Tuesday, November 1, 2022

सु.जीवन से कैसे युक्त हो सुशासन

षासन में क्षमता के विकास की अवधारणा लोक सेवा की व्यावसायिकता पर बहुत अधिक निर्भर है। जबकि राजनीतिक सत्ता तभी बेहतर बदलाव और समावेषी सोच की ओर मानी जाती है जब वह तमाम के साथ बुनियादी विकास को लेकर दृश्टिपरक हो। जिस देष में बुनियादी ढांचा ग्रामीण व षहरी दोनों स्तरों पर औसतन बेहतर स्थिति को प्राप्त किया है वहां सुषासन की राह न केवल चौड़ी हुई है बल्कि सु.जीवन के लिए भी मार्ग प्रषस्त हुआ है। सु.जीवन और सुषासन का गहरा सम्बंध है। जब स्मार्ट सरकार जन सामान्य को बुनियादी तत्वों से युक्त करती है तो वह सुषासन की संज्ञा में चली जाती है और जब आम जनमानस महंगाईए बेरोज़गारीए गरीबी व आर्थिक असमानता से छुटकारा तथा षिक्षाए चिकित्साए सड़कए सुरक्षा व अन्य समावेषी आवष्यकताओं तक पहुंच बना लेता है तो वह सु.जीवन की ओर होता है। दूसरे अर्थों में इसे ईज़ ऑफ लीविंग भी कहा जा सकता है। हालांकि इसके दर्जनों आयाम हैं मगर उपरोक्त से इसे परिभाशित करना और समझना सुगम हो जाता है। कानून का षासनए भ्रश्टाचार से मुक्तिए विकास के लिए विकेन्द्रीकरण को बढ़ावा देनाए भूमण्डलीकरण की स्थिति को समझते हुए रणनीतियों में यथास्थिति के साथ बदलाव को बनाये रखनाए ई.गवर्नेंसए ई.लोकतंत्र और अच्छे अभिषासन की अवधारणा पोशित करना साथ ही सरकार और षासन की भूमिका में निरंतर बने रहना सुषासन और सु.जीवन की पूरी खुराक है। भारत का मानव विकास सूचकांक तुलनात्मक बेहतर न होना सु.जीवन के लिए बड़ा नुकसान है। गौरतलब है कि साल 2020 में भारत 189 देषों की तुलना में 131वें पर था जो अपने पूर्ववर्ती वर्श से दो कदम और पीछे गया है जबकि हालिया रिपोर्ट में यही आंकड़ा 132वें पर है। साफ है कि भारत वैष्विक अर्थव्यवस्था में भले ही अपनी छलांग छठवीं से पांचवीं किया हो और नवाचार के मामले में 46वें से 40वें स्थान की उछाल ले लिया हो मगर विकास का हिस्सा बहुतों तक अभी पहुंच नहीं रहा है। किसी भी देष की अवस्था और व्यवस्था को समझने में मानव विकास सूचकांकए ईज़ ऑफ लिविंग इंडेक्स के साथ बेरोज़गारीए महंगाईए गरीबी और आर्थिक असमानता बड़े सत्य हो सकते हैं।
सामाजिक नवाचार नये सामाजिक कार्य हैं जिनमें समाज को विस्तारित और मजबूत करने के उद्देष्य से नवाचार की सामाजिक प्रक्रियाएं षामिल हैं। समस्या समाधान से लेकर योजना बनाने और सतत् विकास लक्ष्य के बारे में जागरूकता फैलाकर नव संदर्भों को बढ़त दी जाती है। देष में फैली गरीबी न केवल आर्थिक ताना मार रही है बल्कि विकास में भी कांटे दषकों से बो रही है। आज भी 27 करोड़ लोग गरीबी रेखा के नीचे रहते हैं। हालांकि इस पर सरकारों की अपनी अलग राय रही है। पांचवीं पंचवर्शीय योजना 1974 से गरीबी उन्मूलन को फलक पर लाया गया मगर कामयाबी इस मामले में आंख मिचौली खेलती रही। आंकड़ों में गरीबी जरूर घटी है मगर इस बात से संकेत पूरी तरह लिया जा सकता है कि जब 80 करोड़ भारतीयों को 5 किलो अनाज मुफ्त देना पड़ा तो समझिए गरीबी का आलम किस स्तर तक रहा होगा। हालिया स्थिति पर थोड़ी दृश्टि डालें तो राश्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के सरकार्यवाह ने भी देष में गरीबीए बेरोज़गारी और आर्थिक असमानता पर चिंता व्यक्त की है। गरीबी को देष के सामने एक राक्षस जैसी चुनौती का रूप मानते हुए इसे सरकार की अक्षमता करार दी गयी। उन्होंने स्पश्ट कहा है कि गरीबी के अलावा असमानता और बेरोज़गारी दो चुनौतियां हैं। इसमें कोई षक नहीं कि देष दो तरह से आगे.