Monday, December 5, 2016

हार्ट ऑफ़ एशिया के केंद्र में आतंकवाद

हार्ट आॅफ एषिया के केन्द्र में आतंकवादअमृतसर में हार्ट आॅफ एषिया के भव्य मंच से जब अफगानिस्तान के राश्ट्रपति अषरफ गनी ने पाकिस्तान को आतंकवादी गतिविधियों के चलते खरी-खोटी सुनाई तो हृदय को बड़ा सुकून मिला पर रूस ने इसी मामले पर पाकिस्तान को घेरने की भारत की कोषिष के प्रति एक बार फिर प्रतिकूल रूख दिखाकर काफी हद तक हृदय को दुखी भी किया। रूस ने पाकिस्तान के रूख को न केवल जायज़ ठहराते हुए आपसी मतभेद नहीं उठाने की बात कही बल्कि भारत की कोषिषों को भी झटका दिया। गौरतलब है कि रूस पहले भी ब्रिक्स सम्मेलन में आतंक को लेकर पाकिस्तान को अलग-थलग करने वाली भारत की मुहिम को झटका दे चुका है जबकि रूस दषकों से भारत का प्रगाढ़ मित्र है। हालांकि संयुक्त घोशणापत्र में आतंकवाद के खिलाफ संयुक्त मोर्चा बनाने पर पूरी सहमति देखी जा सकती है परंतु अफगानिस्तान की ओर से आतंकवाद को मदद देने वाले राश्ट्रों के खिलाफ पेष किये गये काउंटर टेरर फ्रेमवर्क को मंजूरी न मिलना भारत और अफगानिस्तान के मन के विरूद्ध भी है। फिलहाल इस सम्मेलन में अफगानिस्तान को भारत के साथ जबरदस्त दोस्ती निभाते हुए देखा जा सकता है। जिस तर्ज पर पाकिस्तान को अफगानिस्तान ने लताड़ा है उससे भी साफ है कि भारत की कूटनीति आतंक के मामले में फिलहाल सफल सिद्ध हुई है। देखा जाय तो पाकिस्तान इस बात को लेकर पहले से ही षंकित था कि अफगानिस्तान इस मंच से उस पर हमला कर सकता है इसे देखते हुए पाकिस्तानी प्रधानमंत्री नवाज़ षरीफ के सलाहकार सरताज अजीज एक दिन पहले अफगानी राश्ट्रपति से मुलाकात भी की थी पर इस भेंट का कोई मतलब नहीं निकला उलटे अषरफ गनी ने यह तक कह डाला कि जो पांच सौ करोड़ डाॅलर की मदद उन्हें पाकिस्तान दे रहा है उसे वह स्वयं आतंकवाद को खत्म करने में प्रयोग करें। साथ ही अफगानी राश्ट्रपति ने सीमापार आतंकवाद पर पाकिस्तान से हिसाब भी मांगा और आतंकी नेटवर्क को संरक्षण देकर अपने ही देष में अघोशित युद्ध छेड़ने का आरोप भी मढ़ा। परिप्रेक्ष्य और दृश्टिकोण यह इषारा करते हैं कि हार्ट आॅफ एषिया के मंच से पाकिस्तान को साफ संदेष दे दिया गया है कि आतंकियों और हिंसक चरमपंथियों को पनाह देना षान्ति के लिए कितना बड़ा खतरा हो सकता है। 
इस बीच इस बात पर भी चर्चा जोरों पर है कि क्या भारत के राश्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल और सरताज अजीज के बीच कोई मुलाकात हुई है। दरअसल प्रधानमंत्री मोदी की ओर से बीते 3 दिसम्बर को विदेष मंत्रियों के लिए डिनर का आयोजन किया गया था। डिनर के बाद अजीत डोभाल और सरताज अजीत के बीच मुलाकात की बात कही जा रही है। पाकिस्तानी मीडिया मुलाकात होने का दावा कर रहा है जबकि भारत इससे इंकार कर रहा है। देखा जाय तो पाकिस्तानी मीडिया और पाकिस्तान सरकार समेत उसके तमाम प्रतिनिधि अक्सर बात को बढ़ा-चढ़ाकर पेष करते रहे हैं साथ ही अपनी षेखी बघारने में पीछे नहीं रहते। बीते दिनों पाकिस्तानी प्रधानमंत्री षरीफ ने तब हद कर दी जब उन्होंने यह कह डाला कि नवनिर्वाचित अमेरिकी राश्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने उन्हें न केवल षानदार व्यक्ति कहा बल्कि पाकिस्तान को सम्भावनाओं वाला देष करार दिया जबकि व्हाईट हाउस की ओर से इस पर कोई तवज्जो नहीं दिया गया। पाकिस्तानी मीडिया किसी अपवाह तंत्र से कम नहीं है और सरताज अजीज जैसे लोग किसी भी परिस्थिति को भुनाने में तनिक मात्र भी पीछे नहीं रहते हैं। फिलहाल हार्ट आॅफ एषिया के मंच पर पाकिस्तान की आतंकवाद के मामले में बोलती बंद हो गयी। मुख्य विपक्षी कांग्रेस ने केन्द्र सरकार से भी सवाल दागा है कि अजीज को क्या बिरयानी खिलाने के लिए यहां बुलाया गया है। सरकारी सूत्रों की मानें तो दोनों के बीच कोई बैठक नहीं हुई है। बस सौ मीटर तक साथ टहलते हुए डिनर वेन्यू तक जरूर गये हैं जिस दौरान महज़ कुछ अनौपचारिक बातचीत हुई। ठीक उसी तर्ज पर जैसे प्रधानमंत्री मोदी ने सरताज अजीज से हाथ मिलाते हुए नवाज़ षरीफ का हालचाल पूछा था।
