Monday, June 27, 2016

ब्रिटेन ने यूरोपीय संघ को कहा अलविदा

जब दुनिया का कोई संघ या देष नये परिवर्तन और प्रगति की ओर चलायमान होता है तो उसका सीधा असर वहां के सामाजिक, आर्थिक तथा राजनीतिक परिवेष पर तो पड़ता ही है साथ ही किसी भी अक्षांष और देषान्तर में स्थित जटिल दुनिया पर भी प्रभाव पड़ना स्वाभाविक है। यूरोपीय संघ यानी ईयू की सदस्यता पर ऐतिहासिक जनमत संग्रह के बाद ब्रिटेन का इससे अलग होने वाले नतीजे ऐसे ही संकेतों के चलते सुर्खियों में हैं। दरअसल बीते 23 जून को ब्रिटेन यूरोपीय संघ का सदस्य रहे या न रहे इसे लेकर जनमत संग्रह कराया गया और नतीजे मामूली अंतर के साथ अलग होने के पक्ष में आये। जिसमें 52 फीसदी लोगों ने यूरोपीय संघ से अलग होने तो 48 फीसदी ने साथ रहने के पक्ष में अपना मत दिया। राजधानी लन्दन में ज्यादातर लोगों का मत ईयू के साथ रहने का है लेकिन देष के बाकी हिस्से मसलन पूर्वोत्तर इंग्लैण्ड, वेल्स, मिड्लैंडस आदि इसके विरोध में हैं। फिलहाल 382 में से 378 सीटों के नतीजों से यह स्पश्ट हो गया कि ब्रिटेन ईयू का सदस्य नहीं रहेगा। हालांकि मतदान के ठीक पहले आये सर्वेक्षण में यह संकेत दिया गया था कि 28 देषों के यूरोपीय संघ में ब्रिटेन के बने रहने की सम्भावना बनी रहेगी पर ऐसा नहीं हुआ। जनमत संग्रह हेतु 4.6 करोड़ से ज्यादा षामिल मतदाताओं में करीब 12 लाख भारतीय मूल के भी थे जो ब्रिटेन में किसी भी चुनाव की भागीदारी का रिकाॅर्ड भी है। खास यह भी है कि ब्रिटेन के प्रधानमंत्री डेविड कैमरन ने पत्नी समांथा के साथ वोट डालने के बाद ब्रिटेन का ईयू में बने रहने के पक्ष में ट्वीट किया। उन्होंने कहा कि अपने बच्चों के बेहतर भविश्य के लिए ईयू में बने रहने के पक्ष में मतदान करें। भले ही ईयू से ब्रिटेन अलग राह पकड़ लिया है पर यह माना जा रहा है कि इस प्रक्रिया को पूरा होने में 2020 तक का समय लगेगा तब तक ब्रिटेन में चुनाव भी सम्पन्न हो जायेगा। फिलहाल ईयू से ब्रिटेन का अलगाव कैमरन के लिए खतरे की घण्टी भी मानी जा रही है। 
पड़ताल से यह साफ है कि ब्रिटेन ने यूरोपीय यूनियन को अचानक अलविदा नहीं कहा है इसके पीछे बरसों से कई बड़े कारण रहे हैं जिसमें ब्रिटेन में बढ़ रहा प्रवासीय संकट मुख्य वजहों में एक रही है। दरअसल ईयू में रहने के चलते ब्रिटेन में प्रतिदिन 500 प्रवासी दाखिल होते हैं जबकि पूर्वी यूरोप के करीब 20 लाख लोग तो ब्रिटेन में बाकायदा रह रहे हैं। ब्रिटेन में बढ़ती तादाद के चलते ही यहां बेरोजगारी जैसी समस्याएं भी पनपी हैं। ईयू से अलग होने के बाद इन पर रोक लगाना सम्भव होगा साथ ही कई अपराधी प्रवासियों पर भी लगाम लगाया जा सकेगा। इतना ही नहीं सीरिया में जारी संकट के चलते भी यहां दिक्कतें बढ़ी थीं उससे भी निपटना आसान हो जायेगा। ईयू से अलग होने से ब्रिटेन को करीब एक लाख करोड़ रूपए की सालाना बचत भी होगी जो उसे ईयू में बने रहने के लिए मेम्बरषिप के रूप में चुकानी पड़ती थी। ब्रिटेन के लोगों को ईयू की अफसरषाही को भी नहीं पसंद करते। कईयों का मानना है कि यहां उनकी तानाषाही चलती है। केवल कुछ नौकरषाह मिलकर ब्रिटेन सहित 28 देषों के लोगों का भविश्य तय करते हैं जो बर्दाष्त नहीं है। गौरतलब है कि यूरोपीय संघ के लिए करीब 10 हजार अफसर काम करते हैं। कई तो राजनेता की पारी खत्म करके ईयू के हिस्से बने हैं जो मोटी सैलरी लेते हैं। रोचक यह भी है कि ये अफसर ब्रिटेन के प्रधानमंत्री कैमरन से भी ज्यादा वेतन पाने वालों में षामिल हैं। इन सबके अलावा मुक्त व्यापार का रास्ता बाधित होना भी रहा है। ईयू से अलग होने के बाद अमेरिका और भारत जैसे देषों से ब्रिटेन को मुक्त व्यापार करने की छूट