Sunday, October 18, 2020

अनुच्छेद ३७० से छिनी दो परिवारों की सियासत

देष भर में कई ऐसे राजनीतिक परिवार है जिनकी कई पीढ़ियां सियासत में सक्रिय हैं। जिसे लेकर आरोप-प्रत्यारोप भी फलक पर रहते हैं। ऐसे ही सियासी दलों के दो घराने जम्मू-कष्मीर में भी देखे जा सकते हैं जिसमें एक नेषनल कांफ्रेंस के फारूख अब्दुल्ला का तो दूसरा पीडीपी की महबूबा मुफ्ती का घराना देखा जा सकता है। दरअसल पिछले साल 5 अगस्त को जम्मू-कष्मीर से अनुच्छेद 370 और 35ए को समाप्त कर दिया गया था। तभी से नेषनल कांफ्रेंस और पीडीपी समेत कई नेताओं को नजरबंद कर दिया गया। अब जब उनकी रिहाई हो रही है तो इनकी टीस भी बाहर आ रही है। फारूख अब्दुल्ला तो अनुच्छेद 370 चीन की सहायता से दोबारा वापस चाहते हैं और महबूबा मुफ्ती ने तो रिहा होते ही बयानबाजी की कि अब हमें यह याद रखना है कि दिल्ली दरबार ने 5 अगस्त को अवैध और अलोकतांत्रिक तरीके से हमसे क्या लिया था हमें वो वापस चाहिए। गौरतलब है कि 5 अगस्त 2019 को नेषनल कांफ्रेंस और पीडीपी दो दल के सियासत जमीनदोज हो गये थे क्योंकि जिस अनुच्छेद 370 और 35ए के बूते ये घाटी में अपनी गगनचुम्बी सियासत करते थे उस पर केन्द्र की मोदी सरकार ने बुलडोजर चला दिया था जिससे इनके सियासी घर तबाह हो गये। उसी को लेकर एक बार फिर आवाज बुलंद करने में लगे हैं जिसकी न कोई गूंज है न जरूरत है। देष में कई दल के संचालन कई पीढ़ियों से अपनी सियासी पारी खेल रहे हैं सत्ता और विपक्ष के उलट-फेर में अपने अवसर पाते-खोते देखे जा सकते हैं। जम्मू-कष्मीर में भी कभी नेषनल कांफ्रेंस तो कभी पीडीपी सत्तासीन हुई। कांग्रेस की भी सत्ता रही इतना ही नहीं पीडीपी के साथ भाजपा ने गठजोड़ करके अपनी भी सत्ता की गठरी बांधने का प्रयास किया था। जिस महबूबा मुफ्ती को 370 और 35ए के बगैर जम्मू-कष्मीर खाली-खाली लग रहा है उन्हीं के पिता मुफ्ती मोहम्मद सईद और महबूबा के साथ भाजपा ने भी लगभग तीन साल की सियासी पारी खेली। 

फिलहाल जिन सियासतदानों को विषेश राज्य से सामान्य प्रान्त बने संविधान के पहली अनुसूची का 15वां राज्य जम्मू-कष्मीर आज भी गले की फांस बना हुआ है उन्हें यह समझ लेना चाहिए कि अनुच्छेद 370 एक अस्थायी कानून था जिसे या तो लागू नहीं करना था या बहुत पहले समाप्त कर देना चाहिए था। यहां यह समझना ठीक रहेगा कि घाटी के वे कौन से सियासी घराने हैं जिनकी पिछले साल के एक फैसले ने रोजी-रोटी छीन ली। गौरतलब है षेर-ए-कष्मीर के नाम से मषहूर षेख अब्दुल्ला ने चैधरी गुलाम अब्बास के साथ मिलकर आॅल मुस्लिम कांफ्रेंस के नाम से 15 अक्टूबर 1932 में पार्टी का गठन किया बाद में यही नेषनल कांफ्रेंस के रूप में पहचान ले ली और 1951 में जब इसने की सभी 75 सीटों पर जीत हासिल की तो इसकी धमक का घाटी में पता चला। वहां से इसकी सियासी यात्रा फारूख अब्दुल्ला और उमर अब्दुल्ला तक जारी है जबकि पीपुल डेमोक्रेटिक पार्टी यानी पीडीपी के संस्थापक महबूबा मुफ्ती के पिता मुफ्ती मोहम्मद सईद कभी नेषनल कांफ्रेंस के तले ही अपनी सियासत चमकाते थे और तमाम उलट-फेर के साथ 1989 में विष्वनाथ प्रताप सिंह की सरकार में देष के गृहमंत्री भी रहे। यहां बता दें कि इन्हीं के कार्यकाल में इनकी बेटी डाॅ0 रूबिया का अपहरण हुआ था जिसे लेकर सियासी सौदेबाजी हुई थी। फिलहाल 1989 में इन्होंने अपनी पार्टी पीडीपी का गठन किया जिसकी मुखिया अब महबूबा मुफ्ती हैं। आष्चर्य है कि जिस अनुच्छेद 370 और 35ए के हटने पर देष ने जष्न मनाया, 70 साल की बीमारी से भारत मुक्ति पाया और लम्बे समय से चली आ रही सियासत को विराम लगा उसी पर अब ये दोनों दल गैर जरूरी सियासत में लगे हुए हैं। जिस प्रकार दोनों दलों के नेता व्याकुलता दिखा रहे हैं उससे साफ है कि इनका सियासी सफर अब कोयला हो चुका है। 

