Wednesday, December 19, 2018

कर्जमाफ़ी स्पर्धा और अन्नदाता

यह बात वाजिब ही कही जायेगी कि कृशि प्रधान भारत में कई सैद्धान्तिक और व्यावहारिक कठिनाईयों से किसान ही नहीं सरकारें भी जूझ रही हैं अंतर केवल इतना है कि किसान कर्ज के कारण मर रहा है और सरकारें राजनीतिक प्रतिस्पर्धा में फंसी हैं। बीते 70 सालों में किसान सरकारों के केन्द्र में रहे पर मतदाता के तौर पर उन्हें मनमाफिक न तो पैदावार की कीमत मिली और न ही समुचित जिन्दगी। खाली पेट वे खेत-खलिहानों से अन्न बटोरते रहे और दुनिया का पेट भरते रहे। दास्तां बहुत अजीब है इतनी की रास्ता सुझाई नहीं देता। यही कारण है कि किसानों की राह कभी समतल नहीं बन पायी। सियासत के तराजू पर किसान हमेषा तुलता रहा और कीमत मिलते के बजाय वह ठगा जाता रहा। मोदी सरकार किसानों को डेढ़ गुना न्यूनतम समर्थन मूल्य देने की बात कह रही है पर हकीकत में यह सही नहीं है। 2014 की तुलना में जो कीमत 2018 में दिया गया वह डेढ़ गुना हो सकता है पर 2017 की तुलना में मामूली बढ़त है। वाकई में यदि सरकार चिंतित है तो स्वामीनाथन रिपोर्ट लागू करके दिखाये जिसे लेकर वे षायद जानबूझकर अनभिज्ञ रहते हैं। हालांकि नई बात यह है कि बीते 17 दिसम्बर से मध्य प्रदेष, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में कांग्रेस सरकार का उदय हुआ और सुखद समाचार यह है कि इस उदय का किसानों की भलाई से बड़ा सरोकार है। चुनावी वायदों के मुताबिक कांग्रेस की मध्य प्रदेष में सरकार बनते ही किसानों की कर्ज माफी की घोशणा कर दी। यही काम छत्तीसगढ़ ने षपथ के कुछ घण्टे के भीतर ही कर दिया। राहुल गांधी की यह ललकार है कि कर्जमाफी के मुद्दे पर वह लोकसभा चुनाव लड़ेंगे और जब तक किसानों का कर्जमाफी नहीं होता वे प्रधानमंत्री मोदी को चैन से सोने नहीं देंगे। 
कांग्रेस के इस कदम से किसानों की कर्जमाफी को लेकर भाजपा षासित राज्य पेषोपेष में फंस गये हैं। भले ही कर्ज माफी का दांव सियासी हो पर किसानों को राहत देने का मन इतर सरकारें भी बना रही हैं। बीजेपी षासित राज्यों ने भी कर्जमाफी का काम षुरू कर दिया है। गुजरात सरकार द्वारा 625 करोड़ रूपए का बकाया माफ करने का एलान किया जा चुका है। असम सरकार ने भी 600 करोड़ रूपए के कृशि कर्ज माफ करने को मंजूरी दे दी है। हालांकि यह असम में किसानों का 25 प्रतिषत की सीमा तक ही है। गौरतलब है कि असम में 8 लाख किसानों को यह लाभ होगा। किसानों को साधने की कांग्रेस की रणनीति से भाजपा अब स्वयं को बैकफुट पर समझ रही है। 2019 के लोकसभा चुनाव में यदि यह सियासी लड़ाई कर्जमाफी के प्रतिस्पर्धा में फंसती है तो मजबूरन भाजपा को बड़ी जीत के लिए बड़ा दिल दिखाना होगा। हालांकि केन्द्र की ओर से एकमुष्त कर्जमाफी की सम्भावना कम ही दिखाई देती है। भाजपा की उड़ीसा इकाई ने प्रदेष के लोगों से वायदा किया कि अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव में अगर वह सत्ता में आती है तो किसानों के कर्ज माफ कर दिये जायेंगे। भाजपा की उड़ीसा इकाई द्वारा किया गया यह वायदा तब और विष्वास में बदलना आसान होगा जब मौजूदा भाजपा षासित प्रदेष किसानों को कर्ज से मुक्ति दे देंगे। चुनावी साल में किसानों का ऋण माफी का दांव काफी सफल प्रतीत होता है। बड़ी-बड़ी बात करने वाली भाजपा सरकार अब छोटे और मझोले किसानों की ओर रूख जरूर करेगी। किसानों की नाराजगी दूर करने के लिए भाजपा राहत का पिटारा खोल सकती है क्योंकि बीते 11 दिसम्बर को पांच राज्यों के नतीजों ने भाजपा को षिखर से सिफर की ओर कर दिया है। साफ है कि भाजपा सरकार से मतदाता का मोह भंग हुआ है। आरएसएस ने भी चेताया है कि तीन राज्यों में करारी हार के बाद यह स्पश्ट है कि सरकार और भाजपा को किसानों की नाराजगी समझनी होगी। कहा तो यह भी गया कि इनकी अनदेखी आने वाले चुनाव पर भारी पड़ सकती है। 
