Thursday, December 8, 2016

अम्मा विहीन तमिलनाडु की राजनीति

सियासी क्षितिज में जनप्रिय नेताओं की लम्बी फेहरिस्त दषकों से समय-समय पर उभरती रही है पर जन-जन में भाव परोसने और निहायत भावुक बना देने वाले नेतृत्व देष-प्रदेष में कम ही देखे गये हैं। तमिलनाडु की मुख्यमंत्री जयललिता को फिलहाल इस सूची में रखा जा सकता है। इतना ही नहीं जिस तर्ज पर जयललिता ने तमिलनाडु में अपनी सियासत की चमक बिखेरे हुए थीं वह उनके निधन तक बरकरार रही। तमिलनाडु के बाषिन्दों के दिलों पर राज करने वाली जयललिता एक ऐसी क्वीन थी जिसके विरोध को लेकर सुर षायद ही कभी मजबूती से उठे हों। गौरतलब है कि आय से अधिक धन रखने के मामले में उन्हें जेल तक जाना पड़ा था बावजूद इसके उनकी छवि पर कोई खास आंच नहीं आई। 234 विधानसभा वाले तमिलनाडु में 150 से अधिक विधायकों के साथ बादस्तूर वह निधन तक सत्ता चलाती रहीं। तमिलवासी उनके निधन से बहुत दुःखी हैं। कईयों का तो रो-रो के बुरा हाल है। उन्हें अपना नेता ही नहीं मानो अम्मा को खोने का बेइंतहां दर्द हो। यदि यह कहा जाय कि दक्षिण भारत के एक प्रांत की सियासत में खुद को समेट कर रखने वाली जयललिता भारत के किसी बड़े नेता से कम नहीं थी तो गलत न होगा। गौरतलब है कि 1984 में पहली बार उनकी सियासत राज्यसभा सदस्य के तौर पर ही षुरू हुई थी। फिलहाल देखा जाय तो इन दिनों भले ही तमिलनाडु को गति देने के लिए जयललिता के सबसे अधिक चहेते नेता पन्नीरसेल्वम मुख्यमंत्री बनाये गये हैं पर जो रिक्तता उनकी वजह से व्याप्त हुई है उसकी भरपाई करने में षायद बरसों खपाने पड़ेंगे। जयललिता का जाना देष के लिए भी बहुत भावुक क्षण था। उनके निधन की सूचना पर पूरा देष उमड़ पड़ा। प्रधानमंत्री के अलावा कई केन्द्रीय मंत्री तथा राहुल, सोनिया समेत कई प्रदेष के मुख्यमंत्री भी जयललिता के निधन पर श्रृद्धांजली देने चेन्नई पहुंचे। कई भावुक क्षण भी इस दरमियान विकसित हुए। प्रधानमंत्री मोदी भी उस दौरान काफी गमजदा दिखाई दे रहे थे। यह तब अधिक भावुक क्षण ले लिया जब तमिलनाडु के मुख्यमंत्री की षपथ लेने वाले पन्नीरसेल्वम उनके गले लगते हुए फूट-फूट कर रोए। जयललिता की हमराज और सर्वाधिक विष्वस्त षषिकला से प्रधानमंत्री की मुलाकात भी कुछ इसी तरह का माहौल लिए हुए थी।
तथ्य और सत्य यह है कि दुनिया में आम हो या खास इस सच का सामना सभी को करना ही पड़ता है। जयललिता बीते 22 सितम्बर से अस्पताल में इलाज करा रही थी पर 5 दिसम्बर के लगभग आधी रात में उनकी मृत्यु तमिलवासियों के लिए बड़ा आघात था। जो जन सैलाब उनकी षव यात्रा में देखा गया उसका भी हिसाब लगाना मुष्किल ही है। सिनेमा के रूपहले पर्दे से सियासी जमीन बनाना और उस पथ पर सरपट दौड़ना साथ ही विरोधियों से निपटने की कला में उनकी कोई सानी नहीं थी। तमिलनाडु की सियासत में अपने नियोजन और जनप्रिय योजनाओं के चलते घर-घर में मानो वह वास करती थी जिसका पुख्ता सबूत उन्हें अम्मा कहा जाना है। गौरतलब है कि सियासत की डगर सबके लिए आसान नहीं होती न ही सब इस मामले में पारंगत होते हैं। राजनीति में कई फलक होते हैं और हर फलक से वाकिफ होना सबके लिए सम्भव नहीं होता पर जयललिता के लिए यह सब मुमकिन था। राज्य की सत्ता से लेकर केन्द्र की सियासत तक अम्मा का प्रभाव बीते कई दषकों से देखा जा सकता है। जयललिता के जाने के बाद राजनीति कैसी होगी इसके भी कयास लगाये जा रहे हैं। कई मान रहे हैं कि केन्द्र की सियासत में तमिलनाडु की भूमिका अब कहीं अधिक मायने रखने वाली है और अन्नाद्रमुक की मजबूरी होगी कि वह भाजपा से नजदीकी बढ़ाये। हालांकि इस बात को भी दरकिनार नहीं किया जा सकता कि ऐसी ही मजबूरी भाजपा पर भी लागू होती है। छः माह पहले जब विधानसभा का चुनाव तमिलनाडु में हो रहा था तब प्रधानमंत्री मोदी ने वहां कई रैलियां की थीं और सभी जानते हैं कि अम्मा के आगे वहां भाजपा की दाल तो बिल्कुल नहीं गली थी।
