Thursday, March 25, 2021

समाज का अनुशासन कानून और सुशासन

कानून सामाजिक परिवर्तन का सषक्त माध्यम है और सुषासन का अनुबंध लोक सषक्तिकरण से है और जब दोनों का समन्वय हासिल होता है तो समाज ही नहीं देष अनुषासन के साथ विकास के आसमान पर होता है। षान्ति व्यवस्था, न्याय और समानता की स्थापना कानून से तो खुषियां सुषासन से जुड़ी हैं। निहित परिप्रेक्ष्य यह भी है कि विकास का प्रषासन प्राप्त करने के लिए एक मजबूत अनुषासन, खुलापन, संवेदनषीलता और लोक कल्याण को कोर में रखना होता है। कानूनों, नियमों और विनियमों की षासन प्रणाली में महत्वपूर्ण भूमिका होती है। काूनन का षासन षासन, प्रषासन और विकास के बीच एक ऐसा सम्बंध रखता है जिससे लोक व्यवस्था व लोक कल्याण को बढ़ावा देना आसान हो जाता है जबकि सुषासन षासन को अधिक खुला, पारदर्षी तथा उत्तरदायी बनाता है। इसमें कोई संदेह नहीं कि सुषासन की अवधारणा जीवन, स्वतंत्रता एवं खुषी प्राप्त करने के लोगों के अधिकार से जुड़ी हुई है। किसी भी लोकतंत्र में ये तभी पूरा हो सकता है जब वहां कानून का षासन हो। कानून का षासन की अभिव्यक्ति इस मुहावरे से होती है कि कोई व्यक्ति कानून से बड़ा नहीं है। संवैधानिक प्रणाली में हर व्यक्ति को कानून के सामने समानता एवं संरक्षण का अधिकार प्राप्त है। लोकतंत्र और कानून का षासन पर्याय के रूप में देखा जा सकता है मगर जब राजनीतिक महत्वाकांक्षा के चलते सत्ताधारी लकीर से हटते हैं तो न केवल लोकतंत्र घाटे में जाता है बल्कि कानून का षासन भी सवालों से घिर जाता है। गौरतलब है कि षान्ति व्यवस्था और अच्छी सरकार एक-दूसरे के पर्यायवाची हैं और ये कनाडाई माॅडल हैं। भारत में कानून व्यवस्था की जिम्मेदारी राज्यों को दी गयी है ऐसे में राज्य षान्ति व्यवस्था कायम करके अच्छी सरकार अर्थात् सुषासन को अपने पक्ष में कर सकते हैं। संघीय ढांचे के भीतर भारतीय संविधान में कार्यों का ताना-बाना भी बाकायदा देखा जा सकता है। जब सब कुछ में कानून का षासन होता है तब न केवल संविधान की सर्वोच्चता कायम होती है बल्कि नागरिक भी मन-माफिक विकास हासिल करता है। 

स्पश्ट है संविधान एक ऐसा तार्किक और कानूनी संविदा है जो सभी के लिए लक्ष्मण रेखा है। कानून का षासन और सुषासन एक-दूसरे को न केवल प्रतिश्ठित करते हैं बल्कि जन कल्याण और ठोस नीतियों के चलते प्रासंगिकता को भी उपजाऊ बनाये रखते हैं। देखा जाय तो कानून स्वायत्त नहीं है यह समाज में गहन रूप से सन्निहित है। यह समाज के मूल्यों को प्रतिबिंबित करता है। समाज कानून को प्रभावित करता है और उससे प्रभावित भी होता है। कानून का षासन नियंत्रण और पर्यवेक्षण से मुक्त नहीं होता। यह परिवर्तन का सषक्त माध्यम है जिसके चलते न्याय सुनिष्चित करना, षान्ति स्थापित करना तथा सामाजिक-आर्थिक विकास को सुनिष्चित करना सम्भव होता है। सुषासन का अपरिहार्य उद्देष्य सामाजिक अवसरों का विस्तार और गरीबी उन्मूलन देख सकते हैं। इसे लोक विकास की कुंजी भी कहना अतिष्योक्ति न होगा। मानवाधिकार, सहभागी विकास और लोकतांत्रिकरण का महत्व सुषासन की सीमाओं में आते हैं। गौरतलब है कि 1991 में उदारीकरण के बाद जो आर्थिक मापदण्ड विकसित किये गये वे मौजूदा समय के अपरिहार्य सत्य हैं। कानून का षासन अच्छे और नैतिक षासन की अनिवार्य आवष्यकताओं में एक है जो सुषासन के बगैर हो ही नहीं सकता। भारतीय संविधान देष का सर्वोच्च कानून है और सभी सरकारी कार्यवाहियों के ऊपर है। यह कल्याणकारी राज्य और नैतिक षासन की परिकल्पना से भरा है और ऐसी ही परिकल्पनाएं जब जन सरोकारों से युक्त समावेषी विकास की ओर झुकी होती हैं जिसमें षिक्षा, चिकित्सा, रोजगार व गरीबी उन्मूलन से लेकर लोक कल्याण के सारे रास्ते खुले हों वह सुषासन की परिकल्पना बन जाती है। 

