Monday, January 14, 2019

सीमा सड़क को लेकर कहां खड़ा है भारत

सामरिक दृष्टि से यह सवाल बड़ा और वाजिब भी है कि भारत चीन के मुकाबले में कहां खड़ा है। वैसे पाकिस्तान और चीन से जो चुनौतियां भारत को मिलती हैं उसे लेकर निपटने का प्रयास समय-समय पर वह करता रहा है पर सीमा पर सड़क के मकड़जाल को लेकर जो काम चीन ने किया है उससे भारत अभी मीलों पीछे है। सामरिक मोर्चे पर चीन को कड़ी टक्कर देने के लिए भारत फिलहाल सीमा पर सड़क निर्माण को लेकर बड़ा कदम उठाने का मन बना लिया है। भारत सरकार ने चीन से लगती सीमा पर 44 सड़कों का निर्माण करने का इरादा जताया है। गौरतलब है कि केन्द्र सरकार जून 2017 में डोकलाम में पैदा हुई स्थिति को देखते हुए यह पहल करने जा रही है। 44 सड़कों का निर्माण एक अहम फैसला है इसके अलावा पाकिस्तान से सटे पंजाब और राजस्थान के करीब 2100 किलोमीटर की मुख्य एवं सम्पर्क सड़कों का निर्माण भी किया जायेगा। केन्द्रीय लोक निर्माण विभाग (सीपीडब्ल्यूडी) के इसी माह में जारी वार्शिक रिपोर्ट 2018-19 में स्पश्ट है कि भारत-चीन सीमा पर ये सड़कें निर्मित की जायेंगी ताकि संघर्श की स्थिति में सेना को तुरंत जुटाने में आसानी हो। गौरतलब है भारत एवं चीन के बीच 4 हजार किलोमीटर से अधिक की वास्तविक नियंत्रण रेखा जम्मू-कष्मीर से लेकर अरूणाचल प्रदेष तक विस्तृत है। जून 2017 में डोकलाम में चीन के सड़क बनाने का कार्य षुरू कराने के बाद भारत और चीन के सैनिकों के बीच गतिरोध पैदा हुआ था जो 73 दिनों तक चला। गतिरोध इतना बढ़ गया था कि चीन ने युद्ध तक कि धमकी दी पर भारत इसका कूटनीतिक हल निकालने में सफल रहा परन्तु समाधान पूरी तरह अभी नहीं हुआ है। 44 सड़कों के निर्माण में करीब 21 हजार करोड़ रूपए की लागत आयेगी। सीपीडब्ल्यूडी की रिपोर्ट में यह भी है कि पाकिस्तान की सीमा पर सड़क निर्माण में 5400 करोड़ की लागत आयेगी।
भारत और चीन के बीच सीमा विवाद बरसों से चला आ रहा है। दोनों देष वास्तविक सीमा रेखा पर बुनियादी ढांचे के निर्माण और एक-दूसरे की परियोजना को संदेह की दृश्टि से देखते रहे हैं। सड़कों, पुलों, रेल लिक, हवाई अड्डा आदि को लेकर दोनों ने ताकत झोंकी है। चीन भारत से सटे तिब्बत क्षेत्र में कई एयरबेस ही नहीं बल्कि 5 हजार किलोमीटर रेल नेटवर्क और 50 हजार से अधिक लम्बी सड़कों का निर्माण कर चुका है। फिलहाल चीन की तुलना में भारत काफी पीछे है। इतना ही नहीं भारत के साथ सटी सीमा पर चीन के 15 हवाई अड्डे हैं जबकि 27 छोटी हवाई पट्टी का भी निर्माण वह कर चुका है। तिब्बत के गोंकर हवाई अड्डा किसी भी मौसम में वह उपयोग करता है। जहां लड़ाकू विमानों की तैनाती की गयी है। तिब्बत और यूनान प्रान्त ने वृहद् मात्रा पर सड़क और रेल नेटवर्क का सीधा तात्पर्य है कि चीनी सेना केवल 48 घण्टे में भारत-चीन सीमा पर आसानी से पहुंच सकती है। चीन ने जो आर्थिक गलियारे की पहल की उसका भी वाणिज्यिक फायदा वह भविश्य में उठायेगा। यह गलियारा चीन को पाकिस्तान के ग्वादर बंदरगाह से जोड़ता है जो 2442 किमी. है। मुख्य यह भी है कि यह पाक अधिकृत कष्मीर से भी गुजरता है जिसे लेकर भारत का विरोध है। डोकलाम विवाद के बाद अपनी सीमा में सड़क निर्माण को लेकर उसकी गतिविधियां इन दिनों तेजी लिए हुए है। उक्त के परिप्रेक्ष्य में यह सवाल है कि चीन की तुलना में भारत कहां खड़ा है। गौरतलब है कि भारत अब तक केवल 981 किमी. सड़क निर्माण करने में कामयाबी पायी है। इसे एक धीमी प्रगति की संज्ञा दिया जाना वाजिब होगा। यही वजह है कि भारत-चीन सीमा सड़क परियोजना जिसकी मूल समय सीमा 2012 थी उसे बढ़ा कर 2022 की गयी है। चीन की सीमा व्यापक पैमाने पर भारत को छूती है और अरूणाचल प्रदेष पर चीन की कुदृश्टि है। चीन की सीमा को छूने वाली सड़कें 27 सड़कें अरूणाचल प्रदेष में, 5 सड़कें हिमाचल में जबकि जम्मू-कष्मीर में 12 सड़कें और 14 सड़कें उत्तराखण्ड समेत 3 सिक्किम में हैं। चीन को सामरिक दृश्टि से जवाब देने और मजबूती से चुनौती देने के लिए सड़कों का मकड़जाल कहीं अधिक अपरिहार्य है। 
