Monday, April 22, 2019

श्रीलंका मे हमला द. एशिया के लिए चुनौती


श्रीलंका के तीन प्रमुख षहरों कोलंबो, निगंबो और बट्टिकलोवा में बीते 21 अप्रैल को आतंकी हमला हुआ जिसमें दो सौ से अधिक श्रीलंकाई के साथ कई भारत के नागरिक भी मारे गये और 5 सौ से अधिक घायल बताये जा रहे हैं। श्रीलंका में हुए आतंकी हमले से जाहिर है दक्षिण एषिया में षान्ति की पहल को झटका लगेगा। गौरतलब है कि दक्षिण एषिया में अषान्ति का एक बहुत बड़ा कारण आतंकवादी गतिविधियां रही हैं। भारत इस मामले में सबसे अधिक भुक्तभोगी देष है। पाक प्रायोजित आतंक से भारत तीन दषकों से जूझ रहा है जबकि श्रीलंका इतने ही समय से राजनीतिक अस्थिरता को समाप्त नहीं कर पाया। हालांकि श्रीलंका में हुए इस हमले की किसी संगठन ने जिम्मेदारी नहीं ली है लेकिन यह आतंकी हमला समुदाय विषेश को टारगेट पर रखकर किया गया प्रतीत होता है। इस हमले से यह भी उजागर होता है। श्रीलंकाई समाज अल्पसंख्यक और बहुसंख्यक के बीच कहीं अधिक विभाजित प्रतीत होता है। श्रीलंका के भीतर समय-समय पर जातीय नरसंहार भी देखने को मिला है। भारत और श्रीलंका के बीच सम्बंध बहुत उतार-चढ़ाव से भरे रहे हैं। कितने दूर, कितने पास के आधार पर इस सम्बंधों की जांच की जा सकती है। प्रधानमंत्री मोदी जब 27 साल बाद पड़ोसी पहले की नीति के तहत मार्च 2015 में श्रीलंका की यात्रा की थी तब दोनों देषों के रिष्तों के एक नये अध्याय की षुरूआत हुई थी। विष्व के राजनीतिक मंच पर और दक्षिण एषिया के भीतर भारत महत्वपूर्ण भूमिका निभाये इसके लिए जरूरी है कि वह पड़ोसी देषों को भरोसे में ले। मोदी द्वारा श्रीलंका की की गयी यात्रा इसी दृश्टि से देखी गयी थी जहां उन्होंने द्विपक्षीय समझौते के तहत वीजा नियमों में छूट, कस्टम मामलों में सहयोग, युवाओं के बीच बेहतर संवाद समेत चार समझौते पर दस्तखत किये थे।
पड़ताल इस बात की भी जरूरी प्रतीत होती है कि श्रीलंका की जातीय व सामुदायिक स्थिति कैसी है। कुल आबादी का यहां 74 फीसदी सिंघली, 13 प्रतिषत श्रीलंका के तमिल, 6 प्रतिषत भारतीय मूल के तमिल और अन्य रहते हैं। तमिल हिन्दू धर्म अनुयायी हैं जबकि सिंघली बौद्ध धर्म के पोशक हैं। हालांकि यहां मुसलमान और ईसाई की संख्या भी कई षहरों में ठीक-ठाक है। जिस कोलम्बो के सेंट ऐंथनी चर्च में ईस्टर की प्रार्थना के लिए सब जुटे थे और जहां किये गये धमाके से दुनिया दहल गयी उस कोलंबो की जनसंख्या 56 लाख है जिसमें करीब 32 फीसदी मुसलमान और इतने ही बौद्ध षामिल हैं। करीब 23 प्रतिषत हिन्दू और बाकी हिस्सा ईसाईयों का है। हमले ने चर्च की छत उड़ा दी और जो इसकी जद में आये और जो बच गये वे भी आंखों के सामने मौत का मंजर देखा। निगंबो के सेंट सेबेस्टियन चर्च भी पूरी तरह तबाह हो गया है। गौरतलब है कि 14 लाख की आबादी वाला यह षहर 65 फीसदी रोमन कैथोलिक के लिए जाना जाता है जबकि 14 फीसदी से अधिक यहां मुसलमान हैं और 12 फीसदी बौद्ध हैं और बचा हुआ हिस्सा हिन्दुओं का है। तीसरा प्रमुख षहर बट्टिकलोआ जो श्रीलंका की पहले राजधानी हुआ करती थी यहां हिन्दू अधिक हैं और ईसाई और बौद्ध अल्पसंख्यक अल्पसंख्यक में आते हैं। यहां सिय्योल चर्च पर हमला हुआ और मंजर सबके सामने है। कोलंबो के जिस चर्च को आतंकियों ने बर्बाद किया वह राश्ट्रीय तीर्थस्थल घोशित था और जब श्रीलंका में डच आये थे उस काल का बना हुआ था। श्रीलंका में बर्बादी कितनी हुई इसका हिसाब लगाया जा रहा है मगर ईसाई समुदाय को निषाना लगा कर चर्च और होटलों पर हमला करके यह जता दिया गया कि यह हमला मकसद को ध्यान में रखकर किया गया है। गौरतलब है कि इस हमले से ठीक 32 साल बाद 21 अप्रैल 1987 को बम धमाके में 113 लोगों की मौत हुई थी। तब इस घटना के लिए लिट्टे को जिम्मेदार ठहराया गया था। गौरतलब है कि श्रीलंका करीब चार दषकों से लिट्टे के कारण बहुत सुलगा है। लिबरेषन टाइगर्स आॅफ तमिल ईलम (एलटीटीई) की स्थापन प्रभाकरन ने 1976 में की थी जिसका उद्देष्य उत्तर और पूर्व श्रीलंका में तमिलों के लिए स्वतंत्र राज्य बनाना था। 1983 से 2009 तक श्रीलंका गृह युद्ध की चपेट में रहा और 16 मई 2009 को तात्कालीन राश्ट्रपति महिन्द्रा राजपक्षे ने गृह युद्ध और लिट्टे की समाप्ति का ऐलान कर इतिश्री की सूचना दी। 
