटी को लेकर जिस प्रकार पिछले दो वर्शों में सदन की कार्यवाही रही है उससे साफ है कि एक अच्छा विधेयक सियासत की भेंट चढ़ा है। 
देखा जाय तो जीएसटी एक ऐसी समुच्चय अवधारणा है जिसके चलते पूरे देष में टैक्स की एक समान व्यवस्था सम्भव होगी। केन्द्र और राज्य के बीच अप्रत्यक्ष करों के वितरण को लेकर जो अनबन है उसे भी ठीक किया जा सकेगा साथ ही अप्रत्यक्ष करों के वितरण को लेकर पनपे विवादों को भी समाधान दिया जा सकेगा। गौरतलब है कि केन्द्र और राज्य के बीच विवाद झेल चुका जीएसटी विधेयक जिसे वर्ष 2014 में 122वें संविधान संशोधन के तहत शीत सत्र में पेश किया गया था और प्रधानमंत्री मोदी ने इसे 1 अप्रैल, 2016 में लागू करने की बात कही थी वह कई सियासी थपेड़ों से जूझता रहा। ध्यान्तव्य हो कि केन्द्र और राज्य के बीच टैक्स बंटवारे को लेकर विवाद पहले ही खत्म हो चुके हैं। मौजूदा केन्द्र सरकार के वित्त मंत्री अरूण जेटली ने पहले ही कह दिया था कि इसके आने के बाद राज्यों को जीएसटी पर होने वाले घाटे पर पांच साल तक क्षतिपूर्ति मिलेगी। शुरूआती तीन साल पर शत् प्रतिशत, चैथे साल 75 प्रतिशत और पांचवे साल 50 फीसदी का प्रावधान किया गया। जीएसटी काउंसिल में राज्यों के दो-तिहाई जबकि केन्द्र के एक-तिहाई सदस्य होंगे साथ ही यह भी कहा गया कि राज्यों को एंट्री टैक्स, परचेज़ टैक्स तथा कुछ अन्य तरह के करों से जो घाटे होंगे उसकी भरपाई के लिए दो वर्ष के लिए एक फीसदी के अतिरिक्त कर का प्रावधान किया गया है। उक्त संदर्भ को देखते हुए स्पश्ट है कि जीएसटी को लेकर सरकार ने कांटों को दूर करने की पूरी कोशिश की है। नेशनल काउंसिल आॅफ एप्लाइड इकोनोमिक रिसर्च के मुताबिक इसके लागू होने के पश्चात् जीडीपी में 0.9 से 1.7 तक का इजाफा किया जा सकता है। अनुमान तो यह भी है कि भारत की मौजूदा जीडीपी में 15 से 25 फीसदी का विकास दर बढ़ सकता है। 
कई मुनाफो से भरे जीएसटी में रोचक तथ्य तो यह भी है कि यह मात्र मोदी सरकार की ही कवायद नहीं है। पहली बार सन् 2000 में जीएसटी सम्बन्धी एम्पावर्ड कमेटी बनायी गयी थी उस समय भी एनडीए की सरकार थी जिसका नेतृत्व अटल बिहारी वाजपेयी कर रहे थे। यह अप्रत्यक्ष कर ढ़ाचे में सुधार लाने के लिए था। इसी कमेटी के जिम्मे जीएसटी का माॅडल तैयार करना तथा आईटी से सम्बन्धित ढांचे को भी रूपरेखा देना था। केन्द्रीय स्तर पर एक्साइज़ ड्यूटी और सर्विस टैक्स तथा प्रांतीय स्तर पर वैट और स्थानीय कर इसके लागू होने के बाद समाप्त करने का लक्ष्य रखा गया। मतलब साफ था कि कर ढांचे को तर्कसंगत बनाना और देष को एक एकीकृत व्यवस्था देना था। जिसे यूपीए सरकार के कार्यकाल के दौरान पेष किया गया परन्तु राज्यों से असहमति के कारण यह पास नहीं हो सका जिसकी मुख्य वजह पेट्रोलियम, तम्बाकू और षराब पर लगने वाला टैक्स था। ये टैक्स जीएसटी के चलते समाप्त हो जाते। इसके चलते राज्यों ने भारी राजस्व नुकसान को देखते हुए इसका विरोध किया। गौरतलब है कि कई राज्यों के कुल राजस्व का यह दो-तिहाई होता है। एक दषक से यूपीए सरकार से लेकर एनडीए सरकार तक जीएसटी को लेकर गम्भीरता दिखाई जा रही है पर अधिनियम के रूप में इसे ला पाने में कोई सरकार सफल नहीं दिखती परन्तु बदले हालात को देखते हुए उम्मीद है कि मानसून सत्र में बिना कांग्रेस के ही इसे पारित करा लिया जायेगा। यदि ऐसा हुआ तो इसे मोदी सरकार की अर्थषास्त्र के साथ राजनीतिषास्त्र की जीत भी कही जायेगी पर हाषिये पर जा चुकी कांग्रेस के लिए यही जीएसटी उसके डेढ़ वर्श के सियासी दांव को विफल कर सकता है। 

सुशील कुमार सिंह


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