Monday, October 17, 2016

ब्रिक्स में संभावनाओं की नई विवेचना

जब ब्रिक्स का पहली बार प्रयोग वर्श 2001 में गोल्डमैन साक्स ने अपने वैष्विक आर्थिक पत्र ‘द वल्र्ड नीड्स बेटर इकोनोमिक ब्रिक्स‘ में किया था जिसमें इकोनोमीट्रिक के आधार पर यह अनुमान लगाया गया कि आने वाले समय में ब्राजील, रूस, भारत एवं चीन की अर्थव्यवस्थाओं का व्यक्तिगत और सामूहिक दोनों रूपों में विष्व के तमाम आर्थिक क्षेत्रों पर नियंत्रण होगा तब यह अनुमान नहीं रहा होगा कि आतंकवाद से पीड़ित भारत से मंचीय हिस्सेदारी रखने वाला चीन पाकिस्तान के आतंकियों का बड़ा समर्थक सिद्ध होगा। जैष-ए-मोहम्मद के अज़हर मसूद के मामले में यह बात पूरी तरह पुख्ता होती है। हालांकि चीन और भारत के बीच रस्साकषी वर्शों पुरानी है जबकि ब्रिक्स का एक अन्य सदस्य रूस भारत का दुर्लभ मित्र है। साफ है कि पांच देषों के इस संगठन में भी नरम-गरम का परिप्रेक्ष्य हमेषा से निहित रहा है। ब्रिक्स देषों के सम्मेलन में सदस्य देषों ने जिस तर्ज पर आतंक के खिलाफ एक होने का निर्णय लिया है उससे भी यह साफ है कि मंच चाहे जिस उद्देष्य के लिए बनाये गये हों पर प्राथमिकताओं की नई विवेचना समय के साथ होती रहेगी। उरी घटना के बाद भारत ने जिस विचारधारा के तहत पाक अधिकृत कष्मीर में आतंकियों को सर्जिकल स्ट्राइक के तहत निषाना बनाया वह भी देष के लिए किसी नई अवधारणा से कम नहीं है साथ ही पड़ोसी बांग्लादेष समेत विष्व के तमाम देषों ने भारत के इस कदम का समर्थन करके यह भी जता दिया कि आतंक से पीड़ित देष को जो बन पड़े उसे करना चाहिए। सर्जिकल स्ट्राइक के बाद ब्रिक्स के माध्यम से गोवा में सभी सदस्यों समेत भारत और चीन का एक मंच पर होना और प्रधानमंत्री मोदी का यह कहना कि आतंक के समर्थकों को दण्डित किया जाना चाहिए में भी बड़ा संदेष छुपा हुआ है जाहिर है यह संदेष चीन के कानों तक भी पहुंचे होंगे।
देखा जाय तो ब्रिक्स पांच उभरती हुई अर्थव्यवस्थाओं का समूह है जहां विष्व भर की 43 फीसदी आबादी रहती है और पूरे विष्व के जीडीपी का 30 फीसदी स्थान यही घेरता है। इतना ही नहीं वैष्विक पटल पर व्यापार के मामले में भी यह 17 प्रतिषत हिस्सेदारी रखता है। अब तक गोवा सहित 8 ब्रिक्स सम्मेलन हो चुके हैं। इसका पहला सम्मेलन जून 2009 में रूस में आयोजित हुआ था। पिछला अर्थात् सातवां सम्मेलन भी रूस में ही हुआ था। गौरतलब है कि इस दौरान आतंक के मामले में नवाज़ षरीफ ने मोदी से यह वादा किया था कि वे पाकिस्तान के आतंकियों पर नकेल कसेंगे पर इस्लामाबाद पहुंचकर उन्होंने पलटी मार दी थी। देखा जाय तो 2014 के सार्क सम्मेलन से आतंक के मसले पर भारत और पाक के बीच दूरियां बढ़ने लगी थी। हालांकि इस मामले में मोदी ने अपनी तरफ से भरसक कोषिष की पर कष्मीर का राग अलाप कर पाकिस्तान आतंकवाद पर उसके द्वारा की जाने वाली कार्यवाही को नजरअंदाज करता रहा। दिसम्बर, 2015 में जब मोदी ने एकाएक लाहौर की यात्रा की तब पूरी दुनिया भी सन्न रह गयी थी और यह बात चीन भी अच्छी तरह समझ रहा था कि मोदी किस स्तर तक पाकिस्तान से सम्बन्ध सुधारना चाहते हैं। बावजूद इसके पाकिस्तान ने कुछ भी सकारात्मक नहीं सोचा। दौरे के एक हफ्ते बाद ही 2 जनवरी, 2016 को पठानकोट पर हुए आतंकियों के हमले ने मोदी के भरोसे को चकनाचूर कर दिया। विदेष मंत्रालय स्तर की वार्ता को विराम लगा दिया गया। रही सही कसर तब पूरी हो गयी जब मार्च 2016 में पाकिस्तान की जांच एजेंसी ने पठानकोट का दौरा करने के बाद इस बात से पलटी मार दी कि जब तक कष्मीर समस्या नहीं हल होगी ऐसी कोई बात आगे नहीं बढ़ सकती। गौरतलब है कि भारत की जांच एजेंसी को भी इस्लामाबाद का दौरा करना था। 
