Monday, October 31, 2016

जलते शिक्षालय, सुलगते सवाल

ऐसा लगता है कि समाज निर्माण की उन तमाम संस्थाओं को अलगाववादी इसलिए नेस्तोनाबूत करने पर तुले हैं जिससे कि ऐसे कट्टरपंथियों का अस्तित्व कष्मीर की घाटी में कायम रह सके। दूसरे षब्दों में देखा जाय तो ऐसे क्रियाकलापों के पीछे अलगाववादियों में निहित एक प्रकार का डर भी है। गौरतलब है कि कष्मीर घाटी विगत् चार महीने से अलगाववादियों के चलते झुलसने के क्रम में बनी हुई है और इनके निषाने पर स्कूल और बैंक जैसी संस्थाएं रहीं हैं। बीते तीन महीनों में घाटी के 25 षिक्षालय आग के हवाले किये जा चुके हैं। जिसमें से डेढ़ दर्जन से अधिक सरकारी स्कूल हैं। जिस तर्ज पर पाकिस्तान और अफगानिस्तान में तालिबानियों ने षिक्षा को तहस-नहस करने के लिए स्कूलों को निषाना बनाया था ठीक उसी तरह कष्मीर के षिक्षालय भी धूं-धूं हो रहे हैं। साफ है जो षिक्षा समाज बदलने के काम आती है उसी को मिटाने के मामले में अलगाववादी पूरी ताकत लगाये हुए है। कष्मीर में जारी हिंसा के बीच दीपावली के दिन अनंतनाग के ऐषमुकाम नवोदय विद्यालय में आतंकियों ने आग लगाई इसके अलावा काबा मार्ग स्थित गर्वनमेन्ट स्कूल में आग के चलते भारी तबाही हुई। दक्षिण कष्मीर में स्थित तीन स्कूल मात्र 24 घण्टे के अन्दर खाक कर दिये गये। प्रकाष का पर्व दीपावली में जिस तरह षिक्षालयों को आग के हवाले कर तबाह किया गया। इससे घाटी में कई और सुलगते सवाल भी जन्म लेते हैं जिनका एक ही समाधान षान्ति और अमन चैन है पर इस रसूख भरे हल से अलगाववादी और आतंकी दोनों मीलों पीछे हैं। यदि आगे है तो अषान्ति और आतंक। इतने ही दिनों से जारी हिंसा की वजह से घाटी के स्कूल बंद पड़े हुए हैं अब तक लगभग सौ के आस-पास लोग मारे जा चुके हैं। स्कूलों के लगातार बंद होने से षिक्षा-दीक्षा पर तो असर पड़ा ही है अब षिक्षालयों के जलने से घाटी की व्यवस्था भी तुलनात्मक और चरमरा रही है। 
दीवाली होने के बावजूद अन्तर्राश्ट्रीय सीमा पर बसे गांव अंधेरे में डूबे रहे क्योंकि बीते कुछ दिनों से सीमा पार से गोलियां बरसाने का सिलसिला नहीं थमा। प्रषासन ने ऐसे इलाकों में रेड अलर्ट घोशित कर लोगों को गांव छोड़ने के लिए फरमान भी सुनाया था। अपील के बावजूद कुछ लोग गांव में ही टिके रहे। भारत-पाकिस्तान के बीच एक ओर जहां तनातनी तो दूसरी ओर घाटी के अंदर अलगाववाद का जोर मारना मानो स्थानीय लोगों की कड़ाई के साथ दोहरी परीक्षा ली जा रही हो। अलगाववादी अपने विरोध प्रदर्षन से स्कूलों को अलग करने के लिए तैयार नहीं हैं। उनका कहना है कि अषान्ति के इस दौर में स्कूलों को खोलना बच्चों की जान को खतरा है। उनका यह भी कहना है कि विद्यालय में आग लगाने की घटना से उनका कोई लेना-देना नहीं है। अलगाववादी नेता सैयद अली षाह गिलानी ने तो यहां तक कहा कि स्कूल को जलाने वाले कष्मीरी जनता के दुष्मन हैं पर क्या यह पूरी तरह दूध के धुले हैं। कट्टरपंथी हुर्रियत कांफ्रेंस के गिलानी ने कष्मीरी क्रिकेटरों से घाटी के बाहर अपने दौरों से परहेज करने को भी कहा है। दरअसल हुर्रियत को लगता है कि इस कारण उनके अलगाववादी मकसद को नुकसान पहुंच सकता है। ऐसे में सवाल उठता है कि हुर्रियत का आखिर मकसद क्या और कितना बड़ा है। साफ है कि पाक आतंकियों और उनके आकाओं को समर्थन देने वाला हुर्रियत कष्मीर के अमन-चैन को लेकर षायद ही कभी सकारात्मक सोचे। जिस तरह घाटी में स्कूल धूं-धूं कर जल रहे हैं, बैंक भी इनके निषाने पर हैं और कष्मीर के युवा क्रिकेटरों को लेकर अनाप-षनाप बयान दिये जा रहे हैं उससे साफ है कि अलगाववादी ही कष्मीर के सबसे बड़े दुष्मन हैं।
