Monday, February 18, 2019

अब समय है 'इंडिया फ़र्स्ट' नीति का

पुलवामा से बड़ा हमला मुंबई में हुआ था, लेकिन जरूरी सबक सीखे बगैर भारत कुछ समय बाद ही पाकिस्तान के साथ बातचीत के लिए वार्ता की मेज पर दिखा था। पर  अब ऐसा कत्तई नहीं होगा। अब ऐसा लगता है कि नतीजे कुछ और होंगे। जिस प्रकार पाकिस्तान ने दुश्साहस कर हमारे 40 सैनिकों को षहीद किया है, उसे सही दण्ड देने का यही सही वक्त है। हो सकता है कि इसके कुछ दुश्परिणाम भी हों पर देष की आन-बान-षान के लिए कुछ कर गुजरना ही होगा। इस बार हमारी कार्यवाही कुछ इस प्रकार हो जिससे पाकिस्तान के आतंकियों का ही खात्मा न हो बल्कि पाकिस्तान की जनता भी कुछ महसूस करे और सरकार चला रहे अपने ही दो मुहें राजनीतिज्ञों को आईना भी दिखा सके। यह भी समझना उचित होगा कि पाकिस्तान के भीतर आतंकवाद और राजनीति की आपसी घालमेल है। जब तक इस पर करारा प्रहार नहीं होगा तब तक वहां की सियासत भी नहीं सुधरेगी। भारत आतंक से लहूलुहान होता रहा है और अपने दर्द को संयुक्त राश्ट्र के मंच समेत दुनियां के सामने बयां करता रहा है। दषकों से भारत को जो घाव पाकिस्तान से मिलता रहा है अब उसका हिसाब चुकाने की बारी आ गई है। जिसके लिए दुनियां को भी भारत के साथ होना चाहिए। पुलवामा आतंकी हमले के मद्देनजर अमेरिका के राश्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार जाॅन बोल्टन ने अपने भारतीय समकक्ष अजीत डोभाल से कहा कि उनका देष भारत के आत्मरक्षा के अधिकार का सर्मथन करता है। गौरतलब है कि पुलवामा के आतंकी हमले ने भारत की वैचारिकता और भावनात्मकता कोे बड़ा घाव दिया है। इस घटना ने दुनियां की सोच को हतप्रभ करते हुए एक सुर भी देने का काम तो किया है पर राह में रोडे भी बहुत हैं हालांकि अब इसकी फिक्र षायद ही भारत करेगा।
संदर्भ निहित बात यह भी है कि दक्षिण एषिया, यूरोप, अमेरिका, आस्ट्रेलिया, रूस, इजराइल समेत अनेक देषों ने भारत के प्रति संवेदना जताई है। अमेरिका का यह कथन कि भारत दोशियों को सजा दे हम उसके साथ हैं जहां आतंक के विरूद्ध लड़ाई का सर्मथन दिखता है वहीं चीन का यह रूख कि पुलवामा समेत भारत में कई आतंकी हमले का अपराधी जैष-ए-मोहम्मद के सरगना अजर मसूद को अन्तर्राश्ट्रीय आतंकवादी घोशित करने का पक्षधर नहीं है से बडी निराषा भी होती है। प्रधानमंत्री मोदी सेना को पूरी तरह इस बात की छूट दे चुके हैं कि वह दोशियों को सजा देने का काम करें। पाकिस्तान को सर्वाधिक तरजीही राश्ट्र के दर्जे को भी भारत ने छीन लिया है। तमाम अन्तर्राश्ट्रीय दबावों को लेकर भी भारत की ओर से मोर्चा खोल दिया गया है। बावजूद इसके यह कहना कठिन है कि पाकिस्तान की सेहत पर इसे लेकर कोई खास असर पडे़गा। समय तो यही कहता है कि जब कूटनीतिक लड़ाई नाकाम हो जाए तो सीधी लड़ाई को मुखर कर देना चाहिए। ऐसा करने से षत्रु के होष भी ठिकाने पर आते हैं और कौन बेहतर मित्र है और कौन नहीं इसकी भी पड़ताल हो जाती है। फिलहाल भारत को प्रतिदिन की दर से पाकिस्तान को बर्बाद करने वाले मसौदे के एजेण्डे पर काम करना चाहिए। दो टूक यह है कि अब षान्ति नहीं समग्र रणनीति पर भारत को चैतरफा सोच विकसित करनी चाहिए। इस कड़ी में सिन्धु जल समझौता जो 1960 का है उसे रद्द करने के बारे में भी सोचना ही चाहिए। ऐसा करने से पाकिस्तान के 42 प्रतिषत कृशि खतरे में पडेगी और वहां की जनता को भी अहसास होगा कि आतंक और सरकार का गठजोड़ उसके लिए कितनी बड़ी मुसीबत है। जो चीन पाकिस्तान का सरपरस्त है उसे भी एहसास दिलाने की आवष्यकता है कि हर मौके पर उसके रूख को भारत तवज्जो नहीं देगा। चार बार चीन की यात्रा करने वाले मोदी और चैदह बार जिनपिंग से विभिन्न मंचों पर मुलाकात के बाद यदि अब पाकिस्तान पर दबाव बनाने में भारत, चीन के कारण मुष्किल में रहता है तो सोचना यह भी पड़ेगा कि दर्जन भर मुलाकातों का लाभ आखिर भारत को क्या मिला।