गौरतलब है कि भारत के अमृतसर में हार्ट आॅफ एषिया के मंच पर पाकिस्तान के किसी प्रतिनिधि का उपस्थित होना किसी बड़े सवाल से कम नहीं है जिस पाकिस्तान ने 18 सितम्बर को उरी में आतंकी हमला के माध्यम से भारत के 18 सैनिकों को षहीद कर दिया जिसके चलते इस्लामाबाद में होने वाले सार्क बैठक को भारत के साथ कई देषों ने बायकाॅट किया साथ ही 28-29 सितम्बर को पाक अधिकृत कष्मीर में घुसकर भारतीय सेना ने सर्जिकल स्ट्राइक करके आतंकी कैंपों और आतंकियों को नश्ट करने का जोखिम लिया। इतना ही नहीं अभी भी लगातार सीमा पर पाकिस्तान की ओर से गोलीबारी जारी है जिसके चलते सेना के जवान षहीद हो रहे हैं और हमले की जद में सीमा पर बसे गांव वहां के बाषिन्दे और मवेषी हैं। ऐसे में भारत के किसी मंच पर पाकिस्तान के किसी प्रतिनिधि का होना कितना वाजिब कहा जायेगा। विपक्ष का आरोप भले ही राजनीतिक माना जाय पर सच्चाई यह है कि हार्ट आॅफ एषिया के माध्यम से भी पाकिस्तान से भारत को कुछ भी हासिल होने वाला नहीं है। वैष्विक मंचों पर पाकिस्तान की ये फितरत रही है वादे करो फिर मुकर जाओ और डांट खाने के बाद भी जस के तस रहो। रूस के उफा में भी षरीफ ने आतंक को लेकर जो वादे किये थे उस पर कोई अमल न करना साथ ही 2 जनवरी को पठानकोट के हमले के बाद पाक जांच एजेंसी का मार्च में सप्ताह भर के लिए भारत आना और जब भारत की एनआईए को इस्लामाबाद जाने की बारी आई तब कष्मीर के मुद्दे सामने लाकर पाकिस्तान इससे एक बार फिर मुकर गया। सम्भव है कि सरताज अजीज भारत से कुछ भी सीख कर नहीं जायेंगे और दोनों देषों के बीच पहले और अब में कोई फर्क भी नहीं होने वाला। कुल मिलाकर समस्या भी पुरानी, बातें भी पुरानी अन्तर है तो केवल इस बात का कि मंच नया था।
हार्ट आॅफ एषिया की स्थापना 2 नवम्बर, 2011 को तुर्की की राजधानी इस्तांबुल में हुई थी जिसका उद्देष्य अफगानिस्तान की स्थिरता को समृद्धि प्रदान करना था। एषिया के 14 देषों का यह संगठन क्षेत्रीय देषों के बीच संतुलन साधने, समन्वय बिठाने साथ ही आपसी सहयोग बढ़ाने का भी काम करता है। 18 सहयोगी देष और 12 सहायक और अन्तर्राश्ट्रीय संगठन भी इसमें षामिल हैं। अमृतसर में हुए हार्ट आॅफ एषिया का यह छठवां आयोजन था जिसका मुख्य उद्देष्य आतंकवाद का खात्मा है पर इस मामले में कितने कदम आगे बढ़े इसका भी लेखा-जोखा किया जाना चाहिए। इसकी खासियत घोशणापत्र में पाकिस्तानी आतंकी संगठन लष्कर और जैष-ए-मौहम्मद का नाम षामिल किया जाना है। गौरतलब है कि इन संगठनों का नाम पहले भी गोवा के ब्रिक्स घोशणापत्र में षामिल किये जाने का प्रयास किया गया था पर चीन की वजह से सम्भव नहीं हो पाया था। 40 देषों की मौजूदगी वाला हार्ट आॅफ एषिया में चीन भी षामिल था लेकिन विष्व के अनेक देषों के रूख को देखते हुए इस बार पाकिस्तान समर्थक चीन भी चुप्पी साधना ही सही समझा। कहा जाय तो यह भारत की सधी हुई कूटनीति का ही नतीजा है साथ ही जिस तरह अफगानिस्तान बीते कुछ वर्शों से लोकतंत्र के रास्ते पर सरपट दौड़ा है और आतंकवाद मुक्त किसी देष के क्या मायने होते हैं इसको भी समझा है। अफगानिस्तान यूरेषिया के बीच एक बेहतरीन पुल का भी काम कर सकता है। इससे भारत को कई आर्थिक मुनाफे के अतिरिक्त आतंकी गतिविधियों पर लगाम की गुंजाइष भी बढ़ती दिखाई देती है। फिलहाल आतंकियों के षरणगाह पाकिस्तान के मन-मस्तिश्क पर इस आयोजन की कितनी छाप पड़ी होगी यह आने वाले दिनों में उसकी आदतों की पड़ताल करके परखा जा सकेगा।

सुशील कुमार सिंह


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