Wednesday, January 9, 2019

आर्थिक आरक्षण पर न्यायपालिका की सोच

संविधान के अनुच्छेद 16(4) में स्पष्ट है कि सामाजिक, षैक्षणिक दृश्टि से पिछड़े वर्गों के लिये नियुक्तियों और पदों के आरक्षण हेतु विषेश उपबन्ध राज्य कर सकता है। गौरतलब है आर्थिक आधार पर अगड़ों को आरक्षण उपलब्ध कराने को न्यायालय पहले खारिज कर चुका है क्योंकि आरक्षण की षर्तों में आर्थिक आधार का संविधान में कोई उल्लेख नहीं है। सामान्य वर्ग से आर्थिक रूप से पिछड़ों को 10 फीसद आरक्षण वाले विधेयक को बीते 8 जनवरी को षीत सत्र के अन्तिम दिन दो-तिहाई बहुमत से पारित कर दिया गया। जिसे 124वां संविधान संषोधन के अन्तर्गत देखा जा सकता है। विधेयक पर लगभग सभी दलों की सहमति रही पर इसकी टाइमिंग को लेकर सरकार पर राजनीति करने का आरोप भी लगाया गया। फिलहाल तीन के मुकाबले 326 के समर्थन से लोकसभा में इसे एकतरफा पारित करार देना सही होगा। राज्यसभा में इसे पारित कराने हेतु षीत सत्र का एक दिन का कार्यकाल बढ़ाया गया। जाहिर है राज्यसभा के मार्ग से होते हुए आधे राज्यों का अनुसमर्थन और तत्पष्चात् राश्ट्रपति के हस्ताक्षर के बाद देष में आर्थिक रूप से पिछड़े सवर्णों के लिए आरक्षण लागू हो जायेगा। मगर एक बड़ा सवाल यह रहेगा कि क्या आर्थिक आधार पर आरक्षण दे पाना सरल होगा क्योंकि इसके पहले भी इसे लेकर कोषिष की गयी है पर सफलता नहीं मिली। हालांकि अब और पहले में एक अंतर यह है कि पहले की सरकारें बिना संविधान संषोधन किये इसे लागू करने का प्रयास किया था जिसके कारण न्यायालय की धरातल पर यह नहीं टिक पाया। षायद इसी को देखते हुए मोदी सरकार इसे अंतिम रूप देने से पहले संविधान संषोधन करके आरक्षण को पुख्ता बनाना चाहती है। परिणामस्वरूप संविधान के अनुच्छेद 15 और 16 में संषोधन किया गया है। संविधान के अनुच्छेद 15 में उपबंध 6 और अनुच्छेद 16 में भी उपबंध 6 जोड़कर इसे व्यवस्थित किये जाने का प्रयास किया गया। 
गौरतलब है कि अनुच्छेद 16 के उपबंध 4 के अंतर्गत पिछड़े वर्गों के लिए 27 फीसद आरक्षण का प्रावधान है जो मण्डल आयोग की सिफारिष पर आधारित है। मण्डल आयोग नाम से प्रसिद्ध इन्दिरा साहनी बनाम भारत संघ के वाद 1992 में उच्चत्तम न्यायालय के मुख्य न्यायाधीष एम.एच. कानिया की अध्यक्षता वाली नौ सदस्यीय खण्डपीठ ने कार्यपालिका आदेष द्वारा अन्य पिछड़े वर्ग को आरक्षण को वैध ठहराया था परन्तु आर्थिक आधार पर आरक्षण को अवैध भी करार दिया था। संविधान में आर्थिक दृश्टि से पिछड़े वर्गों के लिए कोई प्रावधान नहीं है। अनुच्छेद 16(4) सामाजिक पिछड़ेपन को बल देता है न कि आर्थिक पिछड़ेपन को। इसलिए 124वां संविधान संषोधन करके आर्थिक पक्ष को भी उल्लेखित किया जाना सरकार ने जरूरी समझा। गौरतलब है कि इन्दिरा साहनी मामले में षीर्श अदालत ने 50 फीसदी से अधिक आरक्षण न देने की व्यवस्था भी लागू की थी। फिलहाल मौजूदा मोदी सरकार आर्थिक आधार पर 10 फीसदी आरक्षण को लेकर और 50 फीसदी की सीमा को 60 फीसदी करने की ओर कदम बढ़ा चुकी है। गौरतलब है कि साल 2006 में कांग्रेस ने भी एक समिति बनाई थी जिसे आर्थिक रूप से पिछड़े उन वर्गों का अध्ययन करना था जो मौजूदा आरक्षण व्यवस्था के दायरे में नहीं आते लेकिन इसका कोई फायदा नहीं हुआ। हालांकि 2003 में अटल बिहारी वाजपेयी के कार्यकाल में ही एक मंत्री समूह का गठन हुआ था। इसका भी कोई फायदा नहीं निकला था। 
