Thursday, April 14, 2016

लातूर स्टेशन पर पानी एक्सप्रेस

भारत का एक बड़ा हिस्सा इन दिनों प्यास की मार झेल रहा है। देश के अलग-अलग हिस्सों में पानी की कमी और उससे उपजी समस्याओं को लेकर हाहाकार मचा हुआ है। इसी में शुमार महाराष्ट्र के लातूर जिले को भी भयंकर सूखे के चलते चुल्लू भर पानी के लिए जूझते हुए देखा जा सकता है। पानी के चलते न केवल यहां की दिनचर्या पटरी से उतरी हुई है बल्कि जिन्दगी भी दांव पर लगी हुई है। देखा जाए तो ‘जल है तो कल है‘ और ‘पानी बिन सब सून‘ जैसी तमाम कहावतें ऐसे मौकों पर कहीं अधिक प्रासंगिक हो चली हैं। लातूर के लोगों की प्यास बुझाने के लिए वह सब कुछ किया जा रहा है जिसकी कल्पना षायद ही कभी की गयी हो। पानी को लेकर मचे हाहाकार के बीच पानी से भरी ‘पानी एक्सप्रेस‘ को लातूर के लिए रवाना किया जाना राहत से भरी बात तो है पर इस गहरे संकट से उबरने का यह एक अस्थाई समाधान ही प्रतीत होता है। बीते 11 अप्रैल को दस टैंको में 5 लाख 55 हजार लीटर पानी के साथ ‘पानी एक्सप्रेस‘ को मिराज स्टेषन से लातूर के लिए रवाना किया गया। किसी सौगात से कम नहीं पानी से भरी यह ट्रेन 12 अप्रैल को लातूर पहुंची। जाहिर है बूंद-बूंद पानी के लिए तरस रहे यहां के लोगों के लिए यह किसी अमृत से कम नहीं था। केन्द्र सरकार सहित भारतीय रेलवे की जल रेलगाड़ी ने इस दिषा में निरंतरता बनाये रखने और लातूर को प्यास से उबारने की जो चेश्टा की है वह सराहनीय है।
भले ही षेश भारत समेत दुनिया के तमाम देषों की भांति लातूर में भी अमीर और गरीब के बीच बड़ी खाई रही हो पर पानी के मामले में यहां करोड़पति भी बेहद गरीब है। दोनों ही समान रूप से इस पानी की जंग में दो-चार हो रहे हैं। लातूर एक ऐसा इलाका जहां लोग दिन-रात सिर्फ पानी के बारे में सोच रहे हैं। इतना ही नहीं पानी की तलाष में जिस कड़वे सच का अनुभव हो रहा है उसमंे उनके आंसू भी सूखते जा रहे हैं। पांच लाख की आबादी रखने वाले लातूर जिले को रोजाना दो करोड़ लीटर पानी की जरूरत होती है जबकि सच्चाई यह है कि महीने में मात्र एक बार ही पानी की सप्लाई होती है। दरअसल जिस बांध से षहर को पानी मिलता था वह पूरी तरह सूख चुका है। ऐसे में रोजाना सप्लाई सम्भव ही नहीं है। प्रषासन ने परिस्थिति को देखते हुए 150 से अधिक कुंए और ट्यूबवेल्स को इसलिए अपने कब्जे में लिया ताकि पानी की किल्लत से लोगों को निजात दिलाया जा सके परन्तु जरूरत इससे कहीं अधिक की है। महाराश्ट्र के विदर्भ और मराठवाड़ा इलाका इस वर्श सूखे की हैट्रिक बना रहा है। लगातार तीन साल से सूखे के चलते बूंद-बूंद पानी के लिए यहां के लोग तरस गये हैं।
पानी की कमी के चलते सूखे वाले इलाकों में सामाजिक जीवन भी छिन्न-भिन्न हुआ है। षिक्षा और स्वास्थ सहित कई बुनियादी समस्याएं तुलनात्मक बढ़ी हैं। आरोप है कि इन सभी के पीछे यहां का सिस्टम जिम्मेदार है। लातूर में पानी की जबरदस्त कमी के बावजूद गन्ने की खेती पर रोक नहीं लगाई गयी। जिस पर पानी की खपत अधिक थी। साल 2015 का अंत होते-होते नौबत यहां तक पहुंच गयी कि गन्ने की खड़ी फसल को काटने के समय तक किसानों के पास बूंद भर पानी नहीं बचा। जल संकट की समस्या के और भी कई वजह है जिसमें जल संसाधन को लेकर बरसों से हो रही लापरवाही भी षामिल है। पानी बचाने के प्रति चेतना भी अन्य देषों की तुलना में यहां कम ही है। स्वयं देष की राजधानी दुनिया के 20 जल संकट वाले षहरों में टोक्यो के बाद दूसरे नम्बर पर आती है। इसके अलावा कई षहर धीरे-धीरे लातूर जैसी स्थिति की