गौरतलब है कि कोरोना महामारी ने दुनिया के कई देषों की अर्थव्यवस्था को न केवल प्रभावित किया बल्कि वित्तीय संकट भी चैतरफा पैदा कर दिया। गौरतलब है कि साल 1990 में मध्यम वर्ग की आबादी में पहली बार गिरावट दर्ज की गयी थी और गिरावट का मुख्य कारण चीन के वुहान से चला कोरोना वायरस है। 2020 सभी के लिए जीवन की एक परीक्षा थी। कुछ उत्तीर्ण हुए तो कुछ फेल हो गये पर कोरोना अभी भी बादस्तूर बरकरार है। धीमा पड़ चुका कोरोना जिस गति से पैर पसार रहा है मानो एक नये खतरे के लिए स्वयं को प्रेरित किये हुए है। देष के कई प्रदेष चाहे जनता की लापरवाही के कारण या फिर सरकार की ठोस नीतियों में कमी के चलते इसकी चपेट में तो आ गये हैं। खास यह भी है कि कोरोना जहां मुसीबत को अंजाम दिये हुए था वहीं चुनाव का दौर भी कुछ हद तक इसमें मदद कर रहा था। अब कोरोना फिर सिर उठा चुका है और अब सरकारी अमला एक बार फिर इससे निपटने के लिए कमर कस रहा है। सवाल है कि जब कोरोना गया ही नहीं तो वापसी कैसी और बिना उन्मूलन के ढ़िलाई क्यों। हालांकि प्रधानमंत्री जोरों पर चल रहे टीकाकरण के बीच मुंह पर मास्क और दो गज की दूरी की बात करते रहे पर चुनावी जंग में ये दोनों कब रौंद दिये गये षायद उन्हें भी एहसास नहीं है। कोरोना सब पर प्रभाव डाला है बस अंतर इतना है कि कुछ ने इसमें अवसर ढूंढ लिया तो कुछ ने अवसर गंवा दिया। पिछले एक वर्श में कोरोना के हाहाकार के बीच देष में मध्यम वर्ग की आबादी में जहां सवा तीन करोड़ लोगों की गिरावट दर्ज की गयी वहीं 55 अरबपति पैदा हुए। अरबपति का होना इस लेख का मर्म नहीं है बल्कि मध्यम वर्ग जिस तरह मुंह के बल गिरा है चिंता उसकी है। आय की कसौटी पर खरा नहीं उतर पाया। काम-धंधे को चैपट होने से रोक नहीं पाया और बरसों की इकट्ठी की गयी साख को समेटे रखने में नाकाम रहा और आखिरकार मध्यम वर्ग के पायदान से फिसर गया। यह केवल कुछ लोगों की असफलता नहीं है बल्कि यह घोर आर्थिक और वित्तीय संकट के साथ सुषासन के लिए भी चुनौती है।
अमेरिकी रिसर्च एजेंसी प्यू रिसर्च सेंटर के आंकड़ों पर विष्वास करें तो कोरोना महामारी के चलते भारत में मध्यम वर्ग खतरे में रहा है। कोरोना काल में आये वित्तीय संकट ने कितनी परेषानी खड़ी की इसका कुछ हिसाब-किताब अब दिखाई देने लगा है। गौरतलब है कि भारत में मिडिल क्लास की पिछले कुछ सालों में बढ़ोत्तरी हुई थी मगर कोरोना ने करोड़ों को बेपटरी कर दिया। कोरोना से पहले देष में मध्यम वर्ग की श्रेणी में करीब 10 करोड़ लोग थे अब संख्या घटकर 7 करोड़ से भी कम हो गयी है। गौरतलब है कि जिनकी प्रतिदिन आय 50 डाॅलर या उससे अधिक है अर्थात् मौजूदा समय में भारतीय रूपए में जिसकी आमदनी लगभग 37 सौ या इससे अधिक है वे उच्च श्रेणी में आते हैं जबकि प्रतिदिन 10 डाॅलर से 50 डाॅलर तक की कमाई करने वाला मध्यम वर्ग में आता है। खास यह भी है कि चीन की तुलना में भारत के मध्यम वर्ग में अधिक कमी और गरीबी में भी अधिक वृद्धि होने की सम्भावना देखी जा रही है। साल 2011 से 2019 के बीच करीब 6 करोड़ लोग मध्यम वर्ग की श्रेणी में षामिल हुए थे मगर कोरोना ने एक दषक की इस कूवत को एक साल में ही आधा रौंद दिया। जनवरी 2020 में विष्व बैंक ने भारत और चीन के विकास दर की तुलना की थी जिसमें अनुमान था कि भारत 5.8 फीसद और चीन 5.9 के स्तर पर रहेगा। लेकिन कुछ ही महीने बाद भारत का विकास दर ऋणात्मक स्थिति के साथ भरभरा गया। कोरोना से बचने के लिए देष लम्बे समय तक लाॅकडाउन में रहा सरकार द्वारा मई 2020 में 20 लाख करोड़ रूपए का आर्थिक पैकेज भी आबंटित किया गया मगर भीशण आर्थिक तबाही का सिलसिला थमा नहीं।