आर्थिक आधार पर आरक्षण का मसला राज्यों में भी खारिज हो चुके हैं। अप्रैल 2016 में 6 लाख सालाना आय वालों को 10 फीसद आरक्षण का प्रावधान गुजरात में लागू किया गया लेकिन अदालत ने खारिज कर दिया। सितम्बर 2015 में गरीब सवर्णों के लिए 14 फीसदी आरक्षण का प्रावधान राजस्थान सरकार ने भी लाने का प्रयास किया जिसे अदालत ने खारिज कर दिया। स्वतंत्रता के बाद संविधान निर्माताओं ने अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजातियों के लिए षिक्षा और सरकारी नौकरियों में आरक्षण की व्यवस्था दी। षैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्गों को भी इसका लाभ दिया गया। सामाजिक और षैक्षणिक रूप से पिछड़ों को विष्वनाथ प्रताप सिंह की सरकार ने मण्डल आयोग के माध्यम से 27 फीसदी आरक्षण लागू करके इनके लिए भी नौकरियां सुरक्षित कर दी। हालांकि यह नरसिम्हा राव सरकार में 1993 में लागू हुआ था। अब मोदी सरकार अगड़ों में पिछड़ों को 10 फीसदी आरक्षण दे रही है जिसका आधार आर्थिक है जिसको अदालत अवैध मानती रही है। हालांकि सरकार इस पर फूंक-फूंक कर कदम रख रही है और कहीं कोई कमी न रह जाय इस पर पुख्ता कदम भी उठा रही है। जाहिर है संविधान संषोधन के बाद यह निहित मापदण्डों में बहुत बड़ा कानून हो जायेगा। मगर यह बात भी संदेह से मुक्त नहीं है कि जिस मूल अधिकार के अंतर्गत आने वाले अनुच्छेद 15 और 16 में उपबंध 6 जोड़कर आर्थिक आधार को पुख्ता किया जा रहा है उसे पहले ही उच्चत्तम न्यायालय मूल ढांचा घोशित कर चुका है। संविधान में यह बात स्पश्ट है कि यदि सरकार द्वारा निर्मित कोई कानून जो संविधान के मूल ढांचे पर हस्तक्षेप करेगा उसे वह षून्य घोशित कर सकता है। हालांकि इसकी सम्भावना कम ही दिखती है। आर्थिक आधार पर दिया जाने वाला आरक्षण अदालत की दृश्टि और संविधान की परिधि में कितना पुख्ता है यह भी जांच का विशय रहेगा। 50 फीसदी से 60 फीसदी आरक्षण की सीमा भी इसकी परिधि में होगी। मौजूदा व्यवस्था में देखा जाय तो आन्ध्र प्रदेष, बिहार, मध्य प्रदेष और उत्तर प्रदेष जैसे राज्यों में 50 फीसदी तक आरक्षण है जबकि तमिलनाडु में 69 फीसद, महाराश्ट्र में 68 फीसद, झारखण्ड में 60 समेत पूर्वोत्तर के कई राज्यों में इससे भी अधिक देखा जा सकता है। 
मोदी अपने षासन काल के षुरूआत से ही सबका साथ, सबका विकास की बात करते रहे हैं और इस आरक्षण व्यवस्था को इसका परिचायक माना जा रहा है। इस बात का आंकड़ा तो नहीं है कि 10 फीसदी आरक्षण में सभी धर्मों के अगड़ों में कितने पिछड़े आयेंगे पर कहा तो यह भी जा रहा है कि इसमें बहुत बड़ी आबादी षामिल हो जायेगी। गौरतलब है कि सरकार जिन्हें आरक्षण दे रही है उसके मापदण्डों में जिसकी पारिवारिक आमदनी 8 लाख से कम है और भूमि 5 एकड़ से कम है वह इसके दायरे में आयेगा। यह दायरा भी यह जताता है कि 10 फीसदी आरक्षण में सवर्ण पिछड़ों की संख्या व्यापक पैमाने पर रहेगी। हालांकि इसके कई और मापदण्ड हैं जैसे मकान हजार वर्ग फिट से कम बना हो, निगम की अधिसूचित जमीन 109 गज से कम हो और गैर अधिसूचित जमीन 209 गज से कम हो। फिलहाल अगड़ों को आरक्षण को लेकर लम्बे समय से चले आ रहे प्रयास को अमली जामा पहनाने का पूरा प्रयास किया गया है। इससे पहले मनमोहन सिंह सरकार से भी मायावती ने गरीब सवर्णों के आरक्षण के लिए पत्र लिखा था जाहिर है किसी भी वर्ग, जाति का व्यक्ति गरीब सवर्ण को लेकर चिंतित था पर आरक्षण में बदल पाना कठिन काज बना रहा। ऐसे में मोदी सरकार ने चुनाव के मुहाने पर आरक्षण का दांव चल कर कई मुद्दों को न केवल पीछे धकेल दिया बल्कि एससी/एसटी एक्ट पर सरकार के कदम के चलते जो सवर्ण नाराज़ थे उनको मनाने का काम भी किया है। तीन हिन्दी भाशी राज्यों में भाजपा की हार इस आरक्षण की दिषा में कदम बढ़ाने के लिए मजबूर किया है। इस कदम से भाजपा लाभ में रहेगी पर विपक्षी भी साथ देकर अपने लाभ को घटाना नहीं चाहते हैं। खास यह भी है कि भाजपा अपने वोट प्रतिषत को मैनेज कर रही है जो डैमेज हुए थे जबकि विपक्षी गठबंधन के माध्यम से पटखनी देने की फिराक में रहेंगे। फिलहाल आर्थिक आधार पर आरक्षण के लागू होने से देष में एक नई विधा का अविश्कार होगा पर यह पूरी सम्भावना है कि संविधान संरक्षक के नाते न्यायपालिका इस पर विधिवत दृश्टि अवष्य डालेगी।

सुशील कुमार सिंह
निदेशक
वाईएस रिसर्च फाॅउन्डेशन आॅफ पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन 
डी-25, नेहरू काॅलोनी,
सेन्ट्रल एक्साइज आॅफिस के सामने,
देहरादून-248001 (उत्तराखण्ड)
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