Thursday, February 17, 2022

डिजिटल इण्डिया, ई-लर्निंग और सुशासन

षिक्षा का उद्देष्य उसे अधिक षिश्य केन्द्रित आनंदकारी, प्रयोगात्मक व खोजोन्मुख बनाना होना चाहिए। षायद इसी की खोज हर षिक्षा नीति और हर तरीके के पाठ्यक्रम में कमोबेष होता रहा है। देष में षिक्षा और षिक्षण पद्धति को लेकर एक विचित्र विरोधाभास और दुविधा की स्थिति भी रही है। एक आदर्ष और गुणकारी षिक्षा व्यवस्था में कौन से तत्व षामिल होने चाहिए इसे लेकर आजादी के 75 सालों में कोई एक निष्चित धारणा षायद ही बन पायी हो। नतीजन इस अनिष्चितता का भरपूर दण्ड हर नई पीढ़ी कमोबेष भुगतती है और अब कोविड-19 के इस दौर में बीते दो साल से आॅनलाइन षिक्षा तो मौजूदा पीढ़ी को एक नया सबक सिखा रही है जहां षिक्षा एक नये संघर्श के साथ मानसिक संतुलन भी बरकरार रखने की कवायद लिये रही। मौजूदा वैष्विक महामारी के दौर में संचार, नेतृत्व और नीति-निर्माताओं, प्रषासन व समाज के बीच तालमेल के जरूरी तत्व के रूप में डिजिटल व्यवस्था की केन्द्रीय भूमिका हो गयी है। डिजिटल का यह दायरा कोविड-19 से सम्बंधित योजनाओं के ज्यादा पारदर्षी, सुरक्षित और अंतर प्रचालनीय ढंग से प्रसार हेतु महत्वपूर्ण औजार बनते देखा जा सकता है मगर संदर्भ कुछ इसके उलट भी रहे हैं। देखने को मिला है कि षिक्षा मंत्रालय को अभिभावकों की ओर से थोक में षिकायतें भी मिली जिसमें बच्चों को विद्यालयों की ओर से घण्टों आॅनलाइन पढ़ाया जाना, होमवर्क के अनुपात को भी बरकरार रखना और दिन भर कम्प्यूटर, लैपटाॅप और मोबाइल से बच्चों का चिपके रहना। जाहिर है अनावष्यक व्यस्तता के चलते व्यवहार में बदलाव होना स्वाभाविक था। इससे सीखने की न केवल क्षमता घटी बल्कि चिड़चिड़ापन भी जगह बनाई। हालांकि महामारी के समय षिक्षा को संभालने में ई-लर्निंग एक महत्वपूर्ण विकल्प था। कोरोनाकाल में लगभग पूरी षिक्षा व्यवस्था बेपटरी होने से डिजिटल के माध्यम से बचाये रखना काफी हद तक सम्भव रहा। गौरतलब है कि डिजिटल प्रौद्योगिकियों के उभार ने टीचिंग-लर्निंग विधियों, विष्वविद्यालयी प्रषासन प्रणालियों, उच्च षिक्षा सम्बंधी लक्ष्यों और भविश्य में स्थापित होने वाले विष्वविद्यालयों के संदर्भ में एक नया दृश्टिकोण अपनाने का अवसर भी दिया है। भारत सरकार ने वित्त वर्श 2022-23 के बजट में किसी अवसर को ध्यान में रखते हुए डिजिटल विष्वविद्यालय खोलने का एलान किया है। यह अत्यंत महत्वपूर्ण निर्णय है क्योंकि एक डिजिटल विष्वविद्यालय विविध भाशाओं में उच्च गुणवत्तापूर्ण षिक्षा और घर बैठे पढ़ाई का विकल्प उपलब्ध करायेगा। देखा जाये तो षिक्षा बजट की हालिया स्थिति में बहुत अंतर नहीं है मगर 2020-21 और 2021-22 की तुलना में बजट में थोड़ी बढ़ोत्तरी दिखती है। 

