Wednesday, October 26, 2016

टाटा मतलब शख्स और शख्सियत

वर्ष  2012 से टाटा समूह की चेयरमैनषिप संभाल रहे व्यावसायिक कुषलता के धनी सायरस मिस्त्री जब उम्मीदों पर खरे नहीं उतर पाये तो उन्हें बाहर का रास्ता देखना पड़ा। चार वर्श में ही जिस षख्स को टाटा समूह का भविश्य बताया जा रहा था उसे इस तरह बेदखल किया जाना यह साफ करता है कि इस समूह की साख और षख्सियत को लेकर फिलहाल कोई समझौता नहीं हो सकता। अब यह निश्कासन एक हकीकत है और सेवानिवृत्त हो चुके रतन टाटा एक बार अन्तरिम तौर पर इस समूह को अपने हाथों में ले लिया है। देखा जाय तो सायरस मिस्त्री को हटाये जाने के पीछे कारण बीते चार वर्शों में समूह की कई कम्पनियों के प्रदर्षन को माना जा रहा है। गौरतलब है कि जब सायरस को चेयरमैन बनाया गया था तब इस समूह का कारोबार 100 अरब डाॅलर का था जिसे 2022 तक 500 अरब डाॅलर तक पहुंचाने का लक्ष्य रखा गया था। आरोप है कि सायरस के आने से कम्पनी की रफ्तार सुस्त हुई और कारोबार उस गति से आगे नहीं बढ़ा जैसी की अपेक्षा की गयी थी। गौरतलब है कि लंदन बिज़नेस स्कूल से प्रबंध की डिग्री लेने वाले सायरस मिस्त्री इतने भी कच्चे खिलाड़ी नहीं थे पर टाटा जैसे समूह की उम्मीदों पर खरा उतरना वाकई में आसान बात भी नहीं है। ऐसा नहीं है कि सायरस मिस्त्री की दक्षता और योग्यता में कोई कमी है। बड़े घराने के सायरस देष की सबसे बड़ी निर्माण कम्पनी षापूरजी पालोनजी के मालिक पालोनजी मिस्त्री के बेटे हैं। इस परिवार की टाटा समूह में सर्वाधिक हिस्सेदारी 18.8 फीसदी की है साथ ही वे प्रबंध निदेषक भी रह चुके हैं। जाहिर है कि इन सब खूबियों के चलते रतन टाटा की दृश्टि अपने भविश्य के उत्तराधिकारी पर पड़ी थी। मगर वक्त के साथ मनचाहे नतीजे न होने से ये कड़े फैसले लेने पड़े। 
एक लिहाज़ से देखा जाय तो टाटा को फिर एक नये रतन की तलाष है जो इनके समूह को मन माफिक ऊँचाईयों पर ले जा सके। जमषेदजी टाटा ने जब इस समूह की यात्रा 1887 में षुरू की थी तब उन्हें भी षायद यह एहसास नहीं रहा होगा कि 21वीं सदी के दूसरे दषक तक यह समूह इस प्रकार की समस्याओं में उलझेगा। पहले चेयरमैन से लेकर सायरस मिस्त्री तक के बीच क्रमषः दोराबजी टाटा, सर एन.बी. सकलत्वला समेत जे.आर.डी. टाटा और रतन टाटा का नाम आता है। जब रतन टाटा ने इस समूह को सायरस मिस्त्री के हवाले किया था तब टर्न ओवर 6 अरब डाॅलर से 100 अरब डाॅलर तक किया था। गौरतलब है कि 1991 में जब जे.आर.डी. टाटा के बाद रतन टाटा समूह के चेयरमैन बने थे तब कारोबार महज़ 6 अरब डाॅलर का था जिसे 2012 तक अप्रत्याषित ऊँचाई पर पहुंचाने का काम इन्हीं के द्वारा सम्भव हुआ। उत्तराधिकार लेते समय सायरस मिस्त्री को भी यह स्पश्ट था कि एक दषक के भीतर 100 अरब के टर्नओवर वाले इस समूह को पांच सौ पर पहुंचाना है पर सुस्ती और सटीक संदर्भ के नाकाफी होने के चलते यह एहसास भी षीघ्र ही होने लगा कि सायरस मानकों पर षायद खरे नहीं उतरेंगे जिसका नतीजा सबके सामने है। देखा जाय तो सायरस मिस्त्री कम्पनियों और उनका नेतृत्व करने वालों से नतीजे पर आधारित प्रदर्षन को खासा तरजीह दे रहे थे। यहां तक कि कोरस को खरीद कर दुनिया को चैंकाने वाले टाटा स्टील को भी नज़र अंदाज कर रहे थे। खास यह भी है कि टाटा स्टील की ब्रिटेन की इकाई को बेचने का फैसला भी इनके खिलाफ गया है। बावजूद इसके इनके नेतृत्व में टाटा कन्सल्टेंसी और जगुवार और लैंडरोवर ने बेहतर प्रदर्षन किया है। कहा तो यह भी जा रहा है कि सायरस रतन टाटा से इन दिनों दूर भी चले गये थे। फिलहाल बीते 24 अक्टूबर को टाटा समूह के अन्दर जो घटना घटी वह काफी अप्रत्याषित भी थी।
