Thursday, February 14, 2019

कई अर्थो मे खास रही सोलहवीं लोकसभा

बजट सत्र के सम्पन्न होने के साथ मई 2014 में गठित 16वीं लोकसभा में सत्रों का सिलसिला खत्म हो गया हालांकि इसका कार्यकाल मई तक बना रहेगा। 1 फरवरी को बजट पेष करने की षुरूआत साथ ही आम बजट और रेल बजट का एकीकरण का गवाह 16वीं लोकसभा ही कहा जायेगा। ध्यानतव्य हो कि औपनिवेषिक काल में पहली बार एक्वर्थ कमेटी की सिफारिष पर रेल बजट को अलग से पेष करने की परम्परा 1924 में षुरू हुई थी। तब से यही परम्परा जारी थी पर मोदी षासनकाल में इसे सामान्य बजट में षामिल कर दिया गया। सबसे बड़ी खासियत यह भी रही कि पूरे पांच साल के कार्यकाल में सरकार राज्यसभा के मामले में अल्पमत में भी रही। इसी कारण तीन तलाक और नागरिकता संषोधन विधेयक सरकार पारित नहीं करवा पाई जो आगामी जून में इतिहास बनकर रह जायेगा। फिलहाल लोकसभा की कुल 327 और राज्यसभा की 325 बैठकें इस पांच साल के दौरान हुईं। कुल 219 विधेयक पेष किये गये जिसमें से 203 पारित हुए। जीएसटी को क्रांतिकारी आर्थिक कानून की दृश्टि से देखा और जाना गया। दिवालिया कानून, और आर्थिक भगोड़े के खिलाफ कानून भी पारित किये गये। लोकसभा को उत्पादकता की दृश्टि से देखा जाय तो यह 83 फीसदी है जो 2009 से 2014 के बीच 15वीं लोकसभा की तुलना में 20 फीसदी अधिक है। हालांकि 2004 से 2009 14वीं लोकसभा से तुलना किया जाय तो उससे 16वीं लोकसभा की उपादकता दर 4 फीसदी कम है। 16वीं लोकसभा का एक अच्छा संदर्भ यह भी है कि इसमें 44 महिला सांसद चुन कर आयी थी जो अब तक की सर्वाधिक संख्या है। इनकी उपस्थिति तथा संसद में भागीदारी साथ ही सवाल पूछने आदि के मामले में भी भूमिका अग्रणी देखी जा सकती है। 
सबसे महत्वपूर्ण यह है कि 1984 के बाद 2014 में ठीक तीन दषक बाद एक पूर्ण बहुमत की सरकार भारत में बनी। उम्मीद की गयी थी कि जो कृत्य गठबंधन की सरकारों में कई बाधाओं के कारण पूरा नहीं हो पाये थे उनके पूरक का काम मोदी की यह सोलहवीं लोकसभा वाली बहुमत की सरकार करेगी। लोकतंत्र का अद्भुत परिप्रेक्ष्य यह भी रहा है कि कमजोर सरकार हो तो खींचातानी में वक्त गंवा देती है और मजबूत हो तो मनमानी के प्रभाव से मुक्त नहीं रहती है। महात्मा गांधी ने कहा था कि मजबूत सरकारें जो करते हुए दिखाई देती हैं असल में वो करती नहीं है। मोदी सरकार पर यह तोहमत लगता रहा है कि उन्होंने मजबूत सरकार का मनमाने ढंग से उपयोग किया है। ऐसे में सवाल है कि 16वीं लोकसभा ने अपने पूरे 14 सत्रों में क्या हासिल किया और यह मोदी सरकार के लिए कितना खास रहा। प्रधानमंत्री मोदी ने 16वीं लोकसभा में अपने आखिरी भाशण में कहा कि कांग्रेस के गोत्र के बगैर तीन दषकों से यह पहली बहुमत की सरकार है। अपनी उपलब्धियों का जिक्र किया। विरोधियों पर तंज कसा और मुलायम सिंह यादव का अभिवादन स्वीकार किया। गौरतलब है कि समाजवादी के मुलायम मोदी को पुनः प्रधानमंत्री के रूप में देखना चाहते हैं। इसमें कोई दुविधा नहीं कि कुछ महत्वपूर्ण कानून बने और कई ऐतिहासिक फैसले लिए गये। नोटबंदी एवं जीएसटी आर्थिक परिवर्तन की दिषा में उठाये गये बड़े कदम थे। हालांकि इसे लेकर कई आर्थिक कठिनाईयों को भी देष ने देखा। सुगम पथ क्या है इसकी पड़ताल पूरी नहीं हुई है और जनता को सरकार से क्या मिला। इसका भी रिपोर्ट कार्ड अभी अधूरा है। हालांकि सरकार अपनी ओर से खास मान रही है पर यह तभी पूर्णांक को प्राप्त कर पायेगा जब 17वीं लोकसभा में इनकी वापसी होगी। 
