Thursday, February 14, 2019

न्याय की बात जोहता हिन्दू अल्पसंख्यक

2011 की जनगणना के आंकड़े यह दर्षाते हैं कि पूर्वोत्तर के मिजोरम, नागालैण्ड, मेघालय, अरूणाचल प्रदेष और मणिपुर, तथा उत्तर भारत के जम्मू-कष्मीर और पंजाब सहित दक्षिण का केन्द्र षासित प्रदेष लक्ष्यद्वीप हिन्दू अल्पसंख्यकों में आते हैं। बीते 11 फरवरी को एक याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने राश्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग से इससे जुड़े मामले पर निर्णय लेने की बात कही। षीर्श अदालत ने कहा कि वह पांच समुदाय को अल्पसंख्यक घोशित करने की 1993 की अधिसूचना रद्द करने, अल्पसंख्यकों की परिभाशा व पहचान तय करने साथ ही जिन आठ राज्यों में हिन्दू की संख्या बहुत कम है वहां हिन्दुओं को अल्पसंख्यक घोशित करने वाले मांग को ध्यान में रखते हुए तीन महीने में आयोग निर्णय ले। गौरतलब है कि भारत में मुसलमान, ईसाई, बौद्ध, सिक्ख और पारसी अल्पसंख्यक घोशित किये गये हैं। परिप्रेक्ष्य व दृश्टिकोण यह है कि भाजपा के एक नेता और वकील अष्वनी कुमार की याचिका पर प्रधान न्यायाधीष रंजन गोगोई और जस्टिस संजीव खन्ना की पीठ ने उक्त मामले में आदेष दिये। दरअसल इस मामले में षीर्श अदालत के 10 नवम्बर, 2017 के आदेष के अनुसार राश्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग को ज्ञापन दिया गया था पर उस पर आयोग ने कोई जवाब नहीं दिया। ऐसे में एक नई याचिका दाखिल की गई जिसे लेकर उक्त बातें कही गयी। राज्यवार अल्पसंख्यकों की पहचान करने की मांग वाली याचिका पर अदालत ने ही उस समय अल्पसंख्यक आयोग को ज्ञापन देने को कहा था। 11 फरवरी को बहस सुनने के पष्चात् सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि याचिका पर अभी आदेष देने के बजाय फिलहाल आयोग को उस पर लम्बित ज्ञापन का निर्णय लेना चाहिए। जिस हेतु सुप्रीम कोर्ट ने आयोग को तीन महीने की मोहलत दी है साथ ही याचिकाकत्र्ता को यह भी कहा कि आयोग का फैसला आने के बाद ही कानून में निहित उपाय को वे अपना सकते हैं। गौरतलब है कि राश्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग की धारा 2(सी) को रद्द करने की मांग की गयी है कि इसके पीछे वजह यह है कि यह धारा मनमानेपन को बढ़ावा देती है और अतार्किक भी कही जा रही है। गौरतलब है कि इसी धारा के चलते केन्द्र को किसी भी समुदाय को अल्पसंख्यक घोशित करने का असीमित अधिकार मिला हुआ है। 
निहित संदर्भ यह भी है कि अल्पसंख्यक षब्द को परिभाशित करना कितना सरल और कितना जटिल है। संवैधानिक प्रावधानों के अन्तर्गत भावों का अध्ययन करने से पहले इस षब्द को परिभाशित करना कहीं अधिक आवष्यक है। गौरतलब है कि संविधान में अल्पसंख्यक षब्द का कई स्थानों पर प्रयोग है परन्तु इसे लेकर कोई स्पश्ट परिभाशा नहीं दिखाई देती। सामान्यतः अल्पसंख्यक उसे माना गया है जिसकी अपनी विषेश भाशा, लिपि या धर्म है और जिसकी संख्या अन्यों की तुलना में कम है। पड़ताल बताती है कि केरल षिक्षा विधेयक 1957 में अल्पसंख्यक षब्द पर उठे विवाद को लेकर निपटारा करते समय उच्चत्तम न्यायालय ने अल्पसंख्यक षब्द की व्याख्या कुछ इस तरह की थी जिसमें धर्म, भाशा और लिपि के आधार पर वर्गीकृत ऐसा समूह आता है जिसकी जनसंख्या राज्य की जनसंख्या के 50 फीसदी से कम है। देखा जाए तो इसाई, सिक्ख तथा मुस्लिम वर्ग को धार्मिक अल्पसंख्यक वर्ग के रूप में मान्यता प्रदान की गयी है। बौद्ध और जैन को लेकर भी इसी प्रकार की मान्यता की मांग उठती रही मगर संविधान में बौद्ध और जैन को हिन्दु धर्म की एक षाखा के रूप में देखा जाता रहा है। इसी के चलते इस धर्म विषेश को अल्पसंख्यक वर्ग घोशित नहीं किया गया है। संविधान के अनुच्छेद 25 के अंतर्गत स्पश्टीकरण 2 का संदर्भ लेना यहां उचित होगा जिसमें यह निहित है कि हिन्दुओं के प्रति निर्देष का यह अर्थ लगाया जायेगा कि इसके अंतर्गत सिक्ख, जैन और बौद्ध धर्म के मानने वाले व्यक्तियों के प्रति निर्देष है तथा हिन्दुओं की धार्मिक संस्थाओं के प्रति निर्देष का अर्थ तदनुसार लगाया जायेगा। अल्पसंख्यक को लेकर भारतीय संविधान मौन तो नहीं है पर मुखर भी नहीं है। संविधान में अल्पसंख्यकों के संरक्षण हेतु अनेक प्रावधान किये गये हैं हालांकि संविधान की प्रस्तावना पंथनिरपेक्ष को सुनिष्चित करता है। संविधान की ना कोई जाति है न धर्म और न ही भाशा, बल्कि यह भारतीयता की एक ऐसी जमावट है जिसमें गंगा-जमुनी संस्कृति समेत कई प्राचीन मान्यताएं इसकी फलक पर हैं। 
