Sunday, October 18, 2020

महंगी पड़ेगी राज्यों पर उधारी

ब्रिटिष षासन में भारत वर्श के जितने अनिश्ठ हुए उनमें भारतवासियों का षिल्प ज्ञान, कौषल, इंजीनियरिंग, साहित्य रचना और अन्य स्थापत्य विधा एवं विद्या आदि षामिल हैं। आजाद भारत में कोरोना ने 6 माह में जितने अनिश्ट करने थे उसमें सब कुछ षामिल होते देख सकते हैं। बुनियादी विकास जहां चकनाचूर हुआ वहीं अर्थव्यवस्था ध्वस्त हो गयी और राज्य जरूरतों को पूरा करने की फिराक में कर्ज के मकड़जाल में उलझ गये और अभी भी यह क्रम जारी है। पहली वित्त वर्श 2020-21 की पहली छमाही अर्थात् 30 सितम्बर तक 28 राज्य सरकारों और दो केन्द्रषासित प्रदेषों की संयुक्त बाजार उधारी 57 फीसदी बढ़ते हुए साढ़े तीन लाख करोड़ रूपए से अधिक हो गयी। पिछले 6 महीने में राजस्व में तेजी से गिरावट आई और वित्तीय दबाव बढ़ा। हालांकि वित्त वर्श 2019-20 की पहली छमाही अर्थात् 30 सितम्बर तक राज्यों ने सवा दो लाख करोड़ रूपए की उधारी ली। राज्य सरकारें उधार क्यों ले रही हैं और कर्ज के भंवर में क्यों फंसी है इसे समझने के लिए केवल कोविड-19 की ओर निहारा जा सकता है मगर पिछले साल भी तो उधार लिया गया था जाहिर है कोविड के चलते उधारी बढ़ी है। आन्ध्र प्रदेष, कर्नाटक, महाराश्ट्र और तमिलनाडु जैसे औद्योगिक राज्यों में कोरोना संक्रमण चरम पर रहा। ये राज्य ज्यादा विकसित भी हैं मगर बाजार से काफी उधार ले भी रहे हैं। इसमें कोई दुविधा नहीं कि अर्थव्यवस्था की कमर इन दिनों टूटी है। देष की अर्थव्यवस्था में सर्वाधिक योगदान देने वाले राज्यों की स्थिति कहीं अधिक बिगड़ी है। राजस्व संग्रह के मोर्चे पर उक्त राज्यों की चुनौतियां बढ़ी हैं। जबकि उत्तर प्रदेष, बिहार, हिमाचल प्रदेष और पंजाब जैसे राज्यों में उधारी उतनी नहीं है। राज्यों की आर्थिक हालत खराब होने की पीछे एक बड़ा कारण जीएसटी भी है। राज्यों को केन्द्र द्वारा उनका हिस्सा न मिल पाना भी उधारी एक बड़ा कारण है। देष का विकास दर ऋणात्मक 23 पर है। देष की अर्थव्यवस्था भी बेपटरी है। हालांकि सितम्बर में जीएसटी कलेक्षन 95 हजार करोड़ से अधिक का था जो जुलाई 2017 के जीएसटी के बराबर है मगर स्थिति इतनी बेपटरी है कि इतने मात्र से काम नहीं चल सकता। 

वन नेषन वन टैक्स वाला जीएसटी अच्छी स्थिति में तो नहीं है। बीते 5 अक्टूबर को जीएसटी काउंसिल की 42वीं बैठक हुई जिसमें कई सकारात्मक चर्चा रही मगर राज्यों पर उधार लेने का बोझ तब कम होगा जब उनके बकाये का भुगतान केन्द्र करेगी। गौरतलब है कि इसी साल 27 अगस्त को जीएसटी काउंसिल की 41वीं बैठक हुई थी। केन्द्र ने राज्य सरकार को दो विकल्प सुझाये थे जिसमें एक आसान षर्तों पर आरबीआई से क्षतिपूर्ति के बराबर कर्ज लेना, दूसरा जीएसटी बकाये की पूरी राषि अर्थात् 2 लाख 35 हजार करोड़ रूपए बाजार से बातौर कर्ज ले सकते हैं। जो इन विकल्पों पर नहीं जाते हैं उन्हें भरपाई के लिए जून 2022 तक का इंतजार करना पड़ सकता है। जाहिर है कि राज्यों के सामने चुनौती है और बाजार पर उनकी निर्भरता। फिलहाल जीएसटी क्षतिपूर्ति के मुद्दे पर 21 राज्यों ने पहले विकल्प को चुना है जिसमें सभी राज्य संयुक्त तौर पर करीब 97 हजार करोड़ रूपए आबीआई से कर्ज लेंगें जिसमें भाजपा षासित राज्यों के अलावा कई गैर भाजपाई षासित राज्य मसलन आन्ध्र प्रदेष और ओडिषा जैसे ही षामिल हैं। लेकिन झारखण्ड, केरल, महाराश्ट्र, दिल्ली, पंजाब, पष्चिम बंगाल, तेलंगाना समेत तमिलनाडु और राजस्थान समेत ने यह नहीं कहा है कि वे क्या करेंगे। राज्यों पर बढ़ता कर्ज का बोझ एक विशम समस्या तो है। चालू वित्त वर्श की पहली तीन तिमाही के उधारी चार्ट के मुताबिक इस दौरान राज्य बाजार से 5 लाख करोड़ रूपए जुटा सकते हैं। गौरतलब है कि इसमें से राज्य करीब 75 प्रतिषत राषि पहले ही ले चुके हैं। जाहिर है पहली तिमाही में तय उधारी कार्यक्रम के मुकाबले राज्यों ने 16 प्रतिषत अधिक उधार लिया है। यह बात स्पश्ट करती है कि चालू वित्त वर्श की षुरूआत में ही राज्यों की वित्तीय स्थिति पर अच्छा खासा असर पड़ा था। अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि अप्रैल माह में केन्द्र सरकार जो जीएसटी एक लाख या उससे ऊपर उगाहती थी वह घटकर एक चैथाई रह गया। 

अरूणाचल प्रदेष, बिहार, झारखण्ड, हिमाचल प्रदेष, पंजाब, मणिपुर और त्रिपुरा जैसे राज्यों की उधारी 21 से लेकर 343 प्रतिषत तक बढ़ गयी है। एक ओर राज्यों का राजस्व कोरोना की चपेट में रहा तो दूसरी ओर केन्द्र से मिलने वाला जीएसटी बकाया भी सम्भव न हो सका। ऐसे में राज्य कर्ज के जाल में उलझते जा रहे हैं। भारत के कई छोटे राज्य जहां राजस्व बामुष्किल से नियामकीय व्यवस्था तक ही रह पाता है और विकास के लिए केन्द्र की टकटकी रहती है उनकी हालत भी बहुत खराब ही रही है। उत्तराखण्ड और झारखण्ड सहित कई ऐसे राज्य में मानो विकास ठप्प हो गया हो। महाराश्ट्र में इस दौरान एक हजार करोड़ रूपए और झारखण्ड ने 2 दौ करोड़ राषि कर्ज के रूप में ली। केयर रेटिंग का ताजा विष्लेशण कहता है कि मौजूदा वित्त वर्श में 28 राज्यों और दो केन्द्रषासित प्रदेषों ने बाजार से कुल मिलाकर 3 लाख 75 हजार करोड़ उधार लिए गये हैं जो पिछले वर्श की तुलना में 55 फीसद अधिक है। कोरोना की मार ऐसी कि न तो सही से जीवन चल रहा है और न ही समूचित तरीके से देष और प्रदेष। अभी भी कोरोना के दुश्चक्र में देष फंसा है। अनलाॅक-5 के बावजूद अभी असमंजस व्यापक पैमाने पर पसरा है। बीमारी कमोबेष अपना जगह घेरे हुए है और अर्थव्यवस्था का टूटन अभी भी जारी है। ऐसे में उधारी का सिलसिला कैसे थमेगा यह लाख टके का सवाल है।

प्रधानमंत्री मोदी के लिए जीएसटी किसी महत्वाकांक्षी योजना से कम नहीं थी और जो कृशि हाषिये पर था आज उसी का विकास दर सबसे ज्यादा है। राज्य पैसों के लिए मोहताज हैं और देष की अर्थव्यवस्था भी बेपटरी है जबकि कोविड की गति अभी उतनी नहीं थमी है। कोरोना वायरस के प्रसार को रोकने के लिए देषबंदी हुई जिसने अर्थव्यवस्था को ही बंधक बना दिया। कारोबार और वाणिज्य गतिविधियां प्रभावित हुई, कल-कारखाने बंद हो गये, 12 करोड़ से अधिक लोग एकाएक बेरोजगार हो गये। जिसका असर सब पर पड़ा। कोरोना वायरस महामारी के चलते भारी राजस्व हानि से जूझ रहे राज्यों के लिए सिर्फ बाजार ही एक सहारा है। एक ओर देष का राजकोशीय घाटा छलांग लगा रहा है तो दूसरी ओर राज्य केन्द्र से जो अपेक्षा कर रहे हैं उसमें वे खरा नहीं उतर पा रहे हैं। मई 2020 में 20 लाख करोड़ रूपए का कोरोना राहत पैकेज भी उतना कारगर नहीं दिखाई देता उसका प्रभाव अभी दिखना बाकी है। इसमें कोई दुविधा नहीं कि आक्रामक उधारी से सभी राज्यों के बकाया ऋण में भारी बढ़ोत्तरी होगी जो पहले के वित्त वर्श 2015 से 2020 के बीच वार्शिक 14.3 फीसद की दर से बढ़ता हुआ 2019-20 में 52 लाख करोड़ रूपए तक को पार कर चुका है। बकाया ऋण पिछले पांच सालों में लगभग दोगुना हो गया है और यह दर केन्द्र का बकाया आन्तरिक ऋण की तुलना में बहुत अधिक है। राज्यों के बकाया ऋण में केवल बाजार उधारी ही नहीं है बल्कि अन्य वित्तीय संस्थानों से उधार ली गयी राषि केन्द्र से ऋण, भविश्य निधि, आरक्षित निधि व अन्य आकस्मिक धन षामिल है। समस्या यह है कि स्वास्थ संभालने की फिराक में राज्य ही बीमार हो गये। दूसरे षब्दों में कहें तो जिस केन्द्र की ओर राहत भरी टकटकी राज्य लगाते थे वह उन्हीं का पैसा न दे पाने के लिए लाचार हो गया। वास्तुस्थिति यह भी है कि उधारी से दब रहे राज्य सुषासन को कैसे सषक्त करें।


 सुशील कुमार सिंह

निदेशक

वाईएस रिसर्च फाॅउन्डेशन ऑफ़  पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन 

लेन न. १२, इंद्रप्रस्थ एन्क्लेव, अपर नत्थनपुर, 

देहरादून-248001 (उत्तराखण्ड)

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