ओर बढ़ रहे हैं। स्वतंत्रता से लेकर अब तक देष में पानी का स्तर तीन चैथाई दर तक घट गया है। बावजूद इसके इसकी बर्बादी को लेकर लोग सचेत नहीं है। लातूर जैसे इलाकों में तो बीते कुछ वर्शों से एक से अधिक षादियां भी की जाने लगी हैं ताकि पानी लाने वाले लोगों की मात्रा घर में बढ़ाई जा सकें। रिसर्च रिपोर्ट में इसे नया नाम ‘वाॅटर वाइफ‘ दिया गया है। पिछले चार वर्शों में महाराश्ट्र के सूखे वाले इलाकों के अलग-अलग हिस्सों से 25 लाख लोग मुम्बई और आस-पास के षहरों की तरफ पलायन कर चुके हैं। पानी की कीमत क्या होती है इसका मोल लातूर के लोगों से बेहतर षायद ही कोई जानता हो। पानी की किल्लत दूर करने के लिए ट्रेनों का सहारा लिया जा रहा है। लगातार जल रेलगाड़ी पेयजल से भरी सौगात लेकर जीवन बचाने की होड़ में देखी जा सकती है। इसे लेकर एक सकारात्मक पहल भी दिखाई दे रही है। दिल्ली के मुख्यमंत्री केजरीवाल ने लातूर की प्यास बुझाने के लिए दस लाख लीटर पानी रोजाना पहुंचाने की पेषकष भी की है। फिलहाल तत्काल में लातूर को तो राहत मिलते हुए दिखाई दे रही है परन्तु दीर्घकालिक हल तो पानी के प्रति सही सोच और रणनीति के चलते ही सम्भव है।
बीते 2 मार्च को पूरी दुनिया ने विष्व जल दिवस मनाया। दुनिया भर में पानी को लेकर संगोश्ठी और बैठकों का आयोजन भी हुआ पर सवाल है कि क्या उन उपायों को खोजा जाना अभी सम्भव हुआ है जहां से पानी की कमी से राहत मिलती हो। वर्तमान में दुनिया भर से करीब 150 करोड़ लोग पानी से जुड़े क्षेत्रों में कार्यरत हैं। कहा जाय तो मानव कार्य बल का यह आधा हिस्सा है। यूनाइटेड नेषन्स की 2015 की रिपोर्ट देखें तो विष्व के देषों ने पानी बचाने के उपायों पर यदि काम नहीं किया तो आने वाले 15 वर्शों में पूरी दुनिया को 40 फीसदी पानी की कमी का सामना करना पड़ सकता है। यदि हालात ऐसे बने रहे तो करीब दो दषक बाद आज की तुलना में पानी आधा रह जायेगा। गौरतलब है कि पीने के साफ पानी के आभाव में डायरिया जैसी बीमारियों से हर रोज विष्व भर से 23 सौ लोग मर जाते हैं। षहरों में रहने वाली 18 फीसदी आबादी ऐसी है जिसके पास पीने का साफ पानी नहीं है जबकि गांव में तो 82 फीसदी आबादी के साथ ऐसा हो रहा है। पिछले 50 साल के आंकड़े को देखें तो आबादी तीन गुना बढ़ी है जबकि पानी की खपत के मामले में 800 फीसदी की बढ़त है। देष की दो प्रमुख समस्याओं में आतंकवाद के अलावा जलवायु परिवर्तन है जिसका बुनियादी तथ्य पानी आज सबसे बड़ी समस्या है। भारत की कुल आबादी 18 फीसदी है लेकिन पानी के मामले में यह महज 4 प्रतिषत पर ही है। इसमें से 80 फीसदी पानी खेतों में इस्तेमाल होता है, 10 फीसदी उद्योगों में जाता है। आंकड़े तो यह भी बताते हैं कि हर व्यक्ति के हिस्से से पिछले एक दषक में 15 प्रतिषत पानी घटा है जो आगे के दो दषक तक 50 फीसदी कम हो सकता है। परिवर्तन के इस पराक्रम को समझने की आवष्यकता है। भौतिकवाद से भरी इस दुनिया में अस्तित्व का जद्दोजहद सभी जीव-जन्तुओं ने अपने जमाने में किया है। संसाधनों के आभाव में बड़े से बड़ा जीव भी अपना अस्तित्व खोया है। बिन पानी मानव अस्तित्व का उद्गार करना बेमानी है। सम्भव है कि पानी की समस्या अब नाक तक चढ़ रही है। समय रहते यदि इसकी बर्बादी पर रोक और संचयन पर समुचित नीति और जन-जागरूकता नहीं विकसित हुई तो आने वाले दिनों में बूंद भर पानी के लिए पूरी कूबत झोंकने के बावजूद जीवन का स्थाई होना दूभर हो जायेगा।

सुशील कुमार सिंह

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