Monday, June 13, 2016

ऊर्जा सुरक्षा नीति पर ज़रूरी कूटनीति

प्रधानमंत्री मोदी को इस बात का पूरा आभास है कि उच्च वृद्धि दर बनाये रखने के लिए ऊर्जा सुरक्षा नीति कितनी आवष्यक है। इसी के मद्देनजर पहले से चली आ रही ‘पष्चिम की ओर देखो नीति‘ को मोदी ने कतर की यात्रा करके और पुख्ता बनाने की कोषिष की है। विगत् दो वर्शों के कार्यकाल में तीन दर्जन से अधिक देषों की यात्रा कर चुकने के पष्चात् तीसरे वर्श के कार्यकाल में यह मोदी की प्रथम यात्रा कही जायेगी जिसमें छः दिन और पांच देष षामिल है इसी में कतर भी षुमार है जिसकी यात्रा बीते दिनों समाप्त हो गयी। भारत-कतर के बीच के सम्बंधों का विषदीकरण किया जाए तो यह देखना महत्वपूर्ण है कि भारत के लिए कतर इतना महत्वपूर्ण क्यों है। दरअसल दुनिया के तमाम देषों में षुमार कतर एक ऐसी पहचान रखता है जिस पर काफी हद तक भारत निर्भर है और उसके इसी आपूर्ति के चलते भारत ऊर्जा सुरक्षा के मामले में गारंटी प्राप्त करता है। देखा जाए तो ऊर्जा सुरक्षा नीति को लेकर भी भारत अपने वैष्विक दौरों को प्राथमिकता देता रहा है इसी क्रम में कतर अहम् हो जाता है। प्रधानमंत्री का दो दिवसीय पड़ाव कतर की राजधानी दोहा में बीते दिन समाप्त हुआ। जहां कई अहम समझौतों पर दोनों देषों के मुखिया ने बीते 5 जून को सहमति दी। इस दौरे से मोदी न केवल भारत-कतर सम्बंधों को पुख्ता बनाने में कामयाब होते हुए दिखाई देते हैं बल्कि दोहा में उनकी उपस्थिति से कई अप्रत्यक्ष संदर्भों को भी बल मिलता है। दोनों देषों का निवेष के अतिरिक्त स्वास्थ, पर्यटन, कौषल विकास जैसे कई मुद्दों पर एकमत होना कई व्यावसायिक अनुप्रयोगों को भी बढ़ावा देने का काम करेगा जिसमें ऊर्जा सुरक्षा नीति काफी अहम है। 
दुुनिया के प्रमुख तेल एवं गैस उत्पादक देष कतर के साथ हुए आधा दर्जन से अधिक करार प्रत्यक्ष व परोक्ष दोनों रूपों में भारत के लिए लाभकारी सिद्ध हो सकेंगे। देखा जाए तो पष्चिम की ओर देखो नीति के तहत ही वर्श 2008 में तत्कालीन प्रधानमंत्री डाॅ. मनमोहन सिंह ने कतर और ओमान की एक साथ यात्रा की थी। ध्यान्तव्य हो कि कतर विष्व का सबसे बड़ा तरल प्राकृतिक गैस का निर्यातक है और भारत के साथ उसका दीर्घावधि का समझौता है जिसके तहत भारत को प्रति वर्श 7.5 मिलियन टन एनएनडी की आपूर्ति करता है। हालांकि भारत इसे और बढ़ाने के लिए भारत प्रयासरत रहता है। प्रधानमंत्री मोदी खाड़ी क्षेत्र के देषों के साथ सम्बंधों को सुधारने में काफी वक्त दे रहे हैं। बीते मई के आखिरी सप्ताह में वे ईरान की यात्रा पर थे। केवल कतर और ईरान ही नहीं, देखा जाय तो समूचा खाड़ी क्षेत्र भारत की ऊर्जा सुरक्षा के लिहाज से काफी महत्वपूर्ण है। रही बात कतर की तो यहां 6 लाख से अधिक भारतीय मूल के लोग रहते हैं और वर्श 2014-15 में कतर का भारत के साथ व्यापार डेढ़ लाख डाॅलर को पार कर गया था। कतर भारत को सबसे अधिक एलएनजी के आपूर्तिकत्र्ता के साथ-साथ कच्चे तेल का प्रमुख स्रोत है। आवागमन के परिप्रेक्ष्य में भी कतर और भारत का सःसम्बंध अक्सर कायम रहा है। इसी क्रम को बरकरार रखते हुए वर्श 2015 के मार्च में कतर के प्रमुख ने भी भारत की यात्रा की थी। भले ही प्रधानमंत्री मोदी के साथ बीते दिनों ऊर्जा संदर्भ को लेकर कतर के साथ कोई बड़ा समझौता न देखने को मिला हो पर यह सच है कि मोदी प्रभाव के चलते कतर भारत की ऊर्जा सुरक्षा नीति पर और अधिक सकारात्मक रूख जरूर अपनायेगा। वैसे मोदी जिस भी देष में जाते हैं केवल कारोबार तक ही सीमित नहीं रहते बल्कि व्यक्तिगत प्रभाव से भी कूटनीति को साधने का काम करते रहे हैं। 
