Wednesday, February 6, 2019

भारतीयता की जमावट है संघात्मक ढांचा

समाकलित दृश्टिकोण के अंतर्गत क्या यह सोच समुचित है कि पष्चिम बंगाल में उपजे विवाद ने संविधान में निहित संघात्मक ढांचा और दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र को चुनौती दी है। उक्त के आलोक में कई तार्किक पक्ष उभरने लाज़मी हैं और कई सवालों की षायद पुर्नवापसी भी सम्भव है। आखिर जब सब कुछ भारतीय संविधान में स्पश्ट है तो सरकारों के आपसी मतभेद में वही चोटिल क्यों हो रहा है? भारतीय संविधान में संघात्मक प्रणाली की व्यवस्था की गयी है। गौरतलब है कि केन्द्र षब्द का प्रयोग संविधान में न करके संघ षब्द का संदर्भ निहित है। केन्द्र किसी परिधि के मध्य का बिन्दु दर्षाता है जबकि संघ पूर्ण परिधि का द्योतक है। इसी के चलते भारत की सरकार को संघीय सरकार कहा गया और केन्द्र-राज्य के बजाय संघ-राज्य सम्बंध  का वर्णन यहां मिलता है। संविधान के अनुच्छेद 1 में स्पश्ट है कि भारत राज्यों का संघ है परंतु सच्चाई यह है कि भारतीय संघ की स्थापना राज्यों की आपसी सहमति या करार का परिणाम नहीं, बल्कि संविधान सभा की घोशणा है जिसे भारत के लोगों की षक्ति प्राप्त है। सषक्तता से भरी बात यह भी है कि राज्यों को संघ से अलग होने का अधिकार कत्तई नहीं है। जबकि भाग 11 और 12 के अनुच्छेद 245 से 300 के बीच विधायी, कार्यकारी और वित्तीय सम्बंधों का विस्तृत निरूपण दोनों के बीच देखा जा सकता है। संघीय राज्य में षक्तियों का बंटवारा केन्द्र तथा राज्य इकाईयों के बीच पूरे मन और पूर्ण विधा से किया गया है। बावजूद इसके केन्द्र और राज्य की सरकारें अपने राजनीतिक और क्षेत्रीय हितों को ध्यान में रखकर दो-चार होती रहती हैं। पष्चिम बंगाल में जो विवाद बीते दिनों बढ़ा वह राजनीतिक अधिक प्रतीत होता है। माना यदि किसी प्रकार के नियम पालन में यहां त्रुटि थी भी तो संयम की कहीं अधिक आवष्यकता क्या नहीं थी। 
भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है। षायद यही कारण है कि राजनीतिक समानता के महत्व यहां दरकिनार है। न्यूनतावादी और विस्तृत दृश्टिकोणों के बीच राजनीतिक दल एक-दूसरे की काट खोजते रहते हैं। नागरिक केवल एकमत का अधिकार रखता है जिसका अधिकार उसे संविधान और संसदीय अधिनियम देते है और ऐसा उसे प्रति 5 वर्श में एक बार संघीय सरकार हेतु तो एक बार जिस राज्य में निवासी है वहां की सरकार की स्थापना में योगदान देता है। लोकतंत्र का यही आधार है कि सरकारें लोक प्रवर्धित अवधारणा को विकसित करें और जन सषक्तता को महत्व दें जबकि संघात्मक ढांचा यह दर्षाता है कि संविधान की मूल भावना का अनादर कोई न करे और संविधान में जो कुछ जिसके लिए भी कहा गया है उसका अनुपालन करें। संविधान संघात्मक भी है और एकात्मक भी कुछ तो इसे अर्द्धसंघात्मक भी कहते हैं। ऐसा यहां कि परिस्थिति और बनावट के कारण है। टकराहट न हो इसी को लेकर संविधान कई उपायों से युक्त है। बावजूद इसके बड़ी और छोटी सरकारें जब लड़ बैठें तब लोकतंत्र और संघात्मक ढांचे का क्या होगा यहां लाख टके का सवाल खड़ा हो जाता है। गौरतलब है भी है कि एक संघीय सरकार राज्य सरकारों को समय और परिस्थिति के अनुपात में पोशण भी करती है और संरक्षण भी देती है पर ऐसे की सम्भावना तभी अधिक दिखती है जब दोनों स्थानों पर एक दल की सरकार हो। भारत की विडम्बना यह है कि यहां विविधता से भरा लोकतंत्र है जहां क्षेत्रीयता और राश्ट्रीयता साथ-साथ चलते रहते हैं। षायद यही संघर्श का बड़ा कारण भी है। जब सत्ता पोशित हो जाती है तो यहां संघीय सरकार का मुख्य लाभ यह भी रहा है कि यह छोटे राज्यों को बड़े तथा षक्तिषाली राज्यों के साथ एकजुट होने और उनसे फायदा उठाने के योग्य बनाता है। राजनीतिक विचारक हैमिल्टन का कथन है कि संघीय राज्य राज्यों का एक संगठन है। जाहिर है संघ और राज्य की अवधारणा संविधान की एक अनुपम छवि को दर्षाता है और भारत एक संगठनात्मक तौर पर विषाल भी बनता है पर जब सरकारें नाक की लड़ाई में फंस जायें तो सरकारों पर से न केवल भरोसा टूटता है बल्कि लोकतंत्र भी अविष्वास के दायरे में चला जाता है। पष्चिम बंगाल सरकार और केन्द्र सरकार के बीच सम्बंध इस कदर बिगड़े हैं कि वे एक-दूसरे से दूर छिटकने लगे हैं तो सवाल खड़े हो जाते हैं कि क्या इससे संघात्मक ढांचा और संविधान दोनों खतरे में नहीं जा रहे हैं। 