गोवा के ब्रिक्स सम्मेलन में चीन के राश्ट्रपति षी जिनपिंग ने कहा कि 2008 के आर्थिक संकट और इससे जूझती ग्लोबल इकोनोमी का असर ब्रिक्स देषों के आर्थिक विकास पर हुआ है लेकिन सदस्य देषों के आर्थिक विकास की सम्भावनायें इससे बेअसर हैं। विवेचना और संदर्भ यह भी है कि क्या 2008 के आर्थिक संकट से अभी भी देष बाहर नहीं निकल पाये हैं। अर्थव्यवस्था में सुस्ती और चुनौतियां अभी भी बरकरार हैं। इसके अलावा पाक का आतंकी कारोबार भी भारत के लिए किसी त्रासदी से कम नहीं है। भारत का बहुत बड़ा आर्थिक हिस्सा पाक सीमा सुरक्षा पर खर्च करना पड़ता है जबकि पाकिस्तान की गलतियों का समर्थन करने वाला चीन भारत में अपने बाजार का विस्तार किये हुए है। 70 अरब के व्यापार में मात्र 9 अरब का व्यापार ही भारत चीन से कर पाता है बाकी सारे पर चीन का कब्जा है। जिस तर्ज पर पाकिस्तान भारत को आतंक के बूते नुकसान पहुंचाने की कोषिष कर रहा है यदि इसमें युद्ध जैसी कोई स्थिति बनती है तो वैष्विक अर्थव्यवस्थाएं भी हाषिये पर जायेंगी। ब्रिक्स देषों के लिए नवीनता इस सुस्ती से निपटने का सबसे कारगर तरीका होगा जिसके लिए सदस्यों के बीच पारदर्षिता, सारगर्भिता और सच्ची आत्मीयता की तिकड़ी भी होनी चाहिए। दुनिया जानती है कि भारत को नीचा दिखाने के लिए चीन पाकिस्तान की हर गलतियों पर साथ देता है। फिर वह चाहे आतंक को ही बढ़ावा देने वाली क्यों न हो परन्तु इस बार गोवा में प्रधानमंत्री मोदी ने चीन को भी दो टूक समझाने में सफल रहे हैं। चीन को यह भी समझ लेना चाहिए कि यदि पाकिस्तान को हर सूरत में समर्थन देना चाहेगा तो विष्व से आतंकी गतिविधियां समाप्त नहीं होंगी। पहले भी वह संयुक्त राश्ट्र संघ की राश्ट्रीय सुरक्षा परिशद् में पाकिस्तान के आतंकियों को बचाने के लिए वीटो का प्रयोग कर चुका है। अच्छी बात यह भी हुई है कि बीते रविवार को ब्रिक्स सम्मेलन में एक घोशणा पत्र जारी हुआ जिसमें सभी देष मसलन ब्राजील, रूस, भारत, चीन समेत दक्षिण अफ्रीका ने मनी लाॅड्रिंग, नषीली दवाओं की तस्करी और आतंक का समर्थन करने वाले संगठित अपराधों को रोकने की अपील की। ब्रिक्स और बिम्सटेक बैठक के लिए बंग्लादेष, भूटान और म्यांमार के नेता भी पहुंचे हैं। जाहिर है सभी आतंक के खिलाफ एकजुटता दिखा रहे हैं। सभी ने उरी हमले को लेकर दुख भी जताया है। 
नीति एवं कूटनीति के तर्ज पर देखें तो भारत ब्रिक्स सम्मेलन में मन-माफिक सफलता हासिल कर लिया है। रूस से बढ़ रही दूरियों को वास्तविक स्थान पर पहुंचाने में भी सफलता अर्जित की है। षी जिनपिंग को एक अच्छे पड़ोसी होने का क्या मतलब होता है अच्छे से समझा दिया है। मोदी का यह आह्वान कि पड़ोस में ही आतंक का जन्मदाता है इस बात को भी पुख्ता कर देता है कि यदि पाकिस्तान आतंक को समाप्त नहीं करेगा तो वाकई में प्रधानमंत्री मोदी उसे अलग-थलग रहने के लिए विवष कर देंगे। गौरतलब है कि बीते 24 सितम्बर को केरल के कोंझीकोड़ में मोदी ने भारत समेत पाकिस्तान की आवाम को भी अपने सम्बोधन में समेट लिया था और तेवर के साथ कहा था कि पाकिस्तान को अलग थलग कर देंगे। इसमें कोई षक नहीं कि वे इस मामले में मीलों आगे निकल चुके हैं। गोवा का ब्रिक्स सम्मेलन एकजुटता के लिए जाना जायेगा यदि परिणाम भी इसी रूप में आये तो ब्रिक्स के इतिहास में यह सम्मेलन एक बड़ा अध्याय साबित होगा। सबके बावजूद सुविचारित और विवेचित दृश्टिकोण यह भी है कि पीएम मोदी और रूसी राश्ट्रपति पुतिन के बीच पुरानी दोस्ती पटरी पर आ गयी है जो चीन को संतुलित करने में कारगर सिद्ध हो सकती है। वैसे चीन पर अन्धा विष्वास नहीं किया जा सकता परन्तु नीति और कूटनीति को ध्यान में रखते हुए समय के साथ इसकी जांच परख आगे होती रहेगी।

सुशील कुमार सिंह


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