Tuesday, November 1, 2022

चुनौतियों के बीच बनता इतिहास

इतिहास खंगालकर देखें तो इतिहास में परत-दर-परत ऐसे संदर्भ देखने को मिलते हैं जहां से कम-ज्यादा वापसी स्वाभाविक है। ऐसा ही इन दिनों ब्रिटेन में हुए सत्ता परिवर्तन के चलते देखने को मिला जहां भारतीय मूल के ऋशि सुनक प्रधानमंत्री तक पहुंच बनाकर मानो इतिहास की तुरपाई कर रहे हों। फिलहाल सत्ता परिवर्तन की कवायद से ब्रिटेन अभी उबरा नहीं है साथ ही मंदी के साये से पीछा छूटा नहीं है। ड्यूज़ बैंक और बार्कलेज बैंक ने यह अनुमान लगाया है कि ब्रिटिष सेंट्रल बैंक, बैंक ऑफ इंग्लैण्ड नवम्बर में होने वाली बैठक में ब्याज दर में 0.75 फीसद की बढ़ोत्तरी करेगा। ऐसे में आर्थिक विकास की सम्भावना और कम होगी साथ ही ब्रिटेन में ब्याज दर 4.75 फीसद तक पहुंच जायेगी। ब्याज दर में बढ़ोत्तरी एक ऐसा आर्थिक सत्य है जो देष विषेश में सभी के लिए एक नई आर्थिक कठिनाई खड़ा कर देता है। हालांकि ऐसा करने के पीछे आर्थिक मजबूरी होती है मगर इसका नियोजन बेहतर न हो तो ब्रिटेन जैसे देष भी मन्दी के साये से बच नहीं सकते जैसा कि वर्तमान परिस्थिति इसी की ओर इषारा करती है। गौरतलब है कि ब्रिटेन की लिज ट्रस सरकार की नीतियां भारी पड़ रही हैं। ट्रस सत्ता संभालते ही कॉरपोरेट टैक्स में कटौती का एलान कर दिया था। इसके अलावा निजी आयकर में भी छूट देने की घोशणा की थी। इन सबके बावजूद ट्रस सरकार ने यह बताने में सक्षम नहीं रही कि कटौतियों के चलते सरकारी खजाने से जो नुकसान होगा उसकी भरपाई कैसे होगी। नतीजन ब्राण्ड बाजार ढहने के करीब पहुंच गया और माहौल अफरा-तफरी में तब्दील होने लगा। स्थिति को देखते हुए ट्रस ने गलती सुधारते हुए तमाम रियायतों पर यू टर्न ले लिया और वित्त मंत्री पर आरोप मढ़ते हुए उनकी बर्खास्तगी कर दी। यह सब कुछ ब्रिटेन के इतिहास में महज डेढ़ महीने के भीतर हो गया। लिज ट्रस जमा डेढ़ महीने ब्रिटेन की प्रधानमंत्री बामुष्किल रहीं और फलक को कई चर्चे से भर दिया। बीते 20 अक्टूबर को लिज ट्रस के इस्तीफे के साथ ऋशि युग की षुरूआत की आहट एक बार फिर हुई जो अब मुकम्मल भी हो गयी है। ध्यानतव्य हो कि बोरिस जॉनसन के प्रधानमंत्री पद से हटने के बाद भारतीय मूल के ऋशि सुनक का मुकाबला इस दौड़ में लिज ट्रस से ही था। प्रधानमंत्री बनने की बाजी तो लिज ट्रस के हाथ लगी मगर सत्ता टिक नहीं पायी।
    जाहिर है नये प्रधानमंत्री के रूप में ऋशि सुनक भारत-ब्रिटेन सम्बंधों में बदलाव करना चाहेंगे। कुछ दिन पहले उन्होंने कहा था कि ब्रिटेन के छात्रों और कम्पनियों की भारत में आसान पहुंच होगी और ब्रिटेन के लिए भारत में कारोबार और काम करने के अवसर के बारे में भी हद तक वे जागरूक दिखे। ऋशि सुनक का भारतीय मूल का होना मनोवैज्ञानिक लाभ तो देगा मगर कूटनीतिक और आर्थिक स्तर पर अधिक अपेक्षा के साथ भारत को ज्यादा का फायदा होगा यह आने वाले दिनों में पता चलेगा। दो टूक यह भी है कि आर्थिक मोर्चे पर ब्रिटेन इन दिनों जिस स्थिति से गुजर रहा है भारत की ओर देखना पसंद करेगा। भारत निवेष के लिए बड़ा और प्रमुख अवसर है और ब्रिटेन एक महत्वपूर्ण आयातक देष है। ऐसे में भारत में होने वाले मुक्त व्यापार समझौते पर भी ऋशि सुनक अच्छा फैसला ले सकते हैं। हालांकि लिज ट्रस से भी ऐसा ही होने की आषा थी। मगर उनकी सत्ता टिकाऊ न होने से अब यह उम्मीद ऋशि सुनक से लगायी जा सकती है। गौरतलब है कि भारत और ब्रिटेन के बीच लगभग 23 अरब डॉलर का सालाना व्यापार होता है और ब्रिटेन भी यह जानता है कि मुक्त व्यापार के जरिये इसे 2030 तक दोगुना किया जा सकता है। हिन्द प्रषांत क्षेत्र में बाजार हिस्सेदारी और रक्षा विशयों पर दोनों देषों के बीच साल 2015 में ही समझौते हो चुके हैं। ऋशि सुनक के चलते द्विपक्षी सम्बंधों को और मजबूती मिल सकती है साथ ही ब्रिटेन हिंद प्रषांत क्षेत्र की विकासषील अर्थव्यवस्था को अपना अवसर बना सकता है। ध्यानतव्य हो कि इस क्षेत्र में दुनिया के 48 देष के करीब 65 फीसद आबादी रहती है। विदित हो कि ऋशि सुनक का मिजाज चीन को लेकर काफी सख्त रहा है। ऐसे में वे नहीं चाहेंगे कि इन देषों के असीम खनिज संसाधनों पर चीन अपना रास्ता बनाये। वैसे देखा जाये तो कई देषों के बंदरगाहों पर कब्जा करना चीन की सामरिक नीति रही है और क्वॉड के माध्यम से उस पर नकेल कसने की जहमत अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया समेत भारत पहले ही उठा चुके हैं। यदि ब्रिटेन अपने बाजार और व्यापार समेत आर्थिक नीतियों को भारत के साथ व्यापक पैमाने पर साझा के साथ मुक्त बनाये रखता है तो द्विपक्षीय मुनाफा तो होगा ही साथ ही चीन को संतुलित करने में भी मदद मिलेगी।
ऋशि सुनक के दिल में भारत बसता है। दरअसल इन्फोसिस के संस्थापक नारायणमूर्ति की बेटी उनकी पत्नी है और उनके पुरखे अविभाजित भारत के बाषिन्दे थे। विन्चेस्टर कॉलेज, ऑक्सफोर्ड और स्टैनफोर्ड से षिक्षा लेने वाले सुनक महज 42 बरस के हैं। एक प्रतिश्ठित षिक्षाविद् ने मुझे यह सूचना भेजते हुए हर्श जताया कि 1608 में ईस्ट इण्डिया कम्पनी ने सूरत में अपने सूरत-ए-हाल को बिखेरा था और अब 414 साल बाद एक भारतीय मूल का व्यक्ति ब्रिटेन की जमीन पर सत्ता का बड़ा वृक्ष बन रहा है। आमतौर पर देखें तो यह दीपावली के अवसर भारतीयों के मन में जागृत एक ऐसी रोषनी है जो अच्छे का एहसास करा रही है। हालांकि ऋशि सुनक के सामने चुनौतियों का अम्बार कम नहीं है जो गलतियां निवर्तमान प्रधानमंत्री लिज ट्रस ने की उससे वे सबक जरूर लेंगे और ब्रिटेन के बाषिन्दे जिस तर्ज पर ईज़ ऑफ लिविंग खोजते हैं उस पर उन्हें खरा भी उतरना होगा। दुनिया की 5वीं अर्थव्यवस्था वाला भारत ब्रिटेन को ही पछाड़ा था। सुनक से ब्रिटेन की जनता आर्थिक विकास के बेहतरीन रोड मैप की अपेक्षा किये हुए है। इसमें कोई दो राय नहीं कि ब्रिटेन जैसे देष में जनता निहायत जागरूक है। वहां बाजार और सरकार दोनों को समझने में कोई गलती नहीं करती है। लिज़ ट्रस ने इन दोनों का भरोसा इतनी जल्दी खो दिया कि सरकार गंवानी पड़ी। वैसे भारत और ब्रिटेन के मध्य मजबूत ऐतिहासिक सम्बंधों के साथ-साथ आधुनिक और परिमार्जित कूटनीतिक सम्बंधा देखे जा सकते हैं। साल 2004 में दोनों देषों के बीच द्विपक्षीय सम्बंधों में रणनीतिक साझेदारी ने विकास का रूप लिया और यह निरंतरता के साथ मजबूत अवस्था को बनाये रखा। हालांकि षेश यूरोप से भी भारत के द्विपक्षीय सम्बंध विगत कई वर्शों से प्रगाढ़ हो गये हैं। बावजूद इसके ब्रिटेन से मजबूत दोस्ती पूरे यूरोप के लिए बेहतरी की अवस्था है क्योंकि यूरोप में व्यापार करने के लिए भारत ब्रिटेन को द्वार समझता है। ऐसे में नई सरकार के साथ भारत की ओर से नई रणनीति और प्रासंगिक परिप्रेक्ष्य को ध्यान में रखकर गठजोड़ की एक ऐसी बेजोड़ कवायद करने की आवष्यकता है जहां से भारतीय मूल के ऋशि सुनक के ब्रिटेन में होने का सबसे बेहतर लाभ लिया जा सके। साथ ही दुनिया में भारत की बढ़ती साख को और सषक्त बनाने में मदद मिल सके।

दिनांक : 25/10/2022



डॉ0 सुशील कुमार सिंह
निदेशक
वाईएस रिसर्च फाउंडेशन ऑफ पॉलिसी एंड एडमिनिस्ट्रेशन
लेन नं.12, इन्द्रप्रस्थ एन्क्लेव, अपर नत्थनपुर
देहरादून-248005 (उत्तराखण्ड)
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