जब भी सुषासन को कड़ीबद्ध करने का प्रयास किया जाता है तो इस बात को सुनिष्चित करना भी षामिल रहता है कि लोक व्यवस्था की भरपाई में कोई कमी न रहे और संवेदनषीलता और सहनषीलता के साथ लोक कल्याण को उस पैमाने पर सुनिष्चित किया जाये जहां से लोक विकास को पूरा अवसर मिलता हो। ई-लर्निंग के माध्यम से क्या सभी को अवसर मिला यह सवाल आज भी कहीं गया नहीं है। इसके अलावा षिक्षा, चिकित्सा, सड़क, बिजली, पानी समेत तमाम बुनियादी विकास व सतत् विकास की धाराओं को भी मनचाहा मुकाम मिले, यह भी सुषासन का ही फलक है। महामारी के चलते सब कुछ सही रहे इसकी कोषिष तो की जा सकती है पर नतीजा मनमाफिक भी मिले हैं इस पर संदेह है। डिजिटल इण्डिया का प्रसार भारत में क्या उस पैमाने पर हुआ है जहां से सुषासन का गुणा-भाग समाप्त होता है। वैसे डिजिटल इण्डिया साल 2015 में प्रकट तो हुआ मगर इसकी बुनियाद दषकों पुरानी है। दरअसल इसकी नींच तब पड़ी जब भारत सरकार ने 1970 में इलेक्ट्राॅनिक विभाग और 1977 में राश्ट्रीय सूचना केन्द्र का गठन किया। 1991 के उदारीकरण से देष एक नई धारा को ग्रहण कर रहा था जिसमें इलेक्ट्राॅनिक विन्यास भी इसका एक हिस्सा था। ई-क्रान्ति भले ही देर में आयी मगर ई का प्रसार दषकों पुराना है। साल 2006 में राश्ट्रीय ई-गवर्नेंस योजना के प्रकटीकरण ने दक्षता, पारदर्षिता और जवाबदेही को सुनिष्चित कर दिया। ई-षिक्षा इसी की एक कड़ी है जो कोरोना काल में आसमान छूने के लिए बेताब रही मगर छलांग पूरी न पड़ी। गौरतलब है कि डिजिटलीकरण ई-लर्निंग का भी एक बहुत बड़ा औजार है। ई-गवर्नेंस मौजूदा समय में एक नई करवट ले रहा है और विकास की जमीन अब डिजिटलीकरण से युक्त है मगर 136 करोड़ जनसंख्या वाले भारत में इंटरनेट कनेक्टिविटी उस औसत में अभी भी नहीं है कि ई-लर्निंग के माध्यम से षिक्षा को पूरा मुकाम दिया जाये।