संविधान में संघ और राज्यों के बीच कार्यों का विस्तृत बंटवारा है। डाॅ. अम्बेडकर ने कहा है कि भारतीय संविधान संघात्मक है क्योंकि यह दोहरे षासनतंत्र की स्थापना करता है जिसमें एक संघीय है तो दूसरा परिधि में राज्य सरकारें हैं। उक्त के परिप्रेक्ष्य में देखें तो संविधान संघात्मक और एकात्मक दोनों लक्षणों से युक्त और भारतीय परिस्थितियों के अनुकूल है। संघात्मक होते हुए भी संघ के पक्ष में झुका हुआ है और आपातकालीन परिस्थितियों में तो यह एकात्मक का रूप भी धारण कर लेता है। अब सवाल है कि पष्चिम बंगाल में सीबीआई के राज्य में प्रवेष को लेकर जो घमासान हुआ वह कितना वाजिब है। क्या सीबीआई जो केन्द्रीय सरकार की एक जांच एजेन्सी है उसे सम्बन्धित राज्य से जांच हेतु पहले अनुमति लेना आवष्यक है? संघात्मक अवधारणा के अन्तर्गत यह तार्किक दिखाई देता है कि जांच एक सामान्य प्रक्रिया है। ऐसे में राज्य सरकार की किसी अधिकारी से मामले विषेश में पूछताछ को लेकर अनुमति लेनी चाहिए। यदि यहां संघ इस अनुपालन से बाहर है तो संघात्मक व्यवस्था के साथ अनुकूलन की समस्या हो सकती है लेकिन एक पक्ष यह भी है कि यदि कोई राज्य केन्द्र सरकार की एजेन्सी विषेश को इन्वेस्टिगेषन करने से ही रोक लगा दी हो तो भी यह क्या उसी संघात्मक ढांचे के विरूद्ध नहीं है। गौरतलब है कि आन्ध्र प्रदेष और पष्चिम बंगाल की सरकारों ने सीबीआई की इन्वेस्टिगेषन पर पहले से रोक लगायी हुई है। ऐसे में सवाल खड़ा होता है कि संघ की परिधि में भ्रमण कर रहे राज्यों में केन्द्रीय एजेन्सियों से इतना खौफ क्यों है? दूसरा यह कि किस षक्ति के अंतर्गत राज्य केन्द्रीय एजेन्सियों को राज्य में घुसने से रोक लगा रहे हैं। समझना तो यह भी है कि क्या राज्यों को यह अधिकार है कि केन्द्र सरकार के किसी अभिकरण को ही अपने राज्य में आने से रोक सकें जबकि षक्तिषाली केन्द्रीय सरकार का पोशण संविधान में दिखाई देता है। भारत में संघ राज्य के बीच 7वीं अनुसूची के अंतर्गत कार्यों का बाकायदा बंटवारा है न कि राज्यों का कोई अलग से संविधान है। एकल संविधान, एकल नागरिकता, एकीकृत न्याय व्यवस्था, संविधान संषोधन की षक्ति समेत आपातकालीन षक्तियां व कई उपबंध एकात्मक लक्षण को दर्षाते हैं साथ ही षक्तियों का विभाजन भले ही संघ सूची, राज्य सूची एवं समवर्ती सूची के रूप में हों पर जब परिस्थिति सामान्य न हो तो अवषिश्ट षक्तियों समेत सभी पर संघ का अधिकार अधिरोपित हो जाता है। जाहिर है संविधान में संघ को कहीं अधिक षक्तिषाली बनाया है ऐसा परिस्थितियों के चलते हुआ। ऐसे में एक प्रष्न यह उठता है कि संघ बनाम राज्य की अवधारणा फिर क्यों विकसित हो जाती है। फिलहाल षारदा चिट फण्ड से जुड़े मामले में पूछताछ हेतु सीबीआई जिस अधिकारी से पूछताछ करना चाहती थी उसका निपटारा सुप्रीम कोर्ट के माध्यम से हो गया। गौरतलब है यह मामला 2013 का है और सुप्रीम कोर्ट ने असम, ओडिषा समेत पष्चिम बंगाल पुलिस को 2014 में इस मामले में सहयोग की बाबत बात कही थी। ऐसे में जब मामला बिगड़ गया तो सुप्रीम कोर्ट की षरण में सीबीआई को जाना पड़ा। अन्ततः षीर्श अदालत के रास्ते सभी को राहत मिली। बावजूद इसके दो टूक यह है कि भारतीय संविधान संघात्मक व्यवस्था का एक ऐसा लक्षण है जिसमें भारतीयता की जमावट है जो भेदभाव व तकरार की नहीं समन्वय और सहयोग की आवष्यकता महसूस करता है।

सुशील कुमार सिंह
निदेशक
वाईएस रिसर्च फाॅउन्डेशन आॅफ पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन 
डी-25, नेहरू काॅलोनी,
सेन्ट्रल एक्साइज आॅफिस के सामने,
देहरादून-248001 (उत्तराखण्ड)
फोन: 0135-2668933, मो0: 9456120502
ई-मेल: sushilksingh589@gmail.com

No comments:

Post a Comment