Monday, February 13, 2017

साख में सुराख़ का डर

फिलहाल प्र्रधानमंत्री मोदी की लोकप्रियता अभी भी बाकायदा बरकरार है लेकिन उनकी सरकार की छवि पहले जैसी है शायद कह पाना कठिन होगा। इन दिनों देश  पांच विधानसभा चुनाव का उत्सव मना रहा है। उत्तर प्रदेश और उत्तराखण्ड पर सबकी नजरें हैं। इन्हीं दोनों  प्रदेशों  में प्रधानमंत्री की बेषुमार रैलियां भी आयोजित हो रही हैं। उत्तर प्रदेष पहले चरण का चुनाव सम्पन्न कर चुका है जबकि 15 फरवरी को उत्तराखण्ड में मतदान होना है। बीते दो-तीन दिनों से प्रधानमंत्री मोदी समेत कई केन्द्रीय मंत्री एवं सांसदों का जिस तर्ज पर पूरे उत्तराखण्ड में सम्बोधन का क्रम चला उससे यहां की सियासत में बड़ा तूफान तो आया है। पहाड़ की जनता भी ऐसी रैलियों का अम्बार षायद पहली बार देख रही होगी। अपने अंदाज में मोदी जनता को न केवल आकर्शित कर रहे हैं बल्कि वे उनकी आंखों में गगनचुम्बी सपने भी भर रहे हैं। इन सबके बीच यह चर्चा भी आम है कि 70 विधानसभा वाले उत्तराखण्ड में इतनी जी-तोड़ कोषिष मोदी जी क्यों कर रहे हैं। कईयों का मानना है कि कहीं इसके पीछे मोदी की साख तो दांव पर नहीं लगी है। दरअसल पिछले साल 18 मार्च को वित्त विधेयक के मामले में हरीष रावत सरकार के मंत्री समेत 9 विधायकों ने बगावत कर दी थी। साथ ही भाजपा से मिलकर बागी विधायकों ने न केवल सरकार को गिराने का मनसूबा पाला बल्कि दल-बदल करते हुए उन्हीं के हो कर रह गये। तेजी से बदलते घटनाक्रम में 27 मार्च को प्रदेष को राश्ट्रपति षासन के हवाले कर दिया गया। ऐसा हरीष रावत के सीडी काण्ड में फंसने के चलते माना जाता है जिसे लेकर सीबीआई उन पर कार्यवाही कर रही है। फिलहाल राश्ट्रपति षासन का मामला अदालती लड़ाई में फंसा और उच्च न्यायालय से होता हुआ सर्वोच्च न्यायालय पहुंचा। यहां रावत सरकार को 10 मई 2016 को बहाल कर दिया गया। हाथ आते कुछ न देख भाजपा का तिलमिलाना स्वाभाविक था। अदालती लड़ाई हारने के बाद यह भी चर्चा जोरों पर थी कि केन्द्र की मोदी सरकार ने एक पहाड़ी राज्य को राश्ट्रपति षासन से दागदार किया है और सत्ता हथियाने के लिए ताकत का बेजा इस्तेमाल किया। आज के चुनावी दौर में उक्त बातों का उभरना इसलिए स्वाभाविक है क्योंकि जिस तर्ज पर मोदी समेत उनके मंत्री और संसद उत्तराखण्ड के चप्पे-चप्पे पर चुनाव प्रचार कर रहे हैं साफ है कि हर हाल में उत्तराखण्ड वे फतह करना चाहते हैं और 10 महीने पहले सत्ता हथियाने के उस मनसूबे को धरातल पर उतारना चाहते हैं जो उनके गुणा-भाग में रहा है। इस पूरे परिप्रेक्ष्य और दृश्टिकोण को ध्यान में रखते हुए एक सवाल यह अनायास ही उभरता है कि यदि उत्तराखण्ड भाजपा के हाथ से फिसलता है तो टीम मोदी की साख में सुराख होना लाज़मी है। 
क्या ऐसा हो सकता है कि तमाम खूबियों के बावजूद मोदी के भीतर ऐसी कमजोरी भी हो जो उनके समकालीन नेताओं में पाई जाती हो। उत्तर प्रदेष में भी मोदी की रैली बेषुमार है। अखिलेष और राहुल की जोड़ी पर उनका निषाना है। मतों के ध्रुवीकरण में वहां भी जनता की आंखों में सपने खूब बोये जा रहे हैं और यह भी समझाया जा रहा है कि अखिलेष का काम नहीं बोलता बल्कि उनका कारनामा बोलता है। यूपी को अखिलेष और राहुल की जोड़ी पसन्द है, पर कितना पसन्द है इसका भी निर्णय 11 मार्च के नतीजे में हो जायेगा। इतना ही नहीं उत्तर प्रदेष को भाजपा कितनी पसंद है यह भी उसी तिथि को साफ हो जायेगा। 