स्कूलों को जलाने की घटना के लिए जेकेएलएफ चीफ यासीन मलिक ने महबूबा सरकार को कसूरवार ठहराया है। यह बात समझ से परे है कि अलगाववादियों और आतंकियों के चलते कष्मीर की वादी लुटती जा रही है और यही अलगाववादी स्वयं में सुधार लाने के बजाय दूसरे की लानत-मलानत कर रहे हैं। बीते चार महीनों से जो खेल इनके द्वारा खेला जा रहा है, जो रक्तपात घाटी में हुआ है और जिस तर्ज पर चीजों को बिगाड़ने की कोषिष की गई उसे देखते हुए स्पश्ट है कि अलगाववादी अपने नफे नुकसान को भी बेहतरी से भांपने की कोषिष में लगे हैं। स्कूल जलाने की घटना से अलगाववादी यदि इतने ही व्यथित हैं तो घाटी के अमन-चैन के लिए कोषिष क्यों नहीं करते? पाक के आतंकियों की विचारधारा से प्रभावित अलगाववादी क्यों नहीं कष्मीर को भारत का अभिन्न अंग मानते हैं? जिस भारत के खाद-पानी से इनका निर्माण हुआ है और जिसके अन्न को खाकर इनकी ज़बान इतनी लम्बी हुई है उससे वे देष के प्रति जहर उगलने के बजाय अमन-चैन की बात क्यों नहीं करते? यासीन मलिक जैसे लोग कष्मीर को षेश हिन्दुस्तान से अलग मानकर किन लोगों के बीच अपनी पीठ थपथपाना चाहते हैं। यदि अलगाववादियों में इतना ही दम है तो प्रजातांत्रिक तरीके से ये लोगों का नेतृत्व क्यों नहीं कर पाते हैं। इतिहास गवा है कि एक भी अलगाववादी कभी भी चुनाव नहीं लड़ा है षायद लड़े तो हारने की सौ फीसदी गारंटी रहेगी। घाटी में समस्या बन चुके अलगाववादी पाकिस्तान परस्त हैं। बुरहान वानी जैसे आतंकियों का समर्थन करके इस बात को इन्होंने और पुख्ता किया है। इतना ही नहीं जब-जब कष्मीर मुद्दे को लेकर भारत पाकिस्तान के बीच बैठकों का दौर हुआ है तब-तब हुर्रियत ने लंगी मारने की कोषिष की है। बीते कुछ महीनों में हुर्रियत ने जो किया है उससे इनके बिगड़े चरित्र को बाखूबी समझा जा सकता है। 
जम्मू-कष्मीर की सरकार ने वार्शिक बोर्ड परीक्षाओं को नवम्बर माह में ही कराने की घोशणा की है लेकिन परीक्षा करवाने के निर्णय को लेकर सरकार के खिलाफ भी विरोध प्रदर्षन किया जा रहा है। दो दर्जन से अधिक स्कूल की इमारतें आग के चलते क्षतिग्रस्त हो गईं हैं, बचे हुए स्कूल भी असुरक्षा के दायरे में हैं। आलम यह है कि लगभग 20 लाख बच्चे बीते कई महीने से स्कूल नहीं जा पा रहे हैं जिसके चलते उनकी पढ़ाई ठप्प है। ऐसे में परीक्षा को लेकर असमंजस की स्थिति का होना भी लाज़मी है पर सरकार का हठ है कि परीक्षा तो समय पर ही होगी। इन परीक्षाओं को अगले साल मार्च तक टालने की बच्चों और अभिभावकों की मांग को भी अनसुना कर दिया गया। हालांकि सीमा क्षेत्रों जैसे गुरेज, तंगधार, उरी और जम्मू, लद्दाख में स्कूल ठीक-ठाक से चल रहे हैं। देखा जाय तो अलगाववादियों का हस्तक्षेप कष्मीर घाटी तक ही सीमित है। तमाम संदर्भ और निहित परिप्रेक्ष्य को देखते हुए कयास कई लगाये जा सकते हैं पर जिस तर्ज पर कष्मीर की घाटी को बंधक बनाया गया और हिजबुल मुजाहिदीन के कमांडर आतंकी बुरहान वानी की आड़ में कष्मीर को अषान्त करने की कोषिष की गयी उससे यह भी साफ है कि कईयों को मौके की तलाष रहती है। कष्मीर में अलगाववादियों का गुट ऐसे मौकों को जाया नहीं जाने देता। 8 जुलाई के बाद से ही घाटी कराह रही है और उसकी आवाज अनसुनी की जा रही है। कुछ हद तक इसमें राज्य सरकार भी जिम्मेदार है। कानून और व्यवस्था के मामले में जो जिम्मेदारी महबूबा मुफ्ती की होनी चाहिए उस मामले में भी काफी कोताही बरती गयी है। फिलहाल अमन-चैन को नोचने वालों की कमी घाटी में नहीं है पर उन सवालों का क्या जिनसे सभ्यता और संस्कृति का घोल तैयार होता है। यहां तो आतंक, अषान्ति और रक्तपात का खेल खेला जा रहा है। ऐसे मनसूबे रखने वाले भला सुलगते सवालों को क्यों ठण्डक देंगे। उन्हें तो जलते हुए षिक्षण संस्थान और विकृत होते निर्माण ही अच्छे लगते हैं। 

सुशील कुमार सिंह


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