Monday, February 7, 2022

खुशहाल खेती को चाहिए स्मार्ट कृषि

स्वतंत्रता के समय से देष की आबादी का पेट भरना बड़ी चुनौती थी। आजादी के डेढ़ दषक बाद हरित क्रांति ने हमें आत्मनिर्भर की ओर ले जाने का काम किया मगर किसानों की हालत समय के साथ उतनी नहीं सुधरी जितना अन्य क्षेत्रों में तरक्की हुई। यह सवाल उठना लाज़मी है कि खुषहाल खेती के लिए क्या किया जाये। कभी विदेष से अन्न मांगने वाले भारत की स्थिति आज कृशि विकास दर बेहतर अवस्था में है। जिसे इस आंकड़े में साफ-साफ देखा जा सकता है। भारत का कृशि एवं सम्बद्ध उत्पादों का निर्यात वर्श 2020-21 में 22.62 प्रतिषत बढ़ा। गैर बासमती चावल का निर्यात 136 प्रतिषत तो गेहूं का 774 फीसद से अधिक बढ़त देखी जा सकती है। दुनिया के कई देष अब भारत के बाजार हुआ करते हैं। अमेरिका, बांग्लादेष, चीन, संयुक्त अरब अमीरात, नेपाल, ईरान, सऊदी अरब, मलेषिया समेत वियतनाम इसमें षामिल हैं। गौरतलब है कि स्वतंत्रता प्राप्ति के पष्चात् 1950-51 में खाद्य उत्पादन 508 लाख टन था और देष की जनसंख्या 36 करोड़ के आसपास थी जिसमें 85 फीसद से अधिक खेती-बाड़ी से जुड़े थे। हरित क्रांति और उसके बाद लगातार उत्पादन को लेकर अन्नदाताओं ने खून-पसीना एक किया और निरंतर हो रही प्रगति से न केवल भारतीयों को पेट भरने के लिए भरपूर अनाज मिला बल्कि दुनिया के बाजार में भी इसकी पहुंच बनी। 2021 में खाद्यान्न उत्पादन तीन हजार लाख टन से अधिक हुआ। इतना ही नहीं भारत दुग्ध उत्पादन के मामले में भी अच्छी स्थिति में नहीं था। आंकड़े इषारा करते हैं कि आजादी के बाद में 170 लाख टन दुग्ध उत्पादन होता था। साल 2020-21 में दुग्ध उत्पादन 1984 लाख टन तक पहुंच चुका है। जाहिर है यह कृशि के क्षेत्र में हुए सामयिक बदलाव का परिणाम ही नहीं किसानों की कृशि के प्रति समर्पण का नतीजा है। 

बीते 1 फरवरी को देष में बजट की प्रस्तुति हुई जिसमें खेती-बाड़ी व कृशि को लेकर भी कई कदम उठाये गये। बजट की बड़ी बातें बताती हैं कि सरकार किसानों के लिए बहुत कुछ करने का इरादा तो जता रही है लेकिन संकुचित विचारधारा से मुक्त नहीं है। कृशि स्मार्ट बने इसके लिए बजट में बड़ी कोषिष है पर जमीन पर इसका उतरना कितना सम्भव होगा यह समय आने पर ही पता चलेगा। मसलन साल 2022 में किसानों की आमदनी दोगुना करने की बीते 5 वर्शों की कोषिष क्या वाकई में हकीकत में बदली है यह एक यक्ष प्रष्न है। जिस हालात में खाद्य उत्पादन में भारत को आत्मनिर्भर बनाने वाले अन्नदाता हैं और तुलनात्मक दुनिया के कई देषों की अपेक्षा कमजोर अर्थव्यवस्था के षिकार हैं उससे स्पश्ट हैं कि सरकार वायदे में खरी नहीं उतरी है। खेती को हाइटेक बनाने का प्रयास हर लिहाज से अच्छा है मगर न्यूनतम समर्थन मूल्य को लेकर एक कानूनी गारण्टी देने के मामले में सरकार यहां फिसड्डी रही। हालांकि न्यूनतम समर्थन मूल्य के 2.37 लाख करोड़ रूपए सीधे किसानों के खाते में भेजने की बात बजट में दिखती है। घरेलू व वैष्विक बाजार की जरूरत वाली खेती को प्रोत्साहन के प्रावधान, जीरो बजट और आॅर्गेनिक फार्मिंग, वेल्यू एडिषन व प्रबंधन की पढ़ाई साथ ही कृशि उत्पादों की आयात निर्भरता घटाने और किसानों की आमदनी बढ़ाने पर बल इस बजट के भीतर का भाव है। गौरतलब है कि 65 फीसद से अधिक की आबादी अभी भी गांव में रहती है और जिसका पूरा आर्थिक ताना-बाना खेती-बाड़ी पर निर्भर है। कोविड के इस काल में तो यह कहीं अधिक सघन हो चला है। इसका मुख्य कारण षहरों से गांवों की ओर लोगों की वापसी है। ग्रामीण अर्थव्यवस्था बिना खुषहाल खेती के बड़ा आकार नहीं ले सकती और ऐसा करने के लिए स्मार्ट कृशि को पूरी तरह विस्तार देना अपरिहार्य है। स्मार्ट कृशि एक कृशि प्रबंधन अवधारणा है जो कृशि उद्योग को उन्नत तकनीक का लाभ उठाने के लिए बुनियादी ढांचा प्रदान करने पर केन्द्रित है। इसके अंतर्गत बड़े डेटा, क्लाउड और इंटरनेट आॅफ थिंग्स जैसी आधुनिक तकनीकों का उपयोग कृशि उत्पाद की ट्रैकिंग, निगरानी, स्वचालन और संचालन का विष्लेशण करने हेतु किया जाता है। फसल जल प्रबंधन, खाद्य उत्पादन और सुरक्षा समेत कृशि क्षेत्र में डिजिटल आधारित व्यवस्था को बढ़ावा देना। 

आधुनिक कृशि की जरूरतों को पूरा करने के लिए राज्यों को कृशि विष्वविद्यालयों के पाठ्यक्रम में संषोधन हेतु प्रोत्साहित करना साथ ही नये कृशि विष्वविद्यालयों के खोलने की बातें खुषहाल खेती के लिए एक आवष्यक पक्ष है। सरकार का यह प्रयास कि नदियों को जोड़ने से पिछड़े इलाकों में सिंचाई आदि की व्यवस्था सुगम होगी यह भी एक सराहनीय कदम तो है। कृशि का टिकाऊ विकास कैसे हो इस पर भी फोकस ठीक-ठाक होना चाहिए। विकसित देषों ने आधुनिक खेती को लाभकारी एवं टिकाऊ बनाने हेतु डिजिटल आधारित स्मार्ट कृशि पर जोर दिया है जो हर लिहाज़ से भारत के लिए भी सुनहरा अवसर है। वैसे देखा जाये तो कृशि क्षेत्र तक सही और समय पर जानकारी प्रदान करने वाले मोबाइल एप्स की संख्या लगातार बढ़ रही है। स्मार्ट कृशि हेतु आज ऐसे मोबाइल एप्लीकेषन्स उपलब्ध हैं जो नवीनतम कृशि जानकारी जैसे कीटों और बीमारियों की पहचान, मौसम के बारे में रियल टाइम डेटा, तूफानों के बारे में पूर्व चेतावनी, स्थानीय बाजार, बीज, उर्वरक आदि की जानकारी किसानों के घर तक आसानी से पहुंचा देते हैं। किसानों के साथ एक बड़ी समस्या उनके उपज की सही कीमत न मिलने की है। न्यूनतम समर्थन मूल्य अर्थात् एमएसपी के मामले में सरकार कभी भी दरियादिली नहीं दिखाई है। केवल 6 प्रतिषत खरीदारी ही समर्थन मूल्य पर देष में होता है और बाकी 94 फीसद की बिकवाली किसान औने-पौने दाम में करने के लिए मजबूर रहते हैं। देष भर का पेट भरने वाले किसान खुद मुफलिसी में जीवन जीने के लिए मजबूर हैं और सरकार भी इस मामले में सिर्फ आंखों में सपने ही भरती रहती है। सरकार ने दो टूक कह दिया है कि एमएसपी जारी रहेगी और लगभग 13 हजार करोड़ टन के गेहूं और चावल की खरीददारी करेगी। बजट की बारीकी तो यह बता रही है कि गेहूं और चावल की खेती वाले किसानों को ही इसका लाभ मिल सकेगा मगर बाकी किसानों के लिए बजट मौन है। गौरतलब है कि राश्ट्रीय खाद्य सुरक्षा कानून के लिए जरूरी 6 करोड़ टन की खरीद करना सरकार की मजबूरी भी होती है। 

प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना 2016 में षुरू हुई थी इस हेतु भी 15 हजार 5 सौ करोड़ आबंटन की बात खुषहाल खेती के लिए अच्छा हो सकता है। मौजूदा वक्त को देखते हुए खेती-किसानी में आधुनिक सोच व तकनीक का पूरा सरोकार निहित होना आवष्यक है। किसान सम्मान निधि, कुसुम योजना, फसल बीमा योजना व पेंषन योजना आदि से भी किसानों को कुछ राहत मिल रही है मगर यह पूरी तरह तभी सम्भव है जब उनकी पैदावार की सही कीमत मिले। देष में कुल समर्थन न्यूनतम मूल्य का सर्वाधिक खरीदारी पंजाब और हरियाणा राज्य से होती है। सरकार को चाहिए कि किसानों को प्राकृतिक और उपजाऊ तथा सस्ती लागत वाली खेती अपनाने के लिए आधुनिक तकनीकों की खरीदारी में सब्सिडी दे और बिकवाली के लिए कीमत के साथ सही बाजार यदि इसका आभाव रहा तो कृशि भले ही स्मार्ट हो जाये मगर खेती खुषहाल नहीं हो पायेगी जिसके असर से किसान आगे भी मुक्त नहीं हो पायेंगे। 

 दिनांक : 3/02/2022


डाॅ0 सुशील कुमार सिंह

(वरिष्ठ  स्तम्भकार एवं प्रशासनिक चिंतक)

निदेशक

वाईएस रिसर्च फाॅउन्डेशन ऑफ  पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन 

लेन नं.12, इन्द्रप्रस्थ एन्क्लेव, अपर नत्थनपुर

देहरादून-248005 (उत्तराखण्ड)

मो0: 9456120502

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