26 मई, 2014 से सत्ता पर काबिज प्रधानमंत्री मोदी सक्रिय और ताबड़तोड़ वाले नेता रहे हैं और अभी भी इस प्रवृत्ति से बाहर नहीं हैं। कई विधेयकों को लेकर आज भी वे संसद में बेबस नजर आते हैं। बहुमत के कारण लोकसभा से पार तो पा लेते हैं परन्तु राज्यसभा में संख्याबल की कमी से जूझते देखे गये हैं। कई महत्वाकांक्षी योजनाओं को जो उनके सपनों में रहे हैं राज्यसभा में बहुमत न होने के कारण धरातल पर नहीं उतर पाये। षासन के षुरूआती दौर में यह कहा जाता रहा है कि वर्श 2017 में ही मौजूदा सरकार की राज्यसभा में बहुमत वाली इच्छा पूरी हो पायेगी। ऐसा इसलिए क्योंकि इन्हीं दिनों में उत्तर प्रदेष जैसे बड़े प्रान्त समेत उत्तराखण्ड तथा अन्यों का चुनाव निर्धारित था। जाहिर है मोदी के जादू के चलते यहां सत्ता हथियाना उन दिनों आसान समझ रही होगी। इसमें कोई दो राय नहीं यदि भाजपा उत्तर प्रदेष फतह कर लेती है तो राज्यसभा में बहुमत के आंकड़े को जुटा लेगी परन्तु यहां अखिलेष और राहुल की जोड़ी ने रास्ते को अच्छा खासा अवरूद्ध किया है। मुख्यमंत्री के मामले में चेहरा विहीन भाजपा हर सूरत में उत्तराखण्ड और उत्तर प्रदेष में अपनी सत्ता विस्तार चाहती है। कहा जाय तो यूपी में भी मोदी की साख दांव पर है। 
षानदार उपलब्धियों के बावजूद सवाल तो हर नेताओं पर उठते हैं क्योंकि यह सामान्य बात है कि महान से महान नेता भी कहीं न कहीं कोई लचर प्रदर्षन किया होता है। बीते 8 नवम्बर को मोदी के नोटबंदी वाले निर्णय को पूरी तरह सफल कह पाना मुनासिब नहीं है जिस काले धन पर चोट करने के लिए यह फरमान सुनाया गया था उसमें कोई खास सफलता मिलते नहीं दिखाई देती और जनता ने जो परेषानी उठायी और जिस प्रकार देष समस्याओं से जूझा उसकी तो बात छोड़िये। फिलहाल इसे लेकर भी सरकार के अन्दर एक सवाल तो है कि यदि चुनाव में प्रदर्षन उसके पक्ष में न हुआ तो लोग नोटबंदी के निर्णय को कहीं गलत करार न दे दें। क्या ऐसा हो सकता है कि प्रधानमंत्री मोदी दुनिया भर में जय-जयकार करवायें, विधानसभा के चुनाव में रैलियों का अम्बार लगायें, लाखों की भीड़ जुटायें और अपने दल को सत्ता तक न पहुंचा पायें। दिल्ली और बिहार के विधानसभा के नतीजे यह इषारा करते हैं कि सब कुछ के बावजूद हार मिली थी। साफ है कि मोदी का जादू पहले भी कहीं-कहीं नहीं चला है परन्तु जम्मू कष्मीर, हरियाणा और झारखण्ड समेत असम में तो यह सर चढ़कर बोला है। कमोबेष उत्तर प्रदेष और बिहार की राजनीति को जात-पात और धर्म से जोड़कर ही देखा जाता है जबकि उत्तराखण्ड में जात-पात से अधिक विकास को महत्व दिया जाता है। ऐसे में मोदी जैसे लोकप्रिय प्रधानमंत्री का प्रभाव कहां, कितना होगा यह परिणाम के बाद ही पता चलेगा। 
यह भी समझ लेना सही होगा कि उत्तर प्रदेष और उत्तराखण्ड में भाजपा अभी नहीं तो फिर कब? की भी बात हो रही है। प्रधानमंत्री का कामकाज ढ़ाई बरस से अधिक पुराना हो चुका है। जाहिर है कि महज़ लुभावनी योजनाओं का ऐलान कर देने से अब जनता सन्तुश्ट नहीं हो सकती बल्कि आर्थिक वृद्धि और रोजगार के मोर्चे पर भी बहुत कुछ कर दिखाना होगा। अलबत्ता उन्हें अपना रिपोर्ट कार्ड 2019 में देना है परन्तु 5 साल के कार्यकाल का आधा समय बीतने पर जनता में यह संकेत जाने लगता है कि सरकार किस करवट बैठने वाली है। प्रत्येक चुनाव और हर लोकतंत्र में इतिहास बनाने और इतिहास बन जाने के बीच एक महीन रेखा होती है। जाहिर है कि प्रधानमंत्री मोदी जिस साख के साथ क्षितिज पर खड़े होने का साहस दिखाना चाहते हैं उसके लिए जादूगरी को और बड़ा करना होगा। अहम यह भी है कि बड़बोलेपन मात्र से चीजे उतनी नहीं बढ़ती जितना वास्तव में होना चाहिए। राश्ट्रपिता महात्मा गांधी ने भी कहा है कि मजबूत सरकारें काम करते हुए जितना दिखाई देती है असल में उतना होता नहीं है। सबके बावजूद निचोड़ यह है कि 29 राज्यों वाले भारत में अब तक कितने भी चुनाव क्यों न हुए हों पर उत्तर प्रदेष और उत्तराखण्ड का इस बार का चुनाव इस बात से बेफिक्र नहीं कि भाजपा को साख में सुराख का डर नहीं है।


सुशील कुमार सिंह

No comments:

Post a Comment