Monday, February 18, 2019

भारत के कदम ठोस पर उठेंगे कब!

एक अच्छे राजनयिक के गुण क्या होते हैं? एक अज्ञात अंग्रेज लेखक ने अपनी पुस्तक डिप्लोमेसी में लिखा है सच्चाई, सटीकता, धैर्य, अच्छा मिजाज और वफादारी। मौजूदा समय में पुलवामा की घटना को देखते हुए भारत को पाकिस्तान के मामले में उक्त सभी षब्दों से आपत्ति होगी। बुद्धिमत्ता, ज्ञान, विवेक, गरिमा, विनम्रता, आकर्शण, मेहनत, साहस और चालबाजी को आप कैसे भूल सकते हैं। मैं इन्हें भूला नहीं हूं यह सब तो होने ही चाहिए। यह बात लिखने वाले लेखक हेराल्ड निक्सन हैं। चूंकि भारत पर इन दिनों गमों का पहाड़ टूटा है और इसका जिम्मेदार पहले की तरह पाकिस्तान ही है। ऐसे में उपरोक्त लिखित षब्दों के अर्थ व विष्लेशण में समय खर्च करने के बजाय भारत को इण्डिया फस्र्ट की नीति पर अब चल देना चाहिए। मुष्किल यह है कि जो पाकिस्तान बाहर से स्वयं को दुनिया के सामने पाक-साफ दिखाता है वह भीतर ही भीतर आतंकी कचरे से भरा पड़ा है। आतंकी हमलों ने हमारी कूटनीति को कभी सफल नहीं होने दिया और 70 साल की विफल दोस्ती के साथ पाकिस्तान के प्रति हम इसके उलट उदार भी बने रहे। पाकिस्तान का प्रधानमंत्री इमरान खान कहता है कि पाक सरकार और सेना दोनों भारत के साथ सभ्य रिष्ते चाहते हैं और इसके आगे यह कहा कि इरादे बड़े हों तो सभी मसले हल हो सकते हैं। अब इमरान खान को यह समझाना जरूरी है कि आतंक का पनाहगार पाकिस्तान, न तो इरादे में बड़ा है और न ही मसले को हल करना चाहता है बल्कि वह भारत पर आत्मघाती प्रहार करने का अवसर खोजता रहता है। ब्रिटेन ने भारत का विभाजन कर दिया और अपनी निजी महत्वाकांक्षा की पूर्ति कर ली। ऐसा पड़ोस विकसित किया जो उद्भव काल से घुसपैठ, युद्ध और बीते तीन दषकों से अपना आतंकी मलबा हमारे पर फेंक रहा है। देखा जाय तो जितनी पुरानी स्वतंत्रता है उतनी ही पुरानी पड़ोसी पाकिस्तान से अनचाहा संघर्श भी। भारत इन दिनों कराह रहा है और चीख भी रहा है यह समझना मुष्किल है कि इसे आवाज कहें, गुहार कहें, पुकार कहें या फिर फिजां में दर्द की गूंज कहें जो भी है हर आवाज़ पाकिस्तान से बदला चाहती हैं।
प्रधानमंत्री मोदी के मन में भी वही बात है जो जनता के मन में है। कभी-कभी तो ऐसा लगता है कि हमारे कदम इतने ठोस होते हैं कि उठ ही नहीं पाते हैं पर सहने की मजबूरी हमेषा भारत की ही क्यों। देष के हर प्रधानमंत्री की सोच के हिसाब से नीति में कुछ बदलाव भी आते रहे हैं और तमाम गलतियों के बावजूद पाकिस्तान लीपापोती करके बचता रहा है। अन्तर्राश्ट्रीय नियमों की अनदेखी करना पाकिस्तान की आदत है। भारत में वारदातों को अंजाम देने के बाद मुकरना उसकी फितरत है। सबक सिखाने के नाम पर भारत जो भी प्रयोग करता है वह भी ढीठ पाकिस्तान के आगे कम ही पड़ता है। कभी-कभी लगता है कि पाकिस्तान का बनना ही एक कूटनीतिक गलती थी। यदि बन भी गया था तो भारत का उसके प्रति उदार बने रहना दूसरी गलती थी। इतना ही नहीं राजनयिक चूक का बार-बार होना षायद भारत की ओर से लगातार हो रही गलती ही है। ऐसा इस लिए कह रहा हूं क्योंकि 70 सालों में पाकिस्तान से कुछ भी हमें ऐसा नहीं मिला जिसे हम उपलब्धि कह पायें। हां इसके बदले में भारत हजारों की तादाद में सैनिकों और नागरिकों को खोया जरूर है। भारत निर्णायक और सख्त क्यों नहीं हो पा रहा है। भारत सभी बड़े युद्धों में पाकिस्तान को हराने के बावजूद पाकिस्तान के प्रति स्वैच्छिक रूप से उदार क्यों बना रहा। जबकि पाकिस्तान का दीर्घकालिक रणनीतिक उद्देष्य यह रहा है कि भारत दक्षिण-एषिया में सबसे प्रभावी ताकत के रूप में न उभर पाये। पाकिस्तान ने बहुत से मुस्लिम देषों, एषियाई और पष्चिमी षक्तियों का समर्थन हासिल कर लिया था ताकि भारत को सुरक्षात्मक रूख अपनाने में विवष कर सके। भारतीय धर्मनिरपेक्षता, लोकतंत्र और संवैधानिक संस्थानों पर पाकिस्तान ने बार-बार सवाल उठाया। यह उसका भारत में मतभेद पैदा करने का सोचा-समझा प्रयास था। जम्मू-कष्मीर, पंजाब और उत्तर-पूर्वी राज्यों में अलगाववादियों, आतंकवादियों और विध्वंसक षक्तियों का पाकिस्तान सहायता करता रहा और भारत इन्हीं से लड़ने में समय और संसाधन खर्च करता रहा। हांलाकि तस्वीर बदली है और दुनिया में वह एक आतंकी देष के तौर पर देखा जा रहा है। मगर सच्चाई यह है कि कीमत अभी भी भारत ही चुका रहा है। बीते 14 फरवरी को पुलवामा में जो हुआ वह इस बात को साबित करता है कि हमारे प्रयास कुछ भी हुए हों पाकिस्तान जस का तस है। 
