Tuesday, November 1, 2022

उद्यमशील सरकार का सुशासनिक परिप्रेक्ष्य

नवीन लोक प्रबंधन के आदर्ष उद्देष्य का वर्णन पूर्व अमेरिकी उपराश्ट्रपति अल गोर की राश्ट्रीय कार्य-प्रदर्षन समीक्षा पर रिपोर्ट ”वह सरकार जिसका काम बेहतर और लागत कम हो“ में किया गया है। गौरतलब है कि नव लोक प्रबंधन जिसमें नागरिक या ग्राहक को केन्द्र में रखा जाता है साथ ही परिणामों के लिए उत्तरदायित्व पर बल दिया जाता है। यह समाज एवं अर्थव्यवस्था में राज्य की भूमिका को कम करना चाहता है और एक उद्यमषील सरकार की स्थापना से इसका सरोकार जहां कुषलता, अर्थव्यवस्था और प्रभावषीलता तीन लक्ष्य हैं। न्यूजीलैण्ड दुनिया का पहला देष है जिसने नव लोक प्रबंधन को 1990 के दषक में अपनाया। अमेरिका के पूर्व राश्ट्रपति बिल क्लिंटन रीइंवेंटिंग गवर्नमेंट नामक पुस्तक की प्रषंसा में लिखा था कि यह एक ब्लू प्रिंट है इस संदर्भ के चलते नवीन लोक प्रबंधन के आधार को और सषक्तता मिलती है। इसमें कोई दुविधा नहीं कि यह प्रबंधन आसानी से वामपंथ और दक्षिणपंथ की सीमा लांघता है और सुषासन की अवधारणा में अंतर्निहित हो जाता है। सुषासन विष्व बैंक की 1989 की रिपोर्ट ‘फ्रॉम द स्टेट टू मार्केट‘ के अन्तर्गत प्रस्फुटित एक ऐसी विचारधारा है जहां लोक प्रवर्धित अवधारणा को मजबूती मिलती है साथ ही लोक सषक्तिकरण पर बल दिया जाता है। यह एक आर्थिक परिभाशा है और इसमें न्याय का सरोकार निहित है। षासन वही अच्छा जिसका प्रषासन अच्छा होता है और दोनों तब अच्छे होते हैं जब लोक कल्याण होता है और लोक कल्याण कम लागत में अधिक करने की योजना भारत जैसे तीसरी दुनिया के देषों के लिए कहीं अधिक आवष्यक है।
पड़ताल बताती है कि भारत में लोक प्रबंधन के नवीन आयामों में लोक कल्याणकारी व्यय को घटाया गया है मसलन रसोई गैस से हटाई गयी सब्सिडी और ऊपर से लगातार बढ़ती कीमत। लोक उद्यमों का विनिवेष व निजीकरण एवं उनमें समझौता, नवरत्न, महारत्न जैसी श्रेणियां प्रदान करने की प्रविधियां। विकेन्द्रीकरण और निजी निकायों के द्वारा ठेका प्रथा से कार्य करवाना आदि। हालांकि ई-गवर्नेंस को लागू करने वाली गतिविधियों को बढ़ावा नव लोक प्रबंध और सुषासन के चलते ही सम्भव हुआ है। जैसे ई-बैंकिंग, ई-टिकटिंग, ई-सुविधा, ई-अदालत, ई-षिक्षा समेत विभिन्न आयामों में इलेक्ट्रॉनिक पद्धति का समावेषन आदि के चलते सुषासन में निहित पारदर्षिता और खुलेपन को मजबूती मिली है। इतना ही नहीं सरकारी संगठनों का निगमीकरण, पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरषिप जैसी तकनीकों पर आगे बढ़ाना नव लोक प्रबंधन के नवीन आयाम ही हैं। साल 1997 का नागरिक अधिकारपत्र, 2005 का सूचना का अधिकार कानून, 2006 में राश्ट्र ई-गवर्नेंस आंदोलन, प्रषासनिक सुधार के लिए आयोगों का गठन, समावेषी व धारणीय विकास पर अमल करने समेत स्मार्ट सिटी और स्मार्ट विलेज आदि विभिन्न परिप्रेक्ष्य भारत में लोक प्रबंध के नये आयाम को ही दर्षाते हैं। दरअसल प्रषासनिक सुधार और सामाजिक परिवर्तन एक-दूसरे से तार्किक सम्बंध रखते हैं। प्रषासनिक सुधार राजनीतिक इच्छाषक्ति का परिणाम होती है। सरकार परिवर्तन और सुधार की दृश्टि से जितना अधिक जन उन्मुख होगी सुषासन उतना अधिक प्रभावी होगा मगर जब सरकारें कुषलता के साथ अर्थव्यवस्था पर तो जो देती हैं मगर जब आम जनमानस में इसकी प्रभावषीलता समावेषी अनुपात में नहीं होती है तो पूंजीवाद का विकास सम्भव होता है।
भारत गांवों का देष है मगर अब बढ़ते षहरों के चलते इसकी पहचान गांव तक ही सिमट कर नहीं रहती। भारत खेत-खलिहानों के साथ-साथ कल-कारखानों से युक्त हो चला है। बीते 75 वर्शों में विकास परत-दर-परत अनवरत बना हुआ है। स्वतंत्रता के बाद संविधान के लागू होने के पष्चात् विकास का प्रषासन व प्रषासनिक विकास समेत सामुदायिक और सामाजिक विकास की अवधारणा साथ हो चली थी। बावजूद इसके समावेषी ढांचे का न जाने क्यों सषक्त निर्माण षायद देने में सफल हो ही नहीं पाये। यही कारण है कि आज भी गरीबी, भुखमरी, बेरोज़गारी, महंगाई, षिक्षा, सड़क, सुरक्षा आदि समेत कई बुनियादी तथ्य भरपूर समाधान से परे हैं। 1991 के उदारीकरण बदलते वैष्विक परिप्रेक्ष्य के साथ भारत में बदलाव की एक नई तारीख बनी। 1992 में समावेषी विकास व सुषासन की धारणा भी मूर्त रूप ली फिर भी बुनियादी विकास, मानव विकास सूचकांक व ईज़ ऑफ लिविंग के मामले में आम जनमानस की जद्दोजहद कम नहीं हो रही है। दो टूक यह भी है कि प्रषासन और जनता के बीच संकुचित दायरे के सम्बंधों ने अब व्यापक आधार ले लिया है और षासन, सुषासन के प्रति तुलनात्मक कहीं अधिक प्रतिबद्धता भी दर्षाती हैं। पड़ताल बताती है कि नवीन लोक प्रबंधन वैष्वीकरण, उदारीकरण के दौर में नौकरषाही को नई दिषा में मोड़ने और उसे नई संरचना देने का भी प्रयास किया है। नव लोक प्रबंधन एक ऐसा परिदृष्य है जिस पर कई उत्प्रेरक तत्वों का प्रभाव पड़ा है। जिसने राज्य को पृश्ठभूमि में रखने मार्केट मैकेनिज्म को प्रमुख रूप से उभारने एवं प्रतियोगिता तथा प्रभावषीलता की जरूरत को समर्थित किया। उक्त तथ्य यह दर्षाते हैं कि भारत जैसे तीसरी दुनिया के देष में प्रतियोगिता नागरिकों को ग्राहक बना देती है और सफल ग्राहक वही है जोे कमाई के साथ मार्केट मैकेनिज्म को अंगीकृत कर सके। भारत में आर्थिक दृश्टि से अनेकों वर्ग हैं जो मार्केट मैकेनिज्म के साथ कदम-से-कदम मिलाने में इनमें से कई अक्षम भी हैं। यह कहना अतार्किक न होगा कि विकासषील देषों का बाजार हो या प्रतियोगिता बड़ी तो हो जाती है मगर मानव संसाधन में समुचित दक्षता और उचित रोजगार की कमी से उक्त मॉडल या तो विफल हो जाता है या फिर जनता असफल हो जाती है। इसी वर्श दो करोड़ मकान देने और किसानों की आमदनी दोगुनी का लक्ष्य भी पूरा होना है। सुषासन की दृश्टि से यह स्थिति कहां है कुछ कहा नहीं जा सकता मगर उद्यमषील सरकार की दृश्टि से इस पर खरा उतरना चाहिए।
सुषासन के मूल्यांकन के भी तीन परत हैं जिसमें मानव विकास सूचकांक, मानव गरीबी सूचकांक इसके हिस्से हैं। यदि यह किसी भी स्तर पर देष में व्याप्त है तो सुषासन को चोटिल करता है और उद्यमषीलता का दम भरने वाली सरकारों पर प्रष्न चिह्न लगाता है। मानव विकास सूचकांक 2021-22 के आंकड़े बताते हैं कि भारत 191 देषों के मुकाबले 132वें स्थान पर है जबकि वैष्विक भूख सूचकांक-2022 में 107वें स्थान पर जो 2021 के 101वें स्थान के मुकाबले कहीं पीछे चला गया। भारत जो विष्व के सबसे बड़े खाद्यान्न भण्डार वाला देष है में विष्व की खाद्य असुरक्षित आबादी का एक-चौथाई हिस्सा मौजूद है। देखा जाये तो खाद्य सुरक्षा अधिनियम-2013 के बावजूद भर पेट भोजन कईयों के हिस्से से अभी दूर भी है। इतना ही नहीं खाद्य पदार्थों की कीमत में भी इन दिनों जमकर उछाल लिए हुए है। उक्त संदर्भ नव लोक प्रबंधन और सुषासन दोनों दृश्टि से समुचित नहीं है। नव लोक प्रबंधन उत्तरदायी परिणाम प्रतियोगिता, पारदर्षिता तथा आनुबंधिक सम्बंधों पर आश्रित और इस प्रकार पुराने व्यवस्था से भिन्न है जबकि सुषासन लोक कल्याण, लोक सषक्तिकरण और लोक प्रवर्धित अवधारणा है जो सर्वोदय और अन्त्योदय को समाहित किये हुए है। सवाल यह है कि देष किससे बनता है और किस के साथ चलता है। लोकतंत्र में जनता का षासन होता है और साफ है कि कोई भी जनता समावेषी व बुनियादी विकास से अछूती रहने वाली व्यवस्था देर तक नहीं चलाना चाहेगी।

 दिनांक : 20/10/2022



डॉ0 सुशील कुमार सिंह
निदेशक
वाईएस रिसर्च फाउंडेशन ऑफ पॉलिसी एंड एडमिनिस्ट्रेशन
लेन नं.12, इन्द्रप्रस्थ एन्क्लेव, अपर नत्थनपुर
देहरादून-248005 (उत्तराखण्ड)
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