Sunday, October 18, 2020

नौकरशाही का विकास प्रशासन न बन पाना !

वैसे कुछ मुद्दे कभी मुरझाते नहीं है लेकिन वे हमेष बने रहें तो बहुतों को अखर जाते हैं।  नौकरषाही उनमें से एक है जो सामाजिक-आर्थिक परिवर्तन का एक ऐसा वाहक है जिस पर जनता के विकास का बोझ है मगर यह बोझ कब उतरेगा और क्यों नहीं उतर रहा है यह बड़े-बड़े चिंतकों का भी पसीना निकाल रहा है। बीते 4 अक्टूबर को सिविल सेवा प्रारम्भिक परीक्षा 2020 सम्पन्न हुई जिसमें एक सवाल था कि भारत के संदर्भ में नौकरषाही का निम्नलिखित में से कौन सा उपयुक्त चरित्र चित्रण है। चार विकल्पों में अन्तिम विकल्प में लिखा था लोकनीति को क्रियान्वित करने वाला अभिकरण, जाहिर है यही सही उत्तर है। इस प्रष्न के आलोक में नौकरषाही पर अनायास यह प्रष्न उभर गया कि ईसा पूर्व चीन में पहचानी गयी नौकरषाही आधुनिक काल में प्रषा के मार्ग से होते हुए औपनिवेषिक सत्ता में इस्पाती रूप वाली स्वतंत्र भारत की लोक सेवा का अब चरित्र चित्रण कैसा है। षासन नीतियां बनाता है, प्रषासन नीतियों को लागू कराता है और नीतियों के प्रभाव से जनता को खुषियां मिलती हैं। अब यह मुद्दा अलग है कि खुषी किसे मिली, किसे नहीं मिली। सामुदायिक विकास कार्यक्रम से लेकर किसान सम्मान निधि तक की यात्रा में अनगिनत ग्रामीण विकास के साथ भारत विकास की योजनाएं आयी। बावजूद इसके कई विकास की बाट अभी भी जोह रहे हैं। इतना ही नहीं लाखों की तादाद में अन्नदाता गरीबी के चलते आत्महत्या कर चुके हैं। युवा रोज़गार की फिराक में कुंठित और अवसाद में जा रहा है। बुनियादी विकास जिस भी स्तर पर किया गया वह कम ही बना रहा। ऐसा क्या है कि पूरा नहीं हो रहा है या तो संसाधन का आभाव है या तो नौकरषाही विकास प्रषासन में तब्दील ही नहीं हो पायी। वैसे नौकरषाही षब्द का कायाकल्प हो चुका है। अब इसे लोकसेवक के तौर पर जाना जाता है। 

नौकरषाही को सही से समझने के लिए मैक्स वेबर के सामाजिक-आर्थिक प्रषासन की पड़ताल जरूरी है। जिसमें नौकरषाही को प्रभुत्व के लिए जाना जाता है। जब देष आजाद हुआ तब प्रषासन के सामने विकास प्रषासन की चुनौती थी मगर प्रषासनिक विकास के आभाव में यह उद्देष्य अधूरा ही रहा। भारत के प्रषासनिक अधिकारी यू.एल गोस्वामी ने अपने लेख द स्ट्रैक्चर आॅफ पब्लिक एडमिनिस्ट्रेषन इन इण्डिया 1955 में विकास प्रषासन का पहली बार प्रयोग किया गया था जिसका मूल उद्देष्य सामाजिक-आर्थिक और राजनीतिक परिवर्तन है। चूंकि वह दौर बहुत अलग था तुरंत आजादी का था और साथ ही विरासत में बंटवारा भी मिला था। आर्थिक दृश्टि से कमजोर समय था और विकास की दृश्टि से मांग बहुत बड़ी थी। जिन प्रषासकों पर विकास की जिम्मेदारी थी उनका स्वयं आधा-अधूरा विकास था। दो टूक यह है कि विकास प्रषासन प्रषासनिक विकास एक-दूसरे के पूरक हैं। दरअसल सात दषक पहले 1952 में जब तुलनात्मक लोक प्रषासन के माध्यम से यह प्रयास हुआ कि एषिया, अफ्रीका और लैटिन अमेरकिा के देषों के विकास का आधार क्या है तो पता चला कि इनका वही माॅडल है जिनके ये उपनिवेषवाद में थे। ऐसे में समस्याएं और बड़ी हो गयी। स्थिति को देखते हुए भारत जैसे देष जो कृशि प्रधान थे वो यूरोपीय देष जो औद्योगिक मामले में अगुआ थे माॅडल की नकल नहीं कर सकते जिन्होंने ऐसा किया वे विकास से अछूते रहे। विकास प्रषासन का उद्देष्य परिवर्तन लाना है और जबकि प्रषासनिक विकास प्रषासकों में परिवर्तन लाता है। नौकरषाही प्रषासनिक विकास के आभाव में विकास प्रषासन के उद्देष्य को हासिल नहीं कर सकती थी। ऐसा न हो पाना लोकहित के लिए भी नुकसानदायक है। समय और काल के अनुपात में सब कुछ बदला है। नौकरषाही लोक सेवक के रूप में परिवर्तित हुई। इस्पाती स्वरूप प्लास्टिक का रूप ले लिया मगर जिस तरह देष में हर चैथा व्यक्ति गरीबी रेखा से नीचे है और इतने ही अषिक्षित साथ ही चिकित्सा व अन्य बुनियादी समस्याओं का खड़ा होना यह जताता है कि आज भी लोक सेवक नौकरषाही की भांति केवल नीतियों का क्रियान्वयन कर रहे हैं चाहे जनता का समुचित विकास हो रहा हैे या नहीं।

समावेषी विकास की कोषिष भी उदारीकरण के बाद प्रबल हुई। विष्व बैंक की अवधारणा स्टेटे टू मार्केट को भी अपनाया गया। सुषासन की नई परिभाशा को गढ़ कर नया क्लेवर-फ्लेवर भी दिया जाने लगा मगर नौकरषाही या लोक सेवा की बुनियाद में कमी क्या है इस पर षायद ठीक से गौर नहीं किया गया। 1965 में वाॅरेन बेनिस ने कहा था आगामी 3 दषक में नौकरषाही समाप्त हो जायेगी। नौकरषाही कहीं गयी नहीं, लोक सेवक के रूप में विद्यमान है मगर जब तक समावेषी विकास की अवधारणा पूरी तरह विस्तार नहीं लेगी तब तक इसका विकास प्रषासन के रूप में बन पाना सम्भव नहीं होगा। पहले चुनौती नौकरषाही को विकास प्रषासन में तब्दील करने की थी अभी भी लोकसेवकों को इसी रूप में बदलने की चुनौती है। 


 सुशील कुमार सिंह

निदेशक

वाईएस रिसर्च फाॅउन्डेशन ऑफ़  पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन 

लेन न. १२, इंद्रप्रस्थ एन्क्लेव, अपर नत्थनपुर, 

देहरादून-248001 (उत्तराखण्ड)

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