Monday, March 22, 2021

वैश्विक फलक पर क्वाड का उभरना

विदेष नीति एक निरंतरषील प्रक्रिया है और प्रगतिषील भी जहां विभिन्न कारक भिन्न-भिन्न स्थितियों में अलग-अलग प्रकार से देष दुनिया को प्रभावित करते रहते हैं। इसी को ध्यान में रखकर नये मंच की न केवल खोज होती है बल्कि व्याप्त समस्याओं से निपटने के लिए एकजुटता को भी ऊँचाई देनी होती है। क्वाॅड का इन दिनों वैष्विक फलक पर उभरना इस बात को पुख्ता करता है। क्वाॅड का मतलब क्वाड्रीलेटरल सिक्योरिटी डायलाॅग जो भारत समेत जापान, आॅस्ट्रेलिया और अमेरिका समेत एक चतुश्कोणीय एवं बहुपक्षीय समझौता है। इसके मूल स्वभाव में इंडो-पेसिफिक स्तर पर काम करना ताकि समुद्री रास्तों में होने वाले व्यापार को आसान किया जा सके मगर एक सच यह भी है कि अब यह व्यापार के साथ-साथ सैनिक बेस को मजबूती देने की ओर भी है। ऐसा इसलिए ताकि षक्ति संतुलन को कायम किया जा सके। फिलहाल 12 मार्च 2021 को क्वाॅड देषों की वर्चुअल बैठक हो चुकी है। जिसमें जलवायु परिवर्तन और काविड-19 जैसे मुद्दे के अलावा आतंकवाद, साइबर सुरक्षा समेत सामरिक सम्बंध का इनपुट भी इसमें देखा जा सकता है। हालांकि चारों देषों की अपनी प्राथमिकताएं हैं और आपसी सहयोग की सीमाएं भी। राजनयिकों की दुनिया में यह सम्मेलन एक परिघटना के रूप में दर्ज हो गयी है। गौरतलब है कि क्वाॅड हिन्द प्रषान्त क्षेत्र में सहयोग बढ़ाने को तैयार है। यह चीन के लिए खासा परेषानी का विशय है। हालांकि परेषानी तो रूस को भी है। गौरतलब है क्वाॅड कोई सैन्य संधि नहीं है बल्कि षक्ति संतुलन है। 

भारतीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, अमेरिकी राश्ट्रपति जो बाइडेन, जापानी प्रधानमंत्री योषीहीदे सुगा समेत आॅस्ट्रेलियाई प्रधानमंत्री स्काॅट माॅरिसन वर्चुअल बैठक में साथ थे। सभी षीर्श नेता कोरोना वैक्सीन के हिन्द प्रषान्त क्षेत्र में उत्पादन और वितरण में सहयोग करने को सहमत हुए हैं। इसके अलावा अगले साल तक चारों देष कोरोना वैक्सीन की एक अरब डोज तैयार पर भी सहमत हुए हैं। क्वाॅड के प्लेटफाॅर्म पर इन चारों देषों के नेताओं का एकमंचीय (वर्चुअल) होना स्वयं में एक ऐतिहासिक संदर्भ है और भविश्य में इसकी प्रभावषीलता व्यापक पैमाने पर उजागर होगी। भारत के क्वाॅड में होने से जहां पड़ोसी चीन की मुष्किलें बढ़ी हैं वहीं रूस भी थोड़ा असहज महसूस कर रहा है पर दिलचस्प यह है कि ब्रिक्स में भारत इन्हीं के साथ एक मंचीय भी होता है। गौरतलब है कि ब्रिक्स 5 देषों का समूह है जिसमें भारत के अलावा रूस, चीन, ब्राजील और साउथ अफ्रीका षामिल है जिन्हें विकसित और विकासषील देषों के पुल के तौर पर देखा जा सकता है। रूस भारत का नैसर्गिक मित्र है और चीन नैसर्गिक दुष्मन। जाहिर है क्वाॅड चीन के विरूद्ध एक गोलाबंदी है ऐसे में हिन्द प्रषान्त क्षेत्र में भारत की भूमिका बढ़ेगी और जिस मनसूबे के साथ ये सभी देष आगे बढ़ने का इरादा रखते हैं उसमें चीन को संतुलित करने में भी यह काम भी आयेगा मगर भारत के सामने रूस को साधने की भी चुनौती कमोबेष रहेगी। हालांकि रूस यह जानता है कि भारत कूटनीतिक तौर पर एक खुली नीति रखता है वह दुनिया के तमाम देषों के साथ बेहतर सम्बंध का हिमायती रहा है। भारत पाकिस्तान और चीन से भी अच्छे सम्बंध चाहता है। वह जितना अमेरिका से सम्बंध बनाये रखने का इरादा दिखाता है उससे कहीं अधिक वह रूस के साथ नाता जोड़े हुए है। इसके अलावा सार्क, आसियान, एपेक व पष्चिम के देष समेत अफ्रीकन और लैटिन अमेरिका के देषों के साथ उसके रिष्ते कहीं अधिक मधुर हैं। कोरोना काल में भारत ने दुनिया को पहले दवाई बांटी अब टीका बांट रहा है और टीका पहल के साथ क्वाॅड अन्य मुद्दों की ओर बेहतर मोड़ पर है। 