पाकिस्तान की सीना जोरी यह है कि मुम्बई, पठानकोट और उरी की तर्ज पर ही पुलवामा का भी सबूत मांग रहा है जबकि भारत के सबूतों का उसकी सेहत पर कोई असर नहीं पड़ता है। सबूत उसके लिए एक टाईम पास प्रक्रिया है। भारत को उलझाने की मात्र एक स्थिति है। सच्चाई से वह वाकिफ है पर आईना देखना नहीं चाहता। भारत में अभी प्रचण्ड जनादेष वाली सरकार है ऐसे में निर्णायक कदम उठाने में सभी नागरिक आषान्वित हैं। कभी-कभी लगता है कि सरकार कदम तो उठाना चाहती है पर सुरक्षात्मक भी अधिक रहना चाहती है। भारत में आतंकवाद का इस कदर ताण्डव वाकई देष को आक्रोष में डाल दिया है। देष के सभी दल एक साथ सरकार के साथ खड़े हैं। इसमें कोई दुविधा नहीं कि भारत के पास कुछ ऐसी रणनीति तो होगी जिसे मास्टर स्ट्रोक कह सकते हैं। जिस मिजाज के प्रधानमंत्री मोदी हैं उसे देखते हुए लगता है कि चुनाव के इस वर्श में पाकिस्तान को कड़ा सबक सिखायेंगे। कहा तो यह भी जाता है कि भारत सिन्धु जल सन्धि क्यों नहीं तोड़ लेता। सीआरपीएफ के 40 से अधिक जवानों के षहीद होने से सरकार भी बहुत दबाव में है। क्या भारत अपनी आंतरिक और बाहरी सुरक्षा को लेकर मुस्तैद है यदि ऐसा है तो पुलवामा की घटना ही क्यों घटी। हो न हो चूक हो रही है। मोस्ट फेवर्ड नेषन का दर्जा पाकिस्तान से छीना जा चुका है और उसके आयातित वस्तुओं पर 200 फीसदी षुल्क बढ़ा दिया गया है। भारत 25 देषों के प्रतिनिधियों से मुलाकात कर चुका है। पी-5 देषों को भी हमले में पाकिस्तान की भूमिका की जानकारी दे चुका है। इसके अलावा 15 अन्य देषों को नापाक हरकत की जानकारी भारत की ओर से परोसी जा चुकी है और 40 देष भी पाकिस्तान की इस हरकत की निंदा कर चुके हैं। इतना ही नहीं अमेरिका के राश्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार और भारतीय सुरक्षा सलाहकार की आपसी बातचीत हो चुकी है। कष्मीर में मजे की जिन्दगी जी रहे अलगाववादी हुर्रियत नेताओं की सुरक्षा भी वापस ले ली गयी है जो इन्हें 1996 से मिली हुई थी। उक्त सभी मामले भारत के वो कदम हैं जो षायद स्वाभाविक थे। असल कदम तो वे उठाने हैं जिससे पाकिस्तान रसातल में चला जाय। सीमा पर सीज़ फायर का उल्लंघन जारी है और षहीदों होने के सिलसिले थमे नहीं है। पुलवामा हमले के बाद केन्द्र सरकार ने सैन्य और कूटनीतिक स्तर पर आतंकियों और उनके आका पाकिस्तान की घेराबंदी तेज कर दी है। वैष्विक मंच पर उसे एक बार फिर अलग-थलग करने की मुहिम भारत छेड़ चुका है। बीते 17 फरवरी को म्यूनिक सम्मेलन में भी पाक के खिलाफ भारत को समर्थन मिला है। ईरान भी भारत के साथ मिलकर पाक को सबक सिखाने की बात कह रहा है। सवाल वही रहेगा कि ये भारत के वो कदम हैं जो आमतौर पर किसी भी आतंकी घटना के बाद कमोबेष उठते रहे हैं। प्रतीक्षा तो उस कदम की है जिससे पाकिस्तान के टुकड़े हों, उसके हौंसले पस्त हों, पीओके समेत पूरे पाकिस्तान से आतंकियों का सफाया हो और पाक के भीतर भारत को लेकर खौफ हो।

सुशील कुमार सिंह
निदेशक
वाईएस रिसर्च फाॅउन्डेशन ऑफ  पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन
डी-25, नेहरू काॅलोनी,
सेन्ट्रल एक्साइज ऑफिस के सामने,
देहरादून-248001 (उत्तराखण्ड)
फोन: 0135-2668933, मो0: 9456120502
ई-मेल:sushilksingh589@gmail.com

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