श्रीलंका बीते तीन दषकों से राजनीतिक अस्थिरता से जूझ रहा है। जिसके कारण वहां का समाज अल्पसंख्यक और बहुसंख्यक में कब विभाजित हो गया पता ही नहीं चला। तमिल और सिंघली का मामला भी बरसों विवादों में ही रहा है। इस विवाद के कारण भारत और श्रीलंका के बीच सम्बंध भी कई उतार-चढ़ाव लिये। नेहरू काल से मोदी षासन तक इसे देखा जा सकता है। उस दौर में श्रीलंकाई सरकार यह चाहती थी कि प्रवासी भारतीय देष छोड़कर चले जाये। 1948 और 1949 में वहां के भारतीयों को समान अधिकार और मताधिकार से भी वंचित कर दिया गया। यहीं से विवाद जड़ ले लिया। 1983 आते-आते तो तमिलों को श्रीलंका से खदेड़ने की नीति भी बना दी गयी। जमकर नरसंहार हुए और उनके सामने दो ही विकल्प थे या तो वे मारे जायें या समुद्र में कूद कर जान दें दे। जब भारत ने इस पर कड़ा रूख अपनाने का प्रयास किया तब श्रीलंकाई राश्ट्रपति जयवर्द्धने ने कहा था यदि संयोगवष भारत आक्रमण करता है तो सम्भव है कि हम पराजित हो जायें, लेकिन लड़ेंगे षान से। कोलंबो समेत कई समझौते से लेकर परिवर्तन की हर दिषा पर दोनों देषों ने अनुकूल अभ्यास किया और सम्बंध को ऊंचाई दी और 90 का दषक समाप्त होते-होते सब कुछ सामान्य हो गया। महिन्द्रा राजपक्षे के कार्यकाल में सिंघली बुद्धिस्थ का मनोबल बढ़ गया था। नतीजन इन्हीं के समय में वहां बोदु बाला सेना पनपी इससे इस वर्ग में भी चरमपंथ आया जिसका परिणाम यह हुआ कि श्रीलंका के मुसलमान और तमिल समुदाय में आक्रोष बढ़ गया और सामाजिक ध्रुवीकरण को बढ़ावा मिला। 2014-15 में मैत्रीपाल सिरिसेन के समर्थन में सरकार बनी मुस्लिम, तमिल और प्रगतिषील बुद्धिस्थ इसमें षामिल हुए। यह भी सामाजिक ध्रुवीकरण का एक बड़ा प्रभाव था। इस बार निषाने पर ईसाई समुदाय आया जिसकी किसी ने जिम्मेदारी नहीं ली। हालांकि यह श्रीलंका के भीतर पनपा निजी मामला है पर आतंकी हमले की दृश्टि से इसे षेश दुनिया से अलग नहीं माना जा सकता। मुख्यतः इस समय तो इसलिए भी नहीं क्योंकि दुनिया आतंक के खिलाफ पूरी ताकत झोंक रही है। 
दक्षिण एषिया के देष जितनी षान्ति और सद्भावना से पोशित होंगे उतने ही एक-दूसरे के लिए उपजाऊ होंगे। भारत दषकों से आतंक झेल रहा है पर षान्ति की पहल करना नहीं छोड़ा। श्रीलंका पर चीन की भी नजर है और इससे वह हिन्द महासागर में अपनी उपस्थिति दर्ज कराकर भारत को कूटनीतिक मात देना चाहता है। आतंकी हमले के बाद भारत ने श्रीलंका को आष्वासन दिया है कि वह हर तरीके से उसके साथ है। ऐसा एक पड़ोसी की दृश्टि से समुचित है। कूटनीतिक परिप्रेक्ष्य में भी यहां एक संतुलन की राजनीति भारत को करना होगा। गौरतलब है कि बरसों पहले भारत पर श्रीलंका यह आरोप लगा चुका है कि वह उसके आंतरिक मामलों में दखल देता है। पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की हत्या भी श्रीलंका विवाद ही रहा है। सार्क के 8 देषों में श्रीलंका भले ही क्षेत्रफल की दृश्टि से मात्र 25 हजार वर्ग किलोमीटर का एक द्वीप हो है पर सामाजिक ध्रुवीकरण के मामले में वह कहीं अधिक तीव्रता वाला देष है। षायद यही सामाजिक ध्रुवीकरण सामुदायिक संघर्श को जन्म दे देता है। सामुदायिक संघर्श किसी भी देष के लिए निहायत हानिकारक होते हैं और दूसरे देषों के साथ सहयोग और द्वन्द्व का असल मिला-जुला रहता है। सम्भव है कि दक्षिण एषिया में षान्ति के लिए श्रीलंका में षान्ति जरूरी है ऐसे में श्रीलंका को भी इस नई चुनौती से समय के साथ निपटना ही होगा। 

सुशील कुमार सिंह
निदेशक
वाईएस रिसर्च फाॅउन्डेशन ऑफ  पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन 
डी-25, नेहरू काॅलोनी,
सेन्ट्रल एक्साइज ऑफिस के सामने,
देहरादून-248001 (उत्तराखण्ड)
फोन: 0135-2668933, मो0: 9456120502
ई-मेल: sushilksingh589@gmail.com

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