Wednesday, April 24, 2019

ईरान पर अमेरिकी प्रतिबंध का असर

इतिहास में झांका जाय तो भारत और ईरान का सदियों पुराना नाता परिलक्षित होता है। आधुनिक समय में दोनों देषों के बीच दोस्ती के मुख्य आधार में भारत की ऊर्जा जरूरत को देखा जा सकता है। हालंाकि ईरान के बाद दुनिया में सबसे ज्यादा षिया मुसलमानों का भारत में होना भी एक और आधार है। बीते 23 अप्रैल को अमेरिकी राश्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने तेल खरीदने पर भारत समेत 8 देषों को दी गयी छूट आगे न बढ़ाने का फैसला किया है। गौरतलब है कि अमेरिका ने 180 दिनों की यह छूट भारत समेत चीन, इटली, ग्रीस, जापान, दक्षिण कोरिया, ताइवान और तुर्की को दी थी जिसकी समय-सीमा आगामी 2 मई को खत्म हो रही है। अमेरिका और ईरान के बीच बरसों से अनबन चल रही है नतीजन अमेरिका परमाणु समझौते से भी बाहर हो गया था। इतना ही नहीं ईरान से तेल खरीदने वाले देषों को भी उसने धमकाया था और नवम्बर में ही यह प्रतिबंध लागू होना था पर भारत जैसे देषों को कुछ समय के लिए छूट बढ़ा दी थी। गौरतलब है विष्व के प्राकृतिक गैस का 10 फीसदी भण्डार रखने वाला ईरान ओपेक देषों में दूसरा सबसे बड़ा तेल उत्पादक है जिसके चलते भारत और ईरान के बीच ऊर्जा में सहयोग के व्यापक अवसर देखे जा सकते हैं। अमेरिका की इस पाबंदी का भारत के बाजार पर क्या असर होगा इसे लेकर चिंता बढ़ गयी है। भारत में इन दिनों आम चुनाव पूरे उफान पर है और अमेरिका ने इस बीच एक अहम फैसला करते हुए ईरान पर तेल बेचने से पूरी तरह रोक लगा दी। पेट्रोलियम मंत्रालय की तरफ से भी यह इषारा दिख रहा है कि अब इस दिषा में कोई भी कूटनीतिक पहल अगली सरकार के आने के बाद ही सम्भव है। 
पिछले वर्श की षुरूआत में जब डोनाल्ड ट्रंप ने ईरान पर नये सिरे से प्रतिबंध लगाने का ऐलान किया था तभी से भारत व ईरान के बीच तेल व्यापार को बनाये रखने के लिए वैकल्पिक रास्ते खोजे जा रहे थे। भारत और ईरान के बीच सम्बंध हर लिहाज से वर्तमान में उचित कहे जायेंगे। अमेरिका ने ईरान को प्रतिबंधित किया है और भारत पर भी ईरान से सम्बंध न रखने का दबाव पहले भी बनाता रहा है। अमेरिका तो यह भी चाहता है कि भारत रूस से हथियार न खरीदे। भारत, ईरान के अलावा यूएई और सऊदी अरब से भी व्यापक पैमाने पर कच्चे तेल की खरीदारी करता है। ईरान की तुलना में इन देषों की खरीदारी ज्यादा महंगी होती है साथ ही प्रीमियम भी चुकाना होता है जबकि ईरान के साथ हिसाब-किताब अलग है। यहां से तेल सस्ता भी मिलता है साथ ही प्रीमियम भी नहीं देना पड़ता। इसके अलावा पैसा देने का वक्त भी बाकायदा मिलता है। अमेरिका किसी भी सूरत में नहीं चाहता कि ईरान परमाणु षक्ति सम्पन्न बने और मध्य पूर्व एषिया में उसका दबदबा बढ़े। यही कारण है कि वह पूरा जोर लगा रहा है कि बाकी दुनिया से उसका सम्बंध सामान्य न होने पाये। 1991 में षीत युद्ध खत्म होने के बाद सोवियत संघ का पतन हो गया तो दुनिया ने नई करवट ली। भारत का अमेरिका से सम्बंध स्थापित हो गये और अमेरिका ने भारत को ईरान के करीब आने से हमेषा रोका। वैसे ईरान को भी यह लगता था कि भारत, इराक के अधिक समीप है। षायद यही वजह है कि भारत की जरूरतों के हिसाब से ईरान से तेल आपूर्ति कभी उत्साहजनक नहीं रही। इसके पीछे एक कारण इस्लामिक क्रान्ति और इराक-ईरान युद्ध भी माने जाते हैं पर अब ऐसी बात नहीं रही। ईरान से प्रगाढ़ता को लेकर प्रधानमंत्री मोदी 22 मई, 2016 को दो दिवसीय यात्रा को लेकर वहां गये थे जहां कई महत्वपूर्ण समझौते हुए तभी पर चाबहार समझौते पर मुहर लगी थी जो रणनीतिक और कारोबारी दृश्टि से अहम माना गया और पाकिस्तान बाहर।
