Monday, April 4, 2016

भारत माता की जय का अर्थ विन्यास

बीते कुछ माह से भारत माता की जय को लेकर देष में सियासी संग्राम छिड़ा हुआ है। क्या हिन्दु, क्या मुस्लिम सभी इस पर अपनी-अपनी राय रख रहे हैं। कुछ इसके खिलाफ फतवा जारी कर रहे हैं तो किसी को ऐसे जयकारे से कोई परहेज नहीं है। बयानों को लेकर अक्सर सुर्खियों में रहने वाले और चन्द मुस्लिम लोगों का नेतृत्व करने वाले हैदराबादी नेता असुद्दीन ओवैसी के गले पर भी यदि चाकू रख दिया जाए तो भी उन्हें भारत माता की जय बोलना पसंद नहीं है। हकीकत में ओवैसी के ऐसे एलान के पीछे भारत माता की जय के बजाय अपनी जय-जयकार करवाने की चिंता ज्यादा दिखाई देती है। खास यह भी है कि ओवैसी सियासत के ढ़ाई घर भी चलना नहीं जानते परन्तु अपनी चाल से देष को बदरंग करने पर तुले हैं। यह बात समझ से परे है कि जो बातें रसूक के लिए हैं ही नहीं उसको लेकर इतना बड़ा इगो पालने की क्या जरूरत है। फिलहाल ओवैसी के इस बोल ने सियासी संग्राम तो छेड़ ही दिया है। कुछ दिन पूर्व राज्यसभा के मनोनीत सदस्य गीतकार जावेद अख्तर ने अपनी विदाई के दिन एक मार्मिक भाशण दिया जिसमें ओवैसी प्रकरण का भी अप्रत्यक्ष जिक्र था जिसकी चर्चा करते हुए जावेद अख्तर ने पूरे जोष-खरोष के साथ तीन बार राज्यसभा में भारत माता की जय कहा। दरअसल उन्होंने यह जताने का प्रयास किया कि देष में सियासत अपनी जगह और राश्ट्रीय आदर्ष अपनी जगह हैं। सवाल तो यह भी है कि एकता और अखण्डता के सीमेंट से बने देष पर जर्जर की नीयत रखना किसी भी सम्प्रदाय के व्यक्ति को कैसे इजाजत दी जा सकती है। गौरतलब है कि जिस देष में सियासतदान धर्म और सम्प्रदाय की आड़ में अपनी राजनीति को तवज्जो देते हों, वहां भारत माता की जय किसी के लिए अपषगुन तो किसी के लिए सकून की बात क्यों नहीं होगी।
स्थिति और परिस्थिति का पूरा आंकलन और प्राक्कलन किया जाए तो कई ध्रुवों में बंटी सियासत के बीच भारत माता की जय का विचार साम्प्रदायिक आवरण से भी घेर दिया गया है जबकि सच्चाई यह है कि इस नारे के पीछे भारत के प्रति समर्पण और श्रद्धा के भाव मात्र ही निहित हैं। षायद ही इसके अलावा कोई और बात इसमें होती हो। बावजूद इसके देष के समझदार लोग कतार में खड़े होकर इसके कई अर्थ समझ भी रहे हैं और समझाने में भी लगे हैं। आरएसएस का अपना अर्थ है तो षिवसेना की भी अपनी परिभाशा है जबकि मुस्लिम संगठन भी इसके कई जुदा अर्थ निकाल रहे हैं। भारत माता की जय को लेकर देष की राय बंटी हुई है। गैर हिन्दू या यूं कहें कि मुस्लिम इस मामले में एक राय नहीं रखते हैं। कुछ मुस्लिम संगठन भारत माता की जय में अपना गौरव समझते हैं तो कुछ इसे हिकारत नजरों से देख रहे हैं। दारूल उलूम देवबंद ने इसके विरोध में फतवा तक जारी कर दिया है जो नये विवाद की जड़ भी है। मामले को देखते हुए यूपी के बागपत की पंचायत ने इसके प्रतिक्रिया में फतवारूपी फैसला लिया है कि भारत माता की जय नहीं कहने वाले का सामाजिक-आर्थिक बहिश्कार किया जायेगा। हालांकि इसके पहले बीजेपी के कुछ नेताओं की ऐसी टिप्पणियां आ चुकी हैं। मानव संसाधन विकास मंत्री स्मृति ईरानी ने भारत माता की जय को भावनाओं से जुड़ा बताया। यह सही है कि किसी के प्रति लगाव और समर्पण दिखाने का कोई प्रतिकात्मक परिप्रेक्ष्य होता है परन्तु जब ऐसे परिप्रेक्ष्य विजातीय समाज में किसी के लिए लाभ और किसी के लिए हानि का विशय होते हैं तो इसके अर्थ भी मनमाफिक कर लिए जाते हैं। ज्वलंत प्रष्न यह है कि भारत माता की जय जैसे षब्द को लेकर तात्कालीन परिस्थिति में ऐसा क्या हुआ है जो इतनी बड़ी परेषानी का सबब बना हुआ है। इच्छित मापदण्ड यह दर्षाते हैं कि अतिरिक्त चाह रखने के चलते तथाकथित कुछ अगुवा देष के अमन-चमन कोदांव पर लगा देते हैं।