एक ओर भाजपा को हराने के लिए महागठबंधन की जोर आजमाइष हो रही है तो दूसरी ओर कर्ज माफी में कांग्रेस आगे न निकल जाये इसे लेकर भी भाजपा का सियासी पेंच खतरे में है। इसमें कोई दुविधा नहीं कि किसानों की उपजी समस्याओं को लेकर सरकारों ने कुछ खास संवेदनषीलता नहीं दिखाई। 70 साल बाद भी किसान न केवल कर्ज की समस्या से जूझ रहा है बल्कि आत्महत्या की दर को भी बढ़ा दिया है। सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को जो आंकड़ा कुछ समय पहले उपलब्ध कराया था उससे यह पता चलता है कि प्रतिवर्श 12 हजार किसान आत्महत्या कर रहे हैं। कर्ज में डूबे और खेती में हो रहे घाटे को किसान बर्दाष्त नहीं कर पा रहे हैं। मौजूदा सरकार 2013 से किसानों के आत्महत्या के आंकड़े जमा कर रही है। साल 2014 और 2015 में कृशि क्षेत्र से जुड़े 12 हजार से अधिक लोगों ने आत्महत्या की थी जबकि 2013 में आंकड़ा थोड़ा कम था। साल 1991 के उदारीकरण के बाद देष की तस्वीर बदली पर किसानों की तकदीर नहीं बदली। सबसे पहले 1992-93 के दौर में किसानों की आत्महत्या का सिलसिला महाराश्ट्र के विदर्भ से षुरू हुआ और आज भी सबसे ज्यादा आत्महत्या महाराश्ट्र के किसान ही कर रहे हैं। बीते 25 वर्शों में 3 लाख से अधिक किसान इस दुनिया को अलविदा कह चुके हैं। गौरतलब है कि किसानों की आत्महत्या के मामले में कर्नाटक दूसरे नम्बर पर है उसके बाद तेलंगाना और मध्य प्रदेष जैसे राज्य देखे जा सकते हैं। अब कर्जमाफी के चलते सम्भव है कि आत्महत्या के आंकड़े में गिरावट दर्ज होगी। दो टूक यह भी है कि देष में कहीं भी किसान बिना कर्ज के नहीं है और कोई भी राज्य किसान आत्महत्या विहीन नहीं है।
किसानों की ऋणमाफी समेत कई वायदे करके अस्तित्व के लिए संघर्श कर रही कांग्रेस ने जिस तरह वापसी की है उसे जीत का न केवल स्वाद मिला है बल्कि इस स्वाद को आगे भी बनाये रखने की फिराक में है। कांग्रेस यह समझ गयी है कि देष का मतदाता किसान और युवा है इनसे वायदे करो, सत्ता में आओ और झट से वायदा निभाओ। इसी तर्ज पर मध्य प्रदेष और छत्तीसगढ़ में किसानों की कर्जमाफी करके 2019 का सपना राहुल गांधी ने आंखों में उतार लिया है। कह सकते हैं कि यह दूर की कौड़ी है पर हालिया जीत की भी तो उम्मीद नहीं थी। राहुल गांधी मोदी सरकार पर किसानों को लेकर कहीं अधिक निषाना साधते रहे हैं। नोटबंदी को दुनिया का सबसे बड़ा स्कैम कहने से भी वे नहीं हिचकते और यह भी तोहमत देते हैं कि अपने मित्रों को पैसा बांटने का किया गया। उद्योग जगत के सरपरस्त का आरोप भी मोदी सरकार पर लगता रहा है। अम्बानी, अडानी के इर्द-गिर्द उन्हें माना जाता रहा। भले ही मोदी किसानों के लिए कुछ करने की भारी-भरकम बात कही हो पर कर्जमाफी में तो वे फिसड्डी ही रहे। इस मामले में राहुल गांधी उनसे बेहतर इसलिए प्रतीत हो रहे हैं क्योंकि वे किसानों के मुद्दे को उठा भी रहे हैं और जीत में बदलने का न केवल काम कर रहे हैं बल्कि उन्हें कर्ज से राहत भी दी साथ ही इसके लिए स्पर्धा भी विकसित करने का काम किया। फिलहाल तीन राज्यों में जीत के बाद कांग्रेस ने कर्जमाफी को हथियार बना लिया है। मामला चाहे जैसा हो अन्नदाता राहत में तो है पर इस राहत से भाजपा बेचैन है जो बरसों से सत्ता में है और कर्जमाफी के मामले में बड़ा हृदय दिखाने में चूक गये। देखा जाय तो बीजेपी षासित प्रदेष अब कर्जमाफी में कांग्रेस षासित प्रदेषों की देखा-देखी कर रहे हैं। साफ है कि उनका दृश्टिकोण किसानों को लेकर प्रतिस्पर्धा के कारण विकसित हुआ न कि वे स्वयं संवेदनषील थे। हालांकि उत्तर प्रदेष की योगी सरकार 36 हजार करोड़ की कर्जमाफी पहले कर चुकी है। स्थिति से तो यही लगता है कि किसानों की राह कुछ तो समतल होगी। 


सुशील कुमार सिंह
निदेशक
वाईएस रिसर्च फाॅउन्डेशन आॅफ पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन 
डी-25, नेहरू काॅलोनी,
सेन्ट्रल एक्साइज आॅफिस के सामने,
देहरादून-248001 (उत्तराखण्ड)
फोन: 0135-2668933, मो0: 9456120502
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