 संकोच नहीं करना है बल्कि डट कर मोदी को अपनी मन की बात करनी चाहिए वैसे ऐसा करते हुए भी दिखाई दे रहे हैं पर जमीन पर क्या उतरेगा यह बाद में पता चलेगा। अमेरिका जैसे देष ऐसी स्थिति में ‘अमेरिका फस्र्ट’ की नीति पर चलते हैं। भारत को भी अब ‘भारत फस्र्ट’ की नीति पर चलना चाहिए। अब निर्णायक कार्यवाही की प्रतीक्षा नहीं करनी है बल्कि षत्रु को फैसला सुनाना है। भारत को यह नहीं भूलना चाहिए कि अलकायदा के एक हमले ने अमेरिका को इतना विक्षिप्त किया कि दषक तक प्रयास करने के बाद भी थका नहीं। अन्ततः पाकिस्तान के एटबाबाद में ओसामा बिन लादेन को मार गिराया जिसका नामो-निषान का आज तक पता नहीं है। वही अमेरिका आज भारत के साथ है, रूस से हमारी नैसर्गिक मित्रता है, यूरोपीय देषों मुख्यतः फ्रांस, जर्मनी, इग्लैण्ड में भारत की धमक है। पी-5 अर्थात अमेरिका, रूस, चीन, फ्रांस और ब्रिटेन के साथ भी पुलवामा मामले में भारत की पहल देखी जा सकती है। देखा जाय तो उत्तर से दक्षिण और पूरब से पष्चिम के तमाम देषों से भारत के अच्छे सम्बन्ध हैं। पड़ोसी देषों में चीन को छोड़ दिया जाय तो सभी सार्क व आसियान के देषों के साथ भारत की सद्भाव से भरे रिष्ते हैं जिसका मनोवैज्ञानिक लाभ पुलवामा बदला लेने में काम आ सकता है।
पुलवामा हमले की जिम्मेदारी लेने वाले आतंकी संगठन जैष-ए-मोहम्मद का पाकिस्तान मंे ठिकाना है और उसे वहां की सरकार द्वारा संरक्षण प्राप्त है। इतना ही नहीं पाकिस्तानी सेना से उसे मिला मनोबल ने भारत को गहरी चोट दे दी है। स्पश्ट है कि अब एक्षन की बारी भारत की है। गौरतलब है अमेरिका ने 2001 जैष को आतंकी संगठन घोशित किया था। जिस पाकिस्तान की सरपरस्ती में जैष बडा वृक्ष बना है उसे पाकिस्तान ने ही 2002 में गैर कानूनी घोशित किया था। इसके अलावा संयुक्त राश्ट्र सुरक्षा परिशद ने जैष को अपनी 1267 आईएस और अलकायदा प्रतिबन्धित सूची में ढाला था पर नतीजे ढाक के तीन पात ही रहे। फिलहाल इन दिनों पाकिस्तान पर दबाव बढ़ा है पर बात इतने से बनेगी नहीं, जब तक भारत स्वयं इसका बदला नहीं लेगा। जब 2500 से अधिक सीआरपीएफ जवानों पर हमला हो तो सवाल यह भी है कि चूक किसकी है और इस चूक की कीमत कितनी बड़ी हो सकती थी। पुलवामा हमला सामरिक परिप्रेक्ष को भी चुनौती दे रहा है। पाकिस्तान क्या चाहता है तीन युद्ध में पटखनी खा चुका है साफ है सीधे लड़ाई करना नहीं चाहता। गौरतलब है जिया-उल-हक ने अफगानिस्तान में कठपुतली सरकार को जब बैठाया और भारत के विरूद्ध छद्म युद्ध छेड़ा तभी से देष चोट की दल-दल में फंस गया। ऐसा करने के पीछे बड़ी वजह यह थी कि पाकिस्तान जानता था कि यदि अफगानिस्तान कब्जे में होगा और भारत की प्रतिक्रिया के कारण यदि पाकिस्तानी सेना को पीछे हटना पड़ा तो उसे जगह मिल जाऐगी। हालांकि यह दौर षीतयुद्ध का था और सोवियत संघ ने अफगानिस्तान पर कब्जा कर लिया। यह भी कहीं न कहीं जिहादी आतंकवाद के उदय का एक कारण बना। देखा जाय तो 1989 में पाकिस्तान ने जिहादी आतंकवादियों को कष्मीर में संरक्षण देकर भारत के खिलाफ एक छुपी जंग षुरू कर दी जिसकी तीन दषक की यात्रा हो चुकी है और भारत लगातार आतंक की मार झेल रहा है, पुलवामा उसी की एक कड़ी है। आतंक से भारत कैसे मुक्त हो मानो देष के लिए रहस्य ही हो गया है। दुनियां कितना साथ देगी, इस पर भी दृश्टिकोण बहुत साफ नहीं है पर सकून इस बात का है बडे़ देष बड़ा दिल दिखा रहे हैं। बावजूद इसके यह लड़ाई भारत की है और दुनियां की सोच यदि इस लड़ाई में भारत  के साथ मेल खाती है तो जाहिर है पाकिस्तान को सबक सिखाना तुलनात्मक आसान हो जायेगा।

सुशील कुमार सिंह
निदेशक
वाईएस रिसर्च फाॅउन्डेशन ऑफ पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन 
डी-25, नेहरू काॅलोनी,
सेन्ट्रल एक्साइज ऑफिस के सामने,
देहरादून-248001 (उत्तराखण्ड)
फोन: 0135-2668933, मो0: 9456120502
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