भारतीय इतिहास की पड़ताल यह बताती है कि हिन्दूकाल, मुस्लिम काल और ईसाई काल का यहां दौर रहा है। भारत की जमीन न केवल कई इतिहास की जमावट लिए हुए है बल्कि जाति और धर्म के संघर्श से यहां कि सभ्यता और संस्कृति युक्त रही है। इन संघर्शों के चलते सभ्यता और संस्कृति में ही बदलाव नहीं आया बल्कि भारत का भूगोल भी समय के साथ नई रेखा ग्रहण कर लिया। गौरतलब है कि 565 रियासतों को जोड़कर आधुनिक भारत का निर्माण हुआ जो अब नये भारत की डगर पर है। बावजूद इसके कई बुनियादी समस्याओं से पुराना भारत जकड़ा रहा। उसी में एक षायद अल्पसंख्यक का हित है। भारत की सामाजिक, सांस्कृतिक, धार्मिक और भाशायी विविधता जहां इसे मजबूती प्रदान करता हैं वहीं इनके बीच बढ़ी स्पर्धा ने देष को कमजोर भी किया है। इस विविधता को बनाये रखने और अल्पसंख्यक वर्गों में सुरक्षा की भावना का विकास करने को लेकर सरकार और संविधान दोनों ने कोई कसर नहीं छोड़ी है बावजूद इसके षिकायतें बरकरार बनी रही। संविधान निर्माताओं ने समानता और न्याय पर आधारित लोकतंत्रात्मक गणराज्य की कल्पना की थी और उसमें सभी का स्थान था। संविधान जब लागू हुआ तब देष की जनसंख्या 36 करोड़ थी। अब 134 करोड़ से अधिक है। सवाल दो हैं पहला यह कि जिन 8 राज्यों में हिन्दू अल्पसंख्यक हुए हैं क्या उनके अधिकार एवं उनसे जुड़ी सुरक्षा को वहां कोई खतरा है। दूसरा यह कि जिन प्रदेषों में हिन्दू बहुसंख्यक हैं क्या वहां के अल्पसंख्यक ऐसे ही खतरे महसूस कर रहे हैं। देखा जाय तो संविधान सामान्य और विषिश्ट रक्षोपाय से युक्त है। जहां अल्पसंख्यकों के हितों को विषिश्टता दिया ही गया है देष के सभी नागरिकों को समान और समुच्च अधिकार से युक्त किया गया है।
पड़ताल से यह भी स्पश्ट है कि अरूणाचल प्रदेष में ईसाई, हिन्दुओं की तुलना में एक फीसदी से थोड़े अधिक हैं जबकि मणिपुर में हिन्दु और ईसाई की जनसंख्या और भी कम अंतर के साथ है। हालांकि मिजोरम और नागालैण्ड ईसाईयों की संख्या क्रमषः 87 और 88 फीसदी से अधिक है। जम्मू-कष्मीर मुस्लिम बाहुल्य है जबकि पंजाब सिक्ख बाहुल्य माना जाता है। राश्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग अधिनियम के अध्याय 1 की धारा 2 में अल्पसंख्यक आयोग को परिभाशित किया गया है जबकि अध्याय 2 के धारा 3 में इसके गठन की पूरी प्रक्रिया दी गयी है। अल्पसंख्यक आयोग को आगामी तीन माह में षीर्श अदालत के दिषा-निर्देष का अनुपालन करते हुए 8 राज्यों के हिन्दू अल्पसंख्यकों को लेकर निर्णय लेना है। विविधताओं का देष भारत असुविधाओं से न घिरे इसको ध्यान में रखते हुए कई संवैधानिक कदम समय-समय पर उठाये गये हैं। सवाल है कि यदि हिन्दुओं को उपर्युक्त राज्यों में यदि अल्पसंख्यक का दर्जा मिल जाता है तो क्या उन्हें संविधान के भाग 3 के अनुच्छेद 29 और 30 के वे सभी अधिकार प्राप्त हो जायेंगे जो अन्य अल्पसंख्यकों को प्राप्त हैं। इसके अलावा सामान्य रक्षोपाय जिसका उल्लेख अनुच्छेद 15 से 16 के बीच है साथ ही विषिश्ट रक्षोपाय जो पूरे संविधान में बिखरा हुआ है उन सभी के हकदार वे होंगे। हालांकि संविधान भारत का है न कि राज्यों का और अधिकार भारत के नागरिकों को मिला है। जाहिर है वे सभी राज्य के निवासी हैं। भाशायी अल्पसंख्यकों के लिए भी संविधान में विषेश प्रावधान हैं जिसे अनुच्छेद 350(क) और 350(ख) के अंतर्गत देखा जा सकता है। फिलहाल हिन्दु बाहुल्य हिन्दुस्तान के जिन राज्यों में इनकी संख्या में गिरावट है और अन्य धर्म की तुलना में अल्पसंख्यक हैं उसे देखते हुए षीर्श अदालत के मद्देनजर राहत भरा कदम आगे देखने को मिलेगा। 


सुशील कुमार सिंह
निदेशक
वाईएस रिसर्च फाॅउन्डेशन ऑफ  पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन 
डी-25, नेहरू काॅलोनी,
सेन्ट्रल एक्साइज ऑफिस  के सामने,
देहरादून-248001 (उत्तराखण्ड)
फोन: 0135-2668933, मो0: 9456120502
ई-मेल: sushilksingh589@gmail.com

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