पीछे हो रहा है एक आर्थिक रूप से मुट्ठी भर लोगों का आगे बढ़नाए दूसरा बड़ी तादाद में आम जन मानस का बुनियादी विकास से अछूते रहना। भारत में साढ़े छः लाख गांव हैं और 60 फीसद से अधिक आबादी ग्रामीण है। देष में ढ़ाई लाख पंचायतें हैं यह लोकतांत्रिक विकेन्द्रीकरण की वह रचना है जहां से विकास की गंगा बहती है मगर कई बुनियादी समस्याओं से गांव और उसकी पंचायते आज भी जूझ रही हैं। षहर स्मार्ट बनाये जा रहे हैं मगर बेरोज़गारी की बढ़त में इनकी चमक में चार चांद लगाने के बजाय मुंह चिढ़ाने का काम कर रहा है। सेन्ट्रल फॉर मॉनिटरिंग इण्डियन इकोनॉमी ने बेरोज़गारी पर जारी आंकड़े पर दृश्टि डालें तो अगस्त 2022 में भारत की बेरोज़गारी दर एक साल के उच्च स्तर 8ण्3 फीसद पर पहुंच गयी। हालांकि सितम्बर में षहरी और ग्रामीण दोनों क्षेत्रों में श्रम भागीदारी में वृद्धि के साथ बेरोज़गारी दर में गिरावट की बात कही जा रही है। राजस्थान 23ण्8 फीसद के साथ बेरोज़गारी के मामले में अव्वल है जबकि जम्मू कष्मीर 23ण्2 और हरियाणा 22ण्9 फीसदी के साथ दूसरे और तीसरे स्थान पर है। ग्रामीण रोज़गार का प्रभावित होना सुषासन और सुजीवन दोनों को कुचलने का काम किया है मगर बेरोज़गारी का मानस पटल और जीवन षास्त्र पर सर्वाधिक असर षहरी को हुआ है।
दुनिया में 50 फीसद से अधिक आबादी षहरों में रही यह 2050 तक 70 फीसद बढ़ने की उम्मीद और भारत पर भी कमोबेष यही छाप दिखाई देती है। विष्व बैंक ने बरसों पहले कहा था कि यदि भारत की पढ़ी.लिखी महिलाओं का विकास में योगदान पूरी तरह हो जाये तो भारत की जीडीपी में 4ण्2 फीसद की बढ़ोत्तरी हो जायेगी। जीडीपी की इस बढ़त के साथ भारत को 2024 में 5 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था करने का इरादा भी षायद पूरा कर ले मगर मौजूदा स्थिति में इसके आसार नहीं दिखाई देते। सु.जीवन की तलाष सभी को है मगर राह आसान कैसे होगी इसकी समझ सत्ताए सरकार और प्रषासन से होकर गुजरता है। 2022 तक दो करोड़ घर उपलब्ध कराने से जुड़े सरकार के संकल्प सु.जीवन और सुषासन की दृश्टि से कहीं अधिक प्रभावषाली था। इसी वर्श किसानों की आय दोगुनी का इरादा भी इसी संकल्पना को मजबूत करता है। साथ ही बेरोज़गारी समाप्त करनेए महंगाई पर नियंत्रण करने और बेहतरीन नियोजन से आर्थिक खाई को खत्म करने का सरकारी मनसूबा सु.जीवन के पथ को चिकना कर सकता है मगर यह जमीन पर उतरा नहीं है। यह भी नहीं कहा जा सकता कि यह सब जमींदोज हो गया पर जो यह कदम सरकार ने बड़े विष्वास से उठाया था उसे कहां रखा गया यह सवाल आज भी अच्छे जवाब की तलाष में है। देष के इतिहास में साल 2005 वक्त के ऐसे मोड़ पर खड़ा किया जब षहरों की आबादी गांवों से ज्यादा होने लगी। इतना ही नहीं 2028 तक भारत दुनिया में सबसे अधिक जन घनत्व वाला देष होगा। जाहिर है सर्वाधिक जनसंख्या वाला देष पड़ोसी चीन भी इस मामले में 2023 में पीछे छूट जायेगा। ऐसे में जीवन की जरूरतें और जिन्दगी आसान बनाने की कोषिषें चुनौती से कहीं अधिक भरी होंगी ऐसा नहीं सोचने का कोई तर्क दिखाई नहीं देता है। ईज़ ऑफ लिविंग का मतलब महज नागरिकों की जिन्दगी में सरकारी दखल कम और इच्छा से जीवन बसर करने की स्वतंत्रता ही नहीं बल्कि जीवन स्तर ऊपर उठाने से है और जीवन स्तर तभी ऊपर उठता है जब समावेषी ढांचा पुख्ता हो और सुषासन का आसमान कहीं अधिक नीला हो। 