इसमें कोई दो राय नहीं कि जयललिता के निधन के बाद प्रदेष की राजनीति में एक बड़ी रिक्तता आ गयी है। अब देखना यह होगा कि सत्तारूढ़ अन्नाद्रमुक निकट भविश्य में क्या कदम उठाती है। साफ है कि जयललिता से पहले की राजनीति और बाद की राजनीति में अन्तर तो जरूर आयेगा। देखा जाय तो प्रधानमंत्री मोदी बीते ढ़ाई वर्शों से राज्यसभा में संख्याबल की कमी के चलते विरोधियों का निरन्तर दबाव झेलते रहे हैं जिसके चलते उनके कई महत्वाकांक्षी विधेयक आज भी धूल फांक रहे हैं। गौरतबल है कि अन्नाद्रमुक का मौजूदा लोकसभा में 37 और राज्यसभा में 13 सांसद हैं जो मोदी सरकार के लिए भविश्य की सियासत में अच्छा खासा असर रख सकते हैं और यह किसी बड़े संसाधन से कम नहीं है। इसे भी दरकिनार नहीं किया जा सकता कि आगामी जून-जुलाई (2017) में राश्ट्रपति और उपराश्ट्रपति का चुनाव भी होना है। केन्द्र सरकार मनमाफिक उम्मीदवार को इस पद पर पहुंचाना चाहेगी। ऐसे में अन्नाद्रमुक के इन सिपाहियों पर मोदी की जरूर नज़र होगी। जाहिर है सधी हुई राजनीति करने के माहिर मोदी फिलहाल राज्यसभा में भी अपनी कमी को दूर करने के लिए अन्नाद्रमुक के 13 सदस्यों के साथ आंकड़े को और पुख्ता करना चाहेंगे। प्रधानमंत्री मोदी ने तमिलनाडु में जयललिता के रहते हुए कोई ऐसी-वैसी व्यक्तिगत टिप्पणी भी नहीं की थी जो की उनके उत्तराधिकारियों को कचोटती हो। गौरतलब है कि मोदी पहले भी जयललिता से सियासी सम्बंध बनाने के प्रति उत्सुक रहे हैं। फिलहाल अन्नाद्रमुक के उत्तराधिकारियों से जो अपेक्षा केन्द्र की इन दिनों हो सकती है वह कैसे पूरी होगी यह देखना भी काफी दिलचस्प रहेगा। 
140 फिल्मों में अभिनेत्री की भूमिका निभा चुकी जयललिता की राजनीतिक पारी 1982 में एआईएडीएमके में षामिल होने से षुरू हुई। सिने स्टार रहे एम.जी. रामचन्द्रन अम्मा के राजनीतिक गुरू के तौर पर जाने जाते हैं। सियासी दांवपेंच की माहिर रहीं जयललिता कई अवसरों पर मोदी सरकार की योजनाओं पर पुरजोर विरोध करती रही हैं परन्तु अब ऐसा लगता है कि अम्मा के न होने से अन्नाद्रमुक ऐसा नहीं कर पायेगी। इसके पीछे कई ठोस वजह भी मानी जा रही है जिसमें सरकार चलाने के मामले में केन्द्र के सहयोग की आवष्यकता को भी दरकिनार नहीं किया जा सकता। खास यह भी है कि अन्नाद्रमुक के करीब 90 फीसदी सांसद राजनीति में नौसिखिये हैं। ऐसे में अन्दरखाने कोई गड़बड़ी न हो इसे लेकर भी बच के ही कदम उठाना होगा। पन्नीर सेल्वम को अभी पूरे साढ़े चार साल सत्ता चलानी है जाहिर है केन्द्र से गैर वाजिब विरोध वह स्वयं नहीं रखना चाहेंगे। इतना ही नहीं जयललिता के राजनीतिक विरासत के तौर पर षषिकला का खेमा भी देर-सवेर आतुर हो सकता है। राजनीतिक महत्वाकांक्षा के चलते अन्नाद्रमुक में भी यदि कोई फंसाद होता है तो यह अम्मा के उन आदर्षों को चोट पहुंचेगी जिसे उन्हें बनाने में दषकों लगे थे। गौरतलब है कि कि भाजपा का तमिलनाडु में महज़ दो फीसदी वोट है। ऐसे में रिक्तता का लाभ उठाते हुए वह इसे बढ़ाने को लेकर नये तरीके सोच सकती है। हालांकि जिस तर्ज पर जयललिता ने अपने चमत्कारिक नेतृत्व से तमिलनाडु की जनता को अपना अनुयायी बनाया था उसमें भाजपा का सेंध इतनी आसानी से नहीं लगेगा। पन्नीर सेल्वम भले ही भावुक होकर प्रधानमंत्री से गले मिलकर फूट-फूट कर रोए हों पर इस भावना में राजनीतिक आलिंगन की सम्भावना से इंकार नहीं किया जा सकता। फिलहाल जयललिता की कमी से तमिलनाडु और वहां की सियासत को अच्छा खासा वक्त लग सकता है।


सुशील कुमार सिंह


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