Wednesday, January 2, 2019

फिलहार राम मंदिर पर अध्यादेश नहीं

राम मन्दिर पर कानूनी प्रक्रियाओं का ही पालन करेंगे यह बात नये वर्श के आगाज के साथे प्रधानमंत्री मोदी ने स्पश्ट कर दी है। जाहिर है अध्यादेष के माध्यम से मन्दिर की चाह रखने वालों को झटका लगा होगा। वृहद बातचीत में जिस प्रकार मोदी ने नोटबंदी, जीएसटी, विपक्ष के महागठबंधन, कष्मीर में घुसपैठ, सर्जिकल स्ट्राइक व रिजर्व बैंक समेत दर्जनों विशयों पर अपने विचार रखें उसमें मंदिर से जुड़ा मामला भी था। जिसे लेकर यह कयास लगाये जा रहे थे कि सरकार अध्यादेष द्वारा इस दिषा में कदम बढ़ायेगी। इस बात का दबाव बीते कई महीनों से सरकार पर बनाया जा रहा था पर मोदी ने इस पर दो टूक बोलकर एक नये विमर्ष को जन्म दे दिया है। गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद मालिकाना विवाद मामले में याचिकाओं पर 4 जनवरी से सुनवाई करेगा। माना जा रहा है चीफ जस्टिस की अध्यक्षता वाली तीन जजों वाली बेंच मामले की सुनवाई करेगी। इस समय संसद का षीत सत्र चल रहा है जो 8 जनवरी को समाप्त होगा। संविधान के निहित संदर्भों को देखें तो सत्र न चलने की स्थिति में अध्यादेष जारी किया जा सकता है। साधु-सन्तों समेत विष्व हिन्दू परिशद् यहां तक कि आरएसएस व अन्य संगठन की यह चाहत थी कि मोदी सरकार मन्दिर निर्माण हेतु अध्यादेष लाये पर इन सभी पर पानी फिर चुका है। यह मामला तब तेजी से उठा जब सुप्रीम कोर्ट ने नवम्बर महीने में इस मामले की सुनवाई से इंकार कर दिया और जनवरी के लिए तारीख टाल दी। मोदी के अध्यादेष न लाये जाने का दृश्टिकोण पर विष्व हिन्दू परिशद् जैसी संस्थाओं ने अपनी प्रतिक्रिया देते हुए सरकार को चेताया है कि साढ़े चार वर्श का वक्त पूरा हो गया है ऐसे में मन्दिर निर्माण में अब देरी नहीं है। 
खास यह भी है कि चुनाव आते ही राम मन्दिर का मुद्दा गर्माने लगता है और इसे लेकर नेताओं के बयानों की बाढ़ भी आ जाती है। जिस तर्ज पर प्रधानमंत्री ने साफगोही से अध्यादेष लाने से अपने को अलग किया उससे साफ है कि वे अदालत के फैसले के अनुसार इस दिषा में आगे बढ़ना चाहते हैं। हालांकि मोदी ने कहा है कि फैसले का उन्हें इंतजार है। हो सकता है उसके बाद कोई कदम उठे। पड़ताल बताती है कि 30 नवम्बर 1992 को लाल कृश्ण आडवाणी ने मुरली मनोहर जोषी के साथ अयोध्या जाने का एलान किया था यही से यह मामला तूल पकड़ा। तात्कालीन गृहमंत्री द्वारा 5 दिसम्बर, 1992 को यह एलान भी था कि अयोध्या में कुछ नहीं होगा मगर 6 दिसम्बर को मस्जिद का ढांचा ढहा दिया गया जिसकी कीमत बीजेपी ने उस समय के 4 राज्यों की सरकार को खोकर चुकाई थी। उत्तर प्रदेष की कल्याण सरकार तत्काल बर्खास्त कर दी गयी जबकि बाकी तीन सरकारों को 15 दिसम्बर तक निस्तोनाबूत कर दिया गया। हालांकि मन्दिर ध्वस्त करने के कुछ घण्टे बाद ही कल्याण सिंह ने इस्तीफा दे दिया था। साल बीतते गये मन्दिर निर्माण का मुद्दा जस का तस बना रहा। अब एक बार फिर मामला सुप्रीम कोर्ट में है जिसकी सुनवाई 4 जनवरी से होगी। गौरतलब है सुप्रीम कोर्ट की पीठ अयोध्या विवाद में इलाहाबाद हाईकोर्ट के 2010 के फैसले के खिलाफ दायर 13 अपीलों पर सुनवाई कर रहा है। इस विवाद के तीन पक्षकार हैं जाहिर है देष की षीर्श अदालत का फैसला इस संवेदनषील मुद्दों को दिषा देने का काम करेगी। खास यह भी है कि तीन दषक से इस पर राजनीति हो रही है और अभी भी उतनी ही जिताऊ राजनीति के रूप में मन्दिर मसला देखा जा रहा है। मोदी सरकार को 2019 में 17वीं लोकसभा में अपनी सरकार को पुर्नस्थापित करने के लिए कठोर मेहनत करनी पड़ रही है। कईयों का मानना है कि यदि मोदी मन्दिर निर्माण की दिषा में अध्यादेष लाते तो जीत भी सुनिष्चित थी और मोदी इसे न्यायालय के तहत देख रहे हैं जबकि आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत पहले ही कह चुके हैं कि अयोध्या में राम मन्दिर विवाद का मामला सुप्रीम कोर्ट की प्राथमिकता में नहीं है तो मन्दिर निर्माण के लिए सरकार को कानून लाना चाहिए।