गौरतलब है कि बीते कुछ माह पूर्व जब असहिश्णुता को लेकर देष में एक नई तरीके की बयार बह रही थी तो ऐसे ही बयानबाजियों की कतार लगी थी जब असहिश्णुता की आंदोलित मिजाज समय के साथ ढलान की ओर बढ़ा तो असहिश्णुता की बात करने वालों को भी लगा था कि अनायास ही इस मुद्दे को गर्माहट दिया गया। सर्वोच्च न्यायालय के प्रधान न्यायाधीष ने भी असहिश्णुता जैसी किसी बात का देष में होने से इन्कार करते हुए कहा था कि न्यायापालिका के रहते किसी को डरने की जरूरत नहीं है। असल में संविधान सामाजिक-आर्थिक न्याय के साथ प्रभुत्वसम्पन्न व्यवस्था का प्रतीक है और यह भारत की धरती पर रहने वाले एक-एक जनमानस के लिए प्रत्यक्ष रूप से स्पर्ष करता है। संविधान उन सभी प्रकार के कृत्यों को करने की इजाजत देता है जिससे देष की अक्षुण्णता को बनाये रखने में मदद मिलती हो। ताज्जुब इस बात की है कि हमारे देष में गैर जरूरी मुद्दों को उभार कर धर्म और सम्प्रदाय की आड़ में समाज का वर्गीकरण किया जाता है और जरूरी मुद्दों से ध्यान भटकाया जाता है। भारत माता की जय जैसे विवाद में हिन्दू और मुस्लिम संगठन पेट्रोल और आग के साथ इसमें कूदे हुए हैं। भारत में एक ओर भारत माता की जय को लेकर विरोध और बेफजूल की बातें चल रही हैं वहीं इस्लामी देष सऊदी अरब की राजधानी रियाद में प्रधानमंत्री मोदी की यात्रा के दौरान भारत माता की जय के नारे लगे और यह नारे वहां की मुस्लिम महिलाओं ने लगाये। उठे इस विवाद के बीच यह बात क्यों न मान लिया जाए कि चंद नेताओं और साम्प्रदायिक आड़ में जो लोग इस नारे को लेकर बंटी हुई राय पेष कर रहे हैं उन्हें लक्ष्मण रेखा की ठीक से समझ ही नहीं है। यदि है तो उनके कृत्यों से देर-सवेर देष को समझ में आ जायेगा।
भारतीय संविधान में व्याप्त समस्त आदर्षों का विषदीकरण किया जाए तो सब कुछ के बावजूद यह दर्षन जरूर उभरता है कि संविधान निर्माताओं ने इसे समुचित करने को लेकर एड़ी-चोटी का जोर लगाया था पर बीते कुछ माह से कभी असहिश्णुता के नाम पर तो कभी देष प्रेम को लेकर अनाप-षनाप के चलते सच्ची और कच्ची अवधारणा के बीच मानो जंग छिड़ी हो। समझना तो यह भी जरूरी है कि भारत माता की जय महज एक नारा नहीं है बल्कि हर भारतीय के लिए यह रसूक का दायरा भी है। वैष्विक पटल पर किसी भी देष की जितनी भी दूर तक उसकी धरती बिखरी होती है वहां के बाषिन्दे देष प्रेम को लेकर जो बन पड़ता है, करते हैं। भारत इससे परे नहीं है। उत्तर से धुर दक्षिण तक और पूरब से पष्चिम तक भारत माता की जय क्यों नहीं, इस पर भी बड़े मंथन की जरूरत है। दबाव और प्रभाव के इस युग में कई अपने इगो के चलते ‘भारत माता की जय‘ से कतरा रहे हैं तो कई अपनी सियासत को परवान चढ़ा रहे हैं। संविधान की प्रस्तावना हम भारत के लोग से षुरू होती है और व्यक्ति की गरिमा, एकता और अखण्डता से गुजरते हुए बंधुता का मार्ग अपनाते हुए हर भारतीय के दिलों में उतरती है। देखा जाए तो पिछले सात दषकों से यही सब हो रहा है परन्तु बदलते हालात में यह कह पाना कठिन है कि यह आगे भी जारी रहेगा। फिलहाल भारत माता की जय को लेकर जितनी व्याख्या करने में जी-तोड़ कोषिष की जा रही है उतनी देष की भलाई में खर्च की जाती तो देष की तस्वीर कुछ और होती।
  
सुशील कुमार सिंह

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