काम-धंधे बंद हो गये, कल-कारखानों पर ताले लटक गये और गांव से षहर में रोजी-रोजगार करने वाले सूनी सड़कों पर पैदल ही सैकड़ों किलोमीटर की दूरी नाप दी। यह एक ऐसा वक्त था जब संवेदनाएं और भावनाएं तमाम तरीके से हिलोरे मारने के बावजूद किसी के लिए कुछ भी कर पाना सम्भव न था। सरकार का अपना प्रयास था पर सुषासन का अभाव बरकरार था। हालांकि कुछ गैर-सरकारी संगठन ने बड़ा दिल दिखाने का प्रयास किया था। इतने समय बीतने के बाद अभी भी षहर वो विष्वास हासिल नहीं कर पाये हैं। गांव से रोज़गार की फिराक में षहर की ओर रूख की सम्भावना पर भी कोरोना का बढ़ता ग्राफ लगाम लगा सकता है। हालांकि रोजगार का संकट भी अभी टला नहीं है और न ही यह व्यापक प्राथमिकता में लगता है। सरकार कितनी भी बड़ी बातें करे यहां इन्हें समर्थन नहीं किया जा सकता। गैस की कीमत बढ़ गयी है, पैट्रोल-डीजल रिकाॅर्ड महंगाई को प्राप्त कर चुके हैं और यह सब उन पर गाज गिरा रहा है जो कोरोना की चपेट में आर्थिक दुर्दषा पहले ही करा चुके हैं। 14 करोड़ लोगों का एक साथ बेरोज़गार होना काफी कुछ बयां कर देता है। ऐसे में करोड़ों की तादाद में यदि मध्यम वर्ग सूची से बाहर होता तो कोई ताज्जुब की बात नहीं है। अध्ययन के अनुसार कोरोना महामारी के कारण देष में उच्च आय की श्रेणी के 6 करोड़ से अधिक लोग मध्यम वर्ग की श्रेणी में आ गये। गौरतलब है कि यहां भी कमाई को चोट पहुंची है। प्यू रिसर्च सेंटर का एक अनुमान यह भी है कि प्रतिदिन 2 डाॅलर यानी करीब 150 रूपए या उससे कम कमाने वाले गरीब लोगों की संख्या बढ़कर साढ़े सात करोड़ हो गयी है। जाहिर है कोरोना वायरस के कारण आयी मंदी में देष के विकास को सालों पीछे फेक दिया है और इसकी चपेट में यहां के नागरिक बादस्तूर देखे जा सकते हैं।
फिलहाल कोरोना अच्छाई के लिए नहीं था पर बुराई इतनी बड़ी हो जायेगी इसका अंदाजा भी नहीं था जिस कदर संकट गहराया है ठीक होने में बरसों खपत करने पड़ेंगे। कोरोना अभी भी गया नहीं अर्थात् कहर बरकरार है। हालांकि आयकर व अप्रत्यक्ष कर के माध्यम से वसूली उम्मीद से बेहतर हो गयी है। दिसम्बर 2020 से फरवरी 2021 तक का आंकड़ा यह बताता है कि जीएसटी की वसूली लगातार एक लाख करोड़ रूपए से अधिक की हो रही है जो अपने आप में एक रिकाॅर्ड है। सरकार को चाहिए कि निम्न आय वर्ग के लिए जिस तरह कदम उठाये गये उसी तरह मध्यम वर्ग के लिए भी हो। सीधी राहत न दे सके तो महंगाई पर ही नियंत्रण कर ले। कई अन्य समावेषी विकास के मामले में राहत का कोई एलान कर दें। लोक सषक्तिकरण को लेकर ऐसे बेहतर कदम की आवष्यकता है जहां से मध्यम वर्ग पर कुछ मरहम लग सके। स्थिति बदल रही है लेकिन सुषासन सबके हिस्से में है यह कहना सही नहीं। कम से कम मध्यम वर्ग में तो नहीं। इन्हें उठाने के लिए राजनीतिक इच्छा षक्ति और आर्थिक उपादेयता जरूरी है। वैसे सरकार स्वयं आर्थिक चपेट में है ऐसे में उम्मीद की जा सकती है पर पूरी होगी इस पर षंका रहेगी।
डाॅ0 सुशील कुमार सिंह
निदेशक
वाईएस रिसर्च फाॅउन्डेशन ऑफ़ पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन
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