दषकों पुराना राम मन्दिर का मुद्दा बेषक 2019 के लोकसभा चुनाव में फिर गूंजेगा पर समझने वाली बात यह है कि सियासी तौर पर इसके नफे-नुकसान को लेकर जो विमर्ष हैं उससे देष का क्या भला होने वाला है। अयोध्या में राम मन्दिर के निर्माण को लेकर इन दिनों कई संगठन आवाज बुलन्द कर रहे हैं। इसमें कोई दुविधा नहीं कि राम मन्दिर पर राजनीति खूब हुई है पर गम्भीर मसला यह है कि इस राजनीति से किसको फायदा हुआ है। बेषक भाजपा इसके सहारे सत्ता हथियाने का इरादा रखती है पर यही भाजपा 2014 की लोकसभा में मनमोहन सरकार के भ्रश्टाचार और अपने तथाकथित वादे-इरादे के चलते बहुमत की सरकार हासिल की थी जबकि मन्दिर निर्माण इतना बड़ा मुद्दा नहीं था। हालांकि इसके पहले कई बार मन्दिर मुद्दा रहा पर किसी भी सरकार ने इस बात पर जोर नहीं दिया कि अध्यादेष के सहारे इसको अंजाम दिया जाय। मोदी जानते हैं कि यदि अध्यादेष के सहारे मन्दिर निर्माण की प्रक्रिया में वे आते हैं तो विविधता से युक्त भारत में कईयों की संवेदनषीलता खतरे में रहेगी। समाज एकाएक बंट जायेगा और सरकार पर मनमानी का न केवल आरोप लगेगा बल्कि वर्ग-विषेश स्वयं को असुरक्षित भी समझने लगेंगे। इतना ही नहीं दुनिया के मुस्लिम देषों समेत अन्यों में यह संदेष भी जा सकता है कि मोदी ने अपने देष के अल्पसंख्यकों के साथ अन्याय किया है और पक्षपातपूर्ण निर्णय करने के लिए जाने जायेंगे। बीते साढ़े चार सालों में मोदी ने विदेष में बहुत नाम कमाया है। भारत को समरसता के अन्तर्गत न केवल दुनिया में परोसा है बल्कि अल्पसंख्यकों के चिंतक के तौर पर स्वयं को ढाला भी है। उक्त संदर्भों को देखते हुए अध्यादेष से मन्दिर मार्ग का रास्ता लेना मोदी को षायद ही भाता इसलिए उन्होंने अपने मन की बात कह दी। जाहिर है इस पर सियासत होगी, संगठन नाराज होंगे पर संविधान के रास्ते मंदिर निर्माण की चाह रखने के लिए मोदी को कई महत्व भी देंगे और सराहेंगे भी। हालांकि इसका एक सियासी कारण भी हो सकता है एनडीए में कई घटक ऐसे हैं जो मन्दिर निर्माण को अदालत के अलावा रास्ता अख्तियार करने पर नाराज हो सकते हैं। सरकार यहां भी उन्हें यह संदेष दे रही है कि जो कानून सम्मत् है उसी पर वे चलेंगे बेवजह की ताकत लगाने से वे दूर रहेंगे।
फिलहाल मन्दिर मसले को लेकर अब गेंद सुप्रीम कोर्ट के पाले में है। 1992 के बाद 2019 एक ऐसा वर्श होगा जब एक बार फिर अयोध्या किले में तब्दील होगी। योगी सरकार फैजाबाद का नाम बदलकर अयोध्या कर चुकी हैं और जितना बन पड़ रहा है वे अयोध्या के लिए कर भी रहे हैं। तमाम कोषिषों के बावजूद मन्दिर विवाद का हल तीन दषकों से नहीं निकल पाया हलांकि यह मामला सबसे पहले 19वीं सदी के उत्तरार्द्ध में अदालत में गया था और आजादी के बाद से इस पर न्याय की कई गुहार लगायी गयी। अब षायद अन्तिम क्षण में है। मन्दिर और मस्जिद दोनों की चाह रखने वाले बरसों से जद्दोजहद और मुकदमे में फंसे लोग कई इस दुनिया से जा चुके हैं और कई अभी भी न्याया की बाट जोह रहे हैं। खास यह भी है कि मन्दिर आस्था का विशय है जिस पर राजनीति करने से रोका जाता है पर दो टूक यह है कि इसी पर बरसों से जमकर राजनीति भी हो रही है।

सुशील कुमार सिंह
निदेशक
वाईएस रिसर्च फाॅउन्डेशन ऑफ  पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन 
डी-25, नेहरू काॅलोनी,
सेन्ट्रल एक्साइज आॅफिस के सामने,
देहरादून-248001 (उत्तराखण्ड)
फोन: 0135-2668933, मो0: 9456120502
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