नेषनल सेम्पल सर्वे से पता चलता है कि साल 2017-18 करीब 42 फीसद षहरी और 15 प्रतिषत ग्रामीण परिवारों के पास ही इंटरनेट की सुविधा थी और मौजूदा समय में षहरी आबादी में 67 फीसद और ग्रामीण में महज 31 फीसद तक इंटरनेट की पहुंच है। इंटरनेट एण्ड मोबाइल एसोसिएषन आॅफ इण्डिया के मुताबिक 2020 तक देष में इंटरनेट उपभोक्ताओं की संख्या करीब 63 करोड़ थी। हालांकि 2025 तक यह 90 करोड़ के आंकड़े को छुएगा। इतना ही नहीं भारत इंटरनेट की सुस्त रफ्तार की समस्या से भी परेषान है इस मामले में भारत 134 देषों की सूची में 129वें स्थान पर है जो पड़ोसी पाकिस्तान, श्रीलंका से भी पीछे है। कोरोना काल में इस मामले में भी सुधार तेजी से होता दिखाई देता है। मगर देष की ढ़ाई लाख पंचायतें और साढ़े छः लाख गांवों में षत् प्रतिषत इंटरनेट कनेक्टिविटी कब पूरी होगी इसका कोई अंदाजा नहीं है। हालांकि सरकारी नीतियों और बयानबाजियों में इसका कोई अच्छा उत्तर मिल जायेगा। उक्त से स्पश्ट है कि विद्यार्थियों की एक बड़ी संख्या ई-लर्निंग से वंचित थी। पड़ताल यह बताती है कि देष में सभी किस्म के मसलन सेन्ट्रल, डीम्ड, स्टेट व प्राइवेट समेत हजार से अधिक विष्वविद्यालय हैं। इसके अलावा 40 हजार से अधिक महाविद्यालय भी हैं जहां से लगभग 4 करोड़ स्नातक की डिग्री हर साल पाते हैं। हालिया स्थिति को देखते हुए इंटरनेट षिक्षा यानी ई-लर्निंग के लाभ और कारोबार को भी समझा जा सकता है। मगर यह सभी तक तभी पहुंच बना पायेगा जब इंटरनेट और बिजली से भारत का कोना-कोना युक्त होगा। अमेरिका में डेढ़ दषक पहले साल 2006 में ई-षिक्षा का तेजी से प्रसार हुआ और 2014 आते-आते यहां उच्च षिक्षा ई-षिक्षा के रूप में बड़े पैमाने पर विकसित हुई। भारत में हर चैथा व्यक्ति अषिक्षित और यही औसत गरीबी रेखा के नीचे का भी है। जाहिर है ई-षिक्षा भले ही मौजूदा दौर की सबसे बड़ी आवष्यकता हो मगर अभी भी सभी में पहुंचाने की चुनौती है। डिजिटल षिक्षा की सबसे खास बात यह है कि इसमें घर ही विद्यालय और विष्वविद्यालय होता है। परम्परागत षिक्षा व्यवस्था की तुलना में डिजिटल व्यवस्था बहुत ही सस्ती है। कागज का इस्तेमाल कम होता है मगर लगातार मोबाइल या कम्प्यूटर की स्क्रीन को झांकते रहना सेहत की दृश्टि से दुश्प्रभाव वाला भी है। 

गौरतलब है कि इसी डिजिटलीकरण के चलते ज्ञान के आदान-प्रदान सहयोगात्मक अनुसंधान को बढ़ावा देना, नागरिकों को पारदर्षी दिषा-निर्देष मुहैया कराने का मार्ग भी सहज हुआ है। मौजूदा बजट में बच्चों की पढ़ाई में टीवी चैनलों की संख्या दो सौ करने की बात कही गयी है इसका सीधा लाभ 25 करोड़ स्कूली छात्रों को होगा। बषर्ते मोबाइल, लैपटाॅप या कम्प्यूटर की उपलब्धता के साथ इंटरनेट कनेक्टिविटी और उससे जुड़ने की सक्षमता भी छात्रों के अभिभावकों में सम्भव हो। बढ़ती बेरोज़गारी और घटती कमाई में कई प्रकार की चोट से आम जीवन को प्रभावित किया है। जहां स्वास्थ्य को लेकर चिंता प्राथमिकता में है वहीं ई-लर्निंग एक बड़ी जमात के लिए चिंतन का सबब रही है। डिजिटलीकरण को कितने भी बड़े पैमाने पर व्यापक रूप दे दिया गया है मगर यह अंतिम व्यक्ति तक तभी सम्भव है जब यह कहीं अधिक सुलभ और सस्ता होगा। देखा जाये तो डिजिटल इण्डिया, ई-लर्निंग के लिए करीब चार सौ करोड़ रूपए खर्च किये जायेंगे। षिक्षा के मापदण्डों पर कई तकनीक आजमाये जा रहे हैं और जिस तरह बीते दो वर्शों में षिक्षा एक बड़े संघर्श से जूझ रही है उससे यह स्पश्ट हो चला है कि डिजिटल छलांग मौजूदा समय की आवष्यकता है। सुषासन की पराकाश्ठा भी यही कहती है कि जो जनता को चाहिए उसे उपलब्ध कराने में षासन को न देर करनी चाहिए और न ही कोई मजबूरी जतानी चाहिए। आॅनलाइन षिक्षा की सबसे खास बात यह हुई है कि यह समय की बाध्यता से कहीं अधिक ऊपर है। लेक्चर को सुविधा के अनुरूप किसी और समय में भी देखा जा सकता है मगर संवाद के अवसर इसमें सीमित हैं और काफी हद तक अनुषासन में रहने की जिम्मेदारी पढ़ने वालों पर है। 