चीन की चिंता का नया आसमान क्वाॅड

चीन द्वारा क्वाॅड समूह को दक्षिण एषिया के नाटो के रूप में सम्बोधित किया जाना उसकी चिंता का अंदाजा लगाया जा सकता है। उसका आरोप है कि उसे घेरने के लिए यह एक चतुश्पक्षीय सैन्य गठबंधन है जो क्षेत्र की स्थिरता के लिए एक चुनौती उत्पन्न कर सकता है। गौरतलब है कि चीन क्वाॅड के षीर्श नेतृत्व की बैठक और व्यापक सहयोग को लेकर बन रही समझ से कहीं अधिक चिंतित है। हालांकि इसकी जड़ में चीन ही है। दरअसल क्वाॅड समूह का प्रस्ताव सबसे पहले साल 2007 में जापान के तत्कालीन प्रधानमंत्री षिंजो आबे ने पहली बार रखा जिसे लेकर भारत, अमेरिका और आॅस्ट्रेलिया ने समर्थन किया। दरअसल उस दौरान दक्षिण चीन सागर में चीन ने अपना प्रभुत्व दिखाना षुरू किया। दुनिया के नियमों को ताख पर रख कर चीन इस सागर पर अपनी मर्जी चलाने लगा। गौरतलब है कि भारत, जापान और आॅस्ट्रेलिया का समुद्रिक व्यापार इसी रास्ते से होता है। इतना ही नहीं यहां से प्रतिवर्श 5 लाख ट्रिलियन डाॅलर का व्यापार होता है। हालांकि इस दौरान क्वाॅड का रवैया आक्रामक नहीं था। साल 2017 में इसे पुर्नगठित किया गया। कोरोना के चलते 2020 में नेताओं की मुलाकात बाधित हुई। 12 मार्च 2021 को वर्चुअल षिखर सम्मेलन का आयोजन किया गया। चीन की चिंता यह भी है कि क्वाॅड एक नियमित सम्मेलन स्तर का मंच बनने जा रहा है। जैसा कि चारों षीर्श नेतृत्व आपसी सहयोग को विस्तार देने में सहमत हैं। चीन जिस तर्ज पर हिन्द महासागर में एकाधिकार जमाने का प्रयास करता रहा है इससे भी दुनिया अनभिज्ञ नहीं है और दक्षिण चीन सागर को तो वह अपनी बपौती मानता है। आसियान के देष भी दबी जुबान चीन का विरोध करते हैं पर खुलकर सामने नहीं आ पाते। दक्षिण कोरिया भी दक्षिण चीन सागर में चीन की दादागिरी से काफी खफा रहा है हालांकि चीन से कोई खुष नहीं है। अमेरिका के साथ ट्रेड वाॅर का सिलसिला अभी थमा नहीं है और कोरोना काल में भारत के साथ वह लद्दाख की सीमा पर पूरी ताकत दिखा चुका है और अन्ततः उसे ही पीछे हटना पड़ा। इसके अलावा दर्जनों देष उसकी विस्तारवादी नीति से खासे परेषान हैं। इतना ही नहीं कोरोना वायरस के चलते भी चीन दुनिया के तमाम देषों के निषाने पर रहा है। ऐसे में क्वाॅड का फलक पर आना चीन की चिंता को नया आसमान देने जैसा है। जाहिर है क्वाॅड के चलते एक ओर भारत जहां हिन्द महासागर में उसके एकाधिकार को कमजोर कर सकता है वहीं दूसरी ओर हिन्द प्रषान्त क्षेत्र में भूमिका बढ़ा सकता है। यही चीन की बौखलाहट का प्रमुख कारण है। 