सीपीडब्ल्यूडी की यह रिपोर्ट ऐसे समय में आयी है जब चीन भारत के साथ लगने वाली उसकी सीमाओं पर सड़क समेत अन्य परियोजनाओं को प्राथमिकता दे रहा है। चीन की चाल पर नजर रखने के लिए सड़कों का सामरिक जाल जरूरी है। गौरतलब है भारत और चीन के बीच आवागमन सदियों पुराना है। दूसरी षताब्दी में चीन ने भारत, फारस (वर्तमान ईरान) और रोमन साम्राज्य को जोड़ने के लिए सिल्क मार्ग बनाया था। उस दौर में रेषम समेत कई चीजों का इस मार्ग से व्यापार होता था। अब वन बेल्ट वन रोड़ इसी तर्ज पर बनाया जा रहा है जो दो हिस्सों में निर्मित होगा। पहला जमीन पर बनने वाला सिल्क मार्ग, दूसरा समुद्र से गुजरना वाला मेरीटाइमन सिल्क रोड़ षामिल है। सिल्क रोड़ इकोनोमिक बेल्ट एषिया, अफ्रीका और यूरोप को जोड़ेगा। इसके माध्यम से बीजिंग को तुर्की से जोड़ने का भी प्रस्ताव है और रूस-ईरान-ईराक को भी यह कवर करेगा। इतना ही नहीं वन बेल्ट, वन रोड़ के तहत चीन आधारभूत संरचना परिवहन और ऊर्जा में निवेष कर रहा है। इसके तहत पाकिस्तान में गैस पाइपलाइन, हंगरी में एक हाईवे और थाईलैण्ड में हाइस्पीड एक लिंक रोड़ भी बनाया जा रहा है। तथ्य यहीं समाप्त नहीं होते चीन से पोलैण्ड तक 9800 किमी रेल लाइन भी बिछाने का प्रस्ताव है। 
चीन का सड़क और रेल नेटवर्क भारत के लिए खतरा साबित हो रहा है जहां वन बेल्ट, वन रोड जहां वाणिज्यिक दृश्टि से भारत के लिए समस्या पैदा करेगा वहीं पीओके से इसका गुजरना भारत की सम्प्रभुता का भी उल्लंघन है। इस योजना का 60 देषों तक सीधी पहुंच होना और इनके जरिये भारत को घेरने की कोषिष चिंता का विशय है। 900 अरब डाॅलर चीन इस परियोजना पर खर्च कर रहा है। गौरतलब है कि इतनी बड़ी रकम दुनिया की कुल जीडीपी का एक तिहाई हिस्सा है। हिंद महासागर के देषों में चीन बंदरगाह, नौसेना बेस और निगरानी पोस्ट बनाने की फिराक में है। यहां से भी वह भारत को घेरना चाहता है। स्ट्रिंग आफ पल्स परियोजना के तहत चीन, श्रीलंका, बांग्लादेष और पाकिस्तान में वह पोर्ट बना रहा है। ऐसा करने से वह बंगाल की खाड़ी और अरब सागर में अपना प्रभाव बढ़ाने में कामयाब हो जायेगा। फिलहाल 44 सड़कों के निर्माण को लेकर चीन की भांति ही भात चुनौती देने के लिए अपने को तैयार कर रहा है। हालांकि जिस तर्ज पर चीन दुनिया के देषों को लालच देकर कब्जाता है उससे भारत का कोई लेना-देना नहीं है। पर जिस तरह चीनी कम्पनियां तमाम देषों पर आर्थिक कब्जा कर रही हैं और भारत चीन से जमीन और समुद्र दोनों तरफ से घिर रहा है उसे लेकर कूटनीतिक पहल जरूरी है। जाहिर है सड़क निर्माण में तेजी लाना, सीमा पर रेल लाइन व हवाई पट्टी समेत कई परियोजनाओं को विस्तारित करना भारत के लिए अनिवार्य हो गया है। भारत की सुरक्षा सीमा के मामले में कई गुने बढ़ाने की जरूरत भी बढ़ते दिखाई दे रही है। इसके लिए बड़े धन की आवष्यकता होगी। भारत जैसे विकासषील देष की जीडीपी भले ही चीन की तुलना में कमतर न हो, भले ही दुनिया की तीसरी उभरती हुई अर्थव्यवस्था हो पर सच्चाई यह है कि चीन की तुलना में सीमा पर सड़क से लेकर अन्य तकनीकी पहलुओं के मामले में भारत कहीं पीछे है। सीमा पर सड़क निर्माण एक सुखद समाचार है बस प्रयास यह रहे कि इसे कहीं अधिक प्रभावी ढंग से लागू करने में कोई कोताही न बरती जाय। 



सुशील कुमार सिंह
निदेशक
वाईएस रिसर्च फाॅउन्डेशन ऑफ  पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन 
डी-25, नेहरू काॅलोनी,
सेन्ट्रल एक्साइज आॅफिस के सामने,
देहरादून-248001 (उत्तराखण्ड)
फोन: 0135-2668933, मो0: 9456120502
ई-मेल: sushilksingh589@gmail.com

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