Sunday, October 18, 2020

नया श्रम कानून श्रमिकों के लिए कितना सुशासनिक

सखाराम गणेष देउस्कर की 1904 में बंग्ला में प्रकाषित एवं 1908 में हिन्दी में अनुवादित पुस्तक में लिखा है कि इतिहास पढ़ने से मालूम होता है कि राज भक्ति की सहायता के बिना कभी किसी देष में कारीगरी और वाणिज्य की उन्नति नहीं हुई है। इस कथन के आलोक में देखें तो स्पश्ट है कि लोकतंत्र में लोकतांत्रिक मूल्यों एवं संवेदनषील श्रम कानून के बिना संगठित एवं असंगठित श्रमिकों की सामाजिक सुरक्षा और उत्थान सम्भव ही नहीं है। षायद इसी के चलते 73 साल के इतिहास में श्रम कानून में बदलाव का एक बड़ा प्रयास इन दिनों देखा जा सकता है। पड़ताल बताती है कि इससे जुड़ी तीन संहिताओं को संसद के दोनों सदनों ने मोहर लगा दी है। गौरतलब है केन्द्र सरकार द्वारा 29 श्रम कानूनों को 4 श्रम संहिताओं में समेटने का प्रयास किया गया है। नई व्यवस्था से संगठित के साथ 92 फीसद असंगठित श्रमिक को कितना लाभ होगा यह बड़ा प्रष्न है। सभी श्रमिकों को नियुक्ति पत्र देना न केवल अनिवार्य होगा बल्कि वेतन भुगतान डिजिटल के माध्यम किया जायेगा। वर्श में एक बार सभी श्रमिकों का स्वास्थ परीक्षण की अनिवार्यता समेत कारोबार को आसान बनाने, पारदर्षी और उत्तरदायी व्यवस्था से लेकर समय सीमा में विवादों के निस्तारण आदि इस नये श्रम कानून में निहित हैं जो मजदूर सषक्तिकरण का पर्याय दिखता है। लोक सषक्तिकरण की भावना से युक्त सुषासन भी इसी अभिमत से प्रेरित है जिसमें अधिक लोक कल्याण, संवेदनषीलता, जवाबदेहिता और पारदर्षिता के साथ उदार व्यवस्था निहित है। सुषासन एक लोक प्रवर्धित अवधारणा जो सामाजिक और आर्थिक न्याय से अभिभूत है और षासन पर एक नई परत भी है। श्रम कानून का यह नया स्वरूप श्रमिकों के जीवन की राह कितना समतल करेगा इसके लिए कई अन्य पक्षों को समझना होगा। 

कारखानो, दफ्तरों एवं दुकानों के संचालन, सेवा षर्तों, मजदूरी, कार्य स्थल की परिस्थितियों साथ ही श्रमिकों के अधिकारों से जुड़े कानूनों में परिवर्तन के चलते सरकार कोविड-19 के दुश्चक्र में फंसी बेपटरी अर्थव्यवस्था को दुरूस्त करने की कवायद में है। हालांकि अर्थव्यवस्था सुधारने के नाम पर किये गये इन बदलावों को विपक्षी विरोध कर रहे हैं। वैसे जब किसी संहिता का निर्माण किया जाता है तो सबसे अनोखी बात यह होती है कि बदलाव जिसके लिए हुआ लाभ उसे मिला या नहीं। इस नयी संहिता को कार्य परिस्थिति संहिता-2020 की संज्ञा भी दी जा रही है जो कामगारों से सम्बंधित नियमों और कानूनों का एक एकीकृत ढांचा है। खास यह भी है कि इस कानून के आने से अलग-अलग लाइसेंस की आवष्यकता नहीं रह जायेगी। गौरतलब है इसके अन्तर्गत विभिन्न स्थानों पर एक ही लाइसेंस के जरिये ठेकेदारों को ठेका मजदूरी के लिए कामगारों की नियुक्ति की अनुमति होगी। ताजी व्यवस्था के चलते ठेका मजदूरों की संख्या 35 से 50 सम्भावित है और प्रत्येक कार्य के लिए ठेका मजदूर लाये जा सकेंगे। 

वैसे तो कानून पहले से ही कई प्रारूपों में उपलब्ध रहे हैं मगर उनके क्रियान्वयन को लेकर या तो इच्छाषक्ति का आभाव था या फिर कोई अन्य बात। गौरतलब है उद्योगों को क्षतिपूर्ति अधिनियम 1923 व बंधुआ मजदूरी प्रणाली (उन्मूलन) अधिनियम 1976 का पालन करना होगा। पारिश्रमिक भुगतान अधिनियम 1936 की धारा 5 भी उद्योगों पर लागू होगी। बाल मजदूरी और महिला मजदूरों से जुड़े प्रावधान पहले की तरह जारी रहेंगे। ट्रेड यूनियन को मान्यता देने वाले कानून यहां खत्म होते दिख रहे हैं। इसके अलावा भी कई ऐसे प्रावधान इस बदलाव में निहित हैं। ठेका श्रम (विनियमन और उत्सादन) अधिनियम 1970 आदि पर भी इसका प्रभाव पड़ना लाज़मी है। विपक्ष को यह चिंता है कि इण्डस्ट्रीयल रिलेषन बिल 2020 के आने से जिन कम्पनियों में कर्मचारियों की संख्या 300 से कम है वहां पर षोशण बढ़ सकता है। इसका मूल कारण ऐसी कम्पनियों को कर्मचारियों की छंटनी के लिए सरकार की मंजूरी नहीं लेना, पहले यह संख्या 100 थी। ऐसे संस्थान जहां 10 से कम श्रमिक कार्य कर रहे हैं उनको अब स्वेच्छा से एम्प्लाॅयज़ स्टेट इन्ष्योरेंस काॅरपोरेषन (ईएसआईसी) का सदस्य बनने का विकल्प दिया गया है और वे संस्थान जहां 20 से कम श्रमिक हैं और स्वरोजगार वाले श्रमिक भी एम्प्लाॅय प्रोविडेंट फण्ड आॅरगेनाइजेषन (ईपीएफओ) की सुविधा ले सकेंगे। एक सामाजिक सुरक्षा फण्ड का प्रावधान भी किया गया है जो असंगठित श्रमिकों, ठेके पर काम करने वाले और प्लेटफाॅर्म श्रमिकों के लिए होगी। गौरतलब है कि देष के 740 जिलों में ईएसआईसी अस्पताल का प्रावधान सामाजिक सुरक्षा संहिता में है। देखा जाय तो लाॅकडाउन के दौर में 12 करोड़ से अधिक लोग बेरोज़गारी के षिकार हुए जिसमें से कईयों की पुर्नवापसी की सम्भावना षायद ही हो।

आॅक्यूपेषनल सेफ्टी, हेल्थ एण्ड वर्किंग कण्डीषन बिल 2020 कम्पनियों को इस बात की छूट देगा कि वह ठेका पर नौकरी दे सकें और इसे आगे भी बढ़ाया जा सकता है जिसकी कोई सीमा नहीं है। सोषल सिक्योरिटी बिल 2020 में भी कुछ नये प्रावधान देख सकते हैं जिन लोगों को फिक्स टर्म के आधार पर नौकरी मिलेगी उन्हें उसी के आधार पर ग्रेज्यूटी पाने का हक होगा। अब इसके लिए 5 साल की आवष्यकता नहीं है। स्पश्ट है कि कांट्रैक्ट कितने भी दिन का हो ग्रेज्यूटी का फायदा मिले। संविधान की सातवीं अनुसूची के तीन सूची संघ, राज्य एवं समवर्ती में कार्यों का बंटवारा है। श्रम कानून समवर्ती सूची में आता है जिसमें केन्द्र और राज्य दोनों की सहमति से कानून बनाया जा सकता है। फिलहाल सुषासन और श्रम कानून एक सिक्के के दो पहलू की तरह हैं और दोनों लोक सषक्तिकरण का भाव रखते दिखाई दे रहे हैं। यदि फिलहाल इसमें श्रमिकों का हित सुनिष्चित होता है तो यह कहीं अधिक सुषासनिक संहिता कही जायेगी।


  सुशील कुमार सिंह

निदेशक

वाईएस रिसर्च फाॅउन्डेशन ऑफ़  पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन 

लेन न. १२, इंद्रप्रस्थ एन्क्लेव, अपर नत्थनपुर, 

देहरादून-248001 (उत्तराखण्ड)

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