होगी। गौरतलब है भारत का सबसे ज्यादा कारोबार यूरोप के साथ है। केवल ब्रिटेन में ही 800 भारतीय कम्पनियां हैं जिनमें एक लाख से ज्यादा लोग काम करते हैं। वर्श 2015 में इन्होंने ब्रिटेन में लगभग दो लाख पचास हजार करोड़ रूपए का निवेष किया। खास यह भी है कि भारतीय आईटी सेक्टर की 6 से 18 फीसदी कमाई ब्रिटेन से ही होती है। ऐसे में ब्रिटेन के रास्ते भारतीय कम्पनियों की यूरोपीय संघ के इन 28 देषों के 50 करोड़ लोगों तक पहुंच आसान होती है। अब डर यह भी बन गया है कि ब्रिटेन के ईयू से अलग होने से यह आसान पहुंच बन्द हो जायेगी। यूरोपीय संघ का ब्रिटेन के अलग होने की एक वजह यह भी है कि 50 फीसदी से अधिक कानून ब्रिटेन में ईयू के लागू होते हैं जो कई आर्थिक मामलों में किसी बंधन से कम नहीं हैं जबकि ब्रिटेन ईयू के मुकाबले बाकी दुनिया को करीब दो गुना ज्यादा निर्यात करने की कूबत रखता है। फिलहाल ब्रिटेन की ईयू से अलग-थलग होने वाले कारणों की फहरिस्त काफी लम्बी है उक्त तमाम कारकों के चलते ही वहां के मतदाताओं ने ईयू को अलविदा कहना ही उचित समझा।
वित्त मंत्री अरूण जेटली ने ब्रेक्जिट के मौजूदा रूझानों पर टिप्पणी करने से इंकार करते हुए कहा  था कि पूरे नतीजे आ जाने तक इंतजार करना पसंद करेंगे। ब्रिटेन और यूरोपीय यूनियन के अलगाव के लिए ब्रिटेन और एक्जिट षब्द जोड़कर ‘ब्रेक्जिट‘ षब्द बना है। देखा जाए तो ब्रिटेन के इतिहास में जनमत संग्रह कोई नया मामला नहीं है। यह ब्रिटेन के इतिहास का तीसरा और ईयू की सदस्यता को लेकर दूसरा जनमत संग्रह है इससे पहले 1975 में हुए जनमत संग्रह में लोगों ने ईयू के साथ रहने के पक्ष में वोट दिया था तब ईयू , यूरोपीयन इकोनोमिक कमेटी हुआ करता था। जनवरी 1973 में ब्रिटेन इसका सदस्य बना। वैसे इस समूह की षुरूआत 1957 में 6 यूरोपीय देषों के बीच रोम सन्धि के चलते सम्भव हुई थी जबकि ईयू के रूप में इसका अस्तित्व 1993 में आया। गौरतलब है कि वर्श 2014 में भी एक जनमत संग्रह हुआ था जो स्काॅटलैण्ड के ब्रिटेन का हिस्सा बने रहने से सम्बन्धित था।
यूरोपीय संघ से ब्रिटेन के अलग होने से दुनिया भर में हडकंप मचा हुआ है। भारतीय बाजार ही नहीं ग्लोबल मार्केट में भी इसका असर दिख रहा है। जापान का बेंच मार्क इण्डेक्स नेक्कई और हांगकांग का हेंगसेंग 400 अंकों तक गिर चुका है। भारत के सेंसेक्स पर भी 900 अंकों तक की गिरावट दर्ज की गयी है। निफ्टी भी 300 अंकों तक लुढ़का है। डाॅलर के मुकाबले रूपए में भी गिरावट दर्ज की गयी है, एक डाॅलर की तुलना में यह 68 रूपए को पार कर गया है पर यह माना जा रहा है कि जनमत संग्रह से भारत की वैष्विक आर्थिक नीति प्रभावित नहीं होगी। फिलहाल ये तो दुनिया के बाजारों के बदलने की कुछ बानगी है और यह बदलाव अभी भी निरन्तरता लिए हुए है। गौरतलब है कि इस जनमत संग्रह पर दुनिया भर की नजरे टिकी थीं। जाहिर है सभी को अपनी चिंता है। चार महीने चली मुहिम के बाद हुई वोटिंग और प्राप्त नतीजे चैकाने वाले तो नहीं पर सोचने वाले जरूर हैं। सवाल तो यह भी है कि आखिर किसी भी संघ का निर्माण क्यों होता है और उससे क्या अपेक्षाएं होती हैं क्या ब्रिटेन की अपेक्षाओं पर यूरोपीय संघ खरा नहीं उतरा? इसकी भी जांच-पड़ताल समय के साथ होती रहेगी पर तात्कालिक परिस्थितियों को देखते हुए भारत को संतुलित वैष्विक आर्थिक नीति पर काम करने की कहीं अधिक आवष्यकता पड़ सकती है।


सुशील कुमार सिंह
निदेशक
रिसर्च फाॅउन्डेषन आॅफ पब्लिक एडमिनिस्ट्रेषन 
डी-25, नेहरू काॅलोनी,
सेन्ट्रल एक्साइज आॅफिस के सामने,
देहरादून-248001 (उत्तराखण्ड)
फोन: 0135-2668933, मो0: 9456120502
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