जम्मू-कष्मीर से धारा 370 हटते ही यह दो केन्द्र षासित प्रदेष के रूप में मानचित्र खींच दिया गया जिसमें एक स्वयं जम्मू-कष्मीर तो दूसरा लद्दाख है। घाटी में विधानसभा को कायम रखा गया है जबकि लद्दाख को अन्य केन्द्रषासित की तर्ज पर देख सकते हैं। इसमें कोई दुविधा नहीं कि भारतीय संविधान का अनुच्छेद 370 और 35ए जम्मू-कष्मीर के लिए एक बेड़ी का काम कर रहे थे। जिससे मुक्त होने के बाद यह मुख्य धारा से न केवल जुड़ा है बल्कि कई रूकावट भी खत्म हो गये। जम्मू-कष्मीर का क्षेत्रफल, आबादी और वहां के नियम कानून सब बदल गया है। संविधान का नीति निर्देषक तत्व जो लोक कल्याण का पथ बनाता है अनुच्छेद 370 के रहते घाटी में कभी पहुंची ही नहीं उसका भी रास्ता आसान हो गया। इतना ही नहीं पूरा भारतीय संविधान ही अब वहां पहुंच गया है। नौकरी, सम्पत्ति और निवास के विषेश अधिकार समाप्त हो गये। जाहिर है सब कुछ भारत जैसा हो गया। अन्य राज्यों के लोग जमीन लेकर बस सकते हैं। एक निषान, एक विधान का रास्ता खुल गया। दोहरी नागरिकता जैसे प्रावधान का खात्मा हो गया। अनुच्छेद 35ए के तहत जिस जकड़न से जम्मू-कष्मीर जकड़ा हुआ था उससे भी मुक्ति मिल गयी। यदि जम्मू-कष्मीर की लड़की बाहर के लड़के से षादी करेगी तो उसके अधिकार पहले छिन जाते थे अब ऐसा कुछ नहीं होने वाला। इसी अनुच्छेद के जरिये कई ऐसे 80 फीसद पिछड़े और दलित हिन्दू समुदाय थे जो स्थायी निवास प्रमाण पत्र से वंचित थे। उन्हें भी अब पूूरा भारत महसूस होता है। इसके अलावा कष्मीर तीन दषक पहले जिन कष्मीरी पण्डितों का विस्थापन हुआ उनकी वापसी का भी रास्ता पूरी तरह खुल गया। 

जिस जम्मू-कष्मीर को 70 सालों से कानूनी फांस थी उससे मुक्ति पर आज भी वहां के सियासी लोगों के पेट पर इतना बल पड़ रहा है कि चीन की भी साहयता से गुरेज नहीं है। फारूख अब्दुल्ला का मानना है कि चीन की आक्रामकता का मुख्य कारण अनुच्छेद 370 का हटाया जाना भी है। सवाल यह है कि अनुच्छेद 370 अैर 35ए के हटते ही सबसे ज्यादा आक्रामकता तो पाकिस्तान में आयी थी। पाकिस्तान आर-पार के लिए भी तैयार हो रहा था जिसका नाम लेना षायद फारूख अब्दुल्ला ने जरूरी नहीं समझा। खास यह है कि जम्मू-कष्मीर अनुच्छेद 370 को लेकर भले ही बड़ा मुद्दा रहा हो लेकिन भारत की दृश्टि में पाक अधिकृत कष्मीर सर्वाधिक खटकने वाला रहा है। चीन को यह चिंता है कि यदि भारत पीओके पर काबिज होता है तो उसकी कई महत्वाकांक्षी योजना विफल हो जायेगी मसलन वन बेल्ट, वन रोड़। चीन कइ्र देषों के साथ गुनाह करने के लिए जाना जाता है इन दिनों लद्दाख में भी यही सिलसिला जारी है। यह एक ऐसा विस्तारवादी देष है जो रेंगते हुए दूसरों की जमीन को हथियाता है और गरीब और कमजेार देषों को कर्ज देकर उन्हें आर्थिक गुलाम बनाता है। पाकिस्तान इसका बड़ा उदाहरण है। गौरतलब है कि अनुच्छेद 370 और 35ए हटने के बाद चीनी राश्ट्रपति जिनपिंग और मोदी की मुलाकात महाबलिपुरम् में हुई थी और इस मुलाकात में भी जम्मू-कष्मीर पर चर्चा का नामोनिषान नहीं था। वैसे भी दुनिया के लगभग सभी देष यह समझ गये हैं कि यह भारत का आंतरिक मामला है मगर भारत के ही कुछ सियासतदान इसे चीन से जोड़ कर देख रहे हैं। हैरत इस बात का भी है कि अनुच्छेद 370 भारत की सरकार द्वारा भारत के संविधान के भीतर से हटाने से जुड़ा मामला है और संविधान के भीतर लिखा गया इतिहास है जिसे सियासी मौका परस्त कह रहे हैं कि अगर भविश्य में मौका मिलेगा तो चीन के साथ मिलकर इसकी वापसी करेंगे। ध्यान्तव्य हो कि अनुच्छेद 370 और 35ए हटाते समय इन सभी को सीआरपीसी की धारा 107 और 151 के तहत हिरासत में लिया गया था। देखकर तो लगता है कि हिरासत में लेने का निर्णय सही था। 



 सुशील कुमार सिंह

निदेशक

वाईएस रिसर्च फाॅउन्डेशन ऑफ़  पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन 

लेन न. १२, इंद्रप्रस्थ एन्क्लेव, अपर नत्थनपुर, 

देहरादून-248001 (उत्तराखण्ड)

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