क्वाॅड और रूस

रूस की दृश्टि में भारत का इस समूह में षामिल होना अनैतिक है। दरअसल रूस को लगता है कि आगे चलकर क्वाॅड रूस के लिए भी हिन्द प्रषान्त क्षेत्र में खतरा साबित हो सकता है। गौरतलब है कि अमेरिका और रूस एक-दूसरे के धुर-विरोधी हैं। चूंकि क्वाॅड पर नियंत्रण अमेरिका का भी रहेगा और समय के साथ उसका प्रभुत्व बढ़ भी सकता है। ऐसे में भारत यदि रूस विपरीत खेमे का हिस्सा बनता है तो इण्डो-पेसिफिक में जो रूसी फ्लीट है उसके लिए भी खतरा हो सकता है। हालांकि यहां रूस की षंका वाजिब नहीं है क्योंकि भारत कभी भी रूस विरोधी गतिविधि में षामिल होने को सोच भी नहीं सकता। दरअसल क्वाॅड केवल चीन को ध्यान में रखकर बनाया गया एक औपचारिक संगठन है और षायद भारत इसके अलावा कोई और रूप में क्वाॅड को देखता भी नहीं है पर षंका समाप्त करने के लिए इस मामले में भारत को रूस से खुलकर बात करनी चाहिए और संदेह समाप्त करने में देरी भी नहीं करनी चाहिए। दुनिया में सम्बंध कूटनीतिक फलक पर कब गुटों में बंट जाते हैं यह हैरत भरी बात नहीं है। द्वितीय विष्वयुद्ध के बाद 20वीं सदी किस दौर से गुजरी है इससे सभी वाकिफ हैं और भारत और रूस का सम्बंध किस पैमाने पर है इससे भी अमेरिका समेत तमाम देष अनभिज्ञ नहीं हैं। खास यह है कि भारत अमेरिका से नज़दीकी बढ़ाने के बावजूद रूस से सम्बंधों के मामले में रत्ती भर फर्क नहीं आने दिया। हालांकि रूस पर यह भी आरोप है कि भारत की विदेष नीति को वह डिक्टेट करने की कोषिष तो नहीं कर रहा। फिलहाल यह पड़ताल का विशय है पर दो टूक यह है कि भारत को यह लगता रहा है कि चीन रूस की बात सुन लेगा। तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के कार्यकाल में एक ऐसा समय आया था जब चीन और भारत के बीच तनाव में रूस ने ऐसी भूमिका निभाई थी। प्रधानंमत्री नरेन्द्र मोदी जब वुहान गये थे उस वक्त भी दोनों देषों के बीच सीमा पर तनाव था रूस ने उस दौरे में भी अहम भूमिका निभाई थी। रूस जानता है कि भारत उसके लिए कितना जरूरी है और भारत भी यह समझने में भूल नहीं करता कि उसे रूस की कितनी आवष्यकता है। 

