Sunday, April 23, 2023

सुशासन के लिए आवश्यक है नीतिगत समीक्षा

शीर्ष अदालत का हालिया कथन कि सरकार की नीतियों की आलोचना करने को सत्ता का विरोध नहीं कहा जा सकता। उक्त कथन के आलोक में यह समझना आसान है कि नीतियों से सरकारें लोकहित को सुनिष्चित करती हैं और ऐसा न होने की स्थिति में नीति समीक्षा स्वाभाविक है जिसमें आलोच्य पक्ष भी सम्भव है तो इसका तात्पर्य यह कत्त्तई नहीं कि सरकार या सत्ता का यहां विरोध है। षोध और पड़ताल करके देखा जाये तो यह बहुतायत में मिलेगा कि मत देकर सत्ता की चैखट तक पहुंचाने वाला मतदाता अपनी ही सरकार की नीतियों का उधेड़बुन करता है और निहित मापदण्डों में यदि वह हित के विरूद्ध है तो आलोचना करता है। साफ है कि यह एक नीतिगत आलोचना है न कि सरकार पर कोई निजी दोशारोपण। एक नजरिया यह भी है कि लोकनीतियां आम आदमी के लिए बनायी जाती हैं, उसका क्रियान्वयन किया जाता है तत्पष्चात् उसका मूल्यांकन भी होता है कि आखिर इसमें निहित उद्देष्य मिला या नहीं। यदि उद्देष्य नहीं मिला तो अगली नीति में क्या सुधार करना है इसे समझने का प्रयास होता है और ऐसी स्थिति में यदि मीडिया या आमजन इन खामियों को उजागर करता है या उस पर कोई टिप्पणी करता है तो इसे सीमित विवेकषीलता के दायरे में नीति तक ही समझा जाये न कि सरकार की आलोचना या राश्ट्र विरोधी की संज्ञा में डाल देना। इतना ही नहीं भारत का सर्वोच्च कानून संविधान के भाग-3 के अनुच्छेद 19(1)(क) में वाक् एवं अभिव्यक्ति की जो स्वतंत्रता मिली है उसका भी रास्ता बिना किसी रूकावट बरकरार रहता है। भारत अपनी आजादी का अमृत महोत्सव मना रहा है। स्वतंत्रता के 75 साल बाद भी कठिनाईयों को खत्म करने का प्रयास समाप्त नहीं हुआ है। भुखमरी, गरीबी, बेरोज़गारी और महंगाई समेत कई बुनियादी और समावेषी समस्या से आज भी जनता कम-ज्यादा उलझी हुई है। ऐसे में सरकार की नीतियां भलाई की दृश्टि से कहीं अधिक प्रभावषाली होनी चाहिए। बावजूद इसके यदि कोई कमी रह जाती है तो उस पर टीका-टिप्पणी करना मतदाता का अधिकार है जो सुषासन की दृश्टि से कहीं अधिक समुचित भी है।
स्वयं प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भी जून 2014 में कहा था कि अगर हम बोलने और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की गारंटी नहीं देंगे तो हमारा लोकतंत्र नहीं चलेगा और लोकतंत्र केवल नीतियों के समर्थन का केवल पर्याय नहीं है यह उसके विरोध या आलोचना का मार्ग भी अपना सकता है। गौरतलब है कि वाक् एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता न केवल मूल अधिकार है बल्कि संविधान का मूल ढांचा भी है और इससे जनता को न वंचित किया जा सकता है और न ही रोका जा सकता है। मगर इस बात से गुरेज़ नहीं कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के बेजा होने से न केवल परिणाम खराब होंगे बल्कि लोग भी अनुत्पादक कहे जायेंगे। कहा जाये तो षालीनता और संविधान की भावना के अन्तर्गत की गयी अभिव्यक्ति मर्यादित और सर्वमान्य है। गौरतलब है कि 3 मार्च 2021 को सर्वोच्च न्यायालय ने एक बार फिर यह स्पश्ट किया था कि सरकार से अलग विचार रखना देषद्रोह नहीं है। बीते कुछ वर्शों से यह देखने को मिल रहा है कि कई प्रारूपों में वाक् एवं अभिव्यक्ति को लेकर देष का वातावरण गरम हो जाता है। जिसके चलते देषद्रोह के मुकदमों में भी बाढ़ आयी। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता सभी अधिकारों की जननी है इसी के चलते सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक मुद्दे जनमत को तैयार करते हैं। सभी सरकारें यह जानती हैं कि कई काम और बड़े काम करते समय नागरिकों के विचारों से संघर्श रहेगा और आलोचना भी होगी और ये आलोचनाएं सुधार की राह भी बतायेंगी और इन्हीं नीतिगत आलोचनाओं के बीच सुषासन की राह भी चिकनी होती है। लोकतंत्र और अभिव्यक्ति एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। एक पर आंच आती है तो दूसरे पर इसकी तपिष का असर पड़ता ही है। पड़ताल बताती है कि आंदोलनकारियों, छात्रों, बुद्धिजीवियों, किसानों, मजदूरों, लेखकों, पत्रकारों, कवियों, राजनीतिज्ञों और कई एक्टिविस्टों पर राजद्रोह के आरोप वाले गाज गिरते रहे हैं और इसे लेकर षायद ही कोई सरकार दूध से धुली हो।