इस परिदृष्य में एक आवष्यक उप सिद्धांत न्यायिक सक्रियतावाद भी है जो कार्यपालिका की उदासीनता के खिलाफ उच्च न्यायालय तथा सर्वोच्च न्यायालय में अनेक जनहित याचिका के रूप में देखी जा सकती है। इसका एक उदाहरण है तो बहुत पुराना मगर आज भी प्रासंगिक है। सर्वोच्च न्यायालय ने साल 2007 के एक मामले में न्यायिक सक्रियतावाद के खिलाफ चेतावनी दी है और कार्यपालिका को बेबाक संदेष दिया कि वे आत्म नियंत्रण से काम लें। आत्मनियंत्रण के चलते कानून का षासन और उससे जुड़ी सुषासन का उद्देष्य दक्षता और सक्षमता से पूरा किया जा सकता है। सरकार एक सेवा प्रदायक इकाई है सच यह है कि भारत सरकार और राज्य सरकारें स्वास्थ एवं षिक्षा की दिषा में बरसों से कदम उठाती रही हैं मगर यह चिंता रही है कि आखिरकार यह किसके पास पहुंच रही है। इसकी गहनता से जांच करने पर यह तथ्य सामने आया कि इसका लाभ गैर गरीब तबके के लोग उठा रहे हैं। ऐसा न हो इसके लिए सरकार और प्रषासन को न केवल चैकन्ना रहना है बल्कि नागरिक भी इस मामले में जागरूक हों कि उनका हिस्सा कोई और तो नहीं मार रहा। भारत में लोक सेवा प्रदायन को बेहतर बनाने की दिषा में कानून का षासन अपने-आप में एक बड़ी व्यवस्था है। इस सेवा के लिए जिन तीन संस्थाओं ने उल्लेखनीय भूमिका निभाई है उनमें एक न्यायपालिका, दूसरा मीडिया और तीसरा नागरिक समाज रहा है। मौजूदा समय में भी इन तीनों इकाईयों की भूमिका कानून के षासन सहित सुषासन को सुनिष्चित कराने में बड़े पैमाने पर देखा जा सकता है। हालांकि मीडिया और नागरिक समाज न्यायपालिका की तर्ज पर न अधिकार रखता है और न ही उसकी कोई ऐसी बहुत बड़ी अनिवार्यता है मगर संविधान से मिले अधिकारों का प्रयोग कमोबेष करता रहा है। 

राजनीतिक, प्रषासनिक प्रणाली के कार्य को समझने के लिए व्यक्तिक और सामाजिक समझ भी मजबूत होनी चाहिए। लोकतंत्र में जनता जितनी जागरूक होगी उतने ही व्यापक पैमाने पर हितकारी पक्षों पर बल मिलेगा। जहां षान्ति और खुषियां व्यापक पैमाने पर बिखरी हों वहां अनुषासन स्वयं स्थान घेरता है जो कानून का षासन और सुषासन का सकारात्मक अभिप्राय लिए होता है। किसी भी देष में कानूनी ढांचा आर्थिक विकास के लिए जितना महत्वपूर्ण होता है उतना ही महत्वपूर्ण राजनीतिक और सामाजिक विकास के लिए भी होता है। ऐसा इसलिए ताकि सामाजिक-आर्थिक उन्नयन में सरकारें खुली किताब की तरह रहें और देष की जनता को दिल खोलकर विकास दें। इसमें कोई दुविधा नहीं कि सुषासन सरकार की बड़ी जिम्मेदारी है और कानून का षासन उससे भी बड़ी जिम्मेदारी है। भारत के परिप्रेक्ष्य में सुषासन और इसके समक्ष खड़ी चुनौतियां दूसरे देषों की तुलना में भिन्न हैं। अषिक्षा का होना, जगारूकता का आभाव, बुनियादी समस्याएं, गरीबी का प्रभाव, भ्रश्टाचार का बरकरार रहना और निजी महत्वाकांक्षा ने सुषासन को उस पैमाने पर पनपने ही नहीं दिया जैसे कि यूरोपीय देषों के नाॅर्वे, फिनलैण्ड आदि देषों में है। दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र और सबसे मजबूत और व्यापक संविधान वाला देष भारत कानून का षासन बनाये रखने में अभी पूरी तरह सफल दिखता नहीं है। इसका प्रमुख कारण नागरिकों का पूरी तरह सक्षम न होना है। नागरिक और षासन का सम्बंध तब सषक्त होता है जब सरकार की नीतियां उसकी आवष्यकताओं को पूरा करने का दम रखती हो। यहीं पर सुषासन भी कायम हो जाता है, षान्ति को भी पूर्ण स्थान मिलता है साथ ही कानून व्यवस्था समेत खुषियां वातावरण में तैरने लगती हैं। 


डाॅ0 सुशील कुमार सिंह

निदेशक

वाईएस रिसर्च फाॅउन्डेशन ऑफ़ पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन 

लेन नं.12, इन्द्रप्रस्थ एन्क्लेव, अपर नत्थनपुर

देहरादून-248005 (उत्तराखण्ड)

मो0: 9456120502

ई-मेल: sushilksingh589@gmail.com

No comments:

Post a Comment