क्वाॅड के विस्तार की सम्भावना

फिलहाल क्वाॅड के मंच में नये देषों को षामिल कर विस्तार की सम्भावना नहीं है बावजूद इसके हिन्द प्रषान्त क्षेत्र में साझा हितों के मुद्दे पर जर्मनी और फ्रांस जैसे देषों का सहयोग भी क्वाॅड के साथ भविश्य में जुड़ सकते हैं। क्वाॅड के नेताओं की अभी आमने-सामने कोई बातचीत नहीं हुई है पर उम्मीद की जा रही है कि आगामी 11 से 13 जून को ब्रिटेन में जी-7 की प्रस्तावित बैठक के दौरान मुलाकात हो सकती है। हालांकि अमेरिका इस मामले में पहली बैठक की मेजबानी की इच्छा जता चुका है। जाहिर है जिस तर्ज पर क्वाॅड एक अच्छी समझ को लेकर चला है उसे देखते हुए इसके विस्तार की सम्भावना से इंकार नहीं किया जा सकता। फिलहाल स्वास्थ का समावेषी दृश्टिकोण और आतंकवाद और साइबर आतंकवाद समेत सामरिक सम्बंध क्वाॅड का हिस्सा हैं और दुनिया तो इन दिनों कोरोना से त्रस्त है। ऐसे में क्वाॅड की प्रासंगिकता और उपादेयता पहले इसी से देखा जा सकता है। 

हिन्द प्रषान्त में भारत की भूमिका

भारत दक्षिण एषिया में एक बड़ा बाजार होने के साथ बीते कुछ वर्शों में स्वास्थ, रक्षा और प्रौद्योगिकी जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्रों में एक बड़ी षक्ति बनकर उभरा है। अमेरिका क्वाॅड की सम्भावनाओं को रक्षा सहयोग से आगे भी देख रहा है। फाइव आइज़ नामक सूचना गठबंधन में भारत को षामिल करने के प्रस्ताव इसका एक उदाहरण हैं। भारत का जोर अपनी निर्भरता को चीन से घटाकर जापान और आॅस्ट्रेलिया के साथ मजबूत आपूर्ति श्रृंखला बनाने पर है। चीन और पाकिस्तान से सीमा विवादों की अनिष्चितता के विपरीत हिन्द महासागर में क्वाॅड देषों के साथ एक नई व्यवस्था स्थापित करने का इरादा भी भारत रखता है और ऐसा हो भी सकता है। गौरतलब है कि वैष्विक व्यापार के हिसाब से हिन्द महासागर का समुद्री मार्ग चीन के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। ऐसे में भारत को यहां रणनीतिक बढ़त मिल सकता है। गौरतलब है विगत् वर्शों में हिन्द प्रषान्त के संदर्भ में विष्व के अनेक देषों की सक्रियता बढ़ी। फ्रांस और जर्मनी आदि देषों ने तो अपनी हिन्द प्रषान्त रणनीति भी जारी की है। भारत के हिन्द प्रषान्त में पहुंच कईयों को और भी लाभ दे सकती है मसलन आपदा प्रबंधन, समुद्री निगरानी और मानवीय सहायता इसमें प्रमुख हैं। इस क्षेत्र में भारत की कई अन्य देषों के साथ मजबूत साझेदारी है ऐसे में समान विचारधारा वाले अन्य देषों को इस समूह में षामिल करने की पहल हो सकती है। वर्तमान वैष्विक व्यवस्था यह इषारा कर रही है कि दुनिया में ताकत किसी की कितनी भी बढ़ जाये अकेले उपयोग में नहीं आयेगी। वैष्विक व्यवस्था में बदलाव के लिए उठी अब मांग सिर्फ रक्षा क्षेत्र के लिए ही नहीं है। कोरोना संकट ने इस बात को पुख्ता किया है कि भारत की दुनिया के लिए दी गयी मानवीय सहायता मसलन पहले दवाई बाद में वैक्सीन और कोरोना से निपटने के उपाय कहीं अधिक प्रभावी हैं। क्वाॅड में भारत की वैक्सीन को लेकर भूमिका कहीं अधिक मूल्यवान सिद्ध होने वाली है साथ ही आतंकी मसलों में भी भारत सबसे अधिक पीड़ा भोगा है और इसे लेकर दुनिया को जगाया भी है। क्वाॅड देषों को क्षेत्र की षान्ति और स्थिरता के संदर्भ में भी समूह के दृश्टिकोण को बेहतर रूप देने में भारत आम भूमिका निभा सकता है। 


डाॅ0 सुशील कुमार सिंह

निदेशक

वाईएस रिसर्च फाॅउन्डेशन ऑफ़ पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन 

लेन नं.12, इन्द्रप्रस्थ एन्क्लेव, अपर नत्थनपुर

देहरादून-248005 (उत्तराखण्ड)

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