कारोबार की दुनिया में बड़ा नाम और षख्सियत रखने वाले टाटा समूह के इस घटनाक्रम को देखते हुए षेयर बाजार में भी काफी उतार-चढ़ाव रहा। टाटा की कम्पनियों के षेयरों में बीते मंगलवार को तीन फीसदी की गिरावट देखी गयी। जिस तर्ज पर सब कुछ हुआ है वह कुछ को हैरत में भी डालता है। इसी बीच टाटा सन्स चेयरमैन की बर्खास्तगी का मामला कोर्ट भी पहुंच गया है। टाटा समूह के निकायों ने सर्वोच्च न्यायालय, मुम्बई उच्च न्यायालय और नेषनल कम्पनी लाॅ ट्रिब्यूनल ने सायरस मिस्त्री द्वारा चेयरमैन के पद से हटाये जाने के मामले में राहत मांगने के विरूद्ध कैविएट दाखिल कर दी गयी। इससे साफ है कि मिस्त्री को किसी भी प्रकार की राहत देने से पहले टाटा सन्स को अपना पक्ष रखने का अवसर दिया जाय। कैविएट किसी भी पक्ष द्वारा दाखिल एक नोटिस होता है जिसे किसी भी प्रकार की कानूनी कार्यवाही का डर होता है तो वह इस नोटिस के जरिए कार्यवाही किये जाने से पहले नोटिस की मांग करता है। सायरस मिस्त्री ने कोई कैविएट दाखिल नहीं किया है। फिलहाल आगे क्या होगा अभी कुछ कह पाना सम्भव नहीं है। हालांकि बर्खास्तगी के समय से ही यह कयास लगाया जा रहा था कि सायरस टाटा सन्स के बोर्ड के इस फैसले को चुनौती दे सकते हैं। सायरस मिस्त्री को लेकर कुछ विष्लेशकों का मानना है कि वे कड़े फैसले कर रहे थे। कुछ का तो यह भी कहना है कि इनका सख्त रवैया बीते चार वर्शों से जारी था। मिस्त्री की नीति का ही नतीजा था कि टाटा कैमिकल्स ने यूरिया कारोबार बेच दिया। ऐसे कई किन्तु-परन्तु की वजह से सायरस मिस्त्री रतन टाटा के जो रतनों में षुमार थे उन्हें टाटा सन्स से हटाना पड़ा। 
कारोबारी तथा कल-कारखानों की दुनिया माया के खेल से जूझती है और यहां सिक्कों की खनक और स्पर्धा में सबसे आगे रहने की होड़ रखने वाला ही संतुलन बिठा पाता है। कारोबार के षीर्श पर बैठा षख्स जब बदलता है तो उसकी षख्सियत का असर पूरे कारोबार पर पड़ता है। 22 सालों में रतन टाटा ने जिस टाटा समूह को ऊँचाई देने में दिन-रात एक किया उसी अनुपात में सायरस जैसी षख्सियत षायद खरी नहीं उतरी। ऐसा नहीं है कि चेयरमैनषिप वाले षख्स को पहली बार हटाया गया हो या पुराने चेयरमैन ने पहली बार कुर्सी संभाली हो। ऐसे कई कारोबारी समूह है जिनके चेयरमैन की दोबारा वापसी हुई है। वर्श 2011 में इंफोसिस से रिटायर हुए नारायण मूर्ति ने भी कम्पनी की बिगड़ती स्थिति को देखते हुए जून 2013 में वापसी की थी। एप्पल के स्टीफ जाॅब्स ने 16 सितम्बर, 1985 को बोर्ड से विवाद के चलते चेयरमैन पद से इस्तीफा दे दिया था परन्तु 1997 में अन्तरिम सीईओ के तौर पर एक बार फिर वापसी की। स्टारबक्स के सीईओ होवार्ड षुल्ज ने 2000 में कम्पनी छोड़ी थी लेकिन गिरते प्रदर्षन को देख कर 2008 में फिर वापसी की थी। उक्त से यह संदर्भित होता है कि कारोबार का रसूख जब प्रदर्षन के मामले में गिरावट की ओर जाता है तो पुराना षख्स, नये षख्स को स्थानांतरित कर देता है और यह उदाहरण इसलिए भी सटीक हैं क्योंकि कारोबार का क्षेत्र कमतर को बर्दाष्त नहीं करता। फिलहाल सायरस के रूखसत कर देने के बाद अगला चेयरमैन कौन होगा यह सवाल भी तैरने लगा है और अगले चार महीने तक इसकी खोज जारी रहेगी। हालांकि इसमें रतन टाटा के सौतेले भाई नोएल टाटा का नाम भी हो सकता है। 2012 में भी इस पद की दौड़ में ये षामिल थे। नोएल टाटा पलोनजी मिस्त्री के दामाद भी हैं। भीड़-भाड़ की दुनिया में सुर्खियों से दूर रहने वाले रतन टाटा ने जिस तरह टाटा सन्स को ऊँचाई देने का काम किया था उसे देखते हुए साफ है कि चेयरमैन ऐसा षख्स होगा जिसे समूह की साख और उसकी षख्सियत के लिए कहीं अधिक बेजोड़ सिद्ध हो।


सुशील कुमार सिंह

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