इस लोकसभा का विषेश महत्व इसलिए भी कहा जायेगा क्योंकि यहां मान्यता प्राप्त विपक्ष का आभाव था। गौरतलब है कि कांग्रेस 44 सीट पर सिमट गयी थी जो विरोधियों में सबसे बड़ा दल था। विपक्ष की मान्यता हेतु 55 सदस्य होने अनिवार्य हैं। सत्ता पक्ष और कांग्रेस के बीच सम्बंधों में तल्खी पूरे दौर तक बनी रही बल्कि स्तर भी तुलनात्मक काफी गिरा हुआ था। राज्यसभा में भी स्थिति बहुत अच्छी नहीं कही जायेगी। यहां भी सदन के भीतर स्तर काफी नीचे था। खास यह रहा कि लोकसभा में पूर्ण बहुमत की सरकार और राज्यसभा में 16वीं लोकसभा के पूरे कार्यकाल के दौरान अल्पमत की स्थिति बनी रही। सत्तासीन और विपक्ष के बीच जिस तरह से तरकष पूरे 5 साल छोड़े गये वह लोकतंत्र के लिए षुभ नहीं है। जीएसटी, तीन तलाक और राफेल मुद्दे को लेकर दोनों सदनों में सबसे ज्यादा हंगामा हुआ। राफेल मुद्दे पर तो हंगामा इस कदर बरपा कि राश्ट्रपति के अभिभाशण प्रस्ताव और वित्त विधेयक जैसे महत्वपूर्ण संदर्भ बिना बहस के ही पारित करने पड़े। यह चिंता लाज़मी है कि सदन की गरिमा बनाने वाले कहां से आयेंगे। सम्भव है कि लोकतंत्र में जनता के प्रतिनिधि ही फिर चुनकर आयेंगे। क्या उनसे फिर यह उम्मीद की जाये कि 17वीं लोकसभा में बहुत कुछ सकारात्मक होगा? इन सबसे जनता को यही संदेष गया है कि संसद में बहस का स्तर गिरता जा रहा है। सूझबूझ भरा संदर्भ यह भी है कि उच्च सदन को वरिश्ठ और बुद्धजीवियों का सदन माना जाता है वहां भी अफरातफरी 5 साल बरकरार रही। कहा जाय तो राज्यसभा में लोकसभा से अधिक हंगामा हुआ। 16वीं लोकसभा का कामकाज खत्म होने के मौके पर पक्ष-विपक्ष गले-षिकवे दूर करते हुए दिखे। सवाल है कि क्या सदन से जो अपेक्षित था वह पांच वर्शों में पूरा हुआ है सम्भव है इसका जवाब न में ही होगा पर मोदी सरकार अपने रिपोर्ट कार्ड बड़ा और व्यापक मानेगी। 
अगली लोकसभा की चुनावी लड़ाई एक बार फिर मैदान में है। आरोप-प्रत्यारोप का दौर भी बुलंदी पर है। 16वीं लोकसभा में बहुमत से भरी मोदी सरकार को 17वीं लोकसभा में धूल चटाने के लिए विपक्षी लामबंध हो रहे हैं। उत्तर प्रदेष के सियासी अखाड़े में जहां सपा-बसपा और आरएलडी गठबंधन के साथ मोदी से मुकाबला करने का इरादा जता चुका हैं वही कांग्रेस में प्रियंका गांधी की एंट्री सियासत को एक नया रूक दे दिया है। राजनीति रोजाना की दर से परिवर्तन ले रही है और 17वीं लोकसभा को जीतने का मन्सूबा सभी के मन में कुलांछे मार रहा है। एक तरफ मोदी तो दूसरी तरफ मोदी विरोधी हैं। मोदी के 5 साल के कार्यकाल में किये गये कृत्यों को जनता के विरूद्ध मानते हुए विरोधी लोकतंत्र को जहां हथियाने की फिराक में है वहीं मोदी इसे अव्वल दर्जे का रिपोर्ट कार्ड मानते हैं। 16वीं लोकसभा कई महत्वपूर्ण विधाओं से युक्त कही जायेगी। इसकी एक नकारात्मक खासियत यह भी रही है कि सरकार बहुमत में होने के बावजूद गैर मान्यता प्राप्त विपक्ष से कहीं अधिक परेषान रही है। क्या यह उम्मीद लगायी जानी चाहिए कि लोकतंत्र में चैकन्ना लोगों को ही रहना है। सियासी पैतरें में जिस तरह की तस्वीरें उभरती हैं उससे तो यही लगता है कि राजनीतिज्ञ अपनी महत्वाकांक्षा को लेकर कहीं अधिक प्रभावित रहते हैं। किसान, गरीब और बेरोजगार को इस सरकार ने क्या दिया। इसकी पड़ताल सब अपने ढंग से कर रहे हैं। सवर्णों को दस फीसदी आरक्षण इसी लोकसभा की देन है। इतना ही नहीं किसानों के प्रतिमाह सम्मान राषि को भी सरकार ने देकर अंतिम समय में कुछ और अंक बढ़ाने का प्रयास किया है। बावजूद इसके यह बात समझने वाली रहेगी कि पांच साल की सरकारें सब कुछ अंतिम साल में ही क्यों करती हैं। महंगाई की मार से पूरा पांच साल कमोबेष अटा रहा इससे इंकार करना मुष्किल है। हालांकि सरकार सब कुछ सही करने की बात कह कर जनता से राहत मांगती रही। नोटबंदी के बाद यह चित्र तेजी से उभरा था। फिलहाल 16वीं लोकसभ अंत की ओर है और 17वीं का आगाज होने वाला है क्या खोया, क्या पाया की पड़ताल आगे भी होगी, इस उम्मीद में कि भविश्य में सरकार चाहे मजबूर आये या मजबूत जनता की भलाई में चूक न हो। 

सुशील कुमार सिंह
निदेशक
वाईएस रिसर्च फाॅउन्डेशन ऑफ  पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन 
डी-25, नेहरू काॅलोनी,
सेन्ट्रल एक्साइज ऑफिस  के सामने,
देहरादून-248001 (उत्तराखण्ड)
फोन: 0135-2668933, मो0: 9456120502
ई-मेल: sushilksingh589@gmail.com

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