कतर के कारोबारियों को आमंत्रण देते हुए प्रधानमंत्री मोदी ने अपने अंदाज में कहा कि भारत प्रचुर सम्भावनाओं वाला देष है तथा सरकार निवेष के रास्ते समस्त बाधाओं को दूर करने का वादा करती है। अर्थ साफ है कि मोदी की ‘रेड कारपेट थ्योरी‘ यहां भी विद्यमान थी। यह भी सही है कि निवेष के रास्ते में जो भी अड़चने रही हैं उसे लेकर भी मोदी सरकार ने काफी काम किया है। यहां तक कि कई पुराने कानूनों को न केवल समाप्त किया है बल्कि नये कार्यक्रमों और विधाओं को भी अंगीकृत करते हुए देष में विदेषी पूंजी को तुलनात्मक बढ़ाने का काम किया है जिसमें मेक इन इण्डिया जैसे कार्यक्रम वैष्विक लोकप्रियता हासिल कर चुके हैं। दोहा में मोदी का भारत के युवा श्रम का उल्लेख करना इस बात की बड़ी ताकत है कि बुनियादी ढांचों और निहित विस्तार को लेकर भारत में आधुनिक और तकनीकी श्रम की केाई कमी नहीं है। आम लोगों के जीवन सुधार को देखा जाय तो सरकारे ही रचनाकार रही हैं पर सुधार के लिए कई बुनियादी स्रोतों की आवष्यकता होती है इसे ध्यान में रखते हुए भी कतर के निवेषकों का ध्यान मोदी ने खींचने का अतिरिक्त काम किया है। मसलन भारत में कृशि उत्पाद प्रसंस्करण, रेलवे और सौर उर्जा के क्षेत्र में निवेष को उन्होंने काफी फायदे वाला बताया है। यह सच है कि विदेषी निवेषकों के लिए भारत के कई बुनियादी इकाईयों में निवेष करके लाभ लेने का पूरा अवसर छुपा है पर उनके अन्दर उस विष्वास को अधिरोपित कैसे सम्भव किया जाए कि उनकी पूंजी की क्षति नहीं होगी। इस असमंजस को देखते हुए मोदी ने निवेषकों के अन्दर विष्वास भरने का काफी बड़ा काम किया है। षायद ही इसीलिए उन्हें ब्रान्ड के रूप में स्थापित राजनेता भी माना जाता है। 
वर्तमान अन्तर्राश्ट्रीय और वित्तीय स्थिति भारत के लिए सुनहरा अवसर प्रदान करती है कि वह खाड़ी में अत्यधिक संचित धनराषि को भारत के विकास की ओर मोड़े। ऐसा एक दूसरे देषों में निवेष और व्यापार का बढ़ावा देकर ही किया जा सकता है। कतर हाइड्रोकार्बन के मामले में भी धनी माना जाता है। भारत को हाइड्रोकार्बन के साथ-साथ भरपूर निवेष की जरूरत है। इस मामले में मोदी का यह दौरा एक सुगम पथ बना सकता है। कई क्षेत्रों के अलावा भारत और कतर के बीच षिक्षा का क्षेत्र भी सम्बंधों को बढ़ाने का एक आधार हो सकता है। फिलहाल जो सात अहम समझौते हुए हैं वे भी विकास के रूख को मोड़ने की ताकत रखते हैं। हालांकि ऐसी बातों का न तो एकतरफा असर होता है न ही षीघ्र प्रभाव दिखाई देते हैं पर जिस तर्ज पर वैदेषिक कूटनीति समाधान प्राप्त करती है उसे देखते हुए यह सौ फीसदी सही है कि कतर के साथ रिष्ते पटरी पर हैं। इसके पहले भी उन ऐतिहासिक समझौतों पर हस्ताक्षर हुए हैं जिसमें रक्षा और सुरक्षा षामिल रहा है। प्रवाह से भरी दुनिया में रक्षा, सुरक्षा और ऊर्जा सुरक्षा की चिंता किसे नहीं है पर भारत के मामले में यह इसलिए और संवेदनषील है क्योंकि यहां की सवा अरब आबादी की निर्भरता व्यापक विस्तार लिए हुए है। इसकी आपूर्ति जाहिर है पष्चिम की ओर देखो नीति में ज्यादा संदर्भित दिखाई देती है। ऐसे में भारत को एक तिहाई गैस आपूर्ति करने वाले देष कतर से क्या लाभ होंगे और भारत के लिए वह कितना महत्वपूर्ण है इसे आंकना कठिन नहीं है। सबके बावजूद निहित संदर्भ यह भी है कि खाड़ी देषों में षामिल कतर से भारत कारोबारी रूख के साथ जिस तरह जुड़ने की कोषिष की है उसके दूरगामी नतीजे तो देखने को मिलेंगे ही साथ ही ऊर्जा कवच वाले कतर का भारत पर भरोसा भी इन दिनों की नीतियों के चलते जरूर बढ़ा होगा। 

सुशील कुमार सिंह

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