देष में परम्रागत मीडिया के अलावा सोषल मीडिया और न्यू मीडिया समेत कई संचार उपक्रम देखे जा सकते हैं। इससे अभिव्यक्ति न केवल मुखर हुई है बल्कि वैष्विक स्वरूप लिए हुए है। सोषल मीडिया मानो आवेष से भरा एक ऐसा प्लेटफाॅर्म है जहां सच्चाई के साथ झूठ की अभिव्यक्ति स्थान घेरे हुए है। हालांकि इसकी कटाई-छटाई के मामले में भी सतर्कता बरतने का प्रयास किया जा रहा है। फरवरी 2021 में सरकार ने इस पर कुछ कठोर कदम उठाने का संकेत दिया था। देष में अभिव्यक्ति बहुत मुखर और आक्रामक होने की बड़ी वजह भौतिक स्पर्धा के अलावा लोकतंत्र के प्रति सचेतता भी है। लेकिन यह कहीं अधिक आक्रामक रूप लेती जा रही है। ऐसे में सरकारों को भी यह सोचने-समझने की आवष्यकता है कि देष को कैसे आगे बढ़ाये और जनता को लोकतंत्र की सीमा में रहते हुए कैसे मर्यादित बनाये। किसी भी सभ्य देष के नागरिक समाज को ही नहीं बल्कि सरकारों को भी विपरीत विचार, आलोचना या समालोचना को लेकर संवेदनषील होना चाहिए। हालांकि आक्रामकता भी लोकतंत्र की षालीनता ही है बषर्ते इसकी अभिव्यक्ति देषहित में हो। सरकारें भी गलतियां करती हैं इसके पीछे भले ही परिस्थितियां जवाबदेह हो पर इतिहास गलतियों को याद रखता है परिस्थितियों को नहीं। राहुल गांधी बहुत पहले से ही यह कह चुके हैं कि आपातकाल एक गलती थी इस बात को पुख्ता करता है। सरकार के फैसले भी कई प्रयोगों से गुजरते हैं ऐसे में जनहित को सुनिष्चित कर पाना बड़ी चुनौती रहती है। लोकनीतियों को लोगों तक पहुंचा कर उनके अंदर षान्ति और खुषियां बांटना सरकार की जिम्मेदारी और जवाबदेही है। यदि ऐसा नहीं होता है तो आलोचना स्वाभाविक है।
सरकारें बरसों-बरस काम करती हैं और सैकड़ों और हजारों फैसलों से गुजरती हैं उन्हीं में से कुछ नीतिगत फैसले जाने-अनजाने में जनहित को सुनिष्चित करने में कमतर रह जाती हैं। ऐसे में आलोचनात्मक किरकिरी होना स्वाभाविक है। मगर इसका यह तात्पर्य नहीं कि यह सरकार का विरोध है। समझने वाली बात यह भी है कि अच्छे कार्य के लिए जनता सरकार की पीठ थपथपाती है और प्रचण्ड बहुमत देकर सत्ता के षीर्श तक पहुंचाती है तो खराब काम के लिए आलोचना उसका अधिकार है। इस उदाहरण से बात को और आसानी से समझा जा सकता है कि भारत में क्रिकेट एक धर्म के रूप में जाना और समझा जाता है। जब यही खिलाड़ी पाकिस्तान या किसी अन्य देष से हार जाते हैं तो देष के आम जन इनकी चैक चैराहों पर न केवल आलोचना करते हैं बल्कि इनके खिलाफ बिगुल भी फूंक देते हैं लेकिन यही जनता जीत की परिस्थिति में इन्हीं खिलाड़ियों को सर-आंखों पर बिठाती है। इस उदाहरण से मात्र इतना कहना था कि सरकार माई-बाप होती है उससे बेइंतहा उम्मीद होती है, उसकी नीतियों के समर्थन में न होना पूरी सरकार के विरोध में होने जैसा कुछ भी नहीं है। ऐसे में सरकार को भी यह समझना चाहिए कि यह मतदाता का दृश्टिकोण है जो नीतिगत है जिसे सत्ता का विरोध नहीं समझने की उदारता दिखानी चाहिए। देखा जाये तो षीर्श अदालत ने इस मामले में एक बार अपनी दृश्टि डाल कर फिर से लोकतंत्र में प्रेस की स्वतंत्रता की आवष्यकता और जनता की भूमिका बड़ा बना दिया है।

दिनांक : 6/04/2023


डॉ0 सुशील कुमार सिंह
निदेशक
वाईएस रिसर्च फाउंडेशन ऑफ पॉलिसी एंड एडमिनिस्ट्रेशन
लेन नं.12, इन्द्रप्रस्थ एन्क्लेव, अपर नत्थनपुर
देहरादून-248005 (उत्तराखण्ड)
मो0: 9456120502

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