1992 की आठवीं पंचवर्शीय योजना समावेषी विकास से ओत.प्रोत थी और यही वर्श सुषासन के लिए भी जाना जाता है। इसी दौर में आर्थिक उदारीकरण का परिलक्षण भी 24 जुलाई 1991 से प्रसार लेने लगा था और पंचायती राज व्यवस्था भी इसी समय लोकतांत्रिक विकेन्द्रीकरण की अवधारणा के अंतर्गत ग्रामीण इतिहास और विकास बड़ा करने के लिए संवैधानिक अंगड़ाई ले चुकी थी। बावजूद इसके गांव छोड़ने की परम्परा रूकी नहीं और बेरोज़गारी की लगाम आज भी ढीली है तत्पष्चात् आर्थिक असमानता और गरीबी का मुंह तुलनात्मक कहीं अधिक बड़ा हो गया है।
यदि गांव और छोटे कस्बों में इतना बदलाव नहीं हुआ कि आमदनी इतनी हो सके कि वहां के बाषिंदों की जिन्दगी आसान हो तो सु.जीवन और सुषासन का ढिंढोरा कितना ही पीटा जाये जीवन आसान बनाने की कवायद अधूरी ही कही जायेगी। गौरतलब है 5 जुलाई 2019 को बजट पेष करते हुए वित्त मंत्री ने आम लोगों की जिन्दगी आसान करने की बात कही थी जबकि प्रधानमंत्री पुराने भारत से नये भारत की ओर पथ गमन पहले ही कर चुके हैं। इसमें कोई दो राय नहीं कि कोई भी सरकार जनता का वोट लेती है और अवसर आने पर उसी पर चोट भी करती है। बढ़े हुए टैक्स और बढ़ी हुई महंगाई के साथ रोज़गार में घटोत्तरी और जिन्दगी में व्याप्त कठिनाईयां इसके द्योतक होते हैं। बहुधा ऐसा कम ही हुआ है कि किसी योजना का लाभ जिस वर्ग विषेश के लिए है उसे पूरी तरह मिला हो। यदि ऐसा होता तो गरीबीए महंगाई और बेरोज़गारी जैसी समस्याएं अलबत्ता होती मगर खतरे के निषान से ऊपर न होती और यदि होती भी तो जनता सुगमता से स्वयं को सुसज्जित कर लेती। एक ओर हम नवाचार में छलांग लगा रहे हैं दूसरी ओर उक्त बुनियादी समस्याओं से जनता कराह रही है। अन्तर्राश्ट्रीय श्रम संगठन के डाटा बेस पर आधारित सेन्टर फॉर इकोनॉमी डाटा एण्ड एनालाइसिस के मुताबिक 2020 में भारत की बेरोज़गारी दर बढ़ कर 7ण्11 प्रतिषत हो गयी थी जो 2019 के 5ण्27 प्रतिषत से कहीं अधिक है। रिज़र्व बैंक ने रेपो रेट बढ़ा कर ऋण धारकों पर ईएमआई का बढ़ा हुआ एक नया बोझ भी लाद दिया है। दूधए अण्डाए फलए सब्जीए षिक्षाए चिकित्साए बच्चों का पालन.पोशण इत्यादि महंगाई के भंवर में कुलांछे मार रही है। भारत में खुदरा महंगाई की दर तेज हो रही है। भारत का नाम 12 देषों की सूची में महंगाई के मामले में षीर्श पर नजर आ रहा है। जून 2022 में खुदरा महंगाई दर 7 फीसद से अधिक था। भारत सहित दुनिया भर के देषों के केन्द्रीय बैंक महंगाई से निपटने के लिए कदम उठा रहे हैं। अमेरिकाए इंग्लैण्डए ऑस्ट्रेलिया ने ब्याज दरों में वृद्धि कर दी है और यही सिलसिला भारत में भी जारी है। कुल मिलाकर तो यही लगता है कि एक तरफ बुनियादी जरूरतों की लड़ाई है तो दूसरी तरफ बेरोज़गारी और महंगाई के साथ बढ़ते ब्याज की मार ऐसे में सुषासन और सु.जीवन कितना सार्थक है यह समझना कठिन नहीं है।

 दिनांक : 03/10/2022



डॉ0 सुशील कुमार सिंह
निदेशक
वाईएस रिसर्च फाउंडेशन ऑफ पॉलिसी एंड एडमिनिस्ट्रेशन
लेन नं.12, इन्द्रप्रस्थ एन्क्लेव, अपर नत्थनपुर
देहरादून-248005 (उत्तराखण्ड)
मो0: 9456120502
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