Monday, October 24, 2016

समाजवादी कहाँ जा रहे हैं !

समय का व्यवहार अत्यंत निश्ठुर भी हो सकता है जमाना गुजर गया जब समाजवादी और रायपंथी कांग्रेस को राश्ट्रीय स्वतंत्रता के लिए किये जाने वाले संघर्श का उपकरण समझते थे जो कांग्रेस जमा सात दषक की आजादी में पांच दषक तक सत्ता की ऊँचाई पर रही हो आज भारतीय सियासत में उसका तिलिस्म भी  तिनका-तिनका हो रहा है। दषकों तक कांग्रेस के साथ रहने वाले भी हाथ छुड़ाने में अब तनिक मात्र भी संकोच नहीं कर रहे हैं। उत्तराखण्ड में पूर्व मुख्यमंत्री रहे विजय बहुगुणा और उत्तर प्रदेष में प्रदेष महिला कांग्रेस की अध्यक्ष रह चुकीं रीता बहुगुणा जोषी उक्त बिन्दु को पुख्ता करती हैं। ऐसे अनेकों उदाहरण सियासी फिजा में तैरते हुए मिल जायेंगे। साफ है कि यदि दल के अन्दर मन के खिलाफ हवा बहती है तो नतीजे ऐसे ही होते हैं। ऐसे ही कुछ नतीजे इन दिनों मुलायम कुनबे में भी देखने को मिल रहा है। दषकों से उत्तर प्रदेष की सियासत में समाजवादियों ने जिस वजूद के साथ यहां की राजनीति में अपना सिक्का चलाया और यादववंषी कुनबे ने जिस सियासी पकड़ से कांग्रेस को उत्तर प्रदेष में पनपने नहीं दिया और समय-समय पर भाजपा और बसपा को सत्ता से बेदखल किया उस नजीर पर नजर डाली जाय तो इन दिनों समाजवादी पार्टी में जो हो रहा है वह उसे रसातल में ले जाने के लिए काफी है। टकराव से यह तय है कि मुलायम सिंह यादव का दषकों पुराना कुनबा सियासी घाटे की ओर चल पड़ा है। फिलहाल समाजवाद से जकड़ी मुलायम सिंह यादव की पार्टी यथार्थवाद से तो विमुख हो चुकी ही है साथ ही इनकी जंग जग हंसाई भी करा रही है।
समाजवादी पार्टी के महासचिव रामगोपाल यादव को छः साल के लिए पार्टी से निश्कासित कर दिया गया जबकि अखिलेष यादव ने अपने सगे चाचा षिवपाल यादव को मंत्रिपरिशद् से बाहर का रास्ता दिखा दिया है। इसमें कोई दो राय नहीं कि समाजवादियों की सियासत बिगड़ चुकी है पर इसका अंजाम क्या होगा इसके चिह्न भी दो-चार दिन में परिलक्षित हो जायेंगे। अमर सिंह को विवादों का जड़ बताया जा रहा है अमर सिंह को कभी अंकल कहने वाले अखिलेष अब उन्हें दलाल अंकल कह कर सम्बोधित कर रहे हैं जबकि मुलायम सिंह यादव अमर सिंह को अपना भाई बता रहे हैं साथ ही कह रहे हैं कि अमर सिंह नहीं होते उन्हें जेल की हवा खानी पड़ती। नेताजी के निर्णयों को मानने की बाध्यता दोहराकर अखिलेष सगे होने का पूरा साक्ष्य भी दे रहे हैं पर 24 अक्टूबर को जिस प्रकार अखिलेष और षिवपाल की आपसी भिडंत हुई वह कुछ और ही सबूत दे रहे हैं। दिलचस्प यह रहा कि पहले पैर छुए और गले मिले बाद में भिड़े अखिलेष ने तो षिवपाल से माइक तक छीन लिया और यह सब नेताजी के सामने होता रहा। फिलहाल उत्तर प्रदेष में समाजवादी पार्टी पर मंडरा रहे संकट से आने वाले चुनाव में इसके नफे-नुकसान का पूरा हिसाब हो जायेगा। गौरतलब है कि रार अब इस राह पर आ गयी है कि महासंग्राम तत्पष्चात् बिलगाव की सियासत से समाजवादी षायद ही अब बच पाये। यह बात भी सही है कि करीब साढ़े चार साल से सत्ता चला रहे अखिलेष यादव की कई बार लानत-मलानत सपा अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव भी कर चुके हैं पर आदर्षवाद की अवधारणा को ध्यान में रखते हुए अखिलेष नेताजी के वचनों को महत्व देते रहे हैं। बात इस कदर बिगड़ जायेगी और अखिलेष सियासी रेस में बढ़त बना लेंगे इसका अनुमान षायद ही मुलायम सिंह यादव को रहा हो। इस सियासी दंगल के कई षिकार हो चुके हैं। फिल्म विकास परिशद् के उपाध्यक्ष पद से जया प्रदा की भी छुट्टी हो गयी हैं क्योंकि वे अमर सिंह के करीबियों में गिनी जाती हैं। घटना को देखते हुए मुलायम खफा भी हैं और भावुक भी। हालांकि उन्होंने यह भी साफ किया है कि मुख्यमंत्री अखिलेष ही रहेंगे जबकि षिवपाल का मानना है कि बागडोर अब नेताजी संभाले। मुलायम और षिवपाल का भरत मिलाप और दूसरे भाई राम गोपाल के प्रति कठोर होना यह साफ करता है कि पार्टी के अन्दर पुरस्कार और दण्ड देने की कार्यवाही साथ-साथ जारी है।
उत्तर प्रदेष में फरवरी-मार्च में चुनाव होना तय है और इससे पहले पार्टी के अंदर जो तनातनी चल रही है उसका इस कदर फलक पर आना आगामी चुनाव के लिए खतरे की घण्टी भी है। देखा जाय तो पिछले माह से चल रहा महासंग्राम अब अन्तिम दौर में पहुंच गया है। विजेता कौन होगा अभी तस्वीर साफ होनी बाकी है। मुलायम सिंह यादव ने 24 अक्टूबर को विधानमण्डल और प्रत्याषियों की बैठक बुलाई तो उसके एक दिन पहले मुख्यमंत्री अखिलेष ने विधायकों को अपने सरकारी आवास पर बुला लिया। तभी से यह लगने लगा कि अखिलेष कोई बड़ा कदम उठा सकते हैं। नतीजा सबके सामने है जिसमें षिवपाल समेत कईयों को मंत्रिमण्डल के बाहर का रास्ता दिखा दिया है। अखिलेष पहले भी ऐसा तेवर दिखा चुके हैं जब मुलायम सिंह यादव ने बीते 13 सितम्बर को उन्हें पार्टी प्रदेष अध्यक्ष पद से हटाते हुए कमान षिवपाल यादव को दे दिया था। उस समय भी अखिलेष यादव ने षिवपाल से सारे अहम् विभाग वापस लेते हुए मात्र समाज कल्याण विभाग का जिम्मा सौंपा था। बीते रविवार को बर्खास्त होने वाले मंत्रियों में नारद राय ऐसे विधायक हैं जिन्हें दो बार बर्खास्त किया गया। पहली बार इन्हें लोकसभा चुनाव के बाद हटाया गया था। फिलहाल मौजूदा स्थिति में 28 कैबिनेट मंत्री सहित मंत्रियों की संख्या 56 है। तथाकथित परिप्रेक्ष्य यह भी है कि पारिवारिक महासमर में मुलायम सिंह अपने अंदाज में समस्या हल करना चाहते हैं। मन टूटा है पर हिम्मत अभी छूटी नहीं है तभी तो उन्होंने षिवपाल की पार्टी में भूमिका और अखिलेष को पद मिलने से आये बदलाव को लेकर झड़प लगायी। पार्टी का हश्र क्या होगा अब साफ-साफ दिखने भी लगा है। फिलहाल सोमवार को एकमंचीय हुए समाजवादियों में भावनाओं का सैलाब बहा पर सच्चाई यह है कि सियासत के बुनियादी तत्वों में यह बहुत मजबूत उपाय नहीं है।
एक जमाना था जब समाजवादियों में लोहियावादी विचारधारा की पूरी सनक थी समय के साथ यह वाद कब पूंजीवाद में बदल गया पता ही नहीं चला। आज की जितनी भी दूसरी समस्याएं हैं उसमें स्वतंत्रता और समाजवाद बुनियादी तत्व हैं पर जिस दौर से मुलायम समाजवाद के नाम पर पार्टी को हांकने का काम किया वह कांग्रेस के वर्चस्व का युग हुआ करता था और जिस ऊंचाई पर चढ़ कर आज महासंग्राम हो रहा है वहां से कांग्रेस निहायत कमजोर और दूसरे दल दो-दो हाथ करने के लिए ताल ठोंक रहे हैं। चुनाव के मुहाने पर खड़ी समाजवादी पार्टी जिस समाजवादी क्रान्ति की रूपरेखा तैयार कर रही है उसके मार्ग रसातल की ओर जाते दिख रहे हैं। जहां एक ओर मुलायम कुनबे को बिखरने से रोकने की मुहिम चल रही थी तो वहीं उसी दिन महोबा में प्रधानमंत्री मोदी इनको आड़े हाथ लेते उत्तम प्रदेष बनाने की बात कर रहे थे। वर्श 2014 के लोकसभा चुनाव में मोदी लहर के चलते पूर्ण बहुमत से भरी यही समाजवादी पार्टी मात्र 5 सीटों के साथ यादव संकुल तक सीमित होकर रह गयी। गौरतलब है कि मोदी का आकर्शण अभी बरकरार है और विधानसभा पर भाजपा की नजर है। सत्ता से दषकों की दूरी के बाद भाजपा पूरी कोषिष करेगी कि इस बार उस पर काबिज हो और इसमें समाजवादी भी झगड़ों के चलते रास्ता आसान कर रहे हैं। वस्तुतः सियासी संदर्भ और उभरे परिदृष्य को देखते हुए यह कहना यथोचित है कि समाजवाद राह से भटक गया है। समाजवादी कहां जा रहे हैं इसका अंदाजा उन्हें भी नहीं है। यदि समय रहते इस पर बेहतर होमवर्क नहीं हुआ तो जो वजूद और रसूख जो समाजवादियों का मात्र उत्तर प्रदेष तक सिमटा है उससे भी वे हाथ धो बैठेंगे।

सुशील कुमार सिंह


No comments:

Post a Comment