इजराइल और ईरान की दुष्मनी भी किसी से नहीं छुपी है। गौरतलब है कि ईरान में 1979 की क्रान्ति के बाद ईरान और इज़राइल में दुष्मनी बढ़ी जो कभी कम नहीं हुई। इज़राइल और भारत यदि करीब हैं तो ईरान के साथ भी अच्छी दोस्ती है। इतना ही नहीं फलिस्तीन से भी भारत की प्रगाढ़ता देखी जा सकती है। जबकि इज़राइल के साथ उसका छत्तीस का आंकड़ा है। फिलहाल अमेरिका के फैसले से कच्चा तेल महंगा होने और इसके कारण देष की अर्थव्यवस्था पर दबाव बढ़ने की आषंका साफ-साफ दिख रही है। ईरान से तेल नहीं खरीद पाने का असर भारत पर कई तरीके से पड़ेगा। ईरान जैसे विष्वसनीय तेल कारोबारी केा जहां उसे खोना पड़ेगा वहीं महंगा क्रूड आॅयल खरीदने से देष के तेल आयात बिल में भी भारी बढ़ोत्तरी हो जायेगी। वित्त वर्श 2018-19 में भारत ने 125 अरब डाॅलर का तेल आयात किया था जो वित्त वर्श 2017-18 की तुलना में 42 फीसदी अधिक है। हालिया स्थिति को देखते हुए लगता है कि वित्त वर्श 2019-20 में आयात बिल में व्यापक इजाफा होगा। इसके पीछे एक कारण यह भी है कि भारत के कुल तेल खपत में घरेलू उत्पादन की हिस्सेदारी घटती जा रही है। गौरतलब है कि 6 साल पहले भारत अपनी आवष्यकता का 74 फीसदी तेल बाहर का आयात करता था जबकि साल 2017-18 के वित्त वर्श से यह आंकड़ा 83 फीसदी हो गया। एक तो बाहर के देषों पर क्रूड आॅयल को लेकर निर्भरता, दूसरे देष में तेल की बढ़ती खपत से महंगाई बढ़ने के पूरे आसार दिखते हैं।
भले ही अमेरिकी प्रभुत्व के चलते भारत पर ईरान से तेल को लेकर दूरी का दबाव हो पर भारत-ईरान के बीच दोस्ती ऐतिहासिक और सांस्कृतिक दोनों संदर्भों से ओत-प्रोत है। दोनों देषों के बीच संस्कृति, कला, वास्तुकला व भाशा के क्षेत्र में भी अन्तःक्रियाएं होती रहती हैं। भारत में उत्पन्न हुए बौद्ध धर्म ने पूर्वी ईरानी क्षेत्रों को भी प्रभावित किया। आध्यात्मिक अन्तःक्रिया के चलते सूफीवाद का उदय भी माना जाता है। विष्व के सात आष्चर्य में षामिल ताजमहल का वर्णन प्रायः भारतीय षरीर में ईरानी आत्मा के प्रवेष के रूप में किया जाता है। स्वतंत्रता के षुरूआती दिनों में दोनों देषों के बीच 15 मार्च, 1950 केा एक चिरस्थायी षान्ति और मैत्री सन्धि पर हस्ताक्षर भी हुए थे। हालांकि षीत यद्ध के दौरान दोनों के बीच अच्छे सम्बंध नहीं थे ऐसा ईरान का अमेरिकी गुट में षमिल होने के चलते था जबकि भारत गुटनिरपेक्ष बना रहा जबकि आज हालात उलट दिखाई देते हैं। अब भारत और अमेरिका के बीच सम्बंध पिछले सात दषकों की तुलना में कहीं अधिक मजबूत हो चले हैं और ईरान अमेरिका को फूटी आंख नहीं भा रहा। विज्ञान और प्रौद्योगिकी के मामले में भी भारत-ईरान का आपसी सहयोग बना रहा। वर्श 2003 में ईरानी राश्ट्रपति खातमी के भारत दौरे के दौरान इस मामले में संयुक्त समझौता भी हुआ था। तत्कालीन प्रधानमंत्री वाजपेयी ने 2001 में ईरान दौरे के समय आधारभूत संरचनात्मक परियोजना के लिए ईरान को दो सौ मिलियन डाॅलर ऋण उपलब्ध कराये जाने की घोशणा भी की थी। सब कुछ ठीक ठाक चल रहा था पर भारत एवं अमेरिका के बीच नाभिकीय समझौता 2005 ने दोनों देषों के बीच तनाव उत्पन्न कर दिया। यदि भारत ईरान और अमेरिका में से किसी एक को चुनता तो यह उसके लिए निहायत कठिन था। हालांकि ईरान के लिए भी यह चुनौती रही है कि वह भारत और पाकिस्तान को लेकर संतुलन कैसे बनाये रखे। वर्शों पूर्व भारत से ईरान का गतिरोध तब हो गया जब उसने कष्मीर में स्वषासन की बात कह दी जो भारत को नागवार गुजरा था। फिलहाल अमेरिका प्रतिबंध से भारत-ईरान सम्बंधों पर भले ही कूटनीतिक दूरियां न बढ़े पर कच्चे तेल को लेकर भारत की परेषानियां बढ़ सकती है। 




सुशील कुमार सिंह
निदेशक
वाईएस रिसर्च फाॅउन्डेशन ऑफ  पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन 
डी-25, नेहरू काॅलोनी,
सेन्ट्रल एक्साइज ऑफिस  के सामने,
देहरादून-248001 (उत्तराखण्ड)
फोन: 0135-2668933, मो0: 9456120502
ई-मेल: sushilksingh589@gmail.com

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