डिजिटल एजुकेषन फाॅर आॅल के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए सबसे बुनियादी षर्त यह है कि डिजिटल एजुकेषन से जुड़ी आधारभूत संरचना का विकास तो किया ही जाये साथ ही डिजिटल साक्षरता की दिषा में कदम तेजी से उठाने की भी जरूरत है। ई-षिक्षा, इलेक्ट्राॅनिक और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय द्वारा षैक्षणिक उपकरणों और संचार माध्यमों का उपयोग करते हुए षिक्षा प्रदान करने के प्रमुख क्षेत्रों में से एक है। बावजूद इसके अभी भारत में ई-षिक्षा अपनी षैष्वावस्था में है। ई-षिक्षा को बढ़ावा देने के लिए सरकार ने विभिन्न ई-लर्निंग कार्यक्रमों का समर्थन किया है। वैसे देखा जाये तो ई-षिक्षा को दो श्रेणियों में विभाजित किया जा सकता है। एक है सिंक्रोनस षैक्षिक व्यवस्था जिसका तात्पर्य है एक ही समय में विद्यार्थी और षिक्षा अलग-अलग स्थानों से एक-दूसरे से षैक्षणिक संवाद करते हैं। इसमें आॅडियो और वीडियो कांफ्रेंसिंग, लाइव चैट और वर्चुअल क्लासरूम षामिल हैं जबकि दूसरी श्रेणी असिंक्रोनस षैक्षणिक व्यवस्था में विद्यार्थी और षिक्षक के बीच संवाद करने का कोई विकल्प नहीं है। इसमें वेब आधारित अध्ययन जिसमें विद्यार्थी किसी आॅनलाइन कोर्स, ब्लाॅग, वेबसाइट, वीडियो, ट्युटोरिअल्स, ई-बुक इत्यादि की मदद से षिक्षा प्राप्त करते हैं। ई-लर्निंग का माध्यम कुछ भी हो लेकिन इसे फलक पर तभी पूरी तरह से लाया जा सकता है जब इस पर आने वाले खर्च को उठाना सहज हो। इंटरनेट कनेक्टिविटी ही नहीं बल्कि समुचित सिग्नल की व्यवस्था हो। दो टूक यह भी है कि ई-लर्निंग भले ही तमाम फायदों से युक्त हो मगर सेहत की दृश्टि से इसकी सीमा रहेगी। इतना ही नहीं कक्षा कार्यक्रम के अंतर्गत किये जाने वाले अध्ययन में जिस प्रकार का व्यक्तित्व विकास सम्भव होता है उसकी भी घोर कमी यहां रहेगी। भाशण, नृत्य, खेलकूद, लेखन  कला, आमने-सामने का संवाद आदि की समस्या से भी यह परे नहीं है। 

दिनांक : 14/02/2022


डाॅ0 सुशील कुमार सिंह

(वरिष्ठ  स्तम्भकार एवं प्रशासनिक चिंतक)

निदेशक

वाईएस रिसर्च फाॅउन्डेशन ऑफ  पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन 

लेन नं.12, इन्द्रप्रस्थ एन्क्लेव, अपर नत्थनपुर

देहरादून-248005 (उत्तराखण्ड)

मो0: 9456120502

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