Tuesday, November 1, 2022

ताकि नागरिक और राश्ट्र का विकास सुनिश्चित हो सके

भारत में बरसों से उच्च षिक्षा षोध और नवाचार को लेकर चिंता जताई जाती रही है। बाजारवाद षनैः षनैः षिक्षा की अवस्था को मात्रात्मक बढ़ाया है मगर गुणवत्ता में यह फिसड्डी ही रही। षायद यही कारण है कि विष्वविद्यालयों की जब वैष्विक रैंकिंग जारी होती है तो उच्च षिक्षण संस्थाएं बड़ी छलांग नहीं लगा पाती हैं। दो टूक कहें तो नवाचार लाने की प्रमुख जिम्मेदारी ऐसी ही षिक्षण संस्थाओं की है। फिलहाल नवाचार किसी भी देष की सषक्तता का वह परिप्रेक्ष्य है जहां से यह समझना आसान होता है कि जीवन के विभिन्न पहलू और राश्ट्र के विकास के तमाम आयामों में नूतनता का अनुप्रयोग जारी है। भारत में नवाचार को लेकर जो कोषिषें अभी तक हुई हैं वह भले ही आषातीत नतीजे न दे पायी हो बावजूद इसके उम्मीद को एक नई उड़ान मिलते दिखाई देती है। वर्ल्ड इंटेलेक्चुअल प्रोपर्टी ऑर्गेनाइजेषन द्वारा जारी 2022 के ग्लोबल इनोवेषन इंडेक्स में उछाल के साथ भारत 40वें स्थान पर आ गया है। यह इस लिहाज से कहीं अधिक प्रभावषाली है क्योंकि यह पिछले साल की तुलना में 6 स्थानों की छलांग है। विदित हो कि भारत 2021 में 46वें और 2015 में 81वें स्थान पर था। इस रैंकिंग की पड़ताल बताती है कि स्विट्जरलैण्ड, यूएसए और स्वीडन क्रमषः पहले, दूसरे और तीसरे स्थान पर है। अमेरिका, कोरिया और सिंगापुर को छोड़ दिया जाये तो प्रथम 10 में सभी यूरोपीय देष षामिल हैं। दुनिया में स्विट्जरलैण्ड नवाचार को लेकर सर्वाधिक अच्छे प्रयोग के लिए जाना जाता है। यही कारण है कि वह पिछले 12 वर्शों से इस मामले में प्रथम स्थान पर बना हुआ है। इतना ही नहीं नवाचार निर्गत के मामले में अग्रणी स्विट्जरलैण्ड मूल साफ्टवेयर खर्च व उच्च तकनीक निर्माण में भी अव्वल है। गौरतलब है कि तकनीक का प्रयोग सभी सीखने वालों को आत्मनिर्भर बनाने के लिए प्रोत्साहित करता है। इसके आधार पर विज्ञान क्षेत्र का वास्तविक जीवन के परिदृष्य के बीच सम्बंध स्थापित करने की कोषिष करता है। भारत में नवाचार को लेकर जो स्थिति मौजूदा समय में है वह नीति आयोग के नवाचार कार्यक्रम अटल इनोवेषन प्रोग्राम तथा भारत सरकार द्वारा संचालित अन्य प्रौद्योगिकी का नतीजा है।
देष में स्टार्टअप सेक्टर हेतु तैयार बेहतर माहौल के चलते ग्लोबल इनोवेषन इंडेक्स में भारत की रैंकिंग में सुधार वाला सिलसिला जारी है। वैसे सुधार और सुषासन के बीच एक नवाचार से युक्त गठजोड़ भी है। बषर्ते सुधार में संवेदनषीलता, लोक कल्याण, लोक सषक्तिकरण तथा खुला दृश्टिकोण के साथ पारदर्षिता और समावेषी व्यवस्था के अनुकूल स्थिति बरकरार रहे। इसमें कोई दुविधा नहीं कि सुषासन की पहल और नवाचार में आई बढ़त देष को कई संभावनाओं से भरेगा। जीवन के हर पहलू में ज्ञान-विज्ञान, षोध, षिक्षा और नवाचार की अहम भूमिका होती है। भारतीय वैज्ञानिकों का जीवन और कार्य प्रौद्योगिकी विकास के साथ राश्ट्र निर्माण का षानदार उदाहरण समय-समय पर देखने को मिलता रहा है। देष में मल्टीनेषनल रिसर्च एण्ड डवलेपमेंट केन्द्रों की संख्या साल 2010 में 721 थी जो अब 12 सौ के आस-पास पहुंच गयी है। षिक्षा, षोध, तकनीक और नवाचार ऐसे गुणात्मक पक्ष हैं जहां से विषिश्ट दक्षता को बढ़ावा मिलता है साथ ही देष का उत्थान भी सम्भव होता है। जब सत्ता सुषासनमय होती है तो कई सकारात्मक कदम स्वतः निरूपित होते हैं। हालांकि सुषासन को भी षोध व नवाचार की भरपूर आवष्यकता रहती है। कहा जाये तो सुषासन और नवाचार एक-दूसरे के पूरक हैं। ग्लोबल इनोवेषन इंडेक्स 2022 का थीमेटिक फोकस नवाचार संचालित विकास के भविश्य पर केन्द्रित है। इनमें जो संभावनाएं दिखती हैं उसमें सुपर कम्प्यूटरिंग, आर्टिफिषयल इंटेलिजेंस और ऑटोमेषन के साथ डिजिटल युग है। इसके अलावा जैव प्रौद्योगिकी, नैनो तकनीक और अन्य विज्ञान में सफलताओं पर निर्मित गहन नवाचार जो समाज के उन तमाम पहलुओं को सुसज्जित करेगा जिसमें स्वास्थ्य, भोजन, पर्यावरण आदि षामिल हैं। सुषासन भी समावेषी ढांचे के भीतर ऐसी तमाम अवधारणाओं को समाहित करते हुए सु-जीवन की ओर अग्रसर होता है।
बेषक साल 2015 में इनोवेषन इंडेक्स रैंकिंग में भारत 81वें स्थान पर था जो अब 40वें पर आ गया है। बावजूद इसके भारत षोध की मात्रा और गुणवत्ता दोनों ही चिंतनीय है। षोध से ही ज्ञान के नये क्षितिज विकसित होते हैं और इन्हीं से संलग्न नवाचार देष और उसके नागरिकों को बड़ा आसमान देता है। पड़ताल बताती है कि अनुसंधान और विकास में सकल व्यय वित्तीय वर्श 2007-08 की तुलना में 2017-18 में लगभग तीन गुने की वृद्धि ले चुका है। फिर भी अन्य देषों की तुलना में भारत का षोध विन्यास और विकास कमतर ही कहा जायेगा। भारत षोध व नवाचार पर अपनी जीडीपी का महज 0.7 फीसद ही व्यय करता है जबकि चीन 2.1 और अमेरिका 2.8 फीसद खर्च करता है। इतना ही नहीं दक्षिण कोरिया और इजराइल जैसे देष इस मामले में 4 फीसद से अधिक खर्च के साथ कहीं अधिक आगे हैं। हालांकि केन्द्र सरकार ने देष में नवाचार को एक नई ऊँचाई देने के लिए साल 2021-22 के बजट में 5 वर्श के लिए नेषनल रिसर्च फाउंडेषन हेतु 50 हजार करोड़ रूपए आबंटित किये थे। इसमें कोई षक नहीं कि इनोवेषन इंडेक्स में भारत की सुधरती रैंकिंग से केन्द्र सरकार गदगद होगी। मगर अभी इसके लाभ से देष का कई कोने अभी भी अछूते हैं। नवाचार के मामले में भारत षीर्श, निम्न, मध्यम आय वाली अर्थव्यवस्था में वियतनाम से भी आगे है। यह भी सही है कि दुनिया भर के देषों की सरकारों को अपने यहां नवाचार बढ़ाने में ऐसे सूचकांक स्पर्धी बनाते हैं। गौरतलब है कि नवाचार का मूल उद्देष्य नये विचारों और तकनीकों को सामाजिक व आर्थिक चुनौतियों एवं बदलावों में षामिल करना है। ग्लोबल इनोवेषन इंडेक्स की रिपोर्ट से सरकारें अपनी नीतियों को सुधारने का जरिया बनाती हैं और ऐसा बदलाव एक और नवाचार को अवसर देता है जो सुषासन की दृश्टि से सटीक और समुचित पहल करार दी जा सकती है।
बीते वर्शों में भारत एक वैष्विक अनुसंधान एवं नवाचार के रूप में तेजी से उभर रहा है। भारत के प्रति मिलियन आबादी पर षोधकर्त्ताओं की संख्या साल 2000 में जहां 110 थी वहीं 2017 तक यह आंकड़ा 255 का हो गया। भारत वैज्ञानिक प्रकाषन वाले देषों की सूची में तीसरे स्थान पर है जबकि पेटेन्ट फाइलिंग गतिविधि के स्थान पर 9वें स्थान पर है। भारत में कई अनुसंधान केन्द्र हैं और प्रत्येक के अपने कार्यक्षेत्र हैं। चावल, गन्ना, चीनी से लेकर पेट्रोलियम, सड़क और भवन निर्माण के साथ पर्यावरण, वैज्ञानिक अनुसंधान और अंतरिक्ष केन्द्र देखे जा सकते हैं। ऐसे केन्द्रों पर देष का नवाचार भी टिका हुआ है। इसके अलावा नये प्रारूपों के परिप्रेक्ष्य की संलग्नता इसे और बड़ा बनाने में कारगर है। स्विट्जरलैण्ड का पहले स्थान पर होना यह दर्षाता है कि कई मायनों में भारत को अभी इनोवेषन लीडरषिप को बड़ा करना बाकी है। नई षिक्षा नीति 2020 का आगामी वर्शों में जब प्रभाव दिखेगा तो नवाचार में नूतनता का और अधिक प्रवेष होगा। फिलहाल नवाचार का पूरा लाभ जन मानस को मिले ताकि सुषासन को तरक्की और जन जीवन में सुगमता का संचार हो। दषकों पहले मनोसामाजिक चिंतक पीटर ड्रकर ने ऐलान किया था कि आने वाले दिनों में ज्ञान का समाज किसी भी समाज से ज्यादा प्रतिस्पर्धात्मक बन जायेगा। दुनिया में नवाचार को लेकर जो प्रयोग व अनुप्रयोग मौजूदा वक्त में जरूरी हो गया है वह ज्ञान की इस प्रतिस्पर्धा का ही एक बेहतरीन उदाहरण है।
  दिनांक : 06/10/2022



डॉ0 सुशील कुमार सिंह
निदेशक
वाईएस रिसर्च फाउंडेशन ऑफ पॉलिसी एंड एडमिनिस्ट्रेशन
लेन नं.12, इन्द्रप्रस्थ एन्क्लेव, अपर नत्थनपुर
